राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या– 904/2008 सुरक्षित
( जिला उपभोक्ता फोरम कानपुर नगर, द्वारा परिवाद सं0-385/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 16-04-2008 के विरूद्ध)
Bank of Baroda, a body corporate, constituted under Banking companies ( Acquisition & Tranfer of undertakings) Act, 1970 having its Head office at Mandvi, Baroda (Gujrat) one of its Zonal office at Hazratgang, Lucknow and Regional office amongst other places at Kanpur and one of its Branch office at 77, Fazalganj, Kanpur- 208012, Through its senior Branch Manager.
..अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
- M/S Guru Ramdas Industries, through its partner Shri Karamjeet Singh S/o Late Shri Bhaag singh Factory Situated at 123/702, Fazalganj, Kanpur Nagar.
- Shri Karamjeet singh S/0 Late Shri Bhaag Singh, Factory situated at 123/702, Fazalganf, Kanpur Nagar ...प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
- National Insurance Company, 133/120 ‘E’ Block, Transport Nagar, Kanpur Nagar, through its Branch Manager.
- The District Consumer Forum, Kanpur Nagar through its Chairman, Coll ectorate Compound, Kanpur Nagar. .......प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति: श्री महेन्द्र प्रताप सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : श्री काशीनाथ शुक्ला, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक- 08-12-2015
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम कानपुर नगर, द्वारा परिवाद सं0-385/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 16-04-2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
“परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-1 बैंक को आदेश दिया जाता है कि निर्णय के दिनांक से 30 दिन के अन्दर रूपया 12,92,302-00 घटना के दिनांक से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ परिवादी को भुगतान करें तथा वाद व्यय 2,000-00 रूपये अदा करें। न करने पर सम्पूर्ण राशि पर व्याज देय होगा। विपक्षी चाहे तो लापरवाह अधिकारी/कर्मचारी से उक्त धनराशि वसूल सकता है। विपक्षी सं0-2 बीमा कम्पनी के विरूद्ध परिवाद निरस्त किया जाता है।”
(2)
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी ने परिवाद दिनांक 15-05-2006 को विपक्षीगण के विरूद्ध इस आशय का प्रस्तुत किया था कि गुरू राम दास इण्डस्ट्रीज के संचालन हेतु विपक्षी सं0-1 से प्रथम चरण में 5 लाख रूपये का टर्न लोन एकाउन्ट नं0 2539 के तहत स्वीकृत हुआ था। व्यापार बावत उक्त लोन एकाउन्ट का संचालन भी किया जा रहा था एवं उक्त् भागीदारी फर्म गुरू रामदास इण्डस्ट्रीज द्वारा विपक्षी सं0-1 से मु0 10,00,000-00 रूपये की लिमिट हेतु निवेदन किया गया था। विपक्षी सं0-1 की शर्तानुसार उक्त इण्डस्ट्रीज का इंश्योरेंस विपक्षीसं0-3 द्वारा ही समस्त औपचारिकताओं के पूर्ण अनुक्रमोपरान्त किये जाने की बाध्यता थी तथा बीमा किश्त की धनराशि विपक्षी सं0-1 विपक्षी सं0-2 को सीधे ऋण खाते से उपलब्ध कराया जाना था। जिस बावत दिनांक 22-03-2006 को भागीदारी फर्मके खाते से रूपया 9766-00 की धनराशि विपक्षी सं0-2 को अदा किया जाना दर्शाते है। परिवादीगण की उक्त भागीदारी फर्म में दिनांक 22-03-2006 को 12 बजे रात्रि रात्रि में आग लगने की दुर्घटना घटित हुई। आग फायर बिग्रेड द्वारा बुझाई गई, जिससे लगभग 20 लाख रूपये की फर्म की क्षति हुई। उक्त अग्निकांड की विधिक सूचना विपक्षी सं0-1 एवं विपक्षी सं0-2 को देते हुए यह