(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
परिवाद संख्या : 524/2017
Dr. Raja Roy aged about 58 years, Son of Late Shri Ajit Kumar Roy, Resident of 124, Faizabad Road, Babuganj, Lucknow 226020, U.P. .....परिवादी
बनाम्
- M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd.,(a company incorporated under the Companies Act. 1956) having its registered office at 115, Ansal Bhawan, 16, Kasturba Gandhi Marg, New Delhi-110001 through its Chairman/Managing Director.
- Chairman, M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd., 115, Ansal Bhawan, 16, Kasturba Gandhi Marg, New Delhi-1100.
- Executive Director, M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd., YMCA Campus, 13, Rana Pratap Marg, Lucknow-226001.(U.P.) .........विपक्षीगण
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
परिवादी की ओर से उपस्थित- श्री मधु सूदन श्रीवास्तव।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित- श्री मानवेन्द्र प्रताप सिंह।
दिनांक : 27-06-2019
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवादी Dr. Raja Roy ने यह परिवाद विपक्षीगण M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd. M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd., having its registered office at 115, Ansal Bhawan, 16, Kasturba Gandhi Marg, New Delhi-110001 through its Chairman/Managing Director. / Chairman, M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd., 115, Ansal Bhawan, 16, Kasturba Gandhi Marg, New Delhi-1100. / Executive Director, M/s Ansal Properties & Infrastructure Ltd., YMCA Campus, 13, Rana Pratap Marg, Lucknow-226001.(U.P.) के विरूद्ध धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है :-
- Compensation to the tune of Rs.40,40,999/- applicable interest of principal amount for 5 years. Under the following heads.
- Principal Amount. Rs. 26,40,999/-
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iv. Legal ExpensesRs. 75,000/-
- Cost of the litigation may be granted in favour of the complainant and against the respondents.
- Pass any other order or direction which this Hon’ble Court may deem just and proper in the facts and circumstances of the case.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसने विपक्षीगण की “Sushant Golf City” सीतापुर रोड, लखनऊ योजना में
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Olivewood Villa,200 Sq. mts. Constructed area 214 Sq. Mts. ,,Built-Up Agreement ,Villa,,Built-Up Agreement
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसने बुकिंग के बाद विपक्षीगण को विभिन्न तिथियों में 05 किश्तों का भुगतान पेमेन्ट शिड्यूल के अनुसार किया है, और आगे भी वह Built-Up Agreement पेमेन्ट शिड्यूल के अनुसार भुगतान करने को तैयार था, परन्तु जब उससे छठी किश्त के भुगतान की मांग नहीं की गयी तो उसने ई-मेल जनवरी, 2016 में विपक्षीगण को भेजा जिसका उत्तर विपक्षीगण ने दिनांक 27-01-2016 को ईमेल के द्वारा देते हुए परिवादी को सूचित किया कि निर्माण स्थल के कब्जे के संबंध में कुछ विवाद है और गोल-मोल जवाब परिवादी को दिया, जिससे परिवादी ने यह समझा कि निर्माण स्थल की भूमि विपक्षीगण को प्राप्त नहीं हई है और विपक्षीगण ने धोखा देकर परिवादी से Built-Up Agreement किया है। उन्हें योजना की कथित भूमि पर कोई स्वामित्व प्राप्त नहीं था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि वह 20,000/- मासिक किराये के भवन में रहता है। उसने दिनांक 29-01-2016 को ई-मेल विपक्षी को इस अनुरोध से भेजा कि निर्माण कार्य शुरू किया जाए और 04 वर्ष तक निर्माण न करने हेतु परिवादी को पेनाल्टी अदा किया जाए क्योंकि भुगतान में 20 दिन के विलम्ब हेतु उससे 36 प्रतिशत वार्षिक की दर से पेनाल्टी ली गयी है। तब विपक्षीगण ने दिनांक 29-01-2016 को उसे उत्तर भेजा और निर्माण प्रारम्भ करने की कोई तिथि बताये बिना आश्वासन दिया कि शीघ्र ही निर्माण कार्य
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शुरू कर दिया जायेगा। उसके बाद परिवादी ने विपक्षीगण के यहॉं कई ई-मेल भेजा परन्तु उसका उत्तर विपक्षीगण से प्राप्त नहीं हुआ। तब दिनांक 30-01-2017 को परिवादी की पत्नी ने निर्माण की स्थिति जानने हेतु विपक्षीगण को पत्र भेजा और कहा कि यदि विपक्षीगण कब्जा देने में असफल रहते हैं तो उनकी जमा धनराशि ब्याज सहित वापस की जाए। तब विपक्षीगण दिनांक 09-03-2017 को पत्र भेजकर परिवादी की जमा धनराशि ब्याज सहित वापस करने को तैयार हो गये, परन्तु परिवादी को विपक्षीगण के कपट व छल की वजह से भारी आर्थिक क्षति हुई है और उसे मकान का किराया अदा करना पड़ा है और बैंक को ब्याज भी देना पड़ा है। अत: परिवादी ने विपक्षीगण को पत्र दिनांक 14-05-2017 सम्पूर्ण तथ्यों का उल्लेख करते हुए भेजा, और सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति की मांग की। उसके बाद पुन: दिनांक 01-06-2017 को परिवादी ने सम्पूर्ण धनराशि की मांग ब्याज सहित पत्र भेजकर किया। जिस पर विपक्षीगण ने पत्र दिनांक 05-06-2017 के द्वारा परिवादी की मांग को अस्वीकार कर दिया। तब परिवादी ने दिनांक 14-07-2017 को जमा धनराशि 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस मांगी। परन्तु विपक्षी ने उसे कोई भुगतान नहीं किया। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादी ने करार पत्र की शर्तों को पढ़कर हस्ताक्षर किया है और आवंटी करार की शर्तों से बाधित है। परिवादी द्वारा समय से किश्तों का भुगतान नहीं किया गया इस कारण विला का निर्माण नहीं हो सका। परिवादी द्वारा वर्ष् 2012 में कुछ किश्तों का भुगतान किया गया था। उसके बाद उसने भुगतान इस बहाने से रोक दिया है कि मौके पर विकास कार्य नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवाद हेतु वादहेतुक वर्ष, 2012 में उत्पन्न हुआ है। जबकि परिवाद उसने वर्ष, 2017 में प्रस्तुत किया है। अत: परिवाद में मियाद बाधक है।
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लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि वायर एग्रीमेंट से उभयपक्ष बाधित है और वायर एग्रीमेंट के अनुसार विला का कब्जा आवंटी को संबंधित अधिकारी से बिल्डिंग प्लान सेंग्सन होने की तिथि से 36 महीने के अंदर दिया जायेगा परन्तु यह व्यवस्था फोर्स मिज्योर परिस्थितियों में लागू नहीं होगी।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि वायर एग्रीमेंट में यह प्राविधान है कि यदि विपक्षी डेवलपर आवंटित विला आवंटी को देने में किसी वजह से असफल रहता है तो आवंटी को विपक्षी द्वारा वैकल्पिक विला प्रस्तावित किया जायेगा।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि वायर एग्रीमेंट के अनुसार विलम्ब हेतु कोई क्षतिपूर्ति देय नहीं है। परिवादी को करार पत्र की शर्तों के अनुसार परियोजना पूर्ण होने का इन्तजार करना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए तथा अवशेष धनराशि का भुगतान करना चाहिए। विपक्षी ने पहले ही परिवादी द्वारा विलम्ब से दी गयी धनराशि पर देय ब्याज की धनराशि को वेव कर दिया है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गतउपभोक्ता नहीं है। उसने लाभ अर्जित करने हेतु रियल स्टेट बिजनेस में धन लगाया है। इसे साथ ही यह भी कहा गया है कि उसने अवशेष धनराशि को समय के अंदर नहीं दिया है और भुगतान में चूक की है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि यदि परिवादी अपनी जमा धनराशि वापस चाहता है तो विपक्षी उसे अर्नेस्ट मनी काटकर बिना किसी ब्याज के धनराशि वापस करने को तैयार है। साथ ही विपक्षी परिवादी को अल्टरनेटिव प्लाट भी उपलब्ध करा सकता है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने आवंटन करार दिनांक 23-07-2012 के अनुसार किश्तों का समय से भुगतान न कर अपना दायित्व पूरा नहीं किया है।
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परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में शपथ पत्र और वायर एग्रीमेंट दिनांक 07-04-2012, सहित 14 संलग्नक परिवाद पत्र के साथ प्रस्तुत किये गये है।
परिवादी ने परिवाद पत्र के साथ विपक्षी को प्रेषित नोटिस की प्रति भी प्रस्तुत की है।
विपक्षी की ओर से अथराइज्य सिग्नेचरी श्री आशीष सिंह का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया गया है1
परिवाद की अंतिम सुनवाई के समय परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री मधु सूदन श्रीवास्तव और विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री मानवेंद्र प्रताप सिंह उपस्थित आए हैं।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उनकी ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र एवं अभिलेखों से यह स्पष्ट है कि परिवादी को प्रश्नगत विला विपक्षी द्वारा आवंटित किया जाना निर्विवाद है और परिवादी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने कुल रू0 26,40,999/- विला हेतु विपक्षी के यहॉं जमा किया है।
परिवादी ने परिवाद पत्र के साथ विपक्षी द्वारा जारी रसीदों की फोटोप्रतियॉं प्रस्तुत की हैं जिसके अनुसार परिवादी ने रू0 26,40,999/- विभिन्न तिथियों में जमा है।
विपक्षी ने प्रश्नगत विला परिवादी के नाम आवंटन पत्र दिनांक 07-04-2012 के द्वारा आवंटित किया है। 06 साल से अधिक का समय बीत चुका है, परन्तु अभी तक विला का निर्माण पूरा कर परिवादी को कब्जा विपक्षी ने नहीं दिया है और न ही निकट भविष्य में विला को विकसित कर कब्जा अन्तरित किया जाना सम्भावित दिखता है। अत: पत्रावली पर उलपब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि परिवादी ने विपक्षी के यहॉं प्रश्नगत विला हेतु रू0 26,40,999/- जमा किया है परन्तु 06 साल से अधिक का समय बीतने के बाद भी उसे विला का निर्माण कर कब्जा विपक्षी ने नहीं दिया है। अत: इतनी लम्बी अवधि के बाद अब परिवादी
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को और इन्तजार करने को कहा जाना उचित और युक्तिसंगत नहीं दिखता है। विपक्षीगण ने किसी वैकल्पिक विला की आफर अब तक परिवादी को नहीं की है। परिवादी की उपरोक्त जमा धनराशि रू0 26,40,999/- से विपक्षी 06 साल से अधिक समय से लाभान्वित हो रहा है। परिवादी धनराशि के लाभ से वंचित रहा है और उसे विला भी नहीं मिला है। 06 वर्ष बाद उसे दूसरा विला लेने में निश्चित रूप से कीमत बढ़ने के कारण अधिक धन व्यय करना पड़ेगा। अत: विपक्षी से परिवादी की जमा धनराशि ब्याज सहित वापस दिलाया जाना उचित है।
विपक्षीगण का यह कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि अनेस्टमनी की धनराशि की कटौती कर अवशेष जमा धनराशि परिवादी को वापस की जाये।
सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त परिवादी की जमा धनराशि ब्याज सहित उसे वापस दिलाया जाना ही उचित और न्यायसंगत है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा के0 ए0 नागमणि बनाम हाउसिंग कमिश्नर, कर्नाटका हाउसिंग बोर्ड III(2016)CPJ-16 (SC) के वाद में पारित निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए और उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करते हुए ब्याज दर 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से निश्चित किया जाना उचित है।
चूंकि परिवादी की जमा धनराशि जमा की तिथि से 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित उसे वापस दिलायी जा रही है अत: ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा याचित अन्य अनुतोष प्रदान करने हेतु उचित आधार नहीं है। परन्तु परिवादी को रू0 10,000/- वाद व्यय दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी की जमा धनराशि रू0 26,40,999/- जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित दो
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माह के अंदर भुगतान करें। साथ ही विपक्षीगण परिवादी को रू0 10,000/- वाद व्यय भी प्रदान करेगा। दो माह के अंदर आदेशित धनराशि का भुगतान न करने पर परिवादी विधि के अनुसार वसूली की कार्यवाही कर सकता है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0