राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-1324/2015
(जिला उपभोक्ता मंच/आयोग (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-541/2010 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19-05-2015 के विरूद्ध)
1. कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव पुत्र स्व0 बिशम्भर नाथ, निवासी 279/15, पान दरिबा, लखनऊ (यू0पी0)।
2. श्रीमती संध्या श्रीवास्तव पत्नी श्री कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव, निवासी 279/15, पान दरिबा, लखनऊ (यू0पी0)।
................. अपीलार्थीगण/परिवादीगण।
बनाम्
1. मै0 अवध कन्स्ट्रक्शन (प्रा.)लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, श्री लविन्दर सिंह सचदेवा, रजिस्टर्ड कार्यालय : ई-98, ग्रेटर कैलाश, फेज-2, नई दिल्ली-110001.
2. मै0 अवध कन्स्ट्रक्शन (प्रा.)लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, श्री लविन्दर सिंह सचदेवा, 6 कपूरथला कॉम्प्लेक्स, पालिका बाजार, अलीगंज, लखनऊ।
............... प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित:- श्री आशीष सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री रजनीश राय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 14-03-2023.
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता मंच/आयोग (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-541/2010 कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव व एक अन्य बनाम मै0 अवध कन्स्ट्रक्शन (प्रा.)लि0 व एक अन्य में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19-05-2015 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है।
जिला उपभोक्ता मंच/आयोग ने अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत किया गया परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि वाद कारण दिनांक 01-11-1999
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को उत्पन्न हुआ था जबकि परिवाद दिनांक 04-08-2010 को प्रस्तुत किया गया इसलिए परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24 (क) में दी गई समयावधि से बाधित है।
हमने दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
परिवाद के तथ्यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादीगण के नाम से दिनांक 02-12-1999 को सम्पत्ति आबंटित कर दी गई। दिनांक 12-06-1999 को परिवादीगण द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया गया परन्तु विक्रय पत्र पंजीकृत नहीं किया गया। इस प्रकार स्वयं परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दिनांक 02-12-1999 को वाद पत्र में वर्णित सम्पत्ति आबंटित हुई तथा 12-06-1999 को उनके द्वारा पंजीकरण कराने के लिए आवेदन दिया गया परन्तु उपभोक्ता परिवाद वर्ष 2010 में प्रस्तुत किया गया। अत: वाद कारण वर्ष 1999 में उत्पन्न हो चुका था इसलिए इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता मंच/आयोग द्वारा पारित निर्णय विधि सम्मत है।
अपीलार्थीगण की ओर से जो नजीर राजीव हितेन्द्र पाठक व अन्य बनाम अच्युत काशीनाथ कारेकर व अन्य सिविल अपील सं0-4307/2007 मा0 सर्वोच्च न्यायालय प्रस्तुत की गई है इसमें मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या जिला उपभोक्ता मंच/आयोग एवं राज्य उपभोक्ता आयोग को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त है, इसलिए यह नजीर उक्त निर्णय हेतु सुसंगत नहीं है क्योंकि प्रश्नगत परिवाद विलम्ब से प्रस्तुत किया गया जो वाद कारण उत्पन्न होने के दो वर्ष के पश्चात् प्रस्तुत किया गया, अत: यह स्पष्ट रूप से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24 (क) के प्राविधान के विपरीत है। इस प्रकार जिला उपभोक्ता मंच/आयोग के प्रश्नगत निर्णय में किसी प्रकार का
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हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है इसलिए वर्तमान अपील तदनुसार खारिज होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच/आयोग (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-541/2010 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19-05-2015 की पुष्टि की जाती है।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1.
कोर्ट-2.