(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
(जिला मंच द्वितीय मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0 50/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 08/08/2001 के विरूद्ध)
अपील संख्या 2093/2001
एजाज मुस्तफा पुत्र श्री जाकिर मुस्तफा अंसारी, निवासी बारादरी ढाल, मुरादाबाद। 244001.
…अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
डा0 विनय अग्रवाल, एम.बी.बी.एस., एम.एस., मंगलम आर्थोपिडिक सर्जिकल सेन्टर, 19 पिर्न्स रोड, गांधीनगर, मुरादाबाद।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:
1. मा0 न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष ।
2. मा0 श्री राम चरन चौधरी, सदस्य ।
3. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन।
दिनांक 20-10-2014
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद सं0 50/2000 एजाज मुस्तफा बनाम डा0 विनय अग्रवाल जिला फोरम द्वितीय मुरादाबाद के निर्णय/आदेश दिनांक 08/08/2001 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत है।
प्रश्नगत परिवाद में जिला पीठ द्वितीय मुरादाबाद ने परिवाद को खंडित करते हुए परिवादी को आदेशित किया कि वह इस आदेश की तिथि से एक माह के अंदर रूपये 500/ क्षतिपूर्ति विपक्षी को अदा करे।
प्रश्नगत प्रकरण में परिवाद का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादीकी आयु लगभग 20 वर्ष है तथा बी.ए. प्रथम का छात्र है और कम्प्यूटर का कोर्स भी अन्य संस्थान में कर रहा है। दिनांक 11/11/99 को परिवादी के बायें हाथ में अचानक चोट आ गई। हाथ में दर्द और सूजन के कारण 3-4 दिन तक मरहम व दवा का प्रयोग किया और जब दर्द और सूजन ठीक नहीं हुई तब दिनांक 16/11/99 को एक्स-रे करानेके बाद बायें हाथ की छोटी उंगली के ऊपर वाले हाथ की हड्डी में फैक्चर का ज्ञान हुआ। उसी दिन विपक्षी के निर्देशानुसार परिवादी ने विपक्षी से 3 सप्ताह के लिए अपने हाथ पर प्लास्टर चढ़वा लिया और विपक्षी द्वारा
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निर्देशित दवाओं का प्रयोग किया और निर्देशों का भी पूर्ण पालन किया। दिनांक 18/11/99 को विपक्षी को दिखाने के बाद विपक्षी ने चोट की स्थिति संतोषजनक बतायी और कहा कि 3 सप्ताह में हड्डी जुड़ जायेगी और यह भी कहा कि दिनांक 01/12/99 को फिर दिखा लेना। दिनांक 01/12/99 को परिवादी पुन: विपक्षी के पास गया। उन्होंने कुछ दवा निर्देशित की जिनका परिवादी द्वारा प्रयोग किया गया। दिनांक 09/12/99 को परिवादी विपक्षी के पास प्लास्टर कटवाने के लिए गया तब प्लास्टर काटने अवधि 15/12/99 नियत की और दिनांक 15/12/99 को विपक्षी ने प्लास्टर काट दिया और कुछ दवाओं के प्रयोग करने के लिए निर्देशित किया जिनका परिवादी ने प्रयोग किया। परिवादी ने विपक्षी से बता दिया था कि उसकी हथेली के पिछले हिस्से में फैक्चर के स्थान पर कुछ उभरन तथा दर्द है। तब विपक्षी ने कहा कि दवाइयों से ठीक हो जायेगा और दवा 10 दिन तक चलेगी। विपक्षी ने प्लास्टर काटने के बाद एक्स-रे नहीं किया। 16/12/99 को परिवादी ने अपने संतोष के लिए पुन: एक्स-रे कराया। उनकी रिपोर्ट के अनुसार हाथ की हड्डी जैसी प्लास्टर से पूर्व टूटी हुई थी वैसी ही पायी गई यानी वह हड्डी जुड़ी नहीं थी। दिनांक 17/12/99 को परिवादी ने एक अन्य विशेषज्ञ डा0 अजय पंथ को दिखाया तो उन्होंने कहा कि हाथ की हड्डी जुड़ी नहीं है। विपक्षी ने प्लास्टर चढ़ाते समय हड्डी को सही से न जोड़ने में गलती की तथा बिना एक्स-रे के केवल अनुमान के आधार पर प्लास्टर दिनांक 09/12/99 को भी चढ़ा रहने दिया। विपक्षी का यह कार्य विपक्षी की व्यावसायिक चूक व गलती का परिणाम है और विपक्षी ने प्लास्टर चढ़ाते समय हड्डी के जोड़ को सेट करने की कोशिश नहीं की तथा इमेज इन्सटेन्सीफायर टेलीविजन प्रणाली पर नहीं देखा। परिवादी ने काफी कष्ट सहन किया और अपने दैनिक कार्यों में भी काफी कष्ट उठाना पड़ा। परिवादी अपने बायें हाथ की मुट्ठी को बंद नहीं कर सकता है और किसी चीज को ठीक से नहीं पकड़ सकता है और स्कूटर या साईकिल चलाते समय क्लिच का प्रयोग नहीं कर सकता है। हाथ की अयोग्यता के कारण कंप्यूटर का कोर्स भी नहीं कर पाया। विपक्षी ने सेवा में कमी की है और परिवादी विपक्षी से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
विपक्षी जिला पीठ के समक्ष प्रतिवाद पत्र दाखिल किया और यह कथन किया कि दिनांक 16/11/99 को परिवादी के दाहिने हाथ की छोटी उंगली के ऊपर वाले भाग की हड्डी में फैक्चर पर विपक्षी ने प्लास्टर चढ़ाया था। परिवादी स्वयं 11/11/99 को चोट लग जाने के बाद
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दिनांक 16/11/99 को प्रथम बार इलाज हेतु विपक्षी के पास आया था। परिवादी का प्लास्टर दिनांक 15/12/99 को काटा गया और 10 दिन के लिए दवाइयां खाने के लिए निर्देशित किया गया। परिवादी का यह कहना गलत है कि दिनांक 16/12/99 को पुन: एक्स-रे कराये जाने पर परिवादी के हाथ की स्थिति वैसी ही हो जैसी कि हाथ पर प्लास्टर कराने से पूर्व थी। परिवादी का यह कहना भी गलत है कि दिनांक 17/12/99 को डा0 अजय पंथ ने इस तरीके का प्रमाण पत्र दिया है कि परिवादी के हाथ की हड्डी नहीं जुड़ी है। परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में इस तरह का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। परिवादी का यह कहना गलत है कि विपक्षी ने हड्डी को ठीक से न जोड़ने में गलती की हो और व्यावसायिक चूक की हो। छोटे-मोटे फैक्चर पर टेलीविजन प्रणाली का प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि उक्त प्रणाली से निकलने वाली किरणें डाक्टर के स्वास्थ्य के लिए घातक होती है। परिवादी के इलाज में किसी प्रकार की त्रुटि या कमी का होना साबित नहीं होता है। यह भी संभव है कि परिवादी ने स्वयं विपक्षी के बताये गये निर्देशों का पालन न किया हो , क्योंकि फैक्चर में जोड़न क्रिया स्वाभाविक होती है। जिस प्रकार की परिवादी को चोट लगी थी उसकी हड्डी आदि नियत स्थान पर किसी कारण से न भी चढ़ पायी तो भी कोई अन्तर नहीं पड़ता है। इस संबंध में मेडिकल साइंस की पुस्तकों का हवाला बहस में दिया जायेगा। परिवादी किसी भी क्षतिपूर्ति को पाने का अधिकारी नहीं है। विकल्प में यह भी निवेदन किया जाता है कि विपक्षी ने क्षतिपूर्ति के जोखिम के भुगतान बीमा दि न्यू इंडिया इन्श्योरेन्स कंपनी स्टेशन रोड शाखा मुरादाबाद से बजरिये कवररोट/ पालिसी सं0 4642100105629 करा रखी है और बीमा कंपनी आवश्यक पक्षकार है और परिवादी का परिवाद खंडित होने योग्य है।
जिला पीठ ने दोनों पक्षों के साक्ष्य का अवलोकन करते हुए गुणदोष के आधार पर परिवाद खारिज किया है, जिसके खिलाफ अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्यर्थी की ओर से श्री अरूण टण्डन विद्वान अधिवक्ता की बहस विस्तार से सुनी गई।
आधार अपील में अपीलार्थी ने यह आधार लिया है कि जिला पीठ का दिया गया निर्णय सही एवं उचित नहीं है। जिला पीठ ने दिनांक 16/11/99 एवं दिनांक 16/12/99 के एक्स-रे रिपोर्ट पर विशेष ध्यान नहीं दिया है जबकि मुकदमा निस्तारण के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य था। जिसमें विपक्षी की असावधानी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। विपक्षी/प्रत्यर्थी ने अपीलार्थी को
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अंधकार में रखा कि हड्डी को सही जगह पर बैठाकर प्लास्टर चढ़ाया गया है, जो एक्स-रे दिनांक 16/12/99 को कराया गया उसमें हड्डी जुड़ी हुई नहीं थी, क्योंकि हड्डी बहुत पतली थी। अजय पंथ ने सलाह दिया कि हड्डी सही तरह से जुड़ी नहीं है। डा0 अजय पंथ ने दिनांक 12/09/2000 को इस आशय का प्रार्थना पत्र एवं शपथ पत्र जिला पीठ को दिया कि डाक्टर को बुलाकर मुख्य परीक्षा ली जाय। जो जिला पीठ द्वारा स्वीकार नहीं किया गया, क्योंकि विधि अनुकूल नहीं है। विपक्षी ने जो आपरेशन किया वह संतोषजनक नहीं था। डा0 अजय पंथ विपक्षी के पड़ोसी भी हैं। विपक्षी के निर्देश में दवा का प्रयोग करता रहा। कभी भी उसके निर्देशों की अवहेलनानहीं किया गया। विपक्षी द्वारा गलत जवाब दावा प्रस्तुत किया गया था। विपक्षी के सेवा में कमी के कारण अपीलार्थी/परिवादी अपंग हो गया।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपील आधार का खण्डन करते हुए कहा कि अंगुलियां अधिक चलनक के कारण सख्त हो जाती है, जिसके कारण अपंगता आ सकती है। इस संबंध में वाटसन जोन्स की मेडिकल पुस्तक के पृष्ठ 775 का उल्लेख किया गया है। किसी विशेषज्ञ डाक्टर का ओपिनियन नहीं प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी की गलत चिकित्सा अथवा सेवा में कमी के कारण अपंगता अपीलार्थी/परिवादी को आई है। जिला पीठ का निर्णय सही एवं उचित है। अपील खारिज होने योग्य है।
सम्पूर्ण पत्रावली के परिशीलन से यह प्रतीत होता है कि दिनांक 11/11/99 को परिवादी के बांये हाथ में अचानक चोट आने पर हाथ में दर्द और सूजन के कारण तीन,चार दिन मलहम दवा का प्रयोग करने के उपरान्त जब दर्द ठीक नहीं हुआ तब दिनांक 16/11/99 को विपक्षी/प्रत्यर्थी से इलाज कराने हेतु संपर्क किया। विपक्षी/प्रत्यर्थी द्वारा दवा लिखा गया, प्लास्टर चढ़ाया गया व आवश्यक निर्देश दिया गया। दिनांक 15/12/99 को विपक्षी/प्रत्यर्थी द्वारा प्लास्टर काटा गया, परन्तु हड्डी नहीं जुड़ी हुई थी। डा0 अजय पंथ ने जिला पीठ से यह प्रार्थना किया कि डाक्टर को बुलाकर मुख्य परीक्षा ली जाय, परन्तु डा0 अजय पंथ ने यह नहीं कहा है कि विपक्षी/प्रत्यर्थी के लापरवाही पूर्ण चिकित्सा से अपीलार्थी/परिवादी की बांये हाथ की हड्डी नहीं जुड़ी। परिवादी द्वारा किसी विशेषज्ञ डाक्टर की रिपोर्ट इस आश्ाय की प्रस्तुत नहीं है कि विपक्षी/प्रत्यर्थी की गलत चिकित्सा अथवा लापरवाही के कारण बांये हाथ की हड्डी नहीं जुड़ सकी। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने वाटसन जोन्स की मेडिकल पुस्तक की पृष्ठ सं0 775 प्रस्तुत किया, जिसमें यह लिखा गया है कि मेटाकार्पल के हड्डी की साफ्ट के फैक्चर होने की
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स्थिति में अंगुली अधिक चलाने पर अंगुलियां सख्त हो जाती है, जिसके कारण अपंगता आ जाती है। मेटाकार्पल की फैक्चर में कंजरवेटिव उपचार ही मात्र किया जा सकता है जब कि फ्रैगमेंटस कभी-कभी हल्की सी ऊपर-नीचे बढ़ जाती हैं। प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा विधि व्यवस्था 2000 (2) ए.डब्ल्यू.सी. पेज 4- 65 सुभाशीमधीर बनाम श्रीमती संजुकतासेन गुप्ता प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह व्यवस्था दी गई है कि चिकित्सक को उस समय तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता है जब किसी अन्य मेडिकल साक्ष्य द्वारा लापरवाही साबित न हो। इस विधि व्यवस्था से प्रत्यर्थी/विपक्षी के कथन को बल मिलता है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह साबित हो कि विपक्षी/प्रत्यर्थी द्वारा गलत उपचार करने के कारण ही हाथ की अंगुली की हड्डी नहीं जुड़ सकी है। किसी विशेष चिकित्सक का रिपोर्ट भी पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। डाक्टर अजय पंथ द्वारा जिला पीठ के समक्ष शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसके आधार पर भी चिकित्सक के खिलाफ लापरवाही का आरोप सिद्ध नहीं होता है। उपरोक्त विवेचना के आधार पर जिला पीठ ने जो निर्णय दिया है वह विधि अनुकूल है जिसमें किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। अपील आधार हीन है। अपील अस्वीकार करने योग्य है।
आदेश
उपरोक्त अपील अस्वीकार की जाती है।
उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह)
अध्यक्ष
(राम चरन चौधरी)
सदस्य
(संजय कुमार)
सुभाष चन्द्र आशु0 ग्रेड 2 सदस्य
कोर्ट नं0 1