राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1507/2010
(जिला मंच शाहजहांपुर द्वारा परिवाद सं0-२५/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०९/०७/२०१० के विरूद्ध)
इलाहाबाद बैंक गोविंदगंज ब्रांच द्वारा चीफ मैनेजर जिला शाहजहांपुर।
.............. अपीलार्थी।
बनाम्
मो0 नाजिर पुत्र स्व0 श्री रासिद मोहम्मद निवासी मोहल्ला सिंजई शाहजहांपुर।
............... प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अवधेश शुक्ला विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री बी0के0 उपाध्याय विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक : 28/02/2018
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच शाहजहांपुर द्वारा परिवाद सं0-२५/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०९/०७/२०१० के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलकर्ता का एक खाताधारक है। उसका बचत खाता सं0-४३१७५ इलाहाबाद बैंक की गोविंदगंज शाखा शाहजहांपुर में है। प्रत्यर्थी/परिवादी समय-समय पर उक्त खाते में धनराशि करता रहा है और ए0टी0एम0 के माध्यम से धनराशि आहरित भी करता रहा है किन्तु दिनांक २९/११/२००६ को उसके खाते से रू0 १५०००/- अनधिकृत आहरण बैंक के कर्मचारियों द्वारा कर लिया गया जिसकी उसने बैंक के अधिकारियों से शिकायत की तो बैंक के अधिकारियों ने उसकी शिकायत की कोई सुनवाई नहीं की। परिवाद पत्र में उसने कथन किया कि दिनांक १६/११/२००६ को उसके खाते में मात्र ३१२०/- रू0 जमा थे। दिनांक ०६/१२/२००६ को उसके द्वारा रू0 २०००/- निकाल लिए गए। इस प्रकार उसके खाते में दिनांक ०६/१२/२००६ को मात्र १२२०/- की शेष धनराशि रह गयी । दिनांक २४/०१/२००८ को परिवादी ने रू0 ४३०००/- की धनराशि नकद जमा की। इस प्रकार उसके खाते में दिनांक २४/०१/२००८ को कुल रू0 ४४१२०/- अवशेष होनी चाहिए थी किन्तु जब वह अपनी पासबुक में जमा की गयी धनराशि की प्रविष्टि कराने गया तो उसे पता चला कि उसके खाते से दिनांक २९/११/२००६ को बैंक के कर्मचारियों द्वारा अनधिकृत रूप से रू0 १५०००/- की धनराशि का आहरण कर लिया गया जिसके कारण दिनांक २४/०१/२००८ को उसके खाते में रू0 ४४१२०/- की धनराशि शेष न रहकर केवल रू0 २६१३१/- शेष रह गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इसी से क्षुब्ध होकर परिवाद जिला मंच के समक्ष दायर किया गया।
परिवाद का विपक्षी/अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवाद किया गया। प्रतिवाद पत्र में कथन किया गया है कि दिनांक २९/११/२००६ को कोई आहरण प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा नहीं किया गया बल्कि आहरण केवल उसके द्वारा दिनांक ०५/११/२००६ को किया गया था और चूंकि एटीएम में कुछ यांत्रिक खराबी के कारण उक्त प्रविष्टि समय पर नहीं हो सकी । अत: खाते के मिलान के दौरान उक्त प्रविष्टि दिनांक २९/११/२००६ को कर दी गयी।
उभय पक्षों के द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का परिशीलन करने तथा उनको सुनने के बाद विद्वान जिला मंच ने निम्नलिखित आदेश पारित किया-
‘’ परिवाद अंशत: विपक्षी इलाहाबाद बैंक शाखा गोविंदगंज शाहजहांपुर के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी के बचत खाता सं0-४३१७५ में रू0 १८१३०/- मय ०६ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज परिवाद प्रस्तुत किये जाने की तिथि २३/०१/२००९ से ताअदायगी मय क्षतिपूर्ति रू0 २०००/- एवं परिवाद पत्र रू0 ५००/- तथा अधिवक्ता फीस रू0 १०००/- सहित आदेश की अन्दर मियाद एक माह में अदा करे। ‘’
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपील में अपीलकर्ता की ओर से मुख्य आधार लिया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वास्तव में दिनांक ०५/११/२००६ को रू0 १५०००/- का एटीएम से आहरण किया गया था किन्तु उक्त आहरण की प्रविष्टि दिनांक २९/११/२००६ को की गयी। अपील में यह स्वीकार किया गया कि कभी-कभी ए0टीएम मशीन में यांत्रिक दोष होने के कारण धनराशि का आहरण हो जाता है किन्तु उसकी प्रविष्टि अंकित नहीं होती और इसके विपरीत कभी-कभी एटीएम मशीन से धनराशि का आहरण नहीं होता किन्तु धनराशि के आहरण की प्रविष्टि खाते में हो जाती है जिसके बाद में स्वत: निरस्त कर दिया जाता है। इस प्रकार यदि कभी किसी आहरण की प्रविष्टि लेखों में नहीं होती तो उसके प्रविष्टि खाते के मिलान के दौरान कर दी जाती है। इस प्रकार दिनांक ०५/११/२००६ को रू0 १५०००/- की धनराशि का आहरण तो हुआ किन्तु उसकी प्रविष्टि दिनांक २९/११/२००६ को की गयी। इस प्रकार रू0 २०००/- के आहरण की भी प्रविष्टि खाते में मिलान के दौरान की गयी है। विद्वान जिला मंच ने इन तथ्यों की अनदेखी करके प्रश्नगत आदेश पारित किया है और जो कि त्रुटिपूर्ण है और निरस्त किए जाने योग्य है।
अपील का प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विरोध किया गया और आपत्ति दाखिल की गयी।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री अवधेश शुक्ला एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय उपस्थित हैं। उभय पक्षों की बहस सुनी गयी। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अपील कुछ विलंब से दाखिल की गयी है। विलंब के दोष को क्षमा करने के लिए प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र दिया गया है। शपथ पत्र में विलंब के कारण स्पष्ट किए गए हैं जिनसे पीठ सहमत हैं तथा विलंब का दोष क्षमा किया जाता है।
पत्रावली के अवलोकन से यह विदित होता है कि अपीलकर्ता बैंक का एक उपभोक्ता है। पत्रावली पर जो बैंक स्टेटमेंट दिनांक १५/१०/२००६ से २९/११/२००६ की अवधि का प्रस्तुत किया गया है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के बैंक खाते में दिनांक १५/१०/२००६ को रू0 ६४०४९/- जमा थे। उसके बाद उक्त खाते से समय-समय पर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा धनराशि का आहरण किया जाता रहा। दिनांक १६/११/२००६ को उक्त खाते में मात्र ३१२०/- की धनराशि अवशेष थी किन्तु दिनांक २९/११/२००६ को रू0 ३१२०/- की जमा धनराशि के सापेक्ष रू0 १५०००/- की धनराशि का आहरण कर दिया गया और खाते में रू0 ११८८०/- डेबिट प्रदर्शित किया गया। इस प्रकार दिनांक ०६/१२/२००६ को भी रू0 २०००/- की धनराशि आहरण किया गया और रू0 १३८८०/- डेबिट प्रदर्शित किए गए हैं। दिनांक ०९/०३/२००७ को उक्त खाते में रू0 १४१ ब्याज के जमा हुए और खाते का डेबिट बैंक रू0 १३७३९/- हो गया। दिनांक २४/०१/२००८ को खाते में रू0 ४३०००/- की धनराशि जमा की गयी जिसमें पूर्व डेबिट बैंलेंस समायोजित होकर मात्र रू0 २९२६१/-क्रेडिट बैलेंस हो गया। इसी प्रकार दिनांक २४/०१/२००८ को स्वयं उपरोक्त अवधि दिनांक २९/११/२००६ से दिनांक २४/०१/२००८ की अवधि में जितना भी डेबिट बैलेंस रहा वह एक प्रकार ऋण था और उस पर रू0 ३१३०/- का ब्याज प्रत्यर्थी/परिवादी पर अधिरोपित किया गया। इस प्रकार दिनांक २४/०१/२००८ को उक्तखाते में रू0 २६१३१/- अवशेष रही।
बैंक स्टेटमेंट के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि दिनांक २९/११/२००६ को रू0 १५०००/- का जो आहरण हुआ है वह एक प्रकार का अस्थायी ऋण है और उस पर दिनांक २४/०१/२००८ को ३१३०/- का ब्याज अधिरोपित किया गया है। यदि गलती से किसी यांत्रिक दोष के कारण किसी ग्राहक/खाताधारक द्वारा अधिक धनराशि बैंक से आहरित कर ली जाती है तो बैंक को उसे वापस प्राप्त करने का अधिकार है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों में कोई बल प्रतीत नहीं होता कि बैंक के कर्मचारी को खाते से धनराशि का आहरण करेगा जिसमें पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं है। यदि बैंक कर्मचारी को अवैधानिक रूप से किसी बैंक खाते से धनराशि आहरित करनी है तो वह उस बैंक खाताधारक के खाते से धनराशि आहरित करेगा जिसमें पर्याप्त धनराशि उपलब्ध हो। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह आरोप बे-बुनियाद प्रतीत होता है। मशीन की यांत्रिक त्रुटि से बैंक खाते में जमा धनराशि से अधिक धनराशि का आहरण हुआ जिसको दुरूस्त करने का पूर्ण अधिकार बैंक को है और अधिक भुगतान की गयी धनराशि को वसूलने का भी बैंक को पूर्ण अधिकार है और यदि वह धनराशि ओवरड्राफ्ट है तो उस पर ब्याज लेने का भी बैंक को अधिकार है। इस प्रकार बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। बैंक ने रू0 १५०००/- पूर्व में अधिक वसूल की गयी धनराशि और उस पर ब्याज रू0 ३१३०- अधिरोपित करके कोई त्रुटि नहीं की है। प्रश्नगत आदेश निरस्त किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत आदेश निरस्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्ष को इस आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार निर्गत की जाए।
(संजय कुमार) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, कोर्ट-४