राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-१०४२/२००३
(जिला मंच, कानपुर देहात द्वारा परिवाद सं0-१७७/२००१ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १३-०३-२००३ के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा जनरल मैनेजर, नॉर्थ सेण्ट्रल रेलवे (ओल्ड नॉर्दन रेलवे) इलाहाबाद।
२. डिवीजनल रेलवे मैनेजर, नॉर्थ सेण्ट्रल रेलवे (ओल्ड नॉर्दन रेलवे) इलाहाबाद।
................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
मोहम्मद जमील पुत्र मोहम्मद नासिर निवासी ९९/९६, बेकन गंज कानपुर।
.................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१.मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य ।
२.मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री अमित अरोड़ा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : २९-०६-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, कानपुर देहात द्वारा परिवाद सं0-१७७/२००१ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १३-०३-२००३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी अपने व्यापार से सम्बन्धित काम के लिए दिनांक २१-१०-२००० को प्रयागराज एक्सप्रेस से टिकट संख्या ५७८२६०९७ खरीदकर लाहौर (पाकिस्तान) के लिए कानपुर से दिल्ली जा रहा था। रात्रि लगभग ११-३० बजे अचानक झटका लगा और खिड़की में लगा हुआ शीशा गिर गया, जिससे परिवादी के दाहिने हाथ की दो अँगुली गम्भीर रूप से घायल हो गयी और खून बहने लगा। जब ट्रेन अलीगढ़ स्टेशन पहुँची तब परिवादी ने जल्दी से प्राथमिक चिकित्सा हेतु गार्ड से व्यक्तिगत सम्पर्क किया और अपनी दुर्घटना की सूचना दी लेकिन गार्ड ने अपनी असमर्थता प्रकट की। इसी बीच ट्रेन ने
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सीटी दे दी और पुन: परिवादी ट्रेन में बैठ गया और ट्रेन अपने गन्तव्य के लिए रवाना हो गयी। दूसरे दिन दिनांक २२-१०-२००० को सुबह १०-३० बजे उक्त ट्रेन नई दिल्ली स्टेशन पर पहुँची। तब परिवादी ने नई दिल्ली में लोकनायक अस्पताल में अपना इलाज कराया और कुछ आराम होने पर दिल्ली से अटारा के लिए समझौता एक्सप्रेस से रवाना हो गया। यात्रा के दौरान् परिवादी को असहनीय पीड़ा सहन करनी पड़ी। परिवादी लाहौर में मायो अस्पताल में भर्ती हुआ जहॉं उसका तीन सप्ताह तक इलाज हुआ जिसमें उसका ४५,०००/- रू० खर्च हुआ। रेलवे विभाग की लापरवाही के कारण परिवादी को अत्यधिक शारीरिक पीड़ा एवं मानसिक क्षोभ सहन करना पड़ा और उसके व्यापार से सम्बन्धित कई कार्य जिनके लिए वह लाहौर गया था सम्पन्न नहीं हो सके क्योंकि परिवादी को जिन लोगों से मिलना था उनकी नियुक्ति का समय समाप्त हो चुका था जिससे परिवादी को ०१.०० लाख रू० का नुकसान हुआ। अत: क्षतिपूर्ति की अदायगी के लिए परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
अपीलार्थीगण ने जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र द्वारा परिवादी के साथ हुई कथित घटना से इन्कार किया। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि यद्यपि टिकट सं0-६७८२६०९७ दिनांक २१-१०-२००० अनारक्षित साधारण श्रेणी के लिए जारी किया गया था लेकिन परिवादी ने यह प्रमाणित नहीं किया है कि उक्त टिकट को उसने अपनी यात्रा के लिए प्रयोग किया। अपीलार्थीगण ने ट्रेन नं0-२९७१ अप दिनांक २१-१०-२००० की दो कोच सं0-१४८६५ ए एनआर व १४८९५ ए एनआर की एक वरिष्ठ अभियन्ता से निरीक्षण कराया जिनके अनुसार कोच में सभी फिटिंग्स सही व कार्यरत पायी गयीं। परिवादी ने चोट के सम्बन्ध में प्राथमिक चिकित्सा जो उपलब्ध थी उसकी सेवाऐं प्राप्त नहीं कीं और न ही परिवादी ने शीशे की खिड़की की फिटिंग के सम्बन्ध में किसी भी स्टेशन पर शिकायत की और न टी0टी0ई0 को सूचित किया। अत: परिवाद पोषणीय नहीं था। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार विद्वान जिला मंच को प्राप्त नहीं था। अत: प्रश्नगत निर्णय क्षेत्राधिकार के अभाव में भी निरस्त किए जाने योग्य है।
विद्वान जिला मंच ने परिवादी के परिवाद को अंशत: स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि निर्णय की तिथि से ४५ दिन के अन्दर परिवादी ३५,०००/- रू० बतौर
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क्षतिपूर्ति एवं ५००/- रू० बतौर वाद व्यय अदा करें।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री अमित अरोड़ा के तर्क सुने। अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थीगण की ओर से जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किए गये प्रतिवाद पत्र में यह स्पष्ट रूप से अभिकथित किया गया कि जिला मंच को प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं था बल्कि इस मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार रेलवे अधिनियम के अन्तर्गत रेलवे क्लेम्स ट्रिब्नल को प्राप्त है किन्तु विद्वान जिला मंच ने इस प्रश्न पर विचार न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने इस सन्दर्भ में हमारा ध्यान रेलवे अधिनियम १९८९ की धारा-१२४ ए की ओर आकृष्ट किया। इस धारा के अनुसार – ‘’ compensation on account of untoward incidents.- When in the course of working a railway an untoward incident occurs, then whether or not there has been any wrongful act, neglect or default on the part of the railway administration such as would entitile a passenger who has been injured or the dependant of a passenger who has been killed to maintain an action and recover damages in respect thereof, the railway administration shall notwithstanding anything contained in any other law, be liable to pay compensation to such extent as may be prescribed and to that extent only for loss occasioned by the death of, or injury to, a passenger as a result of such untoward incident. ‘’।
उनके द्वारा हमारा ध्यान रेलवे अधिनियम की धारा १३ एवं १५ की ओर भी आकृष्ट किया। रेलवे अधिनियम की धारा-१३ (१) तथा १३ (१-ए) के अनुसार –
‘’ 13. Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal. (1) The claims Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that day by any civil court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of the Railways Act-,
(a) Relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under Chapter VII of the Railways Act in respect of claims for- ‘’ ।
‘’ (1A) The Claims Tribunal shall also exercise, on and from the date of commencement of the provisions of Section 124A of the Railways Act, 1989 (24 of 1989), all such jurisdiction, powers and authority as we are exercisable immediately before that date by any civil court in respect of claims for compensation now payable by the railway adminstration under section 124A of the said Act or the rules made there under. ‘’ ।
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रेलवे अधिनियम की धारा-१५, अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय मामलों में किसी अन्य न्यायालय अथवा अथारिटी का क्षेत्राधिकार बाधित करती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि रेलवे क्लेम्स ट्रिब्नल एक्ट १९८७, दिनांक २३-१२-१९८७ से प्रभावी है जबकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के बाद प्रभाव में आया। रेलवे क्लेम्स ट्रिब्नल एक्ट १९८७ की धारा-२८ के अनुसार इस अधिनियम के प्रावधान किसी अन्य अधिनियम के प्रावधान के सापेक्ष प्रभावी होंगे।
ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल है कि प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता मंच को प्राप्त नहीं था। विद्वान जिला मंच ने इस प्रश्न का निस्तारण न करते हुए क्षेत्राधिकार के अभाव में प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, अत: अपास्त किए जाने योग्य है। तद्नुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, कानपुर देहात द्वारा परिवाद सं0-१७७/२००१ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १३-०३-२००३ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(राम चरन चौधरी)
पीठासीन सदस्य
(उदय शंकर अवस्थी)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.