सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-174/2014
Bhanu Pratap Sirohi aged about 31 years son Sri Ram Kumar Sirohi resident of Flat No.302, Sewak Sadan Plot No. 16 Road No. 20 Sector 12, New Panvel, District Raigad, (Maharastra) Permanent Resident of House No. 118 Village Saina, Post office Simbhali, District Hapur, Uttar Pradesh.
Presently residing at 604, A, wing, Orchid, Prestige, Residency, behind Dalal Engineering, Ghodbunder Road, Kaveser, Thane(W) Maharastra.
परिवादी
बनाम्
- M/s Gaur Sons Promoters Pvt. Limited.
New Corporate Office-Gaur wiz Park, Plot No. 1, Abhey Khand-2, Indirapuram, Ghaziabad. U.P.
(W.e.f.dated 26.01.2-013)
Old Corporate Office, D-12, Sector 63, Noida District Gautam Buddha Nagar, U.P.
Registered Office-D-25, Vivek Vihar, New Delhi-110095.
- Through Director Sri Manoj Gaur resident of R-8/23, Raj Nagar, Ghaziabad, U.P.
- Through Director Smt. Manju Gaur Wife of Sri Manoj Gaur resident of R-8/23, Raj Nagar, Ghaziabad, U.P.
.................... विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी सदस्य।
1- परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री विनोद कुमार।
2- विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री प्रतुल श्रीवास्तव
दिनांक : 23-02-2017
माननीय श्रीमती बाल कुमारी सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवादी Bhanu Pratap Sirohi ने यह परिवाद विपक्षीगण M/s Gaur Sons Promoters Pvt. Limited. New Corporate Office-Gaur wiz Park, Plot No. 1, Abhey Khand-2, Indirapuram, Ghaziabad. U.P. व दो अन्य के विरूद्ध धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत प्रस्तुत करते हुए इस आशय का अनुतोष मांगा गया है कि विपक्षी को निर्देशित किया जाए कि वह परिवादी से शेष धनराशि किश्तों में प्राप्त कर प्रश्नगत आवंटित भवन को परिवादी को उपलब्ध करा दें एवं विपक्षी द्वारा ब्याज की मांग को निरस्त कर दिया जाए। परिवादी द्वारा क्षतिपूर्ति के रूप में पन्द्रह लाख रूपये तथा वाद व्यय का अनुतोष भी मांगा गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि परिवादी ने एक फ्लैट विपक्षीगण के यहॉं गौड सिटी-2 जी0एच0-03, सेक्अर-16 सी, ग्रेटर नोयडा, उ0प्र0 में लेने के लिए दिनांक 29-01-2011 को एक प्रार्थना पत्र विपक्षीगण के यहॉं दिया, जिसके आधार पर विपक्षीगण ने परिवादी को एक फ्लैट संख्या-5047 दिनांक 08-04-2011 को आवंटन पत्र के द्वारा आवंटित किया। परिवादी ने 51,000/-रू0 की धनराशि विपक्षी के यहॉं जमा कर दी और फ्लैट की कुल कीमत 24,22,050/-रू0 थी और विपक्षी को इस फ्लैट का कब्जा दिनांक 31-08-2015 को देना था। फ्लैट की कीमत की बकाया दस प्रतिशत धनराशि मु0 20,1000/-रू0 चेक द्वारा दिनांक 28(9-01-2011 को विपक्षी के यहॉं जमा करा दी तथा वह चेक दिनांक 13-04-2011 को विपक्षी के हक में क्लीयर हो गया। इस प्रकार 9,795/-रू0 की धनराशि विपक्षी की डिमाण्ड से भी ज्यादा अदा कर दी थी लेकिन उपरोक्त फ्लैट की जमीन पर झगड़ा, माननीय उच्च न्यायालय में चल रहा था। मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने दिनांक 21-10-2011 को स्टे कर दिया, परन्तु न्यायालय ने यह स्टे अपने आदेश पत्र दिनांक 24-08-2012 के तहत वैकेट कर दिया था। विपक्षीगण ने दिनांक 03-11-2012 को परिवादी से धनराशि मु0 7,45,327/-रू0 की मांग की और विपक्षीगण ने यह कहा कि यह धनराशि दिनांक 10-04-2012 को डयू थी। विपक्षीगण ने एक और धनराशि 3,74,534/-रू0 दिनांक 25-08-2012 तक की परिवादी से मांगी थी। यह धनराशि विपक्षी के अनुसार दिनांक 25-08-2012 को परिवादी पर डयू थी। विपक्षीगण ने परिवादी से मांगी गयी उपरोक्त धनराशि ब्याज की धनराशि मु0 1,78,143/-रू0 परिवादी से गलत मांगी थी। अत: परिवादी ने विपक्षीगण को एक नोटिस दिनांक 03-11-2012 को भेजा और यह कहा कि विपक्षी द्वारा मांगा गया ब्याज बिल्कुल गलत है उसे समाप्त किया जाये। विपक्षीगण ने वादी के नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया। पुन: परिवादी ने विपक्षीगण को नोटिस दिनांक 24-12-2012 भेजा तब विपक्षीगण द्वारा दिनांक 21-12-2012 को भेजा गया पत्र दिनांक 04-01-2013 को परिवादी को मिला, जिसके द्वारा उन्होंने परिवादी का आवंटन निरस्त कर दिया है। जबकि परिवादी करार के अनुसार सभी अवशेष धनराशि ब्याज सहित देने को तैयार रहा है और परिवादी को विपक्षीगण की कार्यप्रणाली से अार्थिक हानि व मानसिक परेशानी हुई है। ऐसी स्थिति में परिवादी ने विपक्षीगण को नोटिस दिया जिसका कोई जवाब विपक्षीगण ने नहीं दिया तब परिवादी ने जिला फोरम गाजियाबाद में परिवाद संख्या-76/2013 दायर किया जो दिनांक 09-10-2014 को आर्थिक क्षेत्राधिकार न होने के आधार पर निरस्त कर दिया गया। इसके बाद प्रमाणित प्रति प्रपत्रों की प्राप्त कर यह परिवाद मा0 आयोग के समक्ष समय-सीमा के अंदर दाखिल किया है।
विपक्षीगण ने अपने जवाब में परिवादी के कुछ कथनों को स्वीकार किया है और कुछ को अस्वीकार किया है और यह कहा कि परिवादी का उपरोक्त फ्लैट 1205 वर्ग फिट था। उसकी कुल कीमत 24,22,050/-रू0 थी। परिवादी ने बुक कराकर विपक्षीगण से उपरोक्त फ्लैट का आवंटन दिनांक 20-01-2011 को कराया था। विपक्षीगण ने उपरोक्त फ्लैट की कीमत की बकाया किश्त अपने दो पत्र के तहत परिवादी से मांगी थी। विपक्षीगण के अनुसार दिनांक 15-04-2012 को उक्त फ्लैट की किश्त 7,26,651/- बकाया थी तथा दिनांक 25-08-2012 तक परिवादी की तरफ से और रकम मु0 3,63,307/-रू0 बकाया थी। इसके विपरीत परिवादी ने सिर्फ रकम मु0 2,42,205/-रू0 ही विपक्षी को अदा किया है। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्टे आर्डर वर्तमान भवन पर लागू नहीं था। परिवादी ने शर्तों के अनुसार फ्लैट की कीमत अदा नहीं की है और वह डिफाल्टर रहा है। ऐसी स्थिति में विपक्षीगण के पास एलाटमेंट निरस्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। अत: दिनांक 21-12-2012 को उन्होंने आवंटन निरस्त कर दिया है।
परिवादी द्वारा अपने कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र व पूरक शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है तथा ग्रेटर नोयडा औघोगिक विकास प्राधिकरण द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 24-08-2012 पूरक शपथ पत्र के संलग्नक-5 A.1 के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अन्य अभिलेखीय साक्ष्य भी प्रस्तुत किये है।
विपक्षीगण द्वारा अपने कथन में राजीव यादव लीगल मैनेजर (प्रबन्धक) का शपथ पत्र दिनांक 23-02-2016 दाखिल किया है।
परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी ने विपक्षीगण की उक्त स्कीम में रहने के लिए फ्लैट संख्या-5047 दिनांक 29-01-2011 को आवंटन पत्र परिवादी को निर्गत कर दिया। परिवादी के फ्लैट की कुल कीमत 24,22,050/-रू0 थी और दिनांक 31-08-2015 को पूर्ण रूप से निर्मित फ्लैट देना था। परिवादी ने 20,1000/-रू0 विपक्षी की डिमाण्ड पर और जमा कर दिया। मार्च, 2011 में किसानों व ग्रेटर नोएडा औघोगिक विकास प्राधिकरण के बीच कुछ विवाद हो गया जिस पर मा0 उच्च न्यायालय ने दिनांक 21-10-2011 को स्टे कर दिया तथा यह स्टे 24-08-2012 को समाप्त कर दिया गया इसलिए विपक्षी उक्त तिथियों के बीच का ब्याज 1,78,144/-रू0 लेने का अधिकारी नहीं है तथा शेष धनराशि उस पर निर्धारित ब्याज परिवादी विपक्षीगण को देने को तैयार है।
निर्विवाद रूप से विपक्षी ने डिमाण्ड पत्र दिनांक 03-11-2012 के द्वारा परिवादी से 7,45,327/-रू0 की एक धनराशि की मांग की थी जो दिनांक 15-04-2012 तक देय धनराशि बतायी गयी थी। इसके साथ ही 3,74,534/-रू0 की दूसरी धनराशि की मांग की गयी थी जो दिनांक 25-08-2012 तक देय धनराशि बतायी गयी थी। परिवादी के अनुसार विपक्षी द्वारा जो उपरोक्त अवशेष धनराशियों की मांग की गयी थी उसमें 1,78,144/-रू0 गलत तौर पर ब्याज की धनराशि जोड़ी गयी थी इसका आधार परिवादी की ओर से यह बताया गया है कि मा0 उच्च न्यायालय के आदेश से निर्माण कार्य दिनांक 21-10-2011 से 24-08-2012 तक रूका था जिसे ग्रेटर नोयडा औघोगिक विकास प्राधिकरण के आदेशानुसार ब्याज सहित शून्य काल घोषित किया गया है अत: उक्त अवधि में कोई ब्याज देय नहीं है।
परिवादी की ओर से ग्रेटर नोयडा औघोगिक विकास प्राधिकरण के पत्र दिनांक 24-08-2012 की प्रति हमारे समक्ष उक्त आशय की प्रस्तुत की गयी है।
विपक्षी का कथन है कि मा0 उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश प्रश्नगत निर्माण पर लागू नहीं था अत: ग्रेटर नोयडा औघोगिक विकास प्राधिकरण का यह पत्र परिवादी पर लागू नहीं होता है, परन्तु परिवादी ने स्पष्ट रूप से इस आशय का कथन परिवाद पत्र में किया है और परिवादी ने इस आशय की आपत्ति विपक्षी के मांग पत्र प्राप्त होने पर विपक्षी के पास दिनांक 03-11-2012 को भेजने का कथन परिवाद पत्र की धारा-10 में किया है, परन्तु लिखित कथन में विपक्षीगण ने मांग पत्र दिनांक 03-11-2012 के विरूद्ध परिवादी की आपत्ति होने से इंकार नहीं किया है और न ही उन्होंने यह कहा है कि परिवादी की आपत्ति पर विचार करने के उपरान्त उसे अस्वीकार कर दिया गया और उसकी सूचना परिवादी को दी गयी तब निरस्तीकरण आदेश पत्र दिनांक 21-12-2012 जोरी किया गया है। निरस्तीकरण पत्र दिनांक 21-12-2012 में ऐसा उल्लेख नहीं है।
अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि विपक्षी के मांग पत्र दिनांक 03-11-2012 में परिवादी द्वारा ब्याज 1,78,144/-रू0 की धनराशि गलत लगाये जाने के विरूद्ध जो आपत्ति विपक्षी को भेजी गयी है उसका निस्तारण किये बिना और उसकी सूचना परिवादी को दिये बिना विपक्षीगण ने परिवादी का आवंटन निरस्त कर दिया है जो हमारी राय में अनुचित व्यापार पद्धति है।
परिवादी की आपत्ति पर विचार कर विपक्षी को निर्णय लेना चाहिए था और निर्णय से परिवादी को सूचित करना चाहिए था और तब उसका आवंटन निरस्त करना चाहिए था। अत: ऐसी स्थिति में हम इस मत के हैं कि विपक्षीगण ने परिवादी का आवंटन निरस्त कर सेवा में त्रुटि की है।
परिवादी आवंटन करार की शर्तों के अनुसार सम्पूर्ण बकाया धनराशि ब्याज सहित अदा करने को तैयार है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि विपक्षीगण द्वारा जारी निरस्तीकरण दिनांक 21-12-2012 को निरस्त किया जाना उचित है। सम्पूर्ण अवशेष धनराशि आवंटन करार के अनुसार ब्याज सहित परिवादी तीन माह के अंदर विपक्षीगण को अदा करें और यदि वह सम्पूर्ण अवशेष धनराशि का भुगतान उक्त अवधि में करने में असफल रहता है तो विपक्षीगण परिवादी का आवंटन विधि के अनुसार निरस्त करने हेतु स्वतंत्र होंगे।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है। हमारी राय में परिवादी को और कोई क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु उचित आधार नहीं है।
आदेश
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी द्वारा परिवादी का आवंटन जो पत्र दिनांक 24-12-2012 के द्वारा निरस्त किया गया है उसे इस शर्त पर अपास्त किया जाता है कि परिवादी इस निर्णय की तिथि से तीन माह के अंदर सम्पूर्ण अवशेष धनराशि आवंटन करार पत्र के अनुसार ब्याज सहित परिवादी को अदा करेंगे और यदि इस अवधि में वह सम्पूर्ण धनराशि ब्याज सहित विपक्षीगण को अदा करने में असफल रहता है तो विपक्षीगण आवंटन विधि के अनुसार निरस्त करने हेतु स्वतंत्र होंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा