सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
परिवाद संख्या 26 सन 2006
Bal krishna Rastogi, Adult, Son of Late Shri Bhagwat Das Rastogi, Resident of A-1/2 Sector- 'B' G.S.I Road, Aliganj, Lucknow
............अपीलार्थी
बनाम
1- M/s Eldeco Housing & Industries Ltd, Through : Its Managing Director Registered Office- 11/50 Bagh Muzaffar Khan, Agra Divisional Office 1St Floor, Pragati Kendra, Kapoorthala, Aliganj, Lucknow .
2- M/s Ainsa Structure Through: Mrs. Asha Garg 289, Eldeco Greens, Rafi Ahmad Kidwai Nagar, Near Nehru Enclave, Gomtinagar, Lucknow.
3- Lucknow development Authority Lucknow. Through Its Vice Chairman vipin khand, Gomtinangar, Lucknow.
. .............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव ।
विपक्षी सं0 1 व 2 की ओर से विद्वान अधिवक्ता- श्री आर0के0गुप्ता ।
विपक्षी सं0 3 की ओर से विद्वान अधिवक्ता - सुश्री निन्नी श्रीवास्तव ।
दिनांक:
श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद, इन उपबंधों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी संख्या-1, मै0 एल्डिको एण्ड हाउसिंग लि0 एवं मै0 अऐंसा स्ट्रक्चर द्वारा समाचार पत्रों में व्यवसायिक-कम आवासीय काम्प्लेक्स ''कुसुम दीप'' में आवंटन हेतु विज्ञापन दिया गया । विपक्षी संख्या 1 व 2 ने उक्त भूमि विपक्षी संख्या 3, लखनऊ विकास प्राधिकरण से प्राप्त की थी। परिवादी ने दिनांक 02.8.1989 को आफिस स्पेस तथा यूनिट संख्या 101, क्षेत्रफल 2689 वर्गफीट एवं एडजसेंट यूनिट संख्या 102 क्षेत्रफल 2281 वर्गफीट हेतु आवंटन किया था। उक्त सम्पत्ति परिवादी को क्रमश: 3,76,462.00 रू0 एवं 3,19,340.00 रू0, कुल मूल्य 06,95,802.00 पर आवंटित की गयी थी, जिसके संबंध में 27.3.1995 एवं 28.02.1995 को अनुबंध किया गया जिसका पंजीकरण दिनांक 28.3.1995 एवं 25.3.1995 को निम्नलिखित उपबंधों के साथ निष्पादित किया गया :-
" Along with the said commercial space, proportionate, undivided and imparitable joint interest in the land below and the commercial services etc, Also was promised to be transferred by the opposite party no. 1 to the complainant ."
परिवादी द्वारा पूर्ण विक्रय प्रतिफल दिनांक 28.3.1995 को अदा कर दिया गया। परिवादी के ऊपर केवल स्टाम्प डयूटी तथा रजिस्ट्रेशन चार्ज के रूप में 01,50,000.00 रू0 देना बाकी रह गया था। परिवादी ने कई बार विपक्षीगण से विक्रय-पत्र निष्पादित करने हेतु कहा, किंतु विपक्षीगण 1 एवं 2 द्वारा विक्रय-पत्र निष्पादित नहीं किया गया और इस प्रकार विपक्षीगण 1 व 2 द्वारा सेवा में कमी की गयी। परिवादी को यह भी पता चला कि पिछले वर्षो में विपक्षी संख्या 1 व 2 ने कई विक्रय-पत्र उसी काम्प्लेक्स के अन्य व्यक्तियों के हित में निष्पादित किए हैं। परिवादी को यह भी पता चला है कि विपक्षी संख्या 1 व 2 द्वारा जो आवंटन किया गया है, उस भूमि के संबंध में लखनऊ विकास प्राधिकरण, विपक्षी संख्या 3 द्वारा कोई सेल/लीजडीड निष्पादित नहीं की गयी है। इस प्रकार विपक्षी संख्या 1 व 2 ने भूमि की सही स्थिति से भी परिवादी को अनभिज्ञ रखा है। विक्रय-पत्र निष्पादित करने के संबंध में परिवादी द्वारा विपक्षी को नोटिस भी दी गयी थी। विपक्षीगण द्वारा ड्राफ्ट सेलडीड परिवादी को भेजा गया जबकि वास्तविक रूप में संबंधित भूमि के संबंध में विक्रय-पत्र विपक्षी संख्या 3 द्वारा विपक्षी संख्या 1 व 2 के हित में निष्पादित नहीं किया गया था और इस प्रकार विपक्षी संख्या 1 व 2 को विक्रय-पत्र निष्पादित करने का कोई विधिक अधिकार नही था। विक्रय-पत्र के निष्पादन में देरी से स्टाम्प डयूटी में भी अभिवृद्धि हो गयी है, जिसका उत्तरदायित्व विपक्षी संख्या 1 व 2 पर है। विपक्षीगण द्वारा विक्रय-पत्र में विलम्ब के कारण जो स्टाम्प डयूटी व रजिस्ट्रेशन फीस में 12,40,700.00 रू0 की अभिवृद्धि हुयी है, उसके लिए विपक्षी संख्या 1 व 2 ही उत्तरदायी है।
परिवादी द्वारा यह अनुतोष चाहा गया कि विपक्षी संख्या 1 व 2 को यह निर्देश दिया जाए कि विपक्षी संख्या 3 से अपने विवाद शीघ्र सुलझाते हुए विपक्षी संख्या 3 द्वारा विक्रय-पत्र निष्पादित कराने के उपरांत विपक्षी संख्या 1 व 2 परिवादी के हित में विक्रय-पत्र निष्पादित करे। विपक्षी संख्या 1 व 2 को यह भी निर्देशित किया जाए कि वह स्टाम्प डयूटी एवं रजिस्ट्रेशन फीस में अभिवृद्धि होने से पूर्व देय 01,50,000.00 रू0 को समायोजित करते हुए अतिरिक्त धनराशि 12,40,700.00 रू0 अदा करे। 25000.00 रू0 वाद व्यय तथा 01 लाख रू0 क्षतिपूर्ति, 3500.00 नोटिस का व्यय तथा 25000.00 रू0 अतिरिक्त पेनाल्टी की भी याचना की गयी है।
विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से लिखित कथन में यह कहा गया है कि यह स्वीकार है कि यूनिट संख्या 101 एवं 102 के विक्रय के संबंध में पक्षकारों के बीच अनुबंध हुआ था, किंतु LAND BELOW के विक्रय के संबंध में कोई अनुबंध नहीं हुआ था। इस संबंध में विक्रय अनुबंध के क्लाज 1,5,6,7,11 एवं 15 में उल्लिखित शर्ते दृष्टव्य हैं :-
Clause (1): That the builder does hereby agree to sell Unit no. 101 having 2689 Sq. Feet of constructed area (same applicable for Unit no. 102 having 2281 Sq. Feet) situated on the First Floor of the complex “Kusumdeep” as above for a total consideration sum of Rs. 376,460/- only (Rs. 319,340 for Unit no. 102) in favour of the allotee, more specifically described at the foot of this deed subject to conditions and observance of covenant contained hereinafter.
Clause (5): That the allotee shall have no right, title and interest above the ceiling, below the floor and outside the inner edges of the side walls of the unit allotted hereby.
Clause (6): That the allotee shall have proportionate undivided and impartiable joint interest in the land as well as in the common services facility area in and appurtenant to the complex raised over the block space that is the total area of the floor space in the unit agreed to be hereby transferred, together with impartiable interest in the land in complex in ratio of the area of the unit agreed to be transferred.
Clause (7): That the rights in respect of the unit agreed to be transferred hereby along with its impartiable interest in the land and common services facilities shall be unseverable from the joint interest with other allottees/occupants of the complex and shall not be subject to partition or subdivision in any manner at any stage. This covenant has been stipulated to protect beneficial interest of the other occupants who have proportionate interest in the land and built up structure. It shall be transferable only as an interest incidental to the unit being transferred and subject to the terms and conditions laid down by Lucknow Development Authority, Lucknow in this regard.
Clause (11): That except the covered area herein agreed to be transferred, all common service and facilities area within the complex and residual rights in the complex, shall continue to vest in the builder till such time as the same or part thereof allotted/sold or otherwise transferred to a particular buyer or association of the buyers in the complex to be formed mutually and amongst other occupants of the complex. However, the allotee shall have only easmentry rights in respect of the common area which shall be kept un – obstructed for better and more beneficial enjoyment of the complex. Any encroachment in common/services facility area shall be unauthorized and liable to be removed at the cost and expenses of the encroaches without any notice.
ऊपर लिखित शर्तों के अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है कि पक्षकारों के बीच निर्मित क्षेत्रफल के अन्तरण हेतु अनुबंध किया गया । अनुबंध की किसी भी धारा में प्रोपोर्सिनेट लैंड के विक्रय के संबंध में कोई उपबंध नही किया गया था। अनुबंध के अनुसार सम्पूर्ण देय स्टाम्प डयूटी एवं रजिस्ट्रेशन का खर्चा परिवादी को वहन करना है। यह कहना गलत है कि विपक्षी संख्या 1 व 2 द्वारा विक्रय-पत्र का निष्पादन नहीं किया गया जबकि विक्रय-पत्र का ड्राफ्ट परिवादी को भेजा गया था और परिवादी ने स्वयं ही विक्रय-पत्र के निष्पादन में रूचि नहीं दिखलायी। इस संबंध में परिवादी को पत्र भी भेजे गए थे। परिवादी को पहले से ही आवंटित यूनिट पर कब्जा दे दिया गया था और उसमें परिवादी चिकिन क्लाथ का व्यवसाय करता है। दोनों यूनिटों का कब्जा परिवादी को क्रमश: दिनांक 27.3.95 एवं 28.2.95 को दिया गया है। विपक्षी संख्या 1 बिल्डर/डिवलपर है तथा विपक्षी संख्या 2 प्रश्नगत भूमि का क्रेता है जिसके संबंध में आधिपत्य-पत्र दिनांक 01.8.1985 को नीबूबाग योजना, स्थित ब्लाक संख्या 3 का स्वामित्वाधिकार प्रदान किया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि विपक्षी संख्या 2 को स्वामित्व के साथ आधिपत्य दिया गया था। इस प्रकार विपक्षी संख्या 1 व 2 को विक्रय-पत्र निष्पादित करने का पूर्ण अधिकार था । विपक्षी संख्या 1 व 2 को विपक्षी संख्या 3, लखनऊ विकास प्राधिकरण से लीजहोल्डराइट्स प्राप्त था । विपक्षी संख्या 2 को आधिपत्य दिनांक 01.8.1985 को दिया गया था । परिवादी पिछले 16 वर्षो से आवंटित यूनिट का उपभोग कर रहा है। परिवादी द्वारा प्रतिफल यूनिट संख्या 101 एवं 102 के विक्रय के संबंध में दिया गया था। विपक्षीगण द्वारा बिक्रय-पत्र निष्पादित करने के संबंध में परिवादी को कई पत्र भी भेजे गए थे तथा विक्रय-पत्र का ड्राफ्ट भी भेजा गया था। बहुत से आवंटियों ने बहुत पहले ही अपने पक्ष में विक्रय-पत्र निष्पादित करा लिए हैं। वास्तव में परिवादी स्टाम्प डयूटी से बचने के लिए विक्रय-पत्र अपने हित में निष्पादित नहीं करा रहा है। परिवाद कालबाधित भी है। अनुबंध में आर्बीट्रेशन का भी उपबंध किया गया है जिसके अनुसार परिवादी को विवाद आर्बीट्रेशन द्वारा निस्तारित कराना चाहिए। परिवादी उपभोक्ता भी नहीं है और इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है और परिवाद निरस्त किए जाने के योग्य है।
विपक्षी संख्या-3 लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अपने लिखित कथन में यह कहा है कि नीबूबाग, चौक लखनऊ में भवनों के चार ब्लाक का निर्माण मै0 आरिफ इण्डस्ट्रीज, मै0 आरोही कांस्ट्रक्शन्स, मै0 अइंसा एक्स्ट्रक्चर्स एवं मै0 रीजेन्सी इण्डस्ट्री द्वारा कराए गए । उनके एवं लखनऊ विकास प्राधिकरण के बीच अलग-अलग अनुबंध निष्पादित किए गए। यह भी कहा गया कि उक्त चारों बिल्डरों के बीच कुछ विवाद उत्पन्न हुआ था, जिसके संबंध में प्रकरण आर्बीट्रेशन को सौंप दिया गया है जिसका निपटारा अभी तक नहीं किया गया है। प्रश्नगत सम्पत्ति के संबंध में विपक्षी संख्या 3 द्वारा विपक्षी संख्या 1 व 2 को आधिपत्य सौप दिया गया था। विपक्षी संख्या 3 एवं विपक्षी संख्या 1 व 2 के बीच ट्रांसफर डीड इस कारण निष्पादित नहीं की जा सकी कि प्रकरण आर्बीट्रेशन में लम्बित होने के कारण विक्रय-डीड निष्पादित नहीं किया जा सका। परिवादी को कब्जा 1995 में दिया गया था जबकि परिवादी ने यह परिवाद 11 वर्ष बाद दाखिल किया है, इससे परिवाद स्वत: कालबाधित हो जाता है। इन आधारों पर परिवाद खण्डित किए जाने योग्य है।
