(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद सं0- 21/2005
School Management Committee, Army Public School Nehru Road, Lucknow Cantt through its Principal.
………Complainant
Versus
1. M/s Aay Kay & Associates S/219-A, Ganj Plaza 42, Hazratganj, Lucknow through Capt. Manoj Wason (Retd.)
2. Capt. Manoj Wason (Retd.) R/o B-655/1, Rajajipuram, Lucknow-226017.
……..Opp. Parties
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री राम कुमार वर्मा,
, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 02.12.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, परिवादी स्कूल मैनेजमेंट कमेटी, आर्मी पब्लिक स्कूल द्वारा विपक्षीगण मै0 आय काय एण्ड एसोसिएट्स व एक अन्य के विरुद्ध राज्य आयोग के समक्ष योजित किया गया है।
2. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी आर्मी वेलफेयर एजूकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित स्कूल है जो सैन्य कर्मियों और युद्ध विधवाओं के पुत्र पुत्रियों की शिक्षा हेतु संचालित किया गया है। शिक्षा के अलावा परोपकारी कार्य में भी सम्मिलित हैं। इस स्कूल की मैनेजमेंट कमेटी द्वारा निर्णीत किया गया कि स्कूल प्राइमरी पब्लिक के स्टाफ रूम, सीढि़यों के अतिरिक्त कम्प्यूटर क्लास रूम एवं अन्य क्लास रूम के निर्माण की आवश्यकता है, जिसके लिए समाचार पत्र में दि0 17.12.2003 को विज्ञापन प्रकाशित किया गया एवं निविदा आमंत्रित की गई। विपक्षी के निविदा पर उसके साथ मूल्य के विचार-विमर्श करते हुए विपक्षी को निर्माण कार्य हेतु नियुक्त किया गया। विपक्षी मेसर्स ए0के0 एण्ड एसोसिएट्स द्वारा निर्माण कार्य आरम्भ होने के 90 दिन के भीतर निर्माण कार्य पूरा होने का आश्वासन दिया गया था। निर्माण कार्य दि0 25.02.2004 को आरम्भ हुआ था जो उक्त प्रस्ताव के अनुसार दि0 25 मई 2004 में पूर्ण हो जाना चाहिए था। परिवादी स्कूल के प्रशासनिक अधिकारी, प्रधानाध्यापक एवं चेयरमैन द्वारा बार-बार अधिकारी आदि से निर्माण कार्य पूरा करने के लिए कहा गया एवं पत्र लिखे गए। परिवादी के अनुसार विपक्षी ने समय-समय पर बिल प्रेषित किए तथा बार-बार उन्हें अनेक धनराशियां दि0 05.03.2004 से आरम्भ करके विभिन्न तिथियों पर दी जाती रहीं। परिवाद पत्र के प्रस्तर 13 के अनुसार परिवादी की ओर से 10 पत्र देरी से निर्माण कार्य समाप्त करने के सम्बन्ध में एवं निर्माण की त्रुटियों के सम्बन्ध में दिए गए। विपक्षी कांट्रैक्टर ने चार सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा, किन्तु निर्माण कार्य पूरा नहीं किया गया जिस कारण दि0 14.06.2004 को समाचार पत्र हिन्दुस्तान टाइम्स में निर्माण कार्य पूरा करने हेतु कारण बताओ नोटिस प्रकाशित की गई। इस बीच दि0 15.06.2004 को विपक्षी कम्पनी के कैप्टन (सेवानिवृत्त) मनोज वासन द्वारा यह सूचित किया गया कि विपक्षी मै0 ए0के0 एण्ड एसोसिएट्स का कार्य अब एक व्यक्ति श्री अविनाश घई को भी स्कूल द्वारा पत्र लिखे गए। इसके उपरांत दि0 25.06.2004 को एक अन्य बिल प्रेषित किये गये जिसका भुगतान कर दिया गया। तदोपरांत दिसम्बर 2004 तक अनेक बिल विपक्षी की ओर से भेजे जाते रहे तथा दि0 20.12.2004 को विपक्षी द्वारा संयुक्त माप करने का नोटिस दिया गया। विपक्षी द्वारा कार्य पूरा न करने के कारण परिवादी द्वारा विधिक नोटिस दि0 09.02.2005 दी गई जिसका उत्तर विपक्षी ने पत्र दिनांकित 28.02.2005 को दिया और संयुक्त माप को स्थगित करने का कथन किया। परिवादी द्वारा विपक्षी के विरुद्ध समय से कार्य पूरा न करने और जानबूझकर दोनों पक्षों के मध्य हुए करार को पूरा न किए जाने के कारण रू0 28,30,521/- की क्षतिपूर्ति का परिवाद लाया गया है जिसमें 3,24,837/-रू0 अधिक पेमेंट हो जाने के कारण अर्थात 15 प्रतिशत रू048,725.57पैसे, रू02,18,990.32पैसे संविदा में भिन्नता होने, क्षतिपूर्ति रू02,28,588.95पैसे, विधि व्यय रू0 1,00,000/-, क्लेश हेतु रू0 2,00,000/-, लापरवाही हेतु 6,89,509/-रु0 तथा 10,19,870/-रू0 क्षमता में कमी के आधार पर मांगे गए। इस प्रकार 28,30,581/-रू0 की क्षतिपूर्ति की मांग की गई है।
3. विपक्षीगण सं0- 1 व 2 की ओर से वादोत्तर पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें मुख्य रूप से परिवादी की निविदा विपक्षीगण द्वारा स्वीकार करना अंकित है। विपक्षीगण के अनुसार परिवादी ने वर्क ऑर्डर सं0- 5009/4/APS दिनांकित 17.02.2004 को जारी किया था। विपक्षी को इस आयोग के क्षेत्राधिकार के सम्बन्ध में कोई विवाद नहीं है एवं स्वीकार किया है कि परिवाद के श्रवण का निस्तारण का क्षेत्राधिकार इस आयोग को है। परिवादी के अनुसार दि0 25.02.2004 को निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ था, क्योंकि समय 2:30P.M. तक स्कूल चलता था और इस दौरान कोई भी वाहन स्कूल परिसर में घुसने की आज्ञा नहीं थी। इस कारण विपक्षी द्वारा केवल आधे दिन प्रत्येक दिवस को कार्य किया जा सका। स्वयं स्कूल के प्रशासन के द्वारा निर्माण कार्य में हस्तक्षेप किया गया। इसके अतिरिक्त प्रत्येक बार 80 प्रतिशत भुगतान में कमी की जाती रही। इन कारणों से निर्माण कार्य में व्यवधान रहा। स्वयं परिवादी की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। विपक्षी के अनुसार परिवाद पत्र में बिल की जो तिथियां दी गई हैं वे गलत हैं। विपक्षी द्वारा दिए गए बिल को दुरुस्त करने के लिए कहा गया एवं हमेशा देरी से भुगतान किया गया जिसके लिए प्रत्येक बिल के सम्बन्ध में विपक्षी को स्कूल प्रशासन के समक्ष भाग दौड़ करनी पड़ी। इसके अतिरिक्त वर्षा के दौरान तथा श्रम शक्ति की कमी हो जाने के कारण वह निर्माण कार्य में देरी हुई। विपक्षी की ओर समुचित कार्य किया जा रहा था। इसके बावजूद स्कूल प्रशासन द्वारा अखबारों में विपरीत नोटिस प्रकाशित की गई। विपक्षी का यह भी कथन है कि निर्माण कार्य की गुणवत्ता में कोई भी समझौता नहीं किया गया है एवं गुणवत्ता उच्च कोटि की है। निर्माण कार्य में जो देरी हुई है वह परिवादी स्कूल प्रशासन की असहयोग, समय से भुगतान न किए जाने एवं अन्य कारणों से हुई है जिसमें विपक्षी का कोई योगदान नहीं है। विपक्षी की ओर से परिवादी से संयुक्त माप करने के लिए बार-बार कहा गया, किन्तु वे तैयार नहीं हुए। स्वयं स्कूल प्रशासन के द्वारा ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की गईं कि विपक्षी निर्माण कार्य को रोक दे जब कि निर्माण कार्य का 80 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो चुका है। परिवादी के अनुसार दि0 21.01.2004 को निर्माण कार्य की निविदा दी गई है तथा निर्माण कार्य दि0 20.04.2004 को आरम्भ हुआ जब कि विपक्षी द्वारा प्रस्तुत किए गए बिलों का भुगतान हुआ था, किन्तु स्कूल की ओर से बार-बार शिकायतें की जाती रहीं जब कि परिस्थितियों के बावजूद विपक्षी द्वारा तेजी से कार्य सम्पादित किया गया था। विपक्षी द्वारा यह भी कथन किया गया कि जून 2004 के उपरांत सिविल मैटेरियल जैसे ईंट, मोरंग, बालू, सीमेंट, स्टील आदि के दामों में भारी बढ़ोतरी हुई जिस कारण निर्माण कार्य में विलम्ब हुआ। इसके अतिरिक्त कांट्रैक्टर एक दुर्घटना में आहत हो गए जिसके उपरांत उन्होंने श्री अविनाश घई को कार्य संभालने को कहा। स्कूल को सूचित किया गया था कि निर्माण कार्य तभी पूरा हो सकता है जब कि बकाया धनराशि उनको प्रदान की जाए तथा शेष कार्य का दिन-प्रतिदिन भुगतान किया जाए, किन्तु स्कूल द्वारा इन शर्तों को स्वीकार नहीं किया गया। पत्र दिनांकित 28.12.2004 के माध्यम से विपक्षी द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया था कि दोनों पक्षों के संयुक्त माप किए जाने के उपरांत भुगतान की स्थिति स्पष्ट होगी और यदि स्कूल कांट्रैक्टर से ही शेष कार्य कराने में इच्छुक हैं तो समय-समय पर ही भुगतान किए जाने पर कार्य सम्पादित किया जा सकेगा। यदि वे कार्य करने में इच्छुक नहीं हैं तो उनके द्वारा लिए गए प्रतिभूति राशि 60,000/-रू0 वापस कर दी जाए तथा बकाया धनराशि रू0214163.74पैसे ब्याज सहित विपक्षी को वापस किए जायें। इन आधारों पर परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना विपक्षीगण द्वारा की गई है।
4. परिवादी ओर से अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र एवं अन्य अभिलेख प्रस्तुत किए गए हैं।
5. विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन के समर्थन में शपथ एवं अन्य अभिलेख प्रस्तुत किए गए हैं।
6. हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्तागण श्री रामकुमार वर्मा को सुना और पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
7. उभयपक्ष के मध्य प्राथमिक बिन्दु यह उठा है कि क्या परिवादी आर्मी पब्लिक स्कूल उपभोक्ता की श्रेणी में आता है या नहीं। यद्यपि विपक्षीगण की ओर से इस सम्बन्ध में कोई तर्क नहीं दिया गया है, किन्तु यह बिन्दु निर्णीत किया जाना आवश्यक है। इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय Capital Charitable & Education Society Versus Axis Bank Limitd परिवाद सं0- 269/2017 निर्णीत दिनांकित 09.12.2019 प्रस्तुत किया गया है। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय Lourdes Sty. Snehanjali Girls Versus M/s H&R Jhonson (I) Ltd. & Ors. प्रकाशित 2016 सी0पी0जे0 पृष्ठ 27 (सुप्रीम कोर्ट) पर आधारित किया। इस निर्णय के प्रस्तर 7 में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि कोई धर्मार्थ परोपकारी संस्था एवं विद्यालय जो लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य नहीं कर रहा है वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)डी के अनुसार उपभोक्ता की परिभाषा के अंतर्गत आयेगा।
8. मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत करते हुए यह पीठ भी इस मत की है कि आर्मी पब्लिक स्कूल जो सैन्य कर्मियों एवं सैन्य विधवाओं के पुत्र-पुत्रियों की शिक्षा एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए कार्य कर रहा है वह लाभ कमाने हेतु व्यावसायिक उद्देश्य से स्थापित नहीं माना जा सकता एवं इस कारण वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1)डी के अनुसार उपभोक्ता की परिभाषा में आयेगा।
9. उभयपक्ष के मध्य मुख्य विवाद यह है कि परिवाद के कथनानुसार विपक्षी कांट्रैक्टर द्वारा एक बड़ी धनराशि लेने के बावजूद समय से निर्माण कार्य पूरा नहीं किया गया। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण का कथन है कि निर्माण कार्य समय से पूरा न किए जाने का कारण स्वयं स्कूल का प्रशासन था, क्योंकि स्कूल आधे दिन शिक्षण कार्य के कारण निर्माण हेतु उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। इस सम्बन्ध में विपक्षी मै0 ए0के0 एण्ड एसोसिएट्स के पत्र दिनांकित 21 जनवरी 2004 की प्रतिलिपि अभिलेख पर है जिसके प्रस्तर 2 में विपक्षी द्वारा तीन महीने के अन्दर कार्य पूरा किए जाने का कथन किया गया है एवं इसी पत्र में अन्य नियम व शर्तें दी गई हैं। इस सम्बन्ध में परिवादी का कथन है कि 21 जनवरी 2004 से कार्य आरम्भ हो गया था जब कि विपक्षी का कथन है कि धनराशि प्राप्त होने के उपरांत यह निर्माण कार्य दि0 20.04.2004 से आरम्भ हुआ था। इस सम्बन्ध में पुन: विपक्षी ए0के0 एण्ड एसोसिएट्स का पत्र दि0 24.05.2004 की प्रतिलिपि का अवलोकन किया गया जिसके प्रस्तर 1 व 2 में कथन किया गया है-
"1. We have taken-up the job of new-construction and special-repair work at APS-Lucknow.
2. The work started on 25 Feb 04 with extremely good speed, Initially the progress of the work wa very fast. But after 10 Mar 04 speed become slightly slow because of following reasons.
(a) Tremendous increase in rate of all building materials (this increase is varying in betwee 27% to 45%)
(b) Labour was not available in market because of harvesting seasnon. So the labour also become very costly.
(c) Certain decisions which were affecting the work was also given late, by school authorities. So the execution of that activity and inter-related activity also got delayed."
10. उपरोक्त पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि विपक्षी ने दि0 25.02.2004 से निर्माण कार्य आरम्भ हो जाना स्वयं स्वीकार किया है एवं इसके पूर्व पत्र दि0 21.01.2004 में तीन माह के भीतर निर्माण कार्य पूरा हो जाने का प्रस्ताव किया था जिसको परिवादी आर्मी पब्लिक स्कूल द्वारा स्वीकार किया गया। पत्र दिनांकित 25.05.2004 में निर्माण कार्य की प्रगति धीमी होने के कथन को भी स्वीकार किया गया है एवं इसके कारण भी पत्र के प्रस्तर 2 में दर्शाये गए हैं जिनमें बिल्डिंग मैटेरियल का तेजी से महंगा होना तथा श्रम शक्ति उपलब्ध न होना मुख्य कारण दर्शाये गए हैं। साथ ही एक कारण परिवादी स्कूल एवं उसके प्राधिकारियों द्वारा कतिपय निर्णय इस प्रकार लिया जाना भी है जिससे निर्माण की प्रगति में हा्रस आया, किन्तु इस पत्र में स्कूल एवं उसके प्राधिकारियों द्वारा लिए गए उन निर्णयों का उल्लेख नहीं है कि वे कौन से निर्णय थे जिनके कारण निर्माण की प्रगति धीमी हुई। दूसरी ओर परिवादी की ओर से विपक्षी को दिए गए पत्रों की प्रतिलिपियां अभिलेख पर है जो मुख्यत: "No Work Xite" सरसरी से दिए गए हैं जिनमें बार-बार इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि विपक्षी द्वारा निर्माण साइट पर कार्य न होने का उल्लेख है। स्वयं परिवादी ने यह भी उल्लेख किया है कि कांट्रैक्टर श्री मनोज वासन के दुर्घटना में आहत हो जाने के कारण निर्माण की जिम्मेदारी श्री अविनाश घई को दे दी गई थी। इस कारण भी निर्माण कार्य में देरी होने का कारण एवं आधार दर्शाया गया है जिससे स्पष्ट है कि निर्माण कार्य में देरी होने और कारण सहित विपक्षी ने स्वीकार किया है। अत: इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है कि वाद योजन की तिथि तक विपक्षी द्वारा दिए गए प्रस्ताव जो उन्होंने पत्र दिनांकित 21.01.2004 में दिया था की समय-सीमा के अन्दर निर्माण का कार्य पूरा नहीं किया गया।
11. विपक्षी का यह कथन भी आया कि उनके द्वारा 80 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा कर दिया गया है, किन्तु स्कूल के प्राधिकारियों द्वारा संयुक्त माप करने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया जब कि विपक्षी ने बार-बार संयुक्त माप करने का आग्रह किया। इस कथन में बल प्रतीत होता है, क्योंकि अभिलेख पर विपक्षी द्वारा संयुक्त माप किए जाने का आग्रह के साथ पत्र की प्रतिलिपियां लगाई गई हैं जिसका खण्डन परिवादी की ओर से नहीं किया गया है। अत: ऐसी स्थिति में यह तथ्य मान लेना उचित है कि लगभग 80 प्रतिशत कार्य विपक्षी द्वारा सम्पादित किया गया। यदि स्कूल के प्राधिकारियों द्वारा सहयोग किया जाता तो संयुक्त माप से यह स्पष्ट हो सकता था कि वास्तव में निर्माण कार्य कितना सम्पादित हो चुका है। अत: ऐसी दशा में परिवादी द्वारा मांगी गई धनराशि निम्नलिखित प्रकार से दिलवाया जाना उचित है। परिवादी द्वारा ओवर पेमेंट के तहत रू03,24,837.15पैसे मय 15 प्रतिशत ब्याज की याचना की गई है, किन्तु वर्तमान बैंक की जमा योजना की प्रचलित दर को देखते हुए 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी की तिथि तक दिलवाया जाना उचित है। इसके अतिरिक्त विपक्षी के पत्र दिनांकित 21.01.2004 में यह स्वीकार किया गया है कि संविदा की मूल्य का 5 प्रतिशत अधिकतम लिक्विड डैमेज (परिसमापन क्षति) के रूप में रू0228588.95पैसे दिलवाया जाना उचित है। इसके अतिरिक्त विधिक व्यय रू0 20,000/- तथा मानसिक क्लेश हेतु 5,00,000/-रू0 दिलवाया जाना उचित है। तदनुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
12. परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वे रू03,24,837.15पैसे मय 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी की तिथि तक परिवादी को अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण द्वारा संविदा की मूल्य का 5 प्रतिशत अधिकतम लिक्विड डैमेज (परिसमापन क्षति) के रूप में रू0228588.95पैसे तथा विधिक व्यय के रूप में रू0 20,000/- एवं मानसिक क्लेश हेतु 5,00,000/-रू0 परिवादी को अदा किया जाए।
विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि इस निर्णय एवं आदेश का अनुपालन 30 दिन की अवधि के अन्दर सुनिश्चित किया जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-3