सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 265 सन 2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.10.2009 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1874 सन 2011
मेरठ विकास प्राधिकरण मेरठ, द्वारा सचिव
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
मूल चन्द्र त्यागी, पुत्र श्री जगदीश प्रसाद त्यागी वर्तमान निवासी बी-111, शताब्दी नगर, फेस-1, मेरठ ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री सर्वेश कुमार शर्मा।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री आर0के0 मिश्रा।
दिनांक:-20;11;19
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 265 सन 2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.10.2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने मेरठ विकास प्राधिकरण की शताब्दी योजना में दिनांक 26.06.92 को 17,500.00 रू0 जमा करके एक एल0आई0जी0 भवन के लिए आवेदन किया। विपक्षी द्वारा दिनांक 04.11.92 को एल0आई0जी0 भवन संख्या सी-26, जिसका क्षेत्रफल 72.30 वर्गमीटर तथा कीमत 1,75,000.00 रू0 थी, लाटरी द्वारा परिवादी के हक में आवंटित कर दिया और परिवादी को 35000.00 रू0 जमा करने का निर्देश दिया । बीमार हो जाने के कारण परिवादी उक्त धनराशि समय से जमा नहीं कर सका और इसकी सूचना विकास प्राधिकरण को पत्र द्वारा दी । विपक्षी प्राधिकरण ने दिनांक 23.04.93 को परिवादी को पत्र भेजकर सूचित किया कि भवन संख्या 26, गलती से दो आवंटियो को आवंटित हो जाने के कारण उक्त भवन के स्थान पर परिवादी को दूसरा भवन संख्या- सी 28, आवंटित कर दिया गया है। मौके पर उक्त भवन की स्थिति देखने पर ज्ञात हुआ कि भवन का निर्माण कार्य व विकास कार्य पूरा नहीं था। परिवादी द्वारा शिकायत करने तथा सेक्टर 01 में अन्य कोई विकसित भवन आवंटित करने हेतु प्रार्थना पत्र देने पर विपक्षी विकास प्राधिकरण द्वारा उसे एम0आई0जी0 भवन संख्या- 111, टाईप- बी श्रेणी का दिनांक 01.03.1996 को आवंटित कर कब्जा दे दिया जिसकी कीमत पूछने पर पत्र द्वारा भवन की कीमत तथा पैसा जमा करने हेतु सूचित करने का आश्वासन दिया । परिवादी का कहना है कि विकास प्राधिकरण द्वारा भवन की कीमत नहीं बतायी गयी और दण्ड ब्याज लगाकर किश्त धनराशि जमा करने हेतु लगातार पत्र भेजे जाते रहे । परिवादी द्वारा विभिन्न तिथियों में दिनांक 28.02.2002 तक मु0 03,10,299.00 रू0 जमा किए गए तथा जमा की रसीदें प्राधिकरण के कार्यालय में जमा करके रजिस्ट्री करने का अनुरोध किया लेकिन विपक्षी ने परिवादी के हक में रजिस्ट्री नहीं की और कब्जे में हुई देरी के संबंध में जमा धनराशि का ब्याज भी परिवादी को नहीं दिया और न ही भवन की कीमत में ब्याज की धनराशि समायोजित की और उससे अवैध धन की मांग की, जिसके कारण परिवादी ने जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया।
विपक्षी की ओर से जिला मंच के समक्ष अपना वादोत्तर प्रस्तुत कर उल्लिखित किया गया कि परिवादी की सहमति से उसे एल0आई0जी0 भवन संख्या 28 के स्थान पर एम0आई0जी0 भवन संख्या बी-111 क्षेत्रफल 127.95 वर्गमीटर, अनुमानित कीमत 2,67,670.00 रू0 आवंटित किया गया। परिवादी को उक्त भवन की कीमत की सूचना दे दी गयी थी। परिवादी ने समय से किश्तों का भुगतान नहीं किया इसलिए परिवादी से दण्ड ब्याज की मांग की गयी। यदि परिवादी समस्त किश्तों का भुगतान कर देता है तो उत्तरदाता उसके पक्ष में आज भी रजिस्ट्री करने को तैयार है। परिवादी को दिनांक 15.03.2002 तक 2,84,103.09 रू0 जमा करने थे। परिवादी उक्त भवन का उपयोग दिनांक 01.03.1996 से कर रहा है। परिवादी से कट आफ डेट के अनुसार ही 15 प्रतिशत की दर से ब्याज की मांग की जा रही है।
जिला मंच के समक्ष उभय पक्षों ने अपने कथन के समर्थन में शपथपत्र तथा अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किए । बाद में विपक्षी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ जिसके कारण विपक्षी के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए उभय पक्ष के साक्ष्य एवं अभिवचनों के आधार पर निम्न आदेश पारित किया :-
'' परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी एक पक्षीय रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि विपक्षी परिवादी को आवंटित भवन संख्या बी-111 की आवंटन के समय तय कीमत में से उक्त भवन के आवंटन से पूर्व परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि अंकन 1,17,500.00 रू0 मय 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज जमा तिथि से दिनांक 01.03.1996 तक घटाकर, भवन की शेष कीमत में से आवंटन के बाद परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि को समायोजित करते हुए अवशेष धनराशि परिवादी से नियमानुसार वसूल करके परिवादी के पक्ष में उक्त भवन का विक्रय विलेख निष्पादित करे। उक्त समायोजन के पश्चात परिवादी द्वारा अधिक धनराशि जमा होने की दशा में विपक्षी वह धनराशि परिवादी को वापिस करे। विपक्षी क्षतिपूर्ति अंकन 10 हजार रू0 एवं अंकन 05 हजार रू0 परिवाद व्यय भी परिवादी को अदा करे। विपक्षी इस आदेश का अनुपालन एक माह के अन्दर सुनिश्चित करे अन्यथा परिवादी विपक्षी के विरूद्ध धारा 25/27 सी0पी0एक्ट 1986 मे तहत कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होगा। ''
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा योजित की गयी है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय विधिपूर्ण नहीं है तथा सम्पूर्ण तथ्यों को संज्ञान में लिए बिना प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है जो अपास्त किए जाने योग्य है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया।
पत्रावली का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि परिवादी ने मेरठ विकास प्राधिकरण की शताब्दी योजना में दिनांक 26.06.92 को 17,500.00 रू0 जमा करके एक एल0आई0जी0 भवन के लिए आवेदन किया। विपक्षी द्वारा दिनांक 04.11.92 को एल0आई0जी0 भवन संख्या सी-26, जिसका क्षेत्रफल 72.30 वर्गमीटर तथा कीमत 1,75,000.00 रू0 थी, लाटरी द्वारा परिवादी के हक में आवंटित कर दिया और परिवादी को 35,000.00 रू0 जमा करने का निर्देश दिया । विपक्षी प्राधिकरण ने दिनांक 23.04.93 को परिवादी को पत्र भेजकर सूचित किया कि प्रश्नगत भवन गलती से दो आवंटियो को आवंटित हो जाने के कारण उक्त भवन के स्थान पर परिवादी को दूसरा भवन संख्या- सी 28, आवंटित कर दिया गया है। उक्त भवन का निर्माण कार्य व विकास कार्य पूरा न होने के कारण परिवादी द्वारा शिकायत करने तथा सेक्टर 01 में अन्य कोई विकसित भवन आवंटित करने हेतु की प्रार्थना पर द्वारा उसे एम0आई0जी0 भवन संख्या- 111, टाईप- बी श्रेणी का दिनांक 01.03.1996 को आवंटित कर कब्जा दे दिया । परिवादी का कहना है कि विकास प्राधिकरण द्वारा भवन की कीमत नहीं बतायी गयी और दण्ड ब्याज लगाकर किश्त धनराशि जमा करने हेतु लगातार पत्र भेजे जाते रहे । परिवादी द्वारा विभिन्न तिथियों में दिनांक 28.02.2002 तक मु0 03,10,299.00 रू0 जमा किए गए जा चुके हैं लेकिन प्राधिकरण परिवादी के हक में रजिस्ट्री कर रहा है और उससे अवैध धन की मांग की जा रही है। जबकि विपक्षी की ओर से उल्लिखित किया गया कि परिवादी की सहमति से उसे एल0आई0जी0 भवन संख्या 28 के स्थान पर एम0आई0जी0 भवन संख्या बी-111 क्षेत्रफल 127.95 वर्गमीटर, अनुमानित कीमत 2,67,670.00 रू0 आवंटित किया गया। परिवादी को उक्त भवन की कीमत की सूचना दे दी गयी थी। परिवादी ने समय से किश्तों का भुगतान नहीं किया इसलिए परिवादी से दण्ड ब्याज की मांग की गयी। यदि परिवादी समस्त किश्तों का भुगतान कर देता है तो उत्तरदाता उसके पक्ष में आज भी रजिस्ट्री करने को तैयार है। परिवादी को दिनांक 15.03.2002 तक 2,84,103.09 रू0 जमा करने थे। परिवादी उक्त भवन का उपयोग दिनांक 01.03.1996 से कर रहा है। परिवादी से कट आफ डेट के अनुसार ही 15 प्रतिशत की दर से ब्याज की मांग की जा रही है।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी/प्रत्यर्थी अपीलार्थी द्वारा बाद में आवंटित किए गए भवन संख्या एम0आई0जी0 के भवन संख्या बी-111 में आज भी निवास कर रहा है और उसके कब्जे में है जिसकी रजिस्ट्री विकास प्राधिकरण द्वारा उसके हक में नहीं की जा रही है। अपीलार्थी विकास प्राधिकरण द्वारा उक्त भवन का अनुमानित मूल्य 2,67,670.00 रू0 उल्लिखित किया गया है जिसके परिप्रेक्ष्य में परिवादी द्वारा विकास प्राधिकरण में दिनांक 28.02.2002 तक मु0 03,10,299.00 रू0 जमा किए गए जा चुके हैं । दौरान बहस प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा उल्लिखित किया गया कि वह अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रश्नगत भवन की रजिस्ट्री कराने हेतु उनके द्वारा वांछित समस्त धनराशि जमा करने के लिए तैयार है फिर भी अपीलार्थी प्रश्नगत भवन की रजिस्ट्री उसके हक में नहीं कर रहा है और भवन खाली करने का दबाव बना रहे हैं। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि उसने परिवादी/प्रत्यर्थी को प्रश्नगत भवन के मूल्य के संबंध में सूचित किया था लेकिन उसके द्वारा भवन के मूल्य के संबंध में सूचित किए जाने संबंधी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। परिवादी/प्रत्यर्थी अपने प्रश्नगत भवन को बचाने हेतु अपीलार्थी द्वारा वांछित ब्याज सहित समस्त धनराशि जमा करने को तैयार है लेकिन अपीलार्थी उससे भवन खाली कराने पर आमादा है और परिवादी/प्रत्यर्थी से कोई धनराशि स्वीकार नहीं कर रहा है, जो उसकी सेवा में कमी को परिलक्षित करता है।
पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य एवं अभिलेख का भलीभांति परिशीलन करने के पश्चात हम यह पाते हैं कि जिला मंच द्वारा साक्ष्यों की पूर्ण विवेचना करते हुए प्रश्नगत परिवाद में विवेच्य निर्णय पारित किया है, जो कि विधिसम्मत है एवं उसमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
तद्नुसार प्रस्तुत अपील खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष इस अपील का अपना अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA)