प्रकरण क्र.सी.सी./13/302
प्रस्तुती दिनाँक 13.12.2013
श्रीमती अंजू गुप्ता पत्नी श्री प्रदीप कुमार आयु-42 वर्ष, निवासी- देवीगंज रोड, अंबिकापुर, द्वारा-मेसर्स आनंद आॅटो मोबाईल्स, देवीगंज रोड, अंबिकापुर, थाना व तह. अंबिकापुर, जिला सरगुजा (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. मेसर्स आदित्य व्हील्स (इंडिया) प्रा.लिमि., (निशान डिवीजन) रायपुर - भिलाई एक्सप्रेस वे, खारून प्लाजा के पास, नेशनल हाईवे, क्र.06, जी.ई.रोड कुम्हारी, तह. धमधा जिला-दुर्ग (छ.ग.) 490 042
2. मेसर्स निशान मोटर्स इंडिया लिमि. काॅर्पोरेट कार्यालय- ए.एस.व्ही रामना टाॅवर्स, 37 एवं 38 वेंकट नारायण रोड, टी.नगर, चेन्नई 600017
3. मेसर्स निशान मोटर्स इंडिया लिमि., मोर्केटिंग एंड सेल्स आॅफिस -हाॅवर आॅटोमोटिव इंडिया प्रा.लिमि., ग्रांडे पलीडियम, पांचवी मंजिल, बी-विंग, 175, सी.एस.टी. रोड, कलीना, सांताक्रूज (पूर्व), मुंबई 400 098
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 10 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से वाहन निशान माईक्रा डीजल ग्ट च्म्त् नई वाहन दिलाये जाने, नई वाहन प्रदान नहीं किये जाने पर कार का वर्तमान मूल्य 7,30,502रू. मय ब्याज दिलाये जाने, दैनिक परिवहन कार्य मंे हुए व्यय स्वरूप दि.25.12.2012 से नई वाहन प्रदान किये जाने अथवा उसका मूल्य भुगतान किये जाने पर्यन्त तक 1,000रू. प्रति-दिन की दर से क्षतिपूर्ति राशि, मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक क्र.1 द्वारा वाहन निशान माइक्रा डीजल ग्ट च्म्त् परिवादी दि.18.02.2012 को विक्रय किया गया था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के द्वारा अनावेदक क्र.1 से दि.18.02.12 को अनावेदक क्र.3 द्वारा निर्मित वाहन निशान माइक्रा डीजल ग्ट च्म्त् क्रय की गई थी, जिसका पंजीयन क्र.सी.जी.15/ए.ई./2500 है, तथा जिस पर अनावेदक क्र.1 के द्वारा वाहन क्रय दिनांक से 24 माह /50,000 किलोमीटर चलने के पूर्व जो पहले हो, वाहन के ऐसे कल-पुर्जे जो त्रुटिपूर्ण हो को मुफ्त सुधारा जावेगा अथवा बदला जावेगा वारंटी बुकलेट के साथ प्रदान किया गया था। परिवादिनी के द्वारा वाहन में दि.10.12.12 को इंजन से धुआँ निकलने की समस्या के कारण अपने वाहन को अनावेदक क्र.1 के पास ले जाया गया जहां पर अनावेदक क्र.1 के द्वारा वाहन मे इंजन मे निर्माणीय त्रुटि होना बताते हुए अनावेदक क्र.2 से नया इंजन लगा कर देनें का कथन किया गया था, अनावेदक क्र.1 के द्वारा परिवादिनी के वाहन को खुले स्थान पर इंजन निकालकर छोड़ दिया गया है जिससे नया वाहन इंजन के इंतजार में खड़े-खडे़ खराब हो रहा है। परिवादिनी के पति के द्वारा अनावेदक क्र.2 के कस्टमर केयर पर संपक्र कर अपनी शिकायत दर्ज कराई गई जिसका क्र..2013010744726 दिया गया तथा ई-मेल दि 15.01.13 को प्रेषित किया गया। अनावेदक क्र.2 के द्वारा दि.16.01.13 को परिवादिनी के पति को ई-मेल प्रेषित कर खेद प्रकट किया गया तथा शीघ्र समस्या निवारण का आश्वासन दिया गया। आवेदिका के द्वारा अनावेदक क्र.1 के कई चक्कर लगानें पर तथा अनावेदकगण के द्वारा किसी प्रकार की सहायता प्राप्त न होने की दशा में तथा वाहन सुधारोपरांत वापस न प्रदान करने की दशा में परिवादिनी के द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से दि.27.05.13 को अनावेदकगण को नोटिस प्रेषित किया गया, जिसका कोई जवाब अनावेदकगण के द्वारा नहीं दिया गया। इस प्रकार अनावेदकगण का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादिनी को अनावेदकगण से वाहन निशान माईक्रा डीजल ग्ट च्म्त् नई वाहन दिलाये जाने, नई वाहन प्रदान नहीं किये जाने पर कार का वर्तमान मूल्य 7,30,502रू. मय ब्याज दिलाये जाने, दैनिक परिवहन कार्य मंे हुए व्यय स्वरूप दि.25.12.2012 से नई वाहन प्रदान किये जाने अथवा उसका मूल्य भुगतान किये जाने पर्यन्त तक 1,000रू. प्रति-दिन की दर से क्षतिपूर्ति राशि, मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक क्र.1, अनावेदक क्र.2 एवं क्र.3 के सिर्फ डीलर है एवं अनावेदक क्र.1 द्वारा अनावेदक क्र.2 के निर्मित वाहन की बिक्री की जाती है एवं अनावेदक क्र.2 के द्वारा उपलब्ध कराए गए पुर्जे एवं तकनीक के द्वारा ही उक्त निर्मित वाहन की सर्विसिंग दी जाती है, एवं वाहन की वारंटी भी अनावेदक क्र.2 के द्वारा दी गयी है ना कि अनावेदक क्र.1 के द्वारा, उपरोक्त प्रकरण में जब परिवादी ने अपने उक्त वाहन से ओवर हीटिंग एवं सफेद धुआं निकलने की शिकायत अनावेदक क्र.1 से की तब अनावेदक क्र.1 के द्वारा तत्काल कार्यवाही करते हुए परिवादी के वाहन को अपने वर्क शाॅप मे लाया गया एवं अपने तकनीकी कर्मचारियों एवं अनावेदक क्र.2 के तकनीकी कर्मचारियों से उसकी जांच करायी गयी तो यह पाया गया कि परिवादी द्वारा उक्त वाहन का रख-रखाव अनावेदक क्र.2 के द्वारा दी गई वांरटी एवं मेंटनेंस बुकलेट के अनुसार नहीं की गई अर्थात आवेदक द्वारा इंप्राॅपर और डर्टी फ्यूल एण्ड लुब्रीकेट्स का प्रायोग उक्त वाहन में किया गया एवं अनावेदक क्र.2 के उपरोक्त आॅनर्स मैन्युअल एण्ड मेंटनेंस सेक्शन बुकलेट की न्यू व्हीकल वारंटी इंफार्मेशन की कंडिका 5 के तहत उपरोक्त वाहन का वारंटी के तहत लाभ परिवादी को नहीं दिया जा सकता है, जिसके संबंध में परिवादी को समय पर इस बात की सूचना फोन पर दी गई कि अनावेदक क्र.2 ने उपरोक्त अनुसार प्रश्नगत वाहन को गलत तरीकों से उपयोग करने के कारण परिवादी की गलती एवं त्रुटि के कारण वाहन का इंजन खराब हुआ है जो कि वारंटी के अंतर्गत नहीं आता है, जिसके रिपेयर में आने वाला व्यय परिवादी को देना होगा, अनावेदक क्र.2 कोई खर्च वहन नहीं करेगा। परिवादी द्वारा इस हेतु अपनी सहमति देते हुए वाहन को रिपेयर करने का मौखिक निर्देश अनावेदक क्र.1 को दिया, इस प्रकार अनावेदक क्र.1 ने उपरोक्त वाहन को परिवादी के वचन पर विश्वास करते हुए व्यावसाय के सामान्य अनुक्रम में कार्य करते हुए प्रश्नगत वाहन को सुधार कर बना दिया एवं परिवादी को सूचित किया कि आप अपने वाहन को ले जाईए, परंतु परिवादी आज पर्यन्त तक अपने वाहन को ले जाने नहीं आई, जिसके कारण अनावेदक क्र.1 को वाहन के रख रखाव एवं सुरक्षा पर व्यय करना पड़ रहा है। अनावेदक क्र.1 के द्वारा इस बाबत परिवादी को रजिस्टर्ड पत्र प्रेषित किया गया था, परंतु परिवादी के द्वारा अपने वाहन को नहीं ले जाया गया। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा किसी प्रकार से परिवादिनी के पक्ष में सेवा में कमी नहीं की गई, अतः अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध संस्थित यह परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) अनावेदक क्र.2 एवं 3 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी ने असत्य आधारों पर दावा प्रस्तुत किया है, क्योंकि उसने टैक्सी संबंधी फर्ज़ी बिल प्रस्तुत किया है, जबकि वह टैक्सी संस्था अस्तित्व में ही नहीं है। वाहन व्यवसायिक प्रयोजन के लिए खरीदी गयी थी, अतः परिवादी उपभोक्ता नहीं है। अनावेदक क्र.2 आवश्यक पक्षकार नहीं है। वाहन 15000 किलोमीटर चल चुका है, वाहन में खराबी अनुचित रख रखाव के कारण तथा वाहन में निम्न गुणवत्ता वाला इंधन भरने के कारण हुई। उक्त खामियां परिवादी ने स्वयं की लापरवाही के कारण हुई, जिसे उत्पादकीय त्रुटि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। परिवादी ने दुव्र्यवहार के संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है बल्कि अपने दावे को सुदृढ़ बनाने के लिए असत्य आधार प्रस्तुत किया है। परिवादी द्वारा एक्सपर्ट द्वारा जांच नहीं कराई है अतः उत्पादकीय त्रुटि नहीं मानी जा सकती है। अनावेदक क्र.2 ने स्पेयर पार्टस् बदलने एप्रूवल दे दिया था, परंतु संर्विस मैनेजर के द्वारा त्याग पत्र दे देने के कारण सुधार कार्य समय पर नहीं हो सका और चार माह पश्चात् कुछ और पार्टस् बदलने की