राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-424/2016
(सुरक्षित)
Anurag Awasthi, S/o Sri Kailash Nath Awasthi, Resident of 40, Khurshed Bagh, Lucknow-226004.
....................परिवादी
बनाम
1. The Chairman Cum Managing Director
M/s DLF Limited
Registered Office at
Shopping Mall, Arjun Marg,
Phase-1, DLF City, Gurgaon,
Haryana-122002
2. The General Manager/D.G.M.
M/s DLF Limited
1/72 Vipul Khand,
Gomti Nagar, Lucknow.
PIN-226010
3. DLF Limited
DLF, Centre Sansad Marg,
New Delhi-110001
4. The Project Manager/Incharge
M/s DLF Limited
Garden City Project,
Village Purseni, Raibareli Road,
Lucknow.
...................विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री अभय कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री टी0जे0एस0 मक्कर,
विद्वान अधिवक्ता।
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दिनांक: 29-05-2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह परिवाद परिवादी अनुराग अवस्थी ने धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षीगण चेयरमैन कम मैनेजिंग डायरेक्टर मै0 डी0एल0एफ लि0, जनरल मैनेजर/डी0जी0एम0 मै0 डी0एल0एफ0 लि0, डी0एल0एफ0 लि0 और प्रोजेक्ट मैनेजर/इंचार्ज मै0 डी0एल0एफ0 लि0 के विरूद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
The Opposite Parties may be directed –
i) To pay an amount of Rs. 13,53,000/- for the compensation, to be paid for 33 months (from April, 2014 to December, 2016) instead of 19 months along with interest @ 15% per annum from the date of deposit till the date of actual payment after deducting Rs. 2,04,000/- already paid as compensation.
ii) To pay the Cost of Rs.4,00,000/- for filling the Soil/Clay in 4-5 Feets X Total area of plot to make it upto the Ground/Road level.
iii) To pay the Loss of Rs.10 Lakhs for enhanced cost of proposed construction of house over the plot in question.
iv) To pay the Cost of Rs.5,00,000/- for mental stress, agony and tension suffered by the complainant.
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v) To pay Rs. 50 Thousand for the cost of litigation.
vi) To allow the present complaint in totality.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-2 द्वारा विकसित की जा रही परियोजना ‘गार्डेन सिटी’ प्रोजेक्ट स्थित ग्राम पुरसैनी, रायबरेली रोड, लखनऊ के सम्बन्ध में जानकारी करने परिवादी विपक्षी संख्या-2 के कार्यालय में दिसम्बर 2011 के अंतिम सप्ताह में गया और सूचनाएं प्राप्त की। तदोपरान्त उसने विपक्षी संख्या-2 की उपरोक्त परियोजना में 208.20 वर्ग मीटर का प्लाट खरीदने का निश्चय किया और डाउन पेमेंट प्लान का चुनाव करते हुए उसने 10,00,000/-रू0 चेक संख्या-942077 के द्वारा अपने पंजाब नेशनल बैंक के खाते से विपक्षी डी0एल0एफ0 के लखनऊ आफिस में बुकिंग एमाउण्ट के रूप में जमा किया, जिसकी रसीद उसे विपक्षी संख्या-2 ने एलाटमेंट लेटर दिनांक 17.01.2012 के साथ दिया, जिसमें प्रापर्टी नं0-सी-171 अंकित किया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि दिनांक 21.01.2012 को उसे ज्ञात हुआ कि विपक्षीगण ने उसे डाउन पेमेंट प्लान की जगह इंस्टालमेन्ट प्लान गलत तौर पर दिया है तब उसने पेमेंट प्लान का मोड संशोधित कर डाउन पेमेंट प्लान करने हेतु आवेदन पत्र दिया। तब विपक्षीगण ने उसे पत्र दिया, जिसमें पेमेंट प्लान का शिड्यूल दर्शित किया, जिसके अनुसार कुल बेसिक सेल प्राइज 33,62,013.60/-रू0 और प्रीफरेंशियल लोकेशन
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चार्ज 3,36,243/-रू0 तथा डाउन पेमेंट का रिबेट 3,32,843.60/-रू0 था। अन्त में कुल देय धनराशि 33,65,413.60/-रू0 थी।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसने विपक्षीगण को आवंटित प्लाट के भुगतान के लिए बैंक से हाउसिंग लोन लेना चाहा, परन्तु विपक्षीगण की उपरोक्त परियोजना बैंक या वित्तीय संस्था से एप्रूव्ड नहीं थी। अत: उसे विभिन्न बैंकों में दौड़ना पड़ा, परन्तु लोन नहीं मिला। अन्त में एल0आई0सी0 हाउसिंग फाइनेंस लि0 ने उसके अनुरोध पर विचार किया और उसे दिनांक 15.02.2012 को 13,00,000/-रू0 का लोन, जो 13,186/-रू0 की 180 सामान्य मासिक किस्तों में अदा करना था और 12,00,000/-रू0 का लोन, जो 13,191/-रू0 की 180 सामान्य मासिक किस्तों में अदा करना था स्वीकार किया। इस प्रकार एल0आई0सी0 हाउसिंग फाइनेंस लि0 ने कुल 25,00,000/-रू0 का लोन उसे सैंक्शन किया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि परिवादी ने स्वीकृत लोन से विपक्षीगण को अवगत कराया और उसके बाद Tripartite Agreement परिवादी, विपक्षी डी0एल0एफ0 लि0 और एल0आई0सी0 हाउसिंग फाइनेंस लि0 के बीच दिनांक 13.03.2012 को निष्पादित किया गया और उसी दिन दिनांक 13.03.2012 को विपक्षी संख्या-2 ने एल0आई0सी0 हाउसिंग फाइनेंस लि0, 1, शाहनजफ रोड, लखनऊ के पक्ष में आवंटित प्लाट Mortgage करने हेतु एन0ओ0सी0/अनुपति पत्र जारी किया, जिसमें उल्लेख था
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कि परिवादी को प्लाट नं0 सी-171 एलाटमेंट लेटर दिनांक 31.12.2011 के द्वारा आवंटित किया गया है। तदोपरान्त परिवादी ने दो डिमाण्ड ड्राफ्ट के माध्यम से विपक्षी संख्या-2 के कार्यालय में दिनांक 24.03.2012 को 8,80,441/-रू0 और 13,00,000/-रू0 जमा किए।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-2 के ई-मेल दिनांक 16.03.2012, जो उसके कर्मचारी श्री राजीव पाण्डेय द्वारा जारी किया गया था, के द्वारा 21,80,440.77/-रू0 की डिमाण्ड की गयी थी और दिनांक 30.01.2012 तक जमा करने को कहा गया था, परन्तु विपक्षीगण ने कपटपूर्ण ढंग से एण्टी डेटेड डिमाण्ड लेटर दिनांक 31.12.2011 ई-मेल दिनांक 16.03.2012 के द्वारा प्रेषित किया है। दिनांक 16.03.2012 के पहले कोई डिमाण्ड लेटर विपक्षीगण ने परिवादी को नहीं भेजा है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-3 ने पत्र दिनांक 07.04.2014 के द्वारा परिवादी को सूचित किया कि 54 और 791 दिन के विलम्बपूर्ण भुगतान हेतु कुल ब्याज रू0(48,387.86+22.87)=48,410/- दिनांक 31.03.2014 के स्टेटमेंट के अनुसार देय है, जबकि इस विलम्ब के लिए विपक्षीगण स्वयं उत्तरदायी रहे हैं। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने अपना विरोध विपक्षीगण से उपरोक्त ब्याज के विरूद्ध दर्ज कराया और कहा कि विपक्षी ने बंधक की परमीशन दिनांक 13.03.2012 को दी
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है और उसके बाद ही लोन का आहरण संभव हो सका है। ऐसी स्थिति में ब्याज उचित नहीं है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-2 ने उसे पत्र दिनांक 30.11.2015 भेजा और यह सूचित किया कि प्लाट नं0 171 ब्लाक, सी ''गार्डेन सिटी'' स्थित ग्राम पुरसैनी, तहसील मोहनलालगंज, जिला लखनऊ में तैयार है। उसके सम्बन्ध में कम्प्लीशन सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा चुका है। अत: वह अवशेष धनराशि संलग्न एकाउण्ट स्टेटमेंट और अन्य अभिलेखों के अनुसार विक्रय पत्र हेतु जमा कर दे।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि पत्र दिनांक 30.11.2015 को पढ़ने के बाद उसे आघात लगा क्योंकि इस पत्र के द्वारा विपक्षीगण द्वारा अनुचित मांग की जा रही थी। तब उसने पत्र दिनांक 09.12.2015 विपक्षीगण को भेजा और अपनी आपत्ति दर्ज करायी।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने विपक्षीगण की अनुचित मांग से पीडि़त होकर अपनी आपत्ति पत्र दिनांक 20.12.2015 और दिनांक 28.12.2015 को विपक्षी के जी0एम0 मार्केटिंग एण्ड सेल्स, डी0एल0एफ0, लखनऊ को भी प्रेषित किया और उसने दिनांक 28.12.2015 को चेक दिनांक 28.12.2015 के माध्यम से 7,50,000/-रू0 विपक्षी संख्या-2 के कार्यालय में जमा किया है। परिवादी के अनुसार उसने दिनांक 19.02.2012 को 74,840/-रू0 चेक नं0 346708 पंजाब नेशनल बैंक के माध्यम से जमा किया
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है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि परिवादी के उपरोक्त पत्रों को प्राप्त करने के बाद विपक्षी संख्या-2 ने लेटर/कैलकुलेशन सीट दिनांक 04.03.2016 भेजी, जिसमें अंतिम मांग की धनराशि 7,31,264.52/-रू0 स्टाम्प ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन चार्जेज और अन्य चार्जेज के मद में 2,04,536/-रू0 बतौर प्रतिकर घटाकर दर्शित की।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने फाउंडेशन क्लब का निर्माण किए बिना 1,34,500/-रू0 की मांग की, जिसमें 14,500/-रू0 सेवा कर तथा 20,000/-रू0 सिक्योरिटी डिपोजिट शामिल था, जबकि क्लब स्थापित नहीं किया गया है। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा यह मांग कपटपूर्ण ढंग से की गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने उपरोक्त परिस्थितियों में लीगल नोटिस दिनांक 06.09.2016 जनरल मैनेजर, डी0एल0एफ0 लि0 गोमतीनगर, लखनऊ को अपनी शिकायत के निवारण और विपक्षीगण द्वारा की गयी सेवा में कमी के सम्बन्ध में प्रेषित किया तथा कहा कि प्लाट का विक्रय पत्र दिनांक 19.07.2016 को प्लाट का विकास किए बिना निष्पादित किया गया है। प्लाट ग्राउण्ड लेवल से अब भी 4-5 फीट नीचे है और कब्जा लेने योग्य नहीं है। इन त्रुटियों के निवारण के बिना प्लाट पर कब्जा लेना संभव नहीं है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण
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(विशेष रूप से विपक्षी संख्या-4) डेवलपर होने के नाते प्लाट के डेवलपमेंट के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने मिट्टी का भराव नहीं किया है। अत: मिट्टी का भराव करने के लिए करीब 4,00,000/-रू0 व्यय होगा। इस प्रकार विपक्षीगण ने सेवा में त्रुटि की है। परिवादी ने परिवाद पत्र में यह भी कहा है कि विपक्षीगण ने 19 महीने विलम्ब से कब्जा दिया है। अत: परिवादी विपक्षीगण से 33 महीने की क्षतिपूर्ति के रूप में 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से जमा धनराशि पर ब्याज पाने का अधिकारी है। परिवाद पत्र में परिवादी ने कहा है कि विपक्षीगण ने न केवल सेवा में त्रुटि की है वरन् अनुचित व्यापार पद्धति भी अपनायी है। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद प्रस्तुत किया है और उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि विपक्षीगण संख्या-1, 2 और 4 को परिवाद में गलत पक्षकार बनाया गया है। उनके विरूद्ध परिवाद विशेष हर्जा के साथ निरस्त किए जाने योग्य है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि उभय पक्ष के बीच हुए करार से उभय पक्ष बाधित हैं। विपक्षीगण ने कब्जा अंतरण में विलम्ब हेतु करार के अनुसार क्षतिपूर्ति की धनराशि परिवादी को अदा की है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि बिक्रय पत्र निष्पादित किए जाने और भौतिक सत्यापन के बाद
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कब्जा प्राप्त करने के कारण परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद ग्राह्य नहीं है क्योंकि परिवादी ने बिक्रय पत्र निष्पादित किए जाने के बाद पूर्ण सन्तुष्टि के साथ कब्जा प्राप्त किया है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि विपक्षीगण ने प्रश्नगत सम्पत्ति का करार के अनुसार विकास किया है और सक्षम अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के पश्चात् कम्प्लीशन सर्टिफिकेट जारी किया गया है। परिवादी के प्लाट का लेवल दूसरे प्लाटों के समान है अन्यथा कम्प्लीशन सर्टिफिकेट ही जारी नहीं किया जाता।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने स्वयं सन्तुष्ट होकर कब्जा प्राप्त किया है और सेल डीड कराया है। अत: अब वह अन्यथा कथन करने से वर्जित है।
परिवादी अनुराग अवस्थी ने परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया है, जिसमें प्रश्नगत प्लाट का फोटोग्राफ भी सम्मिलित है।
विपक्षीगण की ओर से श्री विकास सिंह, ऑथराइज्ड सिग्नेटरी का शपथ पत्र लिखित कथन के समर्थन में प्रस्तुत किया गया है।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अभय कुमार और विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री टी0जे0एस0 मक्कर उपस्थित आए हैं।
हमने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
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यह तथ्य निर्विवाद है कि विपक्षीगण की कम्पनी द्वारा परिवादी को आवंटित प्लाट का विक्रय पत्र दिनांक 19.07.2016 को परिवादी के पक्ष में निष्पादित किया गया है। परिवादी ने बिक्रय पत्र बिना किसी आपत्ति के निष्पादित कराया है और बिक्रय पत्र के अनुसार उसे कब्जा प्रदान किया गया है। परिवादी के अनुसार उसे अंतरित प्लाट ग्राउण्ड लेवल से 4-5 फीट नीचे है और कब्जा लेने योग्य नहीं है। परिवादी ने अपने शपथ पत्र के साथ संलग्नक ए-4 उसे आवंटित और अंतरित किए गए प्लाट का फोटोग्राफ प्रस्तुत किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उसे अंतरित प्लाट आवासीय भवन निर्माण हेतु पूर्ण रूप से विकसित नहीं किया गया है।
विपक्षीगण की ओर से श्री विकास सिंह द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र का संलग्नक CA-3 उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद द्वारा जारी पूर्णता प्रमाण-पत्र है, जिसमें यह प्रमाणित किया गया है कि विपक्षी विकासकर्ता जिसे डी0पी0आर0 दिनांक 17.12.2011 को निर्गत की गयी थी और दिनांक 24.12.2011 को परिषद एवं विकासकर्ता के मध्य डैवलपर एग्रीमेन्ट निष्पादित किया गया था, के सम्बन्ध में विकासकर्ता मैसर्स डी0एल0एफ0 लि0 को ब्लाक-बी एवं सी के अन्तर्गत सड़क जलापूर्ति, मलोत्सारण, बाह्यविद्युतिकरण, नाली आदि विकास कार्यों सम्बन्धी पूर्णता प्रमाण-पत्र जारी किया गया है, परन्तु परिवादी ने अपने शपथ पत्र के साथ जो प्रश्नगत प्लाट का फोटोग्राफ संलग्न किया है, उसे
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देखने से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी को आवंटित व अंतरित प्लाट की भराई उचित और पर्याप्त ढंग से नहीं की गयी है और प्लाट आवासीय उद्देश्य से पूर्ण रूप से विकसित नहीं है। अत: ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित आधार है कि विपक्षीगण की ओर से परिवादी को पूर्ण विकसित प्लाट आवासीय उद्देश्य से उपलब्ध नहीं कराया गया है।
परिवादी ने 4,00,000/-रू0 आवंटित भूखण्ड की भराई हेतु चाहा है, परन्तु याचित इस धनराशि का कोई आगरण प्रस्तुत नहीं किया है। अत: परिवादी के शपथ पत्र के साथ प्रस्तुत फोटोग्राफ व अन्य अभिलेखों तथा उभय पक्ष के अभिकथन एवं सम्पूर्ण अभिलेखों व साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि परिवादी को विपक्षीगण से प्लाट की मिट्टी भराई हेतु 2,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रदान किया जाना उचित है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि विपक्षीगण की ओर से परिवादी को बैनामा निष्पादित किया जा चुका है और बैनामा बिना किसी विरोध के परिवादी ने कराया है। विपक्षीगण ने परिवादी को 2,04,000/-रू0 विलम्ब हेतु क्षतिपूर्ति दिया है जैसा कि विपक्षीगण की ओर से श्री विकास सिंह के द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र के प्रस्तर-20 में उल्लिखित है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि परिवादी को परिवाद पत्र में याचित अन्य अनुतोष प्रदान करने हेतु उचित और विधिक आधार नहीं है और बैनामे के बाद यह अनुतोष प्राप्त करने
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का वह अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को आवंटित व अंतरित प्लाट की मिट्टी भराई हेतु 2,00,000/-रू0 (दो लाख रूपए मात्र) परिवादी को प्रदान करें। इसके साथ ही वे वाद व्यय के रूप में परिवादी को 10,000/-रू0 (दस हजार रूपए मात्र) और प्रदान करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (महेश चन्द)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1