Uttar Pradesh

StateCommission

CC/99/2015

Santosh Kumar - Complainant(s)

Versus

M/S Aansal Properties - Opp.Party(s)

Saurabh Shankar Srivastava

26 Aug 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. CC/99/2015
( Date of Filing : 14 May 2015 )
 
1. Santosh Kumar
Meerut
...........Complainant(s)
Versus
1. M/S Aansal Properties
Lucknow
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 26 Aug 2021
Final Order / Judgement

                                                          (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

परिवाद संख्‍या-99/2015

1.    श्री संतोष कुमार पुत्र स्‍व0 गंगा शंकर श्रीवास्‍तव।

2.    श्रीमती हेमा श्रीवास्‍तव पत्‍नी श्री संतोष कुमार। निवासीगण 224, यशोदा कुंज, मवाना रोड, मवाना, जिला मेरठ, यू0पी0 पिन-250001 ।

                   परिवादीगण

बनाम

1.    मै0 अंसल प्रोपर्टीज एण्‍ड इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर लि0, द्वारा मैनजिंग डायरेक्‍टर, Ist फ्लोर, वाई.एम.सी.ए. कैम्‍पस 13, राणा प्रताप मार्ग, लखनऊ  226001 ।

2.    श्री सुशील अंसल, चेयरमैन, मै0 अंसल प्रोपर्टीज एण्‍ड इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर लि0, 115, अंसल भवन, 16, कस्‍तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्‍ली         110001 ।

        विपक्षीगण

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री सौरभ शंकर श्रीवास्‍तव, विद्वान

                                                    अधिवक्‍ता।

विपक्षीगण की ओर से उपस्थित  : श्री आसिफ अनीस, विद्वान

                                                   अधिवक्‍ता।

दिनांक: 29.09.2021

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.          यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 14,31,400/- रूपये प्रतिकर तथा इस राशि पर अदा किए गए ब्‍याज अंकन 1,08,000/- रूपये के लिए तथा परिवादीगण द्वारा जमा की गई राशि अंकन 39,71,201/- रूपये पर दिनांक 01.09.2010 से 24 प्रतिशत ब्‍याज, जिसका मूल्‍य अंकन 9,53,088/- रूपये होता है तथा अंकन 5,00,000/- रूपये मानसिक प्रताड़ना तथा अंकन 10,000/- रूपये परिवाद खर्च प्राप्‍त करने के लिए प्रस्‍तुत किया गया है।

 

2.         परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि विपक्षीगण कम्‍पनी ने वर्ष 2006-07 में सुशांत गोल्‍फ सिटि के नाम से आवासीय योजना प्रारम्‍भ की। परिवादीगण किराये पर रह रहे थे, इसलिए योजना के अन्‍तर्गत भवन प्राप्‍त करने का इरादा विपक्षीगण के लुभावने विज्ञापन देखकर किया। विपक्षीगण द्वारा एकमुश्‍त भुगतान पर 12 प्रतिशत की छूट का भी वायदा किया जा रहा था। इस प्रकार भवन का जो मूल्‍य 46,83,020/- रूपये दर्शाया गया था। वह 12 प्रतिशत की छूट के पश्‍चात अंकन 41,21,058/- रूपये हो गया, परन्‍तु विपक्षीगण द्वारा कम्‍पनी की योजना के अनुसार कुल मूल्‍य का 5 प्रतिशत जमा करने के लिए कहा और यह भी आश्‍वासन दिया कि यह धन अंकन 41,21,058/- रूपये में से घटा दिया जाएगा। इस प्रकार परिवादीगण को कुल 36,52,756/- रूपये का भुगतान करना है। परिवादीगण ने दिनांक 02.06.2008 को अंकन 4,68,302/- रूपये का ड्राफ्ट एक यूनिट की बुकिंग कराने के लिए जमा किया, परन्‍तु अनुबंध का निष्‍पादन नहीं किया। आशंका होने पर परिवादीगण ने अग्रिम धनराशि वापस लौटाने या अनुबंध निष्‍पादित कराने का अनुरोध किया, परन्‍तु विपक्षीगण ने नकार दिया और यह कहा कि 20 प्रतिशत पीनल कटौती के पश्‍चात ही राश‍ि वापस की जा सकती है।

3.         बुकिंग धनराशि अदा करने के पश्‍चात विपक्षीगण द्वारा सूचित किया गया कि उन्‍हें यूनिट संख्‍या-D/3/0001 316 स्‍क्‍वायर यार्ड (264 स्‍क्‍वायर मीटर) जमीन पर आवंटित किया गया है, जिसका निर्माण एरिया 2350 स्‍क्‍वायर फिट है और दिनांक 12.06.2008 को कार्यालय बुलाया गया था। इसी तिथि को एक अनुबंध निष्‍पादित हुआ, जिसमें धोखे एवं बेईमानी से अंकन 42,05,351.91 पैसे, अंकन 41,21,058/- रूपये के स्‍थान पर अंकिए किए गए। परिवादीगण के आपत्‍ति‍ करने पर यह कहा गया कि परिवादीगण द्वारा केवल 36,52,756/- रूपये देय है और कुल कीमत अंकन 41,21,058/- रूपये होगी। शेष मूल्‍य 90 दिन में भुगतान करने के लिए कहा गया।

4.         अग्रिम धन की अदायगी के पश्‍चात अनुबंध के अनुसार 24 माह के अन्‍दर कब्‍जा परिवादीगण को दिया जाना चाहिए था, जिसकी तिथि दिनांक 11.06.2010 होती है। परिवादीगण द्वारा अंकन 35,02,899/- रूपये का भुगतान कर दिया गया और केवल 56,346/- रूपये बकाया रहे, जिसका भुगतान कब्‍जे के समय किया जाना था। उपरोक्‍त राशि में से     10 लाख रूपये का ऋण परिवादीगण के पुत्र द्वारा लिया गया था, जिसका ब्‍याज 11.25 प्रतिशत प्रतिवर्ष था और ब्‍याज की गणना 03 माह के अन्‍तराल पर की जानी थी। मासिक किस्‍त अंकन 11,524/- रूपये थी। परिवादीगण द्वारा दिनांक 24.11.2009, 18.09.2009, 05.11.2009, 24.12.2009, 03.03.2009 को कब्‍जा प्राप्‍त करने के संबंध में पत्र लिखे गए, परन्‍तु कोई जवाब नहीं दिया गया। इसके पश्‍चात पुन: दिनांक 03.08.2010 को पत्र लिखा गया। दूरभाष पर दो-तीन माह के अन्‍दर कब्‍जा देने का कथन किया गया, जिस पर परिवादी अक्‍टूबर 2010 में अपने भवन मालिक को किराये का मकान खाली करने का नोटिस दे दिया। परिवादीगण ने मौके पर जाकर देखा तो पाया कि केवल आधा ढांचा तैयार हुआ है और कोई भी निर्माण गतिविधियां संचालित नहीं हैं। दिनांक 08.12.2010 के पत्र द्वारा विपक्षीगण ने परिवादीगण को सूचित किया कि तकनीकि कारणों के कारण निर्माण कार्य में देरी हो रही है। निर्माण कार्य मार्च-अप्रैल में प्रारम्‍भ होगा। पुन: स्‍थलीय निरीक्षण पर पाया कि यथार्थ में कोई निर्माण गतिविधि नहीं की गई, जिस पर परिवादीगण द्वारा दिनांक 24.02.2011 को वरिष्‍ठ महा प्रबन्‍धक श्रीमती नीलिमा सक्‍सेना से अनुरोध किया कि उन्‍हें वैकल्पिक रूप से आवासीय सुविधा प्रदान की जाए या अंकन 40 लाख रूपये का प्रतिकर 24 प्रतिशत ब्‍याज सहित अदा किया जाए, परन्‍तु ये दोनों अनुरोध कम्‍पनी द्वारा दिनांक 23.04.2011 के पत्र द्वारा नकार दिए गए और अनुबंध की धारा-16 का सहारा लिया गया और मई-जुन 2012 में कब्‍जा दिए जाने का कथन किया गया। इसके पश्‍चात दिनांक 28.06.2012 के पत्र द्वारा सूचित किया गया कि फरवरी 2013 में कब्‍जा दिया जाएगा। परिवादीगण द्वारा दिनांक 28.07.2012 को एक प्रत्‍यावेदन दिया गया और 18 प्रतिशत की दर से प्रतिकर की मांग की गई, जैसा कि अनुबंध में उल्‍लेख था। मौके पर निर्माण कार्य की प्रकृति को देखकर एक विस्‍तृत मेल विपक्षीगण को लिखा गया। इसके बाद अक्‍टूबर 2013 में कब्‍जा देने के लिए कहा गया। इसके पश्‍चात 2013 के अंत में कब्‍जा देने के लिए सूचित किया गया। परिवादीगण द्वारा दिनांक 20.07.2013 के पत्र द्वारा मौके की स्थिति देखने के पश्‍चात विपक्षीगण को सूचित किया गया कि घटिया स्‍तर का निर्माण किया जा रहा है। परिवादीगण द्वारा समझ लिया गया कि विपक्षीगण द्वारा असत्‍य आश्‍वासन दिए जा रहे हैं, इसलिए दिनांक 23.05.2014 को लीगल नोटिस भेजा गया, परन्‍तु विपक्षीगण द्वारा भ्रामक जवाब प्रस्‍तुत किया गया और 06 वर्ष तक भी कब्‍जा प्रदान नहीं किया गया और स्‍वंय परिवादीगण को ही डिफॉल्‍टर घोषित कर दिया गया। इस जवाब से पहले किसी प्रकार की राशि की मांग नहीं की गई थी, केवल प्रताडि़त करने के उद्देश्‍य से ऐसा किया गया। इस प्रकार केन्‍द्रीय सेवा से सेवानिवृत्‍त बुजुर्ग परिवादीगण को गंभीर मानसिक प्रताडना कारित हुई, इसलिए अंकन 12,000/- रूपये प्रतिमाह ब्‍याज का भुगतान एचडीएफसी बैंक को कर रहे हैं त‍था किराये के रूप में अंकन 15,000/- रूपये का भुगतान कर रहे हैं। इस प्रकार जून 2010 से अंकन 27,000/- रूपये की राशि परिवादीगण द्वारा अनावश्‍यक रूप से खर्च की गई, जिसका कुल 12,96,000/- रूपये होता है, इसलिए परिवादीगण इस राशि को विपक्षीगण से अंकन 1,08,000/- रूपये के ब्‍याज सहित प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हैं तथा अनुबंध की शर्त संख्‍या-10 के अनुसार देरी से कब्‍जा देने पर जमा की गई राशि पर 18 प्रतिशत ब्‍याज प्राप्‍त करने के लिए परिवादीगण अधिकृत हैं। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित धनराशियों की मांग के लिए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

5.         परिवादीगण द्वारा परिवाद पत्र के साथ विभिन्‍न तिथियों पर लिखे गए पत्र, जमा राशि की रसीद, अनुबंध पत्र तथा शपथपत्र प्रस्‍तुत किए गए हैं। सुसंगत दस्‍तावेजों का उल्‍लेख आगे चलकर किया जाएगा।

6.         विपक्षीगण का कथन है कि परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है। लिखित कथन में आवासीय योजना प्रारम्‍भ करने की विधि की चर्चा की गई है, जिसका उल्‍लेख इस निर्णय के लिए सुसंगत नहीं है, केवल परिवाद पत्र में वर्णित तथ्‍यों का जवाब देने के लिए जिन तथ्‍यों का उल्‍लेख किया गया है, उन्‍हीं का विवरण यहां अंकित किया जाएगा। लिखित कथन के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादीगण द्वारा आवासीय योजना के अन्‍तर्गत यूनिट बुक कराने हेतु परिवाद पत्र में वर्णित धनराशि जमा करने के संबंध में कोई आपत्‍ति‍ नहीं की गई है। यह अति‍रिक्‍त कथन किया गया है कि अनुबंध की शर्त संख्‍या-20 के अनुसार बिल्डिंग प्‍लान स्‍वीकृत होने के दो वर्ष पश्‍चात कब्‍जा दिया जाएगा न कि यूनिट को बुक कराने की तिथि से तथा क्‍लॉज संख्‍या-12 की शर्त के अनुसार बिल्डिंग प्‍लान स्‍वीकृत होने के पश्‍चात 36 माह के अन्‍दर कब्‍जा दिया जाना है। दिनांक 15.07.2009 को बिल्डिंग प्‍लान की अनुमति के लिए आवेदन प्रस्‍तुत किया गया। बिल्डिंग प्‍लान दिनांक 08.07.2011 को स्‍वीकृत हुआ, इसलिए निर्माण कराने की अनुमति भी अधिकृत प्राधिकारी द्वारा देरी से दी गई, इसलिए परिवाद पत्र खारिज होने योग्‍य बताया गया।

7.         विपक्षीगण द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र के समर्थन में शपथपत्र प्रस्‍तुत किया गया।

8.         परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सौरभ शंकर श्रीवास्‍तव तथा विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आसिफ अनीस की बहस सुनी गई तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का अवलोकन किया गया।

9.         परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि नियत अवधि के अन्‍तर्गत कब्‍जा प्रदान नहीं किया गया, इसलिए परिवादीगण को किराया अदा करने के लिए बाध्‍य होना पड़ा, इसलिए परिवादीगण द्वारा अदा की गई किराये की राशि तथा बैंक ऋण की राशि पर अदा किए गए ब्‍याज की दर से प्रतिकर दिलाया जाना चाहिए तथा उनके द्वारा जमा की गई राशि पर अनुबंध के अनुसार 18 प्रतिशत ब्‍याज दिलाया जाने का आदेश दिया जाना चाहिए।

10.        विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि दिनांक 12.01.2017 के पत्र द्वारा परिवादीगण को कब्‍जा सुपुर्द किया जा चुका है तथा विक्रय पत्र दिनांक 28.11.2016 को निष्‍पादित किया जा चुका है। निर्माण कार्य में जो देरी हुई है, वह प्राधिकारी द्वारा नक्‍शा स्‍वीकृत करने तथा निर्माण की अनुमति देने के कारण कारित हुई है।

11.        पत्रावली के अवलोकन से यह तथ्‍य स्‍थापित होता है कि परिवादीगण द्वारा दिनांक 02.06.2008 को बुकिंग धनराशि जमा की गई और 24 माह के अन्‍दर परिवादीगण द्वारा 05 प्रति‍शत राशि को जोड़ते हुए शेष धनराशि जमा कर दी गई। अनेग्‍जर संख्‍या-1 दोनों पक्षकारों के मध्‍य निष्‍पादित अनुबंध पत्र की प्रति है। इस अनुबंध पत्र के क्रमांक संख्‍या-16 के अनुसार यदि नियत अवधि में निर्माण नहीं किया जाता है तब भवन निर्माता कम्‍पनी द्वारा अन्‍य भवन का प्रस्‍ताव दिया जाएगा और यदि ऐसा नहीं किया जाता है तब 10 प्रतिशत साधारण ब्‍याज के साथ जमा धनराशि का भुगतान कर दिया जाएगा। भवन निर्माता कम्‍पनी द्वारा उपरोक्‍त वर्णित शर्त में से किसी भी शर्त का अनुपालन नहीं किया गया। उल्‍लेखनीय है कि यह तर्क लिखित कथन में स्‍वीकार किया गया है कि निश्चित समयावधि के अन्‍तर्गत कब्‍जा प्रदान नहीं किया गया, केवल यह बचाव लिया गया है कि यूनिट बुक करने की तिथि से नहीं अपितु बिल्डिंग प्‍लान मैप स्‍वीकार हो जाने के पश्‍चात से कब्‍जा दिए जाने की तिथि से गणना की जानी थी। इस बिन्‍दु पर आगे चलकर विचार किया जाएगा कि कब्‍जा दिए जाने की समयावधि की गणना किस तिथि से की जानी थी।

12.        अनुबंध शर्त संख्‍या-20 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि भवन निर्माता यह प्रयास करेगा कि भवन निर्माण की अनुमति मिलने के पश्‍चात दो वर्ष के अन्‍तर्गत निर्माण पूरा कर लिया जाए। अत: उपरोक्‍त शर्त से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि यूनिट को बुक करने की तिथि से नहीं अपितु बिल्डिंग मैप के स्‍वीकृत होने और निर्माण प्रारम्‍भ होने की तिथि के पश्‍चात दो वर्ष की अवधि के अन्‍तर्गत निर्माण पूरा करते हुए कब्‍जा प्रदान किया जाना था। लिखित कथन के प्रस्‍तर संख्‍या-19 में उल्‍लेख है कि दिनांक 08.07.2011 को भवन नक्‍शा/निर्माण अनुमति स्‍वीकृत हुई, इस तथ्‍य की पुष्टि शपथपत्र द्वारा की गई है। अत: दो वर्ष की अवधि की गणना दिनांक 09.07.2011 से की जानी चाहिए। शपथपत्र में उल्‍लेख किया गया है कि परिवादीगण को यूनिट का कब्‍जा दिनांक 12.01.2017 को दिया गया है। दिनांक 09.07.2011 से गणना करने पर निर्माण पूर्ण कर कब्‍जा प्रदान करने की तिथि दिनांक 09.07.2013 होती है, जबकि कब्‍जा दिनांक 12.01.2017 को प्रदान किया गया है। अत: स्‍पष्‍ट है कि परिवादीगण इस अवधि के लिए उनके द्वारा जमा की गई राशि पर 09 प्रतिशत की दर से ब्‍याज प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हैं, क्‍योंकि 18 प्रतिशत ब्‍याज का उल्‍लेख क्रेता द्वारा विफलता पर निर्माता कम्‍पनी को देय है न कि निर्माता द्वारा क्रेता को।

13.        परिवादीगण का कथन है कि उनके द्वारा अंकन 15,000/- रूपये किराये का भुगतान किया गया है साथ ही एचडीएफसी बैंक से लिए गए ऋण के बारे में भी क्षतिपूर्ति की मांग की गई है, परन्‍तु चूंकि इस ऋण की राशि से भवन के मूल्‍य का भुगतान किया गया है और भवन के मूल्‍य का भुगतान करने के पश्‍चात देरी से कब्‍जा मिलने के कारण 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज प्राप्‍त करने के लिए परिवादीगण को अधिकृत माना गया है, इसलिए एक ही धनराशि पर दो-दो बार दण्‍ड विपक्षीगण पर अधिरोपित नहीं किया जा सकता, इसलिए परिवादीगण ऋण राशि पर किसी प्रकार का अनुतोष प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत नहीं है। इसी प्रकार चूंकि उनके द्वारा जमा की गई राशि पर 09 प्रतिशत की दर से ब्‍याज अदा करने का आदेश इस पीठ द्वारा किया जा रहा है, इसलिए परिवादीगण किराये की राशि की मद में भी किसी प्रकार का अनुतोष प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत नहीं है। तदनुसार परिवाद पत्र में वर्णित ब्‍याज अंकन 01,08,000/- रूपये भी परिवादीगण प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत नहीं है।

14.        सेवानिवृत्‍त वृद्ध परिवादीगण लम्‍बी अवधि तक विपक्षीगण से कब्‍जा प्राप्‍त करने का प्रयास करते रहे और इस प्रयास के लिए दर-दर भटकते रहे। अनेकों बार पत्राचार किया गया। सभी पत्राचार पत्रावली में मौजूद हैं। अत: परिवादीगण मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 2.5 लाख रूपये का प्रतिकर प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हैं तथा परिवाद खर्च के रूप में अंकन 10,000/- रूपये भी प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हैं। परिवाद तदनुसार आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

 

15.        परिवाद पत्र आंशिक रूप से निम्‍न प्रकार से स्‍वीकार किया            जाता है :-

अ.         विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वे परिवादीगण को उनके द्वारा जमा की गई कुल राशि अंकन 39,71,201/- रूपये पर दिनांक 09.07.2013 से दिनांक 12.01.2017 तक की अवधि के लिए 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज अदा करेगा।

ब.         विपक्षीगण, परिवादीगण को मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 2.5 लाख रूपये भी अदा करेंगे।

स.         परिवादीगण परिवाद खर्च के रूप में अंकन 10,000/- रूपये भी प्राप्‍त करेंगे। समस्‍त राशियों का भुगतान 03 माह की अवधि के अन्‍दर किया जाए। यदि इस अवधि में धनर‍ाशि का भुगतान नहीं किया जाता है तब उपरोक्‍त समस्‍त राशि पर 09 प्रतिशत की दर से ब्‍याज देय होगा।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

                     

(राजेन्‍द्र सिंह)                         (सुशील कुमार)

सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

 

निर्णय/आदेश आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

                   

 

 

(राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

 सदस्‍य                                  सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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