राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
परिवाद संख्या :73/1997
अनवर मोहम्मद आत्मज स्वर्गीय हाजी अब्दुल वहीद अमीर जमायत अहमदिया ग्राम व पोस्ट राठ, जिला हमीरपुर (उ0प्र0)
.................परिवादी
बनाम
1 हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड, पोस्ट आफिस हिन्द मोटर जिला हुगली (वेस्ट बंगाल)
2 हिन्दुस्तान आटोमोबाइल सर्विस स्टेशन, माल रोड कानपुर (उ0प्र0)
3 मे0 पी0 आटोमोबाइल प्राइवेट लिमिटेड, फ्रेसर रोड, पटना (बिहार)
.......... विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य
परिवादी के अधिवक्ता : श्री वी0पी0 शर्मा
विपक्षी के अधिवक्ता : श्री एम0एच0 खान
दिनांक : 02/12/2015
मा0 श्री जे0एन0 सिन्हा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवादी द्वारा वर्तमान परिवाद इस अभिवचन के साथ प्रस्तुत किया गया कि (अम्बेसडर नोवा डीजल कार) प्रश्नगत वाहन के निर्माता विपक्षी सं0-1 हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड है एवं विपक्षी सं0-2 हिन्दुस्तान आटो मोबाइल सर्विस स्टेशन, माल रोड कानपुर (उ0प्र0) राज्य के लिए निर्माता कम्पनी के अधिकृत सेवा क्रेन्द्र है एवं विपक्षी सं0-3 बिहार राज्य के संदर्भ में प्रश्नगत निर्माता कम्पनी के अधिकृत विक्रेता है। दिनांक 10.9.1994 को परिवादी ने प्रश्नगत कार (अम्बेसडर कार) प्राप्त करने हेतु रू0 2,40,350.00 मूल्य का बैंक ड्राफ्ट द्वारा उक्त वाहन की बुकिंग दिनांक 10.9.1994 को करायी गयी और बैंक ड्राफ्ट पटना के अधिकृत विक्रेता को प्राप्त कराया गया, जिसके फलस्वरूप दिनांक 15.9.1994 को प्रश्नगत वाहन विक्रेता को पटना में प्राप्त कराया गया और वाहन क्रय करने के उपरांत माइग्रेशन बाउचर के अन्तर्गत विपक्षी सं0-1 निर्माता कम्पनी के कानपुर स्थिति सेवा क्रेन्द विपक्षी सं0-2 हिन्दुस्तान आटोमाबाइल सर्विस
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स्टेशन कानपुर में प्रश्नगत कार (अम्बेसडर कार) का रजिस्ट्रेशन कराया गया। परिवादी ने प्रथम एक्स सर्विस विपक्षी सं0-1 के कानपुर स्थिति सेवा स्टेशन में दिनांक 15.9.1994 को 1742 किलो मीटर का प्रश्नगत कार चलाने के बाद करायी एवं परिवादी द्वारा उ0प्र0 के हमीरपुर जिले के आर0टी0ओ0 आफिस से प्रश्नगत कार को पंजीकृत कराया एवं प्रश्नगत कार की द्वितीय सर्विस विपक्षी सं0-2 के सर्विस स्टेशन कानपुर में जो कि निर्माता कम्पनी के अधिकृत सेवा केन्द्र है में करायी गई एवं प्रश्नगत कार को परिवादी अपने गृह जनपद हमीरपुर में चलाने के उपरांत यह पाया गया कि प्रश्नगत कार के अगले टायर घिस रहे हैं, जिसकी शिकायत परिवादी ने विपक्षी सं0-2 कानपुर के अधिकृत सेवा केन्द्र से की और वहॉ सर्विस करने के बाद यह बताया गया कि प्रश्नगत कार में कोई कमी नहीं है, लेकिन सर्विस के उपरांत भी प्रश्नगत कार में केवल टायर घिसने की शिकायत बनी रही एवं दिनांक 26.11.1994 को विपक्षी सं0-2 हिन्दुस्तान आटोमोबाइल सर्विस स्टेशन कानपुर में शिकायतकर्ता ने अगले टायर के घिसने की शिकायत की तो तीसरी सर्विस करते हुए भी प्रश्नगत कार के एलाइमेंट की चेकिंग करके कार आगे के टायरों को पलटते हुए परिवादी को पुन: आश्वस्त किया कि अब भविष्य में उक्त दोष नहीं रहेगा और तद्नुसार पुन: टायर घिसने लग। तत्पश्चात परिवादी ने विशेषज्ञयों की राय प्राप्त की तो उसे पता चला कि प्रश्नगत कार का एलाइनमेंट सही नहीं है और यह निर्माण सम्बन्धी दोष है एवं इस संदर्भ में हिन्द व्हील सर्विस सेन्टर कानपुर में भी दिनांक 02.02.1995 को परीक्षण कराया गया और इस तथ्य की पुष्टि हुई, अत: प्रश्नगत कार की त्रुटि की बावत अधिकृत विक्रेता (विपक्षी सं0-3) एवं अधिकृत सेवा केन्द्र (विपक्षी सं0-2) को परिवादी ने सूचित किया एवं विपक्षी सं0-2 जो कानपुर में सेवा केन्द्र के रूप में स्थित है से परिवादी ने अनुरोध किया कि प्रश्नगत कार के बदले दूसरी कार सव्यय परिवादी को उपलब्ध करा दी जाय।
परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से यह अभिवचित किया गया है कि विपक्षी सं0-3 (अधिकृत विक्रेता जो पटना बिहार में स्थित है) से प्रश्नगत कार दिनांक 15.9.1994 को क्रय की गई थी एवं वारण्टी कार्ड एवं माइग्रेशन वाउचर के अनुसार प्रश्नगत कार के रिपेयर का रजिस्ट्रेशन विपक्षी सं0-2 सेवा केन्द्र स्थित कानपुर के यहॉ दिनांक 23.9.1994 को
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किया गया, अत: विपक्षी सं0-2 सेवा केन्द्र कानपुर का यह दायित्व था कि वह प्रश्नगत कार के दोष मुक्त पुर्जे को बदलकर कमी को दूर करते, परन्तु विपक्षी सं0-2 व 3 द्वारा ऐसा नहीं किया गया। परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से यह भी अभिवचित किया गया है कि विपक्षी सं0-2 सेवा केन्द्र कानपुर विपक्षी सं0-1 का प्रतिनिधि है एवं विपक्षीगण के लखनऊ के कार्यालय द्वारा परिवादी को दिनांक 16.5.1997 को पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें परिवादी से कहा गया था कि प्रश्नगत वाहन को विपक्षी सं0-2 कानपुर सेवा केन्द्र में पुन: चैकिंग के लिए ले जाए, जिसके फलस्वरूप परिवादी प्रश्नगत वाहन को कानपुर में विपक्षी सं0-2 के यहॉ चैकिंग के लिए ले गया, फिर भी प्रश्नगत कार के दोषों को दूर नहीं किया जा सका।
परिवादपत्र में स्पष्ट रूप से यह अभिवचित किया गया है कि प्रश्नगत कार में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि है, अत: परिवाद पत्र के माध्यम से निम्नलिखित अनुतोष की याचना की गई है:-
क) विपक्षीगण से प्रश्नगत कार प्राप्त कर उसी विवरण की नई त्रुटि रहित कार प्रदान करें अथवा परिवादी द्वारा 15 सितम्बर, 1994 को अदा किया गया प्रश्नगत कार का मूल्य 2,40,350.00 रू0 व उस पर दिनांक 15.9.1994 से 14.7.1997 तक 24 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज अदा करें जो कि रू0 1,63,438.00 होता है।
ख) विपक्षीगण शिकायतकर्ता को रू0 50,000.00 प्रतिकर आंशिक क्षतिपूर्ति हेतु रू0 50,000.00 प्रतिकर मानसिक त्रास हेतु अदा करें।
ग) यह भी अनुरोध किया गया कि विपक्षीगण से परिवादी को 5,000.00 बतौर वाद व्यय अदा किया जाए।
विपक्षी सं0-1 निर्माता कम्पनी द्वारा परिवाद का विरोध करते हुए लिखित आपत्ति योजित की गई एवं विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह कहा गया कि वर्तमान परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग उ0प्र0 के समक्ष पोषणीय नहीं है क्योंकि प्रश्नगत वाहन को पटना बिहार के अधिकृत विक्रेता विपक्षी सं0-3 के यहॉ से अविवादित रूप से क्रय किया गया और विपक्षी सं0-1 निर्माता कम्पनी कलकत्ता बंगाल में स्थित है एवं परिवाद पत्र के अभिवचनों के अनुसार विपक्षी सं0-2 हिन्दुस्तार आटोमोबाइल सर्विस स्टेशन, कानपुर में स्थित है, परन्तु यह प्रश्नगत निर्माता कम्पनी के वाहनों के संदर्भ में सेवा क्रेन्द्र है एवं अविवादित रूप से
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प्रश्नगत वाहन को पटना बिहार में विक्रय किया गया और केवल इस बात से कि प्रश्नगत वाहन के स्वामी उ0प्र0 के जनपद हमीरपुर में रहते है और प्रश्नगत वाहन का प्रयोग जनपद हमीरपुर में किया जा रहा है और प्रश्नगत वाहन की कमी और मरम्मत के संदर्भ में कानपुर में अधिकृत सेवा केन्द्र है केवल इसी आधार पर प्रश्नगत परिवाद के माध्यम से जो अनुतोष मॉगा गया है, उसके संदर्भ में वाद कारण उ0प्र0राज्य की सीमा के अन्तर्गत होना स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
उपरोक्त तर्क के खण्डन में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन में त्रुटि पायी गई और त्रुटि के निवारण हेतु कानपुर के सेवा केन्द्र विपक्षी सं0-2 निर्माता कम्पनी के अधिकृत सेवा केन्द्र है एवं प्रश्नगत कार को हमीरपुर उ0प्र0 से पंजीकृत कराया गया है, ऐसी स्थिति में परिवाद राज्य आयोग, उ0प्र0 के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आता है।
अविवादित रूप से प्रश्नगत वाहन जनपद पटना बिहार राज्य के अधिकृत विक्रेता के माध्यम से क्रय किया गया एवं परिवाद के माध्यम से इस आशय का अनुतोष मॉगा गया है कि विपक्षीगण को आदेशित कर दिया जाय कि प्रश्नगत कार को प्राप्त कर उसी विवरण की नई त्रुटि रहित कार परिवादी को उपलब्ध करायी जाय। वास्तव में परिवादी द्वारा प्रश्नगत कार की कीमत जो उसने दिनांक 15.9.1994 को अदा की थी, उसे 24 प्रतिशत ब्याज सहित दिलायी जाय एवं रू0 1,00,000.00 क्षतिपूर्ति और रू0 5,00,000.00 वाद व्यय भी दिलाया जाय। परिवाद पत्र के माध्यम से प्रश्नगत कार के बदले नई कार उपलब्ध कराये तथा इस आशय का अनुतोष मॉगा गया है कि विकल्प में प्रश्नगत की कीमत मय ब्याज के दिलाया जाय, जो निश्चित ही विपक्षी सं0-1 निर्माता कम्पनी और अधिकृत निर्माता (विपक्षी सं0-3) जो पटना में स्थित है, से सम्बन्धित है एंव विपक्षी सं0-2 जो कानपुर में स्थित है वह केवल प्रश्नगत कार की त्रुटि के निवारण हेतु सेवा केन्द्र के रूप में है और इस संदर्भ में परिवाद पत्र की धारा-3 में स्पष्ट रूप से यह अभिवचित है कि विपक्षी सं0-2 उ0प्र0 राज्य के कानपुर नगर में विपक्षी सं0-1 निर्माता कम्पनी द्वारा नियुक्त उनका अधिकृत सेवा केन्द्र है और सेवा केन्द्र द्वारा नई कार उपलब्ध करायी गई है। अत: प्रश्नगत उपरोक्त अनुतोष विपक्षी सं0-2 सेवा केन्द्र द्वारा प्रदान