निवेदन भी किया गया कि क्षति बावत सर्वेयर नियुक्त किया जाए, लेकिन विपक्षीगण ने ऐसा न करके पुन: स्मरण प्रेषित विधिक नोटिस का जवाब परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि तक नहीं दिया तथा विपक्षी सं0-1 द्वारा परिवादी की फर्म की लिमिट खाते को भी बन्द कर दिया गया। परिवादी की विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा क्लेम क्षतिपूर्ति धनराशि न प्रदानकर तथा लिमिट एकाउण्ट बंद कर उत्पीडि़त किया जा रहा है। अत: परिवादी को हुई कुल क्षति हेतु रूपया 19 लाख विपक्षीगण से दिलवाया जाय।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी सं0-2 उपस्थित आये और अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया, जिसमें कहा गया है कि बीमा सम्बन्धी कोई भी संविदा परिवादी एवं एन0 आई0सी0 लि0 के बीच नहीं हुई थी, इसलिए परिवादी विपक्षी सं0-2 का कभी भी उपभोक्ता नहीं रहा है। विपक्षी सं0-1 व 2 के बीच दिनांक 01-06-2004 को एग्रीमेंट के तहत (Condition No:2 (a) subclasses(1) to (xvii) के अनुसार बीमा कम्पनी को जब तक वास्तविक रूप से बीमा राशि प्राप्त नहीं हो जाता वह बीमा अधिनियम की धारा-64 वी0बी0 के तहत उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। बैंक के पत्र दिनांकित 23-03-2006 एवं उसके परिप्रेक्ष्य में दिनांक 24-03-2006 के द्वारा बैंक को वापस किए गये। बैंकर्स चेक सं0- 333645 दिनांकित 22-03-2006 रूपया9,766-00 में परिस्थ्िातियों का विवरण है, जिसके तहत बैंक द्वारा समय से प्रीमियम अदा न करना विपक्षी सं0-2 किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति हेतु जिम्मेदार नहीं है। अत: विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध परिवाद पत्र सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
विपक्षी सं0-1 के द्वारा परिवाद के प्रारम्भिक स्तर पर उपस्थिति दर्ज कराने के पश्चात कभी उपस्थित नहीं हुआ।
(3)
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री महेन्द्र प्रताप पाण्डेय तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री काशीनाथ शुक्ला, उपस्थित है। दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना गया। अपील आधार का अवलोकन किया गया।
अपीलकर्ता के तरफ से यह कहा गया है कि जिला उपभोक्ता फोरम में उनको सुनवाई का मौका नहीं मिला और एक पक्षीय निर्णय उनके विरूद्ध पारित कर दिया गया। यह भी कहा गया है कि बैंक व प्रत्यर्थी के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत बीमा कराने की जिम्मेदारी ऋणी की थी। यह भी कहा गया कि अपीलकर्ता जिला मंच के समक्ष अपना पक्ष नहीं रख सके थे, क्योंकि उनके अधिवक्ता पैरवी के समय विदेश चले गये थे और बैंक को मालूम नहीं हुआ।
केस के तथ्यों परिस्थितियों को देखते हुए और ऋण की शर्तो को साबित करने के लिए हम यह पाते हैं कि उक्त केस को पुन: सुनवाई/साक्ष्य के लिए जिला उपभोक्ता फोरम को रिमाण्ड किया जाना न्यायोचित है और अपीलकर्ता की अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
तद्नुसार अपीलकर्ता की अपील स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम कानपुर नगर, द्वारा परिवाद सं0-385/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 16-04-2008 को निरस्त करते हुए उक्त प्रकरण रिमाण्ड किया जाता है तथा यह निर्देशित किया जाता है कि उभय पक्ष को पुन: साक्ष्य/सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुए उक्त प्रकरण का निस्तारण यथाशीघ्र गुणदोष के आधार पर करना सुनिश्चित करें।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
(आर0सी0 चौधरी) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं05