Uttar Pradesh

StateCommission

CC/57/2019

Arvind Kumar Dhaka - Complainant(s)

Versus

M/S Ansal Properties and Infrastruture Ltd - Opp.Party(s)

Banarasi Singh

08 May 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. CC/57/2019
( Date of Filing : 27 Feb 2019 )
 
1. Arvind Kumar Dhaka
F-401 Pairadiez Kristal Sushant Golf City Lucknow 226030
...........Complainant(s)
Versus
1. M/S Ansal Properties and Infrastruture Ltd
Shoping Sqwayar Sector D Sushant Golf City Lucknow 226030
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 May 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

परिवाद संख्‍या-57/2019

(सुरक्षित)

अरविन्‍द कुमार ढाका, एफ-401, पैराडाइज क्रिस्‍टल, सुशान्‍त गोल्‍फ सिटी, लखनऊ-226030

                                 ........................परिवादी

बनाम

मेसर्स अन्‍सल प्रापर्टीज एण्‍ड इन्‍फ्रास्‍टक्‍चर लि0, शापिंग स्‍क्‍वायर, सेक्‍टर-डी, सुशान्‍त गोल्‍फ सिटी, लखनऊ-226030 द्वारा निदेशक

                                     ...................विपक्षी

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य। 

 

परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री बनारसी सिंह, 

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्रीमती सुरंगमा शर्मा, 

                          विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 15.05.2023

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत परिवाद इस न्‍यायालय के सम्‍मुख धारा-17 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत परिवादी अरविन्‍द कुमार ढाका द्वारा विपक्षी मेसर्स अन्‍सल प्रापर्टीज एण्‍ड इन्‍फ्रास्‍टक्‍चर लि0 के विरूद्ध योजित किया गया है।

परिवाद के संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा विपक्षी कम्‍पनी के विज्ञापन से प्रभावित होकर तथा उस पर विश्‍वास करते हुए अपने आवासीय उपयोग हेतु दिनांक 22.11.2008 को विपक्षी कम्‍पनी की पैराडाइज क्रिस्‍टल हाउसिंग योजना के अन्‍तर्गत अपनी धर्म पत्‍नी श्रीमती पूनम ढाका के साथ एक फ्लैट संख्‍या: एफ 04/01, सुपर एरिया 1250 वर्गफिट, कुल मूल्‍य   20,00,000/-रू0  को  बुक  कराया  गया,  जिसके   संबंध   में                 

 

 

 

 

-2-

दिनांक 28.02.2009 को विपक्षी कम्‍पनी/प्रमोटर के साथ फ्लैट बायर एग्रीमेन्‍ट हुआ।

परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा विपक्षी के अनुचित दबाव तथा प्रताड़ना के कारण बिना पूर्णता प्रमाण पत्र के दिनांक 29.01.2014 को उक्‍त फ्लैट की रजिस्‍ट्री करायी गयी तथा दिनांक 05.02.2014 को उक्‍त फ्लैट का कब्‍जा प्राप्‍त किया गया।

परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा एग्रीमेन्‍ट के अनुसार परिवादी को निर्धारित 36 महीने के अन्‍दर उक्‍त फ्लैट का कब्‍जा न देते हुए विलम्‍ब से फ्लैट का कब्‍जा दिया गया तथा यह कि विपक्षी द्वारा सक्षम प्राधिकारी से पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्‍त किए बिना तथा तमाम असुविधाओं एवं अपूर्ण विकास कार्यों के रहते हुए उक्‍त फ्लैट की सेल डीड की रजिस्‍ट्री कराने तथा फ्लैट का कब्‍जा प्राप्‍त करने के लिए दबाव बनाया गया तथा यह कि विपक्षी द्वारा दिनांक 30.10.2013 को परिवादी को पजेशन लेटर देते हुए चेतावनी दी गयी थी कि नियत तिथि तक फ्लैट का कब्‍जा न लिये जाने पर होल्डिंग चार्जेज चार्ज किया जावेगा तथा बुकिंग निरस्‍त कर दी जावेगी। विपक्षी द्वारा परिवादी से 3,976/-रू0 होल्डिंग चार्ज लिया गया।

परिवादी का कथन है कि जब विपक्षी द्वारा परिवादी को उक्‍त फ्लैट का कब्‍जा दिया गया तब उस समय अनेकों अति आवश्‍यक विकास कार्य अपूर्ण थे तथा आवश्‍यक सुविधायें भी अधूरी थी। विपक्षी द्वारा परिवादी को पूर्णता प्रमाण पत्र की प्रति न तो उपलब्‍ध करायी गयी तथा न ही एल0डी0ए0 से इसके जारी होने के संबंध में कोई सूचना दी गयी।

परिवादी का कथन है कि पैराडाइज क्रिस्‍टल रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के गठन के संबध में ''ए, बी, ई एवं एफ'' ब्‍लाक का पूर्णता प्रमाण पत्र दिनांक 04.03.2017 को एल0डी0ए0 द्वारा प्रमोटर को जारी किये जाने के संबंध में मे0 अन्‍सल ए0पी0आई0 इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर लि0 लखनऊ के पत्र दिनांक 01.06.2017 द्वारा सूचित

 

 

-3-

किया गया था, परन्‍तु प्रमोटर द्वारा पूर्णता प्रमाण पत्र दिनांक 04.03.2017 की प्रति परिवादी को उपलब्‍ध नहीं करायी गयी। विपक्षी द्वारा बिना पूर्णता प्रमाण पत्र के प्रश्‍नगत फ्लैट का कब्‍जा दिया जाना विधिसम्‍मत नहीं है तथा यह कि एग्रीमेन्‍ट की तिथि 28.02.2009 से 36 महीने के पश्‍चात् अर्थात् 01.03.2012 से पूर्णता प्रमाण पत्र जारी होने की तिथि अर्थात् 04.03.2017 तक जो लगभग 60 माह होती है, विपक्षी द्वारा फ्लैट का विधिमान्‍य कब्‍जा देने में लगभग 23 माह का विलम्‍ब किया गया। विपक्षी/प्रमोटर द्वारा ऐसी किसी अनियंत्रित परि‍स्थितियों को उल्लिखित/बताया नहीं गया, जिसके कारण प्रश्‍नगत‍ फ्लैट से सम्‍बन्धित ब्‍लाक के निर्माण में विलम्‍ब किया गया, अत: प्रश्‍नगत फ्लैट का कब्‍जा देने में जो भी विलम्‍ब हुआ है, उसके लिए विपक्षी प्रमोटर/बिल्‍डर निजी तौर पर जिम्‍मेदार है।

परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा परिवादी सहित अन्‍य आवंटियों के प्रबल विरोधों के बाद भी एग्रीमेन्‍ट से हटकर मनमाने ढंग से निर्धारित फायर फाइटिंग चार्जेज एवं इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन चार्जेज को समाप्‍त न किये जाने, होल्डिंग चार्जेज की चेतावनी दिये जाने, बिना उक्‍त चार्जेज को दिये फ्लैट की रजिस्‍ट्री एवं कब्‍जा न दिये जाने तथा एग्रीमेन्‍ट के क्‍लाज 6 के अनुसार फ्लैट का आवंटन निरस्‍त किये जाने अथवा 18 प्रतिशत की दर से ब्‍याज चार्ज किये जाने की चेतावनी दिये जाने तथा आवासीय आवश्‍यकता एवं किराये भत्‍ता की धनराशि से बचने की अपरिहार्यता एवं बाध्‍यता के दृष्टिगत परिवादी द्वारा विपक्षी की उक्‍त प्रताड़ना के कारण विवश होकर प्रश्‍नगत फ्लैट के उक्‍त नाजायज चार्जेज का भुगतान किया गया। परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत फ्लैट का कब्‍जा लिये जाने के उपरान्‍त यह ज्ञात हुआ कि विपक्षी/प्रमोटर द्वारा फायर फाइटिंग तथा इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन के नाम पर कोई कार्य नहीं कराया गया है तथा पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्‍त हो जाने पर यह स्‍पष्‍ट हो गया कि विपक्षी/प्रमोटर द्वारा  अब  भविष्‍य

 

 

-4-

में फायर फाइटिंग तथा इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन के नाम पर कोई कार्य नहीं कराया जावेगा तथा यह कि उक्‍त मदों पर विपक्षी द्वारा कुल व्‍यय धनराशि का हिसाब भी परिवादी सहित अन्‍य आवंटियों को नहीं बताया गया। एग्रीमेन्‍ट की शर्तों के अनुसार फायर फाइटिंग व्‍यवस्‍था विपक्षी द्वारा स्‍वत: के खर्च पर किया जाना उल्लिखित है। विपक्षी द्वारा परिवादी से एग्रीमेन्‍ट की शर्तों के विरूद्ध नाजायज रूप से फायर फाइटिंग चार्जेज के रूप में दिनांक 14.01.2014 को सर्विस टैक्‍स सहित 49,987/-रू0 तथा इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन चार्जेज के रूप में 1,06,672/-रू0 लिया गया।

परिवादी का कथन है कि एग्रीमेन्‍ट में फ्लैट का सुपर एरिया 1250 वर्गफिट एवं कुल मूल्‍य 20,00,000/-रू0 उल्लिखित है, जबकि विपक्षी द्वारा 1250 वर्गफिट के स्‍थान पर 1293 वर्गफिट एरिया परिवर्तन के नाम पर 68,800/-रू0 परिवादी से अतिरिक्‍त चार्ज करते हुए सेवा कर सहित 70,927/-रू0 लिया गया, परन्‍तु विपक्षी द्वारा फ्लैट के एरिया में परिवर्तन कहॉं, कितना तथा किस तरह किया गया, के संबंध में कभी बताया नहीं गया तथा विपक्षी द्वारा परिवादी से उक्‍त परिवर्तन के संबंध में कोई सहमति भी नहीं ली गयी तथा प्रश्‍नगत फ्लैट का अविधिमान्‍य कब्‍जा देते समय फ्लैट का माप नहीं कराया गया तथा पूर्णता प्रमाण पत्र जारी करते समय भी उक्‍त परिवर्तन के कारणों एवं विवरणों को नहीं बताया गया। इस प्रकार विपक्षी कम्‍पनी द्वारा सेवा में कमी की गयी, जिसके कारण परिवादी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्‍ट पहुँचा। अत: क्षुब्‍ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध इस न्‍यायालय के सम्‍मुख परिवाद योजित करते हुए निम्‍न अनुतोष की मांग की गयी है:-

''1-कृपया दि0 04.03.2017 को सक्षम प्राधिकारी द्वारा ''एफ''ब्‍लाक की जारी पूर्णता प्रमाण पत्र की प्रति परिवादी को उपलब्‍ध कराने हेतु विपक्षी को आदेशित करने तथा बिना पूर्णता प्रमाण पत्र के  ही

 

 

 

-5-

फ्लैट कब्‍जा देकर संगत कानून का उलंघन करने लिये विपक्षी के विरुद्ध उचित कार्यवाही करने की कृपा करें।

2-कृपया ऐग्रीमेंट में दर्शित 1250 वर्गफिट सुपर एरिया तथा रजिस्‍ट्रीकृत सेलडीड के प्रस्‍तर 39 में दर्शित 15.88 वर्गमी आनुपातिक भूमि एवं सेलडीड में दर्शित विक्रीत 120.122 वर्गमी0 आच्‍छादित क्षेत्र का मौके पर माप कराकर सत्‍यापित करने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

3-कृपया प्रपीड़न के तहत नाजायज ढंग से फायर फाइटिंग चार्जेज के विरुद्ध परिवादी से दि0 14.01.2014 को ली गयी धनराशि रु0 49987/- को दि014.01.2014 से इसके भुगतान किये जाने की तिथि तक 18 प्रतिशत की दर से ब्‍याज सहित वापस करने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

4-कृपया प्रपीड़न के तहत नाजायज ढंग से इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन चार्जेज के विरुद्ध परिवादी से दि0 14.01.2014 को ली गयी धनराशि रु0 1,06,672/- को दि014.01.2014 से भुगतान किये जाने की तिथि तक 18 प्रतिशत की दर से ब्‍याज सहित वापस करने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

5-कृपया एरिया इन्‍क्रीज के नाम पर दि0 18.10.2013 को ली गयी धनराशि रु0 70,927/- को दि018.10.2013 से भुगतान किये जाने की तिथि तक 18 प्रतिशत की दर से ब्‍याज सहित वापस करने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