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नहीं किया जा सकता है और इस प्रकार परिवाद प्रस्तुत करने का वाद कारण किसी भी दृष्टिकोण से उ0प्र0 राज्य की सीमा के अन्तर्गत उत्पन्न होना नहीं पाया जाता है। अत: वर्तमान परिवाद उ0प्र0 राज्य आयोग के क्षेत्राधिकार से परे है।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन अविवादित रूप से दिनांक 15.4.1994 को क्रय किया गया था और परिवाद पत्र के अभिवचन के अनुसार ही दिनांक 02.02.1995 को परिवादी को अंतिम रूप से विशेषज्ञों की राय के पश्चात विपक्षी सं0-2 में परीक्षण के पश्चात यह स्पष्ट हो गया कि प्रश्नगत कार में जो त्रुटि है, वह निर्माण सम्बन्धी त्रुटि है और इस संदर्भ में दिनांक 20.02.1995 को परिवादी ने विपक्षीगण को लिखित सूचना भी दी और वर्तमान परिवाद दिनांक 05.8.1997 को योजित किया गया है, जो निश्चय ही दो वर्ष बीत जाने के पश्चात प्रस्तुत किया गया है। इस संदर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा पीठ का ध्यान मा0 उच्चतम न्यायालय की नजीर State Bank of India Vs. B.S. Agriculturai Industries (I) II (2009) CPJ 29 (SC) की ओर आकर्षित कराया गया, जिसमें यह पाया गया कि यदि परिवाद कालबाधित है, तो विलम्ब क्षमा किये जाने हेतु प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। वर्तमान परिवाद में विलम्ब क्षमा किये जाने हेतु प्रार्थनापत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है एवं परिवाद पत्र के अभिवचन के अनुसार जो वाद कारण उत्पन्न हुआ उसको देखते हुए वर्तमान परिवाद कालबाधित है। विपक्षी के विद्वान अधिवकता के उक्त तर्क के खण्डन में परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी सं0-1 निर्माता कम्पनी के विशेषज्ञ इंजीनियर को टेलीफोन की सूचना पर दिनांक 10.7.1995 को परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन को कानपुर के विपक्षी सं0-2 के सेवा केन्द्र पर प्रस्तुत किया गया और वहॉ पर विपक्षी सं0-1 के विशेषज्ञ इंजीनियर द्वारा प्रश्नगत कार की जॉच की गई और अगला हिस्सा खुलवाकर आगे लगे टायर पीछे और पीछे लगे टायर आगे लगवा दिये गये और यह कहा गया कि दोष ठीक हो गया है, परन्तु दोष ठीक नहीं हुआ। दिनांक 03.11.1995 को परिवादी ने विपक्षी को लिखित नोटिस दिया, अत: दिनांक 03.11.1995 से गणना की जाय, और उसके अनुसार
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जो परिवाद दिनांक 05.8.1997 को योजित किया गया, कालबाधित नहीं है।
परिवादी के उक्त तर्क के संदर्भ में इतना ही कहना पर्याप्त है कि परिवादी के पत्र के आधार पर परिवाद प्रस्तुत करने की सीमा की गणना नहीं की जा सकती है और इस संदर्भ में मा0 उच्चतम न्यायालय की उपरोक्त वर्णित नजीर में स्पष्ट रूप से सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। परिवाद पत्र के अभिवचन के दृष्टिगत परिवाद का कालबाधित होना स्वीकार किये जाने योग्य है और इस संदर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल पाया जाता है।
सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि वर्तमान परिवाद कालबाधित है एवं उ0प्र0 राज्य आयोग के क्षेत्राधिकार से परे है, अत: परिवाद खण्डित किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद खण्डित किया जाता है।
वाद व्यय पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
(जे0एन0 सिन्हा) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-3