आवश्यकता के बारे में सूचित किया गया था तब अनावेदक क्र.1 ने इंजन एसेम्बली डिस्मेंटल करने के बाद एस्टीमेट एप्रूवल के लिए सूचित किया था। अनावेदकगण द्वारा वारंटी अवधि में ही सुधार कार्य, वारंटी के अनुसार किया जाना था जबकि परिवादी ने अनावेदक क्र.1 पर यह दबाव डाला की वह पुराना इंजन बदले, जबकि उसके कुछ पार्टस् ही बदलने थे। उक्त संबंध में परिवादी ने कोई एक्सपर्ट रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की है। अतः अनावेदक का कृत्य सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदकगण से वाहन निशान माईक्रा डीजल ग्ट च्म्त् नई वाहन प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदकगण से नई वाहन प्रदान नहीं किये जाने पर कार का वर्तमान मूल्य 7,30,502रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. क्या परिवादी, अनावेदकगण से अभिकथित वाहन नहीं होने के कारण दैनिक परिवहन कार्य मंे हुए व्यय स्वरूप दि.25.12.2012 से नई वाहन प्रदान किये जाने अथवा उसका मूल्य भुगतान किये जाने पर्यन्त तक 1,000रू. प्रति-दिन की दर से क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ,
केवल 2,19,000रू. एनेक्चर पी.9
से एनेक्चर पी.16 के योग के अनुसार,
4. क्या परिवादी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 1,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
5. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) प्रकरण का अवलोकन कर हम यह पाते हैं कि अनावेदकगण द्वारा मुख्यतः यह बचाव लिया गया है कि परिवादी ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया है कि उसके पास अन्य चार वाहन थी तो उसने एनेक्चर-9 से एनेक्चर-16 तक के अनुसार टैक्सी में यात्रा क्यों की, अतः उक्त दस्तावेज फर्जी हैं, वैसे भी जांच करने पर पाया गया कि उक्त टैक्सी संस्था बंद हो चुकी है। परिवादी ने वाहन में खराब डीजल का उपयोग किया, वाहन का रख रखाव ठीक से नहीं किया, वाहन व्यवसायिक प्रयोजन के लिए उपयोग किया गया, वाहन को अत्यधिक असावधानी से चलाया, फलस्वरूप निर्माणगत त्रुटि नहीं मानी जा सकती अतः परिवादी की प्रार्थना स्वीकृत नहीं की जा सकती है।
(9) यदि अनावेदकगण का यह बचाव का अवलोकन किया जाये कि परिवादी ने वाहन का ठीक से रख रखाव नहीं किया और सही डीजल नहीं भराया तो इस संबंध में अनावेदकगण ने कोई सुदृढ़ साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, जबकि अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि यदि उन्हें ऐसी शंका थी तो जब वाहन सुधारने हेतु भेजी गई थी तो वाहन का डीजल निकाल कर उसका तकनीकी परीक्षण करवाते और जांच रिपोर्ट को साक्ष्य में प्रस्तुत करते। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है कि ग्राहक अपने वाहन में इंधन पैट्रोल पम्प में भराता है, इसी विश्वास से कि डीजल सही गुणवत्ता का है, वह कभी भी यह नहीं चाहेगा कि खराब गुणवत्ता का डीजल भरवा दिया जाये, क्योंकि कोई भी ग्राहक इतनी महंगी गाड़ी खरीदने के बाद अधिक से अधिक कोशिश करेगा कि वह वाहन का ठीक से रख रखाव करे और उसकी वाहन सुरक्षित रहे।
(10) वैसे भी प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि एनेक्चर - 5 से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि परिवादी ने उक्त वाहन अपने शादी की 25वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में खरीदी थी अतः स्वाभाविक है कि उक्त वाहन उसने एक बड़े उत्साह से खास अवसर के लिए खरीदी थी। फलस्वरूप अनावेदक का यह बचाव कि वाहन ठीक से रखा नहीं गया विश्वसनीय नहीं माना जा सकता क्योंकि ऐसा भी सिद्ध नहीं है कि परिवादी वाहन के संबंध में अनाड़ी था। प्रकरण की परिस्थितियां यही सिद्ध करती है कि परिवादी एक उच्च स्तरीय वर्ग का है, जिसके पास चार अन्य गाड़ी होना भी स्वयं अनावेदकगण ने स्वीकार किया है, तब यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी को गाड़ी रखने का ढंग या ज्ञान नहीं था। इस स्थिति में हम अनावेदकगण का यह बचाव आधारहीन पाते हैं कि परिवादी ने अभिकथित वाहन में अच्छी गुणवत्ता का इंधन नहीं भराया था, उसका रख रखाव ठीक से नहीं किया। अनावेदकगण ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया कि परिवादी को वाहन कैसे रखना था और उसने कैसे नहीं रखा इस स्थिति में अनावेदकगण अपने इस बचाव का लाभ प्राप्त करने के अधिकारी नहीं माने जा सकते।
