राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-216/2022
शोभित कुमार मित्तल पुत्र श्री किशन चन्द मित्तल
बनाम
मैसर्स अंसल लैण्डमार्क टाउनशिप्स (प्रा0)लिमिटेड व अन्य
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री आदर्श प्रताप सिंह
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री मानवेन्द्र प्रताप सिंह
दिनांक :- 19.12.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी परिवादी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-206/2017 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.3.2022 के विरूद्ध योजित की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश से दो माह के अन्दर अंकन-5,54,003.00 (पॉच लाख चव्वन हजार तीन) रूपये मय 07(सात) प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज परिवाद दायरा तिथि ता अदायगी और अंकन-2000.00 (दो हजार) रूपये परिवाद व्यय परिवादी को अदा करें।''
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
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प्रस्तुत अपील अंतिम रूप से उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता की सहमति से सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 14.4.2009 को वेद व्यासपुरी आवासीय योजना दिल्ली-देहरादून बाईपास रोड, मेरठ में स्थित आस्था अपार्टमेंट में एक बीएचके आवासीय फ्लैट सं0-बी-5/टीएफ01 प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से बुक कराया गया था जिसकी कीमत अंकन-6,74,437/-रूपये थी और अपीलार्थी/परिवादी ने उसकी बुकिंग धनराशि अंकन-34,063/-रूपये चेक सं0-619902 दिनांकित 15.04.2009 के द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के कार्यालय में जमा करायी, जिसकी रसीद दिनांकित 07.9.2009 प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा जारी की गई और प्रत्यर्थी/विपक्षी ने दो वर्ष के अंदर फ्लैट तैयार करके उस पर कब्जा देने के लिए कहा था।
प्रत्यर्थी/विपक्षी के डिमांड नोटिस दिनांकित 04.06.2009 के अनुपालन में अपीलार्थी/परिवादी ने अंकन-33,381 रूपये दिनांक 15.06.2009 को प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के यहां जमा किये, जिसकी रसीद दिनांकित 01.07.2009 दी गई। डिमांड नोटिस दिनांकित 23.7.2009 के क्रम में अपीलार्थी/परिवादी ने अंकन-33,722/-रूपये प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां जमा किये, जिसकी रसीद दिनांकित 28.8.2009 दी गई। डिमांड नोटिस दिनांकित 12.8.2009 के अनुक्रम में अपीलार्थी/परिवादी ने अंकन-50,583/-रूपये प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां जमा किये, जिसकी रसीद दिनांकित 07.09.2009 दी गई। टॉवर निर्माण शुरू किये जाने के समय डिमांड नोटिस दिनांकित 08.12.2011 के पालन में अपीलार्थी/परिवादी ने अंकन-51,885/-रूपये प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के यहां जमा किये और रसीद दिनांकित 23.12.2011 दी गई और अपीलार्थी/परिवादी प्रत्यर्थी/विपक्षी के
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कार्यालय में गया तो प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा कि निर्माण कार्य शुरू हो गया है, दो वर्ष में फ्लैट का कब्जा दे दिया जायेगा।
ग्राउन्ड फ्लौर की छत पड़ने के समय डिमांड नोटिस दिनांकित 09.5.2012 को अंकन-53,060/- रूपये अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां जमा किये, जिसकी रसीद दिनांकित 28.5.2012 जारी की गई और कब्जे के संबंध में पूंछने पर प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा कि निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है, जल्दी ही फ्लैट का कब्जा दे दिया जायेगा। डिमांड नोटिस दिनांकित 06.9.2012 अंकन-52,146/-रूपये का अपीलार्थी/परिवादी को भेजा गया परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी का निर्माण कार्य बहुत धीमे था और एक साल से अधिक का समय हो चुका था। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने अंकन-1,03,378/-रूपये की मांग पत्र दिनांकित 07.11.2013 के द्वारा की, तो अपीलार्थी/परिवादी पुनः प्रत्यर्थी/विपक्षी के कार्यालय में गया तब भी प्रत्यर्थी/विपक्षी ने तुरन्त कार्य पूरा करने का आश्वासन दिया। अपीलार्थी/परिवादी किराये के मकान में रह रहा था और उसने अंकन-1,03,378/-रूपये ब्याज पर उधार लेकर दिनांक 03.12.2013 को प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां जमा किये, जिसकी रसीद दिनांकित 03.12.2013 दी गई। लगभग पॉच वर्ष से अधिक का समय हो गया था लेकिन प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने फ्लैट का निर्माण कार्य पूरा करके उसे कब्जा नहीं दिया। जब भी अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से बात की तो उसने जल्दी निर्माण कार्य पूर्ण करके कब्जा देने का आश्वासन दिया। डिमांड नोटिस दिनांकित 05.5.2014 के अनुपालन में अपीलार्थी/परिवादी ने अंकन-63,846/-रूपये प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां जमा किये, जिसकी रसीद दिनांकित 26.5.2014 दी गई। डिमांड नोटिस दिनांकित 10.10.2014 के क्रम में अपीलार्थी/परिवादी ने अंकन-40,446/-रूपये जमा किये, जिसकी रसीद
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दिनांकित 05.11.2014 दी गई। फ्लैट बुक किये हुए 06 वर्ष से अधिक का समय हो चुका है परन्तु फ्लैट का कब्जा नहीं दिया गया है। अपीलार्थी/परिवादी ने डिमांड नोटिस दिनांकित 07.5.2015 के अनुपालन में अंकन-89,640/-रूपये प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां जमा किये, इस प्रकार अपीलार्थी/परिवादी द्वारा कुल अंकन-5,54,003/-रूपये का भुगतान प्रत्यर्थी/विपक्षीगण को किया जा चुका है परन्तु कीमत की 82 प्रतिशत धनराशि अदा करने के बावजूद और 08 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी उक्त फ्लैट का कब्जा नहीं दिया गया अत: विवश होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों को अस्वीकार करते हुए यह कथन किया गया कि परिवाद असत्य एवं भ्रामक तथ्यों के आधार पर योजित किया गया है। अपीलार्थी/परिवादी कोई प्रतिकर प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है एवं मौके पर निर्माण कार्य करीब-करीब पूरा हो चुका है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
अपील योजित करने का मुख्य कारण अपीलार्थी द्वारा यह उल्लिखित किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो अनुतोष प्रदान किया गया है उसके विपरीत वार्षिक साधारण ब्याज की देयता प्रचलित वार्षिक साधारण ब्याज जो कि मा0 उच्चतम न्यायालय, मा0 राष्ट्रीय आयोग एवं इस न्यायालय द्वारा लगभग सभी आदेशों में तथ्यों को उल्लिखित किये जाने के उपरांत पारित किया जाता है, उससे अत्याधिक कम दिलायी गयी है अर्थात मात्र 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज ही दिलायी गयी है।
निर्विवादित रूप से विगत एक वर्ष से मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा बृहद पीठ Civil Appeal No.6044 of 2019 with Civil
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Appeal No. 7149 of 2019 Experion Developers Pvt. Ltd. Vs. Sushma Ashok Shiroor 2022 LiveLaw (SC) 352 विधि व्यवस्था का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है।
तद्नुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-206/2017 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 11.3.2022 को इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा सम्पूर्ण आदेशित धनराशि पर 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के स्थान पर 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज, जमा की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय धनराशि पर ब्याज की गणना करते हुए 45 दिन की अवधि में सम्पूर्ण धनराशि अपीलार्थी/परिवादी को प्राप्त करायी जावे अन्यथा की स्थिति में जमा की गई धनराशि जमा की तिथि से भुगतान की तिथि पर 12 प्रतिशत ब्याज की देयता होगी।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1