राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-719/2024
(जिला उपभोक्ता आयोग, सिद्धार्थनगर द्वारा परिवाद सं0-29/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-05-2008 के विरूद्ध)
अपर मुख्य अधिकारी, जिला परिषद/जिला पंचायत, जिला सिद्धार्थनगर।
.........अपीलार्थी/विपक्षीसं0-1.
बनाम
1. मोहम्मद मक्सूद खान पुत्र यूसुफ खान, साकिन नरकटहा, तप्पा चॅवर, परगना बॉंसी पूरब, तहसील बॉंसी, जिला सिद्धार्थनगर।
.........प्रत्यर्थी/परिवादी।
2. गवर्नमेण्ट आफ उत्तर प्रदेश द्वारा जिला मैजिस्ट्रेट, सिद्धार्थनगर।
3. जिला मैजिस्ट्रेट, सिद्धार्थनगर।
.........प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष :-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अधिवक्ता अपीलार्थी : श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय।
अधिवक्ता प्रत्यर्थीगण : कोई नहीं।
दिनांक : 28-05-2024.
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग, सिद्धार्थनगर द्वारा परिवाद सं0-29/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-05-2008 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी साकिन-नरकटहा, तहसील-बॉसी, जनपद-सिद्धार्थनगर का निवासी है। विपक्षी सं0-1 अपर मुख्य अधिकारी जिला परिषद/जिला पंचायत द्वारा तहसील मुख्यालय बांसी में चीड़घर पर स्थित जिला पंचायत की भूमि पर कई दुकानें किराये पर दने के प्रयोजन हेतु निर्मित करायी गयीं और उनके आरक्षण हेतु आमजन से आवेदन-पत्र आमन्त्रित किए गए। विपक्षी संख्या एक की शर्तों के मुताबिक पारवादी ने समस्त
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औपचारिकाओं को पूर्ण करके व प्रपत्रों के साथ नकद राशि 35,500/- रू0 जिला पंचायत कार्यालय में दिनांक 31-01-95 को जमा कर रसीद प्राप्त की। परिवादी द्वारा दुकान पर कब्जा पाने हेतु अनेक बार जिला पंचायत कार्यालय आकर प्रयास किया गया किन्तु बार-बार परिवादी से कहा जाता रहा कि अभी रूकिए विभागीय औपचारिकताऐं शेष रह गयी हैं, उनको पूर्ण होने के पश्चात् दुकान आवंटित कर दी जाएगी, किन्तु ऐसा नहीं किया गया।
परिवादी ने कई बार लिखित एवं मौकिक रूप से याचना की लेकिन विपक्षी संख्या-एक ने कोई माकूल जवाब नहीं दिया और न ही कब्जा दिया। परिवादी ने अन्त में दिनांक 14-11-2005 को विपक्षी संख्या एक के कार्यालय में जाकर यह याचना की कि उसे दुकान का कब्जा दे दिया जाय या उसक जमा धन वापस कर दिया जाय। इस पर विपक्षी संख्या एक ने स्पष्ट रूप से कहा कि तुम्हारा पैसा वापस नहीं होगा और न ही तुम्हें दुकान ही आवंटित की जाएगी। तब परिवादी ने बाध्य होकर कानूनी नोटिस विपक्षीगणी को भेजी। उसका भी कोई सम्यक् उत्तर नहीं मिला।
परिवादी ने उक्त 35000/- रू0 स्त्रीधन को विक्रय करके दिनांक 31-01-1995 को विपक्षी संख्या एक के कार्यालय में जमा किया था। यदि उक्त धन परिवादी ने भारत सरकार के सावधि जमा योजना के अन्तर्गत दस वर्षों के लिए जमा किया होता तो उक्त धन बढ़कर 1,33,000/- रू0 हो गया होता। परिवादी दुकान के आवंटन के अभाव में व्यवसाय नहीं कर सका और उसका परिवार भीषण