(11) अनावेदकगण का बचाव है कि जब परिवादी के पास अन्य गाड़ियां उपलब्ध थीं तो परिवादी द्वारा एनेक्चर-9 से एनेक्चर-16 के अनुसार टैक्सी हायर करने का अभिकथन इसी तथ्य को सिद्ध करता है कि परिवादी जानबूझकर अनावेदकगण के विरूद्ध असत्य आधारों पर मामला लाना चाहता है और इस प्रकार परिवादी स्वच्छ हाथों से न्याय मांगने नहीं आया है। हम अनावेदकगण के इन तर्कों से सहमत नहीं है, क्योंकि जरूरी नहीं है जिस परिवार में अनेकों गाड़ी है तो पूरी गाड़ी एक ही व्यक्ति के उपयोग के लिए रखी गयी हों स्वाभाविक है कि परिवादी के परिवार में अन्य व्यक्ति भी होंगे, जिन्हें गाड़ी की आवश्यकता रहती होगी अतः अनावेदकगण का यह तक्र कि परिवादी ने असत्य आधारों को निर्मित करने के लिए फर्जी टैक्सी बिल प्रस्तुत किये है, स्वीकार योग्य नहीं माना जा सकता। अनावेदकगण का तक्र है कि वैसी टैक्सी संस्था अब अस्तित्व में ही नहीं है, परंतु इस संबंध में अनावेदकगण द्वारा कोई भी सुदृढ़ साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है। इस स्थिति में एनेक्चर-9 से एनेक्चर-16 तक टैक्सी बिल दस्तावेजों पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण नहीं पाया जाता है, जब ग्राहकों द्वारा नई वाहन खरीदी गई है और वारंटी अवधि में ही वाहन खराब हो गयी और उसे सुधरवाने में अधिक समय लग रहा है तो निश्चित तौर पर ग्राहक अपनी दिनचर्या हेतु अन्य इंतजाम करेगा ही और इस हेतु यदि उसे टैक्सी वाहन का उपयोग करना हो तो उसे इस तात्पर्य से नहीं लिया जाना चाहिए कि वह गलत आधारों पर अपना मामला सुदृढ़ करना चाहता है। निर्विवादित रूप से वाहन दि.02.03.2012 को खरीदा गया है और दि.24.12.2012 को अनावेदक क्र.1 के पास सुधारने भेजा गया है और यह प्रकरण प्रस्तुत होने की तिथि 23.12.2013 तक भी अनावेदकगण ने वाहन सुधार कर परिवादी के कब्जे में नहीं दिया है, तब निश्चित रूप से यह स्वाभाविक है कि परिवादी को अपने दैनिक कार्य करने हेतु यदि टैक्सी की जरूरत पड़ी हो तो उसे अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता।
(12) अनावेदकगण ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि अभिकथित वाहन व्यवसायिक उद्देश्य से खरीदी गई थी क्योंकि इस संबंध में अनावेदकगण ने कोई भी समुचित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है।
(13) अनावेदक क्र.1 का तर्क है कि उसने अभिकथित वाहन को सुधार दिया था और परिवादी को सूचित किया भी था कि वाहन को ले जाये, परंतु परिवादी आज तक वाहन को लेने नहीं आया और इस प्रकार उकत वाहन के रख-रखाव, सुरक्षा का खर्च अनावेदक क्र.1 को ही वहन करना पड़ रहा है, परंतु मुख्य मुद्दा यही है कि जब परिवादी ने इतनी मोटी रकम देकर इतनी मंहगी वाहन खरीदी थी तो मात्र 15,000 किलोमीटर चलने पर ही उसमें ऐसी त्रुटि क्यों आई। जबकि परिवादी एक उच्च स्तरीय ग्राहक है, जिसे वाहन की रख- रखाव का उचित ज्ञान है, इतने कम किलोमीटर चलने पर गाड़ी से धुआँ उठना निश्चित तौर पर एक गंभीर समस्या है, क्योंकि सामान्यतः पैट्रोल पम्प में ऐसा भी निम्न स्तर का इंधन सप्लाई नहीं होता है कि वाहन में धुआँ उठने लगे। स्वयं अनावेदक के दस्तावेजों एनेक्चर-ए.4 में भी सफेद धुआँ के संबंध में उल्लेख है, जिसे अनावेदक क्र.1 द्वारा एनेक्चर डी.2 के रूप में प्रस्तुत किया गया है यद्यपि एनेक्चर डी.2 अनुसार उक्त दस्तावेज जारी किया गया है तथा एनेक्चर डी.3 अनुसार वाहन की डिस्पेक्शन