पक्षकारों द्वारा दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का ध्यानपूर्ण परिशीलन कर लिया है।
अभिलेख के अनुशीलन से स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा यह अनुतोष चाहा गया है कि प्रश्नगत यूनिट संख्या 101 एवं 102 के संबंध में विक्रय पत्र निष्पादित करने हेतु विपक्षी संख्या 1 एवं 2 को निर्देशित किया जाए तथा पक्षकारों के बीच जिस समय अनुबंध हुआ था, उस समय स्टाम्प डयूटी 01,50,000.00 रू0 थी, जो बढ़कर 13,90,700.00 रू0 हो गयी है, ऐसी स्थिति में इस अतिरिक्त वृद्धि को वहन करने का उत्तरदायित्व विपक्षी संख्या 1 एवं 2 पर आरोपित किया जाए साथ ही साथ यह भी याचना की गयी है कि उपर्युक्त यूनिट के साथ प्रश्नगत काम्पलेक्स में समानुपातिक LAND BELOW के संबंध में भी डीड निष्पादित करने का निर्देश दिया जाए।
उभय पक्षों के बीच हुए अनुबंध के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी को यूनिट संख्या 101 एवं 102 आवंटित किया गया था और इन्हीं यूनिटों पर कब्जा दिया गया । जहां तक काम्पलेक्स में उपलब्ध LAND BELOW का प्रश्न है, उसके संबंध में केवल अविखण्ड, अविभाजित एवं अविभाज्य ज्वाइंट इन्ट्रस्ट देने की बात कही गयी है। परिवादी को LAND BELOW का स्वामित्व देने की बात कहीं नहीं कही गयी है। विपक्षी संख्या 1 एवं 2 के विद्वान अधिवक्त ने यह तर्क लिया है कि वह सदैव परिवादी को आवंटित यूनिटों के विक्रय-पत्र के निष्पादन हेतु तत्पर रहे हैं और इस संबंध में परिवादी को पत्र भी भेजा गया, किंतु परिवादी ने जानबूझकर विक्रय पत्र निष्पादित नही कराया और अनुबंध के अनुसार सम्पूर्ण देय स्टाम्प डयूटी तथा रजिस्ट्रेशन का खर्चा परिवादी को ही वहन करना है। विपक्षी संख्या 1 एवं 2 अब भी परिवादी को अधिपत्य में आवंटित यूनिटों का विक्रय पत्र निष्पादित करने हेतु तैयार हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि परिवादी की ओर से यह अभिव्यक्त किया गया था कि विपक्षी संख्या 1 एवं 2 तथा विपक्षी संख्या 3 के बीच अभी स्वामित्व का पूर्ण हस्तांतरण नहीं हुआ है, किंतु परिवादी के इस अभिकथन में कोई बल नहीं प्रतीत होता है। बहस के दौरान विपक्षी संख्या-3, लखनऊ विकास प्राधिकरण के विद्वान अधिवक्ता ने यह कहा कि उनका विपक्षी संख्या 1 एवं 2 से कोई विवाद नहीं है और ऐसी स्थिति में विपक्षी संख्या 1 एवं 2 परिवादी के हित में विक्रय पत्र निष्पादित करने हेतु अधिकृत हैं। अभिलेख पर प्रश्नगत काम्पलेक्स की भूमि के संबंध में कब्जा प्रमाण पत्र की प्रति दाखिल की गयी है, जोकि प्रश्नगत ब्लाक संख्या-3, नीबू बाग, चौक, लखनऊ से संबंधित है और जिस पर प्रश्नगत काम्पलेक्स बनाया गया है। प्रमाणपत्र के अनुसार उक्त का कब्जा दिनांक 01.8.1985 को विपक्षी संख्या 1 एवं 2 को दिया गया है तथा उक्त अधिपत्य, उक्त भूमि का स्वामित्वाधिकार देने के संबंध में है। यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्षी संख्या-3, लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा विपक्षी संख्या 1 व 2 के बीच हुए किसी अनुबंध की प्रति अभिलेख पर दाखिल नहीं की गयी है जिससे कि इस बात का खण्डन हो कि विपक्षी संख्या-3, लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा विपक्षी संख्या 1 व 2 को दिया गया अधिपत्य स्वामित्वाधिकार सृजित नहीं करता ।
जहां तक प्रश्नगत यूनिटों के विक्रय पत्र के निष्पादन में व्यय होने वाली स्टाम्प डयूटी एवं रजिस्ट्रेशन के खर्चे का प्रश्न है, इस संबंध में पक्षकारों के बीच जो अनुबंध किया गया है उसकी धारा-14 में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि विक्रय पत्र के निष्पादन में जो भी खर्च आएगा, उसको एलाटी वहन करेगा । उसी धारा में यह भी अंकित है कि 50 प्रतिशत स्टैम्प डयूटी जो अनुबंध पत्र पर अदा की गयी है, उक्त धनराशि फाइनल सेलडीड के निष्पादन में हुए स्टाम्प व्यय में सम्मिलित कर ली जाएगी। अभिलेख के अवलोकन से स्पष्ट है कि विपक्षी संख्या 1 एवं 2 ने प्रश्नगत यूनिट के संबंध में सही स्थिति से परिवादी को अवगत नहीं कराया जिससे कि विक्रय-पत्रों के निष्पादन में अत्यधिक विलम्ब हुआ है, अत: इन परिस्थितियों को देखते हुए हमारे मत में रजिस्ट्रेशन एवं स्टैम्प डयूटी का बढ़ा हुआ व्यय उभय पक्षों द्वारा आधा-आधा वहन किया जाना न्यायोचित होगा ।
परिवादी द्वारा वाद व्यय के रूप में 25000.00 रू0, 01 लाख रू0 पेनाल्टी के रूप में, 3500.00 रू0 नोटिस के व्यय के रूप में एवं लगातार 10 वर्षो तक मानसिक वेदना एवं आर्थिक हानि उठाने के उपलक्ष्य में 25000.00 रू0 की क्षतिपूर्ति की भी याचना की गयी है। अभिलेख के अनुशीलन से यह स्पष्ट है कि विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से पहले यह दलील ली गयी थी कि विपक्षी संख्या 3 से समझौता होने के उपरांत ही विक्रय पत्र निष्पादित किया जाएगा किंतु इस तथ्य में कोई बल नहीं है क्योंकि विपक्षी संख्या 1 व 2 को पहले ही स्वामित्वाधिकार प्राप्त था और निश्चय ही विक्रय पत्र विलम्ब से निष्पादित होने के कारण परिवादी को मानसिक वेदना और आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है, ऐसी स्थिति में उसके द्वारा याचित पेनाल्टी एवं क्षतिपूर्ति 01,25,000.00 रू0 की धनराशि अधिक नहीं है। परिवादी ने परिवाद व्यय के रूप में 25000.00 रू0 की याचना की है, जोकि सही प्रतीत होती है। चूंकि परिवादी को परिवाद व्यय दिलाया जा रहा है, अत: नोटिस के व्यय के रूप में 3500.00 रू0 अलग से दिलाए जाने का कोई औचित्य नहीं बनता है।
परिणामत:, यह परिवाद अंशत: स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए विपक्षी संख्या 1 व 2 को निर्देशित किया जाता है कि वह दो माह के भीतर प्रश्नगत यूनिट संख्या 101 एवं 102 ('कुसुमदीप' काम्पलेक्स, ब्लाक नं0-3, नीबूबाग, चौक, लखनऊ) के संबंध में परिवादी के हित में विक्रय-पत्र निष्पादित करे। अनुबंध की शर्तो के अधीन परिवादी को LAND BELOW के संबंध में केवल अविखण्ड, अविभाजित एवं अविभाज्य ज्वाइंट इन्ट्रेस्ट एवं अन्य easmentry rights ही प्राप्त होगा। स्टाम्प डयूटी एवं रजिस्ट्रेशन का बढ़ा हुआ व्यय 50-50 प्रतिशत उभय पक्षों द्वारा वहन किया जाएगा । विपक्षी संख्या 1 व 2 को यह भी निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को हुए मानसिक एवं आर्थिक हानि के मद में 01,25,000.00 रू0 (एक लाख पच्चीस हजार) रू0 की समेकित क्षतिपूर्ति, परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक भुगतान होने तक 09 (नौ) प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करेंगे।
परिवादी इस परिवाद के व्यय के रूप में विपक्षी संख्या 1 व 2 से 25000.00 (पच्चीस हजार) रू0 अलग से प्राप्त करेगा।
विपक्षी संख्या-3 के विरूद्ध यह परिवाद तदनुसार निस्तारित माना जाएगा।
निर्णय की प्रति पक्षकारों को नियमनुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट-1
(S.K.Srivastav,PA)