6-कृपया फ्लैट के बेसिक मूल्‍य एवं कार पार्किंग मूल्‍य के विरुद्ध रु0 21,18,367/- की जो धनराशि ऐग्रीमेंट के 36 महीने बाद से अर्थात दि0 01.03.2012 से अवैध कब्‍जा दिये जाने अर्थात 05.02.2014 की अवधि तक विपक्षी के पास जमा रही, उस अवधि पर 18 प्रतिशत की दर से परिवादी को ब्‍याज देने तथा उक्‍त आगणित ब्‍याज की धनराशि पर इसके  भुगतान  किये  जाने  की

 

 

 

 

-6-

तिथि तक परिवादी को 12.00 प्रतिशत की दर से ब्‍याज वापस करने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

7-कृपया पूर्वोक्‍त वर्णित शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक क्‍लेशों की प्रतिपूर्ति हेतु रु0 2,00,000/- (दो लाख रुपया) की धनराशि परिवादी को देने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

8-कृपया वाद व्‍यय एवं अधिवक्‍ता की फीस की प्रतिपूर्ति हेतु                रु0 20,000/- की धनराशि परिवादी को देने हेतु विपक्षी को आदेशित करने की कृपा करें।

9-कृपया अन्‍य अनुतोष, जिसे मा0 आयोग न्‍यायहित में उचित समझें, परिवादी के पक्ष में स्‍वीकृत करने की कृपा करें।''

     विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया तथा मुख्‍य रूप से कथन किया गया कि परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत‍ पोषणीय नहीं है तथा परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (डी) के अन्‍तर्गत‍ उपभोक्‍ता नहीं है। परिवादी द्वारा मुनाफा कमाने के उद्देश्‍य से रियल एस्‍टेट कारोबार में निवेश किया गया है, इस कारण वह उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता नहीं है।

विपक्षी का कथन है कि परिवादी इस न्‍यायालय के सम्‍मुख स्‍वच्‍छ हाथों से नहीं आया है तथा परिवादी द्वारा महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों को छिपाया गया है। विपक्षी कम्‍पनी द्वारा भवन नक्‍शे की मंजूरी की तारीख से 36 महीने के भीतर आवंटित यूनिट का कब्‍जा दिया जाना था, जो अप्रत्‍याशित परिस्थितियों के अधीन था तथा जो वास्‍तविक विक्रय मूल्‍य तथा देय अन्‍य शुल्‍कों के पूर्ण भुगतान की प्राप्ति पर दिया जाना था। विपक्षी एक प्रतिष्ठित रियल एस्‍टेट कम्‍पनी है, जिसकी परियोजनाओं ने ग्राहकों को लुभाया और सराहा है।

विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने सुपर एरिया 1250 वर्ग मीटर में फ्लैट नं0 401, पैराडाइज क्रिस्‍टल, सुशान्‍त गोल्‍फ  सिटी,

 

 

-7-

लखनऊ में बुक किया था, जिसके संबंध में दिनांक 28.02.2009 को बिल्‍डर बायर एग्रीमेन्‍ट निष्‍पादित किया गया। परिवादी इस न्‍यायालय को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है तथा झूठी दलीलें पेश कर रहा है। परिवादी का प्रश्‍नगत सम्‍पत्ति/फ्लैट पर कब्‍जा है तथा यह कि परिवादी द्वारा स्‍वयं अपनी सन्‍तुष्टि के अनुसार सभी आवश्‍यक चीजों की जांचोपरान्‍त फ्लैट पर कब्‍जा प्राप्‍त किया गया है। परिवादी के पक्ष में दिनांक 29.01.2014 को विक्रय विलेख निष्‍पादित किया गया है तथा परिवादी द्वारा अपनी सन्‍तुष्टि के बाद विक्रय विलेख पर हस्‍ताक्षर किये गये। विक्रय विलेख की शर्तों के अनुसार परिवादी को स्‍वयं यह जानकारी थी कि विपक्षी द्वारा सभी आवश्‍यक शुल्‍क वसूल किये जायेंगे। विकासकर्ता के नियम/अनुबंध के अनुसार बुक की गयी यूनिट के कब्‍जे को पूरा करने तथा सुपुर्दगी के लिए उचित समय विस्‍तार दिया जायेगा। अप्रत्‍याशिक घटना की मूल अवधारणा इसकी परिभाषा में निहित है। समझौते के अनुसार यदि यूनिट के निर्माण में अप्रत्‍याशित परिस्थितियों के कारण विलम्‍ब हुआ है तो योजना के विलम्‍ब/निलंबन की अवधि के लिए आवंटियों द्वारा किसी भी प्रकार के मुआवजे का दावा नहीं किया जावेगा।

विपक्षी का कथन है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है क्‍योंकि विपक्षी द्वारा कब्‍जा देने में विलम्‍ब जानबूझकर  नहीं किया गया है। विलम्‍ब फोर्स मेज्‍योर परिस्थितियों के कारण हुआ था, जो विपक्षी के नियंत्रण से बाहर था। परिवादी द्वारा मांगे गये अनुतोष अवैध हैं।

विपक्षी का कथन है कि विपक्षी द्वारा नेक नीयत से दबाव में आवंटित यूनिट का विक्रय विलेख का पंजीकरण शुरू किया गया,  परन्‍तु विपक्षी द्वारा पहले ही सम्‍बन्धित प्राधिकारी द्वारा सी0सी0 के लिए आवेदन कर दिया था। विपक्षी द्वारा समझौते के अनुसार होल्डिंग शुल्‍क लगाया गया था। एग्रीमेन्‍ट की शर्तों के अनुसार यदि

 

 

 

-8-

सुपर एरिया बढ़ा या घटा था उस परिस्थिति में विपक्षी वर्णित दर के अनुसार बढ़े हुए क्षेत्र के लिए चार्ज करने के लिए उत्‍तरदायी है। परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध झूठे आरोप लगाये गये हैं, इसलिए परिवाद सव्‍यय निरस्‍त होने योग्‍य है।

     हमारे द्वारा परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री बनारसी सिंह एवं विपक्षी की विद्वान अधिवक्‍ता श्रीमती सुरंगमा शर्मा को सुना गया तथा उभय पक्ष की ओर से पत्रावली पर दाखिल समस्‍त प्रपत्रों का सम्‍यक परिशीलन व परीक्षण किया गया।

     विपक्षी की विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत फ्लैट का कब्‍जा प्राप्‍त कर लिया गया है तथा विक्रय पत्र निष्‍पादित करते समय किसी प्रकार की आपत्ति नहीं की गयी, इसलिए परिवादी कब्‍जा प्राप्‍त कर लेने के उपरान्‍त विपक्षी का उपभोक्‍ता नहीं है, जिस कारण प्रस्‍तुत परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत पोषणीय नहीं है।

विपक्षी की विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपने तर्क के समर्थन में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा टी0के0ए0 पदमानाभन बनाम अभियान सीजीएचएस लिमिटेड में पारित निर्णय दिनांकित 04.01.2016 में दी गयी विधि व्‍यवस्‍था का उल्‍लेख करते हुए उक्‍त निर्णय में उल्लिखित निम्‍न तथ्‍य की ओर पीठ का ध्‍यान आकर्षित किया:-

      “ It is an admitted fact, that petitioner had taken the physical possession of the flat on 27.02.2004, though there was delay of 11 months in giving possession on behalf of the respondent. However, the consumer complaint was filed on 08.08.2005, that is, about one and half years, after petitioner got the possession. There is nothing on record to show, that at the time of taking possession of the flat, petitioner had lodged any protest with regard to delay or took conditional possession. When petitioner had taken the possession of the flat on 27.0.2004, unconditionally and without any protest, thereafter he cease to be a Consumer. The agreement executed between the parties, comes to an end. Thus, on the date when Consumer Complaint was filed, there was  no  privity  of  contract

 

 

 

 

-9-

between the parties. As such, the consumer complaint on the face of it is not maintainable.”

परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा विपक्षी की विद्वान अधिवक्‍ता के उपरोक्‍त तर्क का विरोध करते हुए तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत फ्लैट का कब्‍जा प्राप्‍त कर लेने के बाद भी परिवादी विपक्षी का उपभोक्‍ता है तथा प्रस्‍तुत परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत पोषणीय है।

परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपने तर्क के समर्थन में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 3343/2020 देबाशीष सिन्‍हा व अन्‍य बनाम मै0 आर0एन0आर0 एण्‍टरप्राइजेज में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 09.02.2023 में दी गयी विधि व्‍यवस्‍था का उल्‍लेख करते हुए उक्‍त निर्णय में उल्लिखित निम्‍न तथ्‍य की ओर पीठ का ध्‍यान आकर्षित किया:-

“The complaint lodged by the appellants was contested by the respondents by filing a written statement. Apart from objecting to the maintainability of the complaint on the grounds that the same was time barred and that a joint complaint could not have been lodged by 36 (thirty-six) flat owners, it was contended that the appellants have not paid the full consideration amounts, that certain common facilities/amenities could be provided only if all the members of the housing complex contribute for the same and that the compensation claimed was vague and imaginary. It was also contended in the written statement that most of the appellants had taken possession of the flats in 2006 without raising any objection at the material time; hence, lodging of a complaint after 2 (two) years of possession being delivered is motivated. Insofar as the issue of obtaining the completion certificate is concerned, it was contended that the flats having already stood transferred to the appellants by 4 way of conveyance/sale deed(s), it was for the appellants to apply before the KMC for obtaining such certificate. The respondents also contended that since KMC had completed assessment of the flats of the appellants, it was not possible for the respondents to now apply and obtain completion certificate for the flats.”

परिवादी  के  विद्वान  अधिवक्‍ता  द्वारा  माननीय  उच्‍चतम

 

 

 

-10-

न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णय में उल्लिखित निम्‍न तथ्‍य की ओर भी पीठ का ध्‍यान आकर्षित किया:-

“The conduct of the respondents, the NCDRC recorded in the impugned order, was far too casual and on the face of it, the respondents are guilty of “unfair trade practice” within the meaning of section 2(1)(r) of the C.P. Act. After so recording, the NCDRC held that this does little to rescue the complainants. The reason assigned therefor defies logic. We have failed to comprehend as to what the NCDRC meant when it observed that the appellants “ought to have known what they were purchasing”. More often than not, the 7 jurisdiction of the consumer fora under the C.P. Act is invoked postpurchase. If complaints were to be spurned on the specious ground that the consumers knew what they were purchasing, the object and purpose of the enactment would be defeated. Any deficiency detected post-purchase opens up an avenue for the aggrieved consumer to seek relief before the consumer fora. The reasoning of the NCDRC is, thus, indefensible. Indeed, the appellants had purchased their respective flats on payment of consideration amounts as per market rate and there was due execution and registration of the deeds of conveyance preceded by agreements for sale and these instruments did indicate, inter alia, what formed part of the common facilities/amenities; however, the matter obviously could not have ended there. Whether the appellants had been provided what the respondents had promised did survive for consideration, which does not get reflected in the impugned order.

NCDRC, in our opinion, might have missed to appreciate the present day realities of life. Now-a-days, flat owners seldom purchase flats with liquid cash. Flats are purchased on the basis of finances being advanced by banks and other financial institutions. Once a flat is booked and the prospective flat owner enters into an agreement for loan, instalments fall due to be paid to clear the debt irrespective of whether the flat is ready for being delivered possession. The usual delays that are associated with construction 8 activities result in undue anxiety, stress, and harassment for which many a prospective flat owner, it is common knowledge, even without the project/flat being wholly complete is left with no other option but to take possession. Whether, upon taking possession, a flat owner forfeits his/her right to claim such services which had been promised but are not provided resulting in deficiency in services is a question that the NCDRC ought to  have adverted  to.

 

 

 

-11-

Once the NCDRC arrived at a finding that the respondents were casual in their approach and had even resorted to unfair trade practice, it was its obligation to consider the appellants’ grievance objectively and upon application of mind and thereafter give its reasoned decision. If at all, the appellants had not forfeited any right by registration of the sale deeds and if indeed the respondents were remiss in providing any of the facilities/amenities as promised in the brochure/advertisement, it was the duty of the NCDRC to set things right.”

हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण द्वारा उल्लिखित माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्‍त निर्णयों का सम्‍मानपूर्वक अवलोकन किया गया।

सम्‍पूर्ण तथ्‍यों एवं परिस्थितियों तथा माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्‍त निर्णयों को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत विपक्षी का उपभोक्‍ता है तथा प्रस्‍तुत परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत पोषणीय है। सम्‍पूर्ण तथ्‍यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का सम्‍यक परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्‍त हम इस मत के हैं कि विपक्षी द्वारा एग्रीमेन्‍ट के अनुसार निर्धारित समयावधि में फ्लैट का निर्माण पूरा कर परिवादी को कब्‍जा नहीं दिया गया, बल्कि सक्षम प्राधिकारी से पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्‍त किये बिना तथा एग्रीमेन्‍ट के अनुसार समस्‍त विकास कार्य पूर्ण किये बिना जबरन परिवादी को प्रश्‍नगत फ्लैट का कब्‍जा विलम्‍ब से दिया गया तथा यह कि विपक्षी द्वारा एग्रीमेन्‍ट के अनुसार समस्‍त विकास कार्य पूर्ण किये बिना परिवादी से जबरन फायर फाइटिंग चार्जेज व इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन चार्जेज वसूल किये गये, जो विपक्षी की सेवा में कमी एवं अनुचित व्‍यापार पद्धति को प्रदर्शित करता है।

अतएव उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम इस मत  के  हैं

 

 

 

-12-

कि विपक्षी द्वारा परिवादी को आवंटित फ्लैट का एग्रीमेन्‍ट के अनुसार समस्‍त विकास कार्य पूर्ण कराया जाना उचित है। विपक्षी द्वारा परिवादी से वसूल किये गये फायर फाइटिंग चार्जेज    49,987/-रू0 व इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन चार्जेज 1,06,672/-रू0

मय 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज जमा की तिथि से वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक परिवादी को वापस दिलाया जाना उचित है। विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रश्‍नगत फ्लैट का निर्धारित समयावधि में कब्‍जा न दिये जाने के कारण विपक्षी से परिवादी को उसके द्वारा प्रश्‍नगत फ्लैट के संबंध में कुल जमा धनराशि पर                12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज जमा की तिथि से कब्‍जा प्रदान किए जाने की तिथि तक कब्‍जा में विलम्‍ब हेतु क्षतिपूर्ति दिलाया जाना उचित है। विपक्षी द्वारा परिवादी को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक उत्‍पीड़न हेतु क्षतिपूर्ति 5,00,000/-रू0 (पांच लाख रूपये) दिलाया जाना उचित है। विपक्षी द्वारा परिवादी को 20,000/-रू0 (बीस हजार रूपये) वाद व्‍यय दिलाया जाना भी उचित है। इसके अतिरिक्‍त परिवादी द्वारा मांगे गये अन्‍य अनुतोष परिवादी को दिलाया जाना न्‍यायोचित प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार प्रस्‍तुत परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

     प्रस्‍तुत परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया जाता है:-

(1) विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह एग्रीमेन्‍ट के अनुसार परिवादी को आवंटित फ्लैट का समस्‍त विकास कार्य                 दो माह की अवधि में पूर्ण करावे।

(2) विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी से वसूल किये गये फायर फाइटिंग चार्जेज 49,987/-रू0 व इक्‍सटर्नल इलेक्ट्रिफिकेशन चार्जेज 1,06,672/-रू0 मय 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज जमा की तिथि से वास्‍तविक भुगतान की तिथि  तक

 

 

 

-13-

परिवादी को दो माह की अवधि में वापस करे।

(3) विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत फ्लैट के संबंध में कुल जमा धनराशि पर 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज जमा की तिथि से कब्‍जा प्रदान किए जाने की तिथि तक कब्‍जा में विलम्‍ब हेतु परिवादी को क्षतिपूर्ति दो माह की अवधि में प्रदान करे।

(4) विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक उत्‍पीड़न हेतु क्षतिपूर्ति 5,00,000/-रू0 (पांच लाख रूपये) दो माह की अवधि में प्रदान करे।

(5) विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को 20,000/-रू0 (बीस हजार रूपये) वाद व्‍यय भी दो माह की अवधि में प्रदान करे। 

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

     (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)            (सुधा उपाध्‍याय)     

              अध्‍यक्ष                      सदस्‍य

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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