शीट बनाई गई है, परंतु इन दोनों दस्तावेजों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इस दस्तावेज में किसी भी व्यक्ति के हस्ताक्षर नहीं है। वाहन में क्या सुधार कार्य किया गया इस संबंध में भी उल्लेख नहीं है, जिससे अनावेदकगण की अनुचित व्यापारिक प्रथा की पराकाष्ठा सिद्ध होती है कि किस प्रकार अनावेदकगण वाहन का निमार्ण करते हैं और उसे बाजार में बिकने हेतु एक विस्तृत आक्रामक व्यापारिक नीति बनाकर लाते हैं और ग्राहकों को वाहन खरीदने हेतु उत्साहित तो करते हैं पर जब वाहन में कोई समस्या आती है तो ग्राहकों की समस्या का समाधान नहीं करते है और इस प्रकार की स्थिति लाते हैं कि ग्राहक को इस बात का संतोष नहीं रहता कि उसे उत्पादकीय त्रुटिहीन वाहन प्राप्त हुआ है, जबकि उसने खास अवसर के लिए इतनी मोटी रकम देकर अनावेदकगण से उक्त वाहन खरीदा है। अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि वे जाॅबकार्ड में अपने द्वारा की गयी कार्यवाही का विस्तृत उल्लेख करते जिससे उनके द्वारा वाहन में किस प्रकार का सुधार कार्य किया यह परिलक्षित होता, परंतु यदि हम एनेक्चर डी.2 एवं एनेक्चर डी.3 का अवलोकन करें तो एक ऐसी स्थिति निर्मित होती है और यही सिद्ध होता है कि अनावेदक क्र.1 ने परिवादी के वाहन के संबंध में और सेवाएं देने का आशय नहीं बनाया था।
(14) अनावेदकगण के जवाबदावा से यह स्थिति भी सामने आती है कि अनावेदकगण ने यह भी बचाव लिया है कि सुधार कार्य में देरी का कारण सर्विस मैनेजर का त्याग पत्र दिया जाना है, तथा चार माह पश्चात् अन्य पार्टस् की जरूरत की सूचना की एप्रूवल की कार्यवाही भी है, उक्त स्थिति जहां एक ओर अनावेदकगण की घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करती है, वहीं यह स्थिति भी निर्मित होती है, जब इंजन में इतने सारे पार्टस् बदलने की आवश्यकता थी तो वह उत्पादकीय त्रुटि की श्रेणी में आयेगा, जैसा कि अनावेदक क्र.2 ने जवाबदावा की कंडिका-15 से सिद्ध होता है कि अनावेदक क्र.1 ने इंजन एसेम्बली को डिसमेंटल किया था फिर जनवरी 2013 में एप्रूवल के लिए इस्टीमेट भेजा था। फरवरी 2013 में सर्विस मैनेजर के त्याग पत्र देने के कारण सुधार कार्य नहीं होना बताया गया तथा अन्य पार्टस् की आवश्यकता होना बताया गया। इन परिस्थितियों में अनावेदक क्र.2 का तक्र कि परिवादी पूरा इंजन बदलने का प्रेशर दे रही थी जबकि पार्टस् बदलने थे, पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। प्रथमतः वाहन मार्च 2012 में खरीदा गया, जाॅबकार्ड दिसम्बर 2012 को बना और इसके पश्चात् इतने माह तक इस्टीमेट और एप्रूवल की कार्यवाही होती रही या फिर सर्विस मैनेजर के त्याग पत्र के आधार पर सुधार कार्य तो हुआ नहीं, बल्कि इंजन एसेम्बली को डिस्मेंटल करने की स्थिति आ गई यह पूरी स्थितियां इसी बात को सिद्ध करती है कि वस्तुतः वाहन के इंजन में ही खराबी थी जो कि इतनी मंहगी व नई वाहन में ऐसी स्थिति आने पर उत्पादकीय त्रुटि ही मानी जावेगी उसमें किसी एक्सपर्ट द्वारा जांच किया जाना आवश्यक भी नहीं है यह भी सोच का विषय है कि इतने दिनों तक अनावेदक क्र.1 एवं अनावेदक क्र.2 के मध्य इस्टीमेट एप्रूवल की कार्यवाही होती रही, परंतु अनावेदकगण ने उक्त संबंध में कोई भी दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं की, जिससे यह सिद्ध होता है कि अनावेदकगण वस्तु स्थिति को छुपाने का प्रयत्न किया है और परिवादी पर ही लांछन लगाकर येन-केन प्रकारेण उसमें दोषारोपण कर अपने जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं।
(15) यहां पर हम यह उल्लेख करना आवश्यक पाते हैं कि जो व्यवसाय अनावेदकगण करते हैं उसमें उन्हें अपनी मानसिकता बनानी चाहिए कि यदि वह नई महंगी लग्जरी गाड़ी बेचने का व्यवसाय करते हैं और यदि वाहन में खरीदने के तुरंत बाद ऐसी अभिकथित त्रुटियां पायी जाती है तो यह प्रवृत्ति विकसित करें कि वे त्रुटिपूर्ण यान असानी से बदल दें जैसा कि अन्य देशों में होता है अन्यथा ऐसी स्थिति में परिवादी जैसे ग्राहक को एक ओर इतनी मोटी राशि से वंचित तो होना ही पड़ेगा साथ ही ग्राहक को नई वाहन खरीदने की संतुष्टि और आनंद नहीं होगा जब कि ग्राहक अपने खून पसीने की कमाई से ऐसी महंगी वाहन खरीदतें है और बाद में उन्हें हतोत्साहित होना पड़ता है, साथ ही मामले मुकदमें में उलझकर मानसिक रूप से भी पीड़ित होना पड़ता है जैसा कि इस प्रकरण में परिस्थितियां बनती है कि किस प्रकार परिवादी सहायता प्राप्त करने के लिए मामला तो प्रस्तुत किया, परंतु दि.23.10.2013 से इस मामले को लड़ता रहा कभी ई-मेल तो कभी वाहन की कमी की वेदनाओं से गुजरता रहा और वहीं अनावेदकगण विभिन्न दोषारोपण करते हुए अपनी जिम्मेदारियों से बचते रहे कि कभी परिवादी उपभोक्ता नहीं है तो फर्जी दस्तावेज पेश हैं, ऐसा बचाव ले लिया गया, परंतु स्थिति वही बनी रही कि परिवादी नई वाहन चलाने के आनंद से वंचित रहा और असत्य आधारों पर अनावेदकगण वाहन सुधार दिये हैं कथन करते रहे जब कि परिवादी का तर्क है कि दस माह से ज्यादा से वर्तमान तक खड़ा रहा, निश्चित रूप से अनावेदकगण का ऐसा कृत्य घोर व्यवसायिक कदाचरण का है, फलस्वरूप हम परिवादी के तर्काें से पूर्णतः सहमत है कि अनावेदकगण ने घोर सेवा में निम्नता एवं व्यावसायिक दुराचरण किया है, फलस्वरूप हम अनावेदकगण के तर्क से सहमत होने का कोई आधार नहीं पाते हैं।
(16) यह भी महत्वपूर्ण बिन्दु है कि जब अनावेदक क्र.1 ने परिवादी के वाहन को सुधार कार्य हेतु एनेक्चर डी.3 और डी.2 अनुसार प्राप्त किया था और जैसा कि उसका तक्र है कि उसने वाहन सुधार दी थी, तब उच्च सेवाएं उसे ही कहा जा सकता है कि वह परिवादी को उच्च शिष्टाचार अपनाते हुए उस वाहन का कब्जा प्रदान करता। हम इन तर्को से सहमत नहीं है कि अनावेदक क्र.1 ने परिवादी को वाहन ले जाने के लिए कहा और परिवादी नहीं आया तो वाहन करीब 10 माह से परिवादी को प्रदान की ही नहीं, जब अनावेदक क्र.1 उक्त वाहन का डीलर है तो उसका यह भी कर्तव्य होता है कि यदि वाहन ग्राहक को बेची गई है तो बाद में भी वह उक्त वाहन के संबंध में उच्च शिष्टाचार की नीति अपनाये। अनावेदक क्र.1 ने परिवादी के पास वाहन पहुंचाने के क्या-क्या प्रयत्न किये, यह अनावेदक क्र.1 ने कहीं भी सिद्ध नहीं किया है, बल्कि एनेक्चर पी.5 से यही सिद्ध होता है कि परिवादी ने निर्माता कंपनी के कस्टमर केयर में यह सूचित किया है कि सुधार कार्य पश्चात् उसे वाहन उपलब्ध नहीं कराई जा रही है, अनावेदक क्र.1, परिवादी को कोई संतोषप्रद कारण भी नहीं बता रहा है और अनावेदक क्र.1 के कर्मचारी का व्यवहार भी असहनीय है। प्रकरण की परिस्थिति यही प्रकट करती है कि परिवादी एक उच्च वर्ग का ग्राहक है और वह बिना वजह एनेक्चर पी.5 का ई-मेल अनावेदक निर्माता कंपनी को तब तक नहीं करेगा जब तक वह डीलर के व्यवहार से परेशान न हो गया हो। एनेक्चर पी.5 से यह भी सिद्ध होता है कि परिवादी ने अन्य व्यक्ति के अलावा सर्विस इंजीनियर का नाम और फोन नंबर भी अपने ई-मेल में उल्लेखित किया है और उक्त ई-मेल दि.15.01.2013 का है। एनेक्चर पी.5 ई-मेल पर अविश्वास करने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता है जिससे यही सिद्ध होता है कि परिवादी ने पूर्व में भी वाहन संबंध शिकायत की थी, जिसमें रिफरेंस में उसने कम्प्लेंट नंबर भी लिखा है और जब कोई कार्यवाही नहीं हुई तब उसने एनेक्चर-5 का ई-मेल किया है। उक्त परिस्थिति अनावेदकगण की घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करती है।
(17) एनेक्चर पी.6 अनुसार निर्माता कंपनी द्वारा परिवादी को भेजा गया ई-मेल है, परंतु उक्त ई-मेल से यह सिद्ध नहीं होता है कि जब इतनी बड़ी ख्याति प्राप्त कंपनी को परिवादी ने शिकायत की तो उक्त कंपनी ने क्या कार्यवाही की, बल्कि एनेक्चर पी.6 के ई-मेल से यह सिद्ध होता है कि किस प्रकार लुभावने शब्द का उपयोग कर अनावेदक निर्माण कंपनी ने परिवादी को दिग्भ्रमित करने की कोशिश की है, परंतु कोई सुचित कार्यवाही नहीं की है, जोकि अनावेदकगण की सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करता है।
(18) अनावेदकगण का तर्क है कि वाहन में उत्पादकीय त्रुटि सिद्ध नहीं होती है, क्योंकि वाहन 15000 किलोमीटर चल चुका है तथा परिवादी ने उत्पादकीय त्रुटि होने के संबंध में कोई एक्सपर्ट रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है तथा यह भी सिद्ध नहीं किया है कि किस मैकेनिक से जांच कराई थी जिसके आधार पर वह वाहन में उत्पादकीय त्रुटि होना कहता है। निर्विवादित रूप से वाहन में उक्त खामियां मात्र 15000 किलोमीटर चलने पर ही आ गई और उक्त कमी निर्विवादित रूप से वाहन में सफेद धुआँ उठने संबंधी है, यदि अनावेदक क्र.2 के जवाबदावा कंडिका-15 का अवलोकन करें तो स्थिति अनावेदकगण के विरूद्ध ही सिद्ध होती है क्योंकि उक्त अभिकथन के अनुसार इन्जिन एस्मेबली को डिस्मेंटल किया गया है, फिर भी सुधार कार्य नहीं किया गया एवं अन्य पार्टस् की आवश्यकता बतायी गई जहां एक ओर अनावेदकगण ने उक्त संबंध में कोई दस्तावेज पेश नहीं किये हैं जिससे अनावेदकगण के विरूद्ध यह उत्प्रेरण निश्चित रूप से जाता है कि वाहन में गंभीर उत्पादकीय त्रुटि थी और इसी लिये इन्जिन एस्मेबेली को डिसमेन्टल करना पड़ा और उक्त संबंध में दस्तावेज को छुपाने का निर्णय अनावेदकगण द्वारा लिया गया। जबकि वाहन इतना अधिक नहीं चला और जितना भी चला वह एक ऐसे ग्राहक द्वारा चलाया गया, जिससे वाहन के चलाने व रख रखाव का समुचित ज्ञान रखता था जिसके उच्च स्तरीय वर्ग के होने से यह भी निष्कर्षित होगा कि वह ऐसी मानसिकता नहीं रखता था कि असत्य आधारों पर दावा लाने जैसी ओछी हरकत करेगा कि पहले तो इतनी मंहगी वाहन खरीद लेगा फिर असत्य आधारों पर समस्या बताते हुए दूसरी गाड़ी लेना चाहेगा, जबकि उक्त गाड़ी उसने 25 सालगिरह की भावनाओं के उत्साह में खरीदी थी, यही सिद्ध होता है कि परिवादी ने इतनी मंहगी वाहन खरीदी परंतु अनावेदकगण की निम्न सेवाएं एवं व्यवसायिक कदाचरण के कारण उसे खास अवसर पर उसे नई वाहन का आनन्द नहीं मिला वहीं उसे लम्बे समय से वाहन के उपयोग से वन्चित होना पड़ा।
(19) अतः यह उत्प्रेरण निकाला जाना अनुचित नहीं होगा कि परिवादी को ऐसी मानसिक वेदना हुई जिससे उसे यह अभास होना स्वभाविक हुआ कि उसने अनावेदकगण जैसी बहुराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कंपनी से इतनी मंहगी लग्जरी कार खरीदकर भूल की है और सुधार कार्य तो हुआ नहीं मामले मुकदमें में उलझकर उसे सिवाए मानसिक वेदनाओं के और कुछ हासिल नहीं हुआ और जब गाड़ी 10 माह तक सुधार हेतु अनावेदकगण के पास खड़ी हुई है तो यह कल्पना ही नहीं की जा सकती कि वह वाहन सुधार कार्य करने लायक होगी और निश्चित रूप से यह उत्प्रेरण निकलेगा कि उक्त वाहन में मूलतः उत्पादकीय त्रुटि है जिसके फलस्वरूप परिवादी अनावेदकगण से उसी माॅडल की दूसरी नई त्रुटिहीन वाहन प्राप्त करने का या उसकी कीमत मय खर्च के प्राप्त करने का अधिकारी है। ऐसी परिस्थितियों में ना ही किसी एक्सपर्ट रिपोर्ट की आवश्यकता है और न ही किसी तकनीकी जांच की आवश्यकता है इतनी मंहगी वाहन में यदि इस प्रकार की खामी आती है तो वह प्रथमदृष्टया इस बात को सिद्ध करता है कि उत्पादकीय त्रुटि है, जिसके कारण वाहन के इन्जिन एसेम्बली को डिसमेन्टल किया गया है। परिवादी ने इस संबंध में शपथपत्र भी प्रस्तुत किया है कि जब वाहन को वर्कशाॅप ले जाया गया था तो उसे यह जानकारी दी गई थी कि वाहन के इंजन में विनिर्माण की त्रुटि है और इंजन बदलना पड़ेगा तथा वाहन का इंजन उपलब्ध नहीं है, जिसे विनिर्माण शाखा से बुलाना पड़ेगा और तब वाहन की डिलवरी दी जायेगी, जिसके पश्चात् परिवादी और उसके परिवार द्वारा अनेकों बार अनावेदक क्र.1 से सम्पर्क किया गया, परंतु अनावेदक क्र.1 के अधिकारी विशेष कर सर्विस इंजीनियर अभिजीत नामक व्यक्ति की कार्यप्रणाली असहनीय थी।
(20) शपथ पत्र इस आशय का भी है कि परिवादी के वाहन को अनावेदकगण ने सुधारने का प्रयास नहीं किया और वाहन को असुरक्षित अवस्था में खुले में रखा गया, जिससे वाहन में धूप, पानी, धूल आदि से नुकसान हो रहा है, जिससे वाहन की स्थिति अत्यधिक गंभीर हो गई और उसका बाजार मूल्य भी कम हो गया। परिवादी के उक्त शपथ पत्र के खण्डन में अनावेदकगण द्वारा कोई समुचित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है। निर्विवादित रूप से वाहन दि.22.03.2012 से वर्तमान स्थिति तक अनावेदकगण के कब्जे में है। अनावेदक क्र.1 ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि उक्त वाहन बिलकुल सुरक्षित हालत में है और जैसी स्थिति में सुधार हेतु दी गई थी उससे अच्छी स्थिति में सुधार पश्चात् भी है। अनावेदकगण ने वाहन को इतने लम्बे अवधि तक अपने कब्जे में रखे रहने का कोई समुचित कारण प्रस्तुत नहीं किया है, यह अनावेदकगण की सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की पराकाष्ठा को सिद्ध करता है कि किस प्रकार इतनी मंहगी कारों को डीलर वाहन बेचने की आक्रामक व्यापारिक नीति तो बनाते हैं, परंतु अपने ग्राहकों को उच्च शिष्टाचार अपनते हुए उच्च स्तरीय सेवा देने को नकार देते हैं, यह प्रकरण इस स्थिति का ज्वलंत उदाहरण है कि दावा प्रस्तुती के करीब दस माह पहले से अनावेदक क्र.1 ने उक्त वाहन अपने कब्जे में रखा है और उसे अपने ग्राहक की भावनाओं के बारे में जरा भी सोच नहीं है कि जब वाहन विवाह की 25वीं वर्षगांठ में खरीदी गई थी और इतनी मंहगी वाहन थी तो वह क्यों कर दस माह से अधिक अवधि से वाहन को अपने कब्जे में रखा हुआ है और दावा प्रस्तुती के बाद भी वाहन वापिस करने की पहल नहीं किया है, स्वाभाविक है कई माहों से यदि वाहन चला नहीं है और खुले स्थान में धूप, पानी और धूल में रखा है और वह पूर्ण रूप से खराब हो गया है उसे सिद्ध किये जाने हेतु किसी भी एक्सपर्ट रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है। इसका अनुमान आसानी से कोई भी व्यक्ति लगा सकता है कि दस माह तक धूप, पानी और खुले स्थान पर रखने से वाहन निश्चित रूप से पूर्णतः क्षतिग्रस्त और खराब हो गई होगी, फलस्वरूप हम यह निष्कर्षित करते हैं कि परिवादी अनावेदकगण से उसी विवरण की नई वाहन प्राप्त करने का अधिकारी है और परिवादी के विकल्प लेने पर परिवादी को उक्त वाहन का वर्तमान मूल्य मय ब्याज राशि अनावेदकगण से पाने का अधिकारी है, क्योंकि इतने दिनों से वाहन धूप, धूल, पानी में खड़ी रहकर परिवादी को अब उसमें नई कार वह भी मंहगी और लक्जूरियस कार का आनन्द आ ही नहीं सकता। साथ ही इस दौरान परिवादी ने अपने आवागमन हेतु टैक्सी खर्च एनेक्चर-9 से एनेक्चर-16 अनुसार किया है, वह खर्च भी पाने का अधिकारी है। अनावेदकगण के इन कृत्यों से परिवादी को मानसिक कष्ट होना भी स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 1,00,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(21) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-
(अ) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाहन एक निशान माईक्रा डीजल ग्ट च्म्त् नई वाहन प्रदान करें।
(ब) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर वाहन प्रदान नहीं किये जाने की स्थिति में वाहन की कीमत 7,30,502रू. तथा उसपर परिवाद प्रस्तुती दिनाँक 23.10.2013 सेे भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज परिवादी को अदा करने के लिए उत्तरदायी होंगे।
(स) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी अपने दैनिक परिवहन कार्य मंे हुए व्यय स्वरूप 2,19,000रू. (दो लाख उन्नीस हजार रूपये) एनेक्चर पी.9 से एनेक्चर पी.16 के योग के अनुसार क्षतिपूर्ति राशि अदा करेंगे।
(द) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) अदा करेंगे।
(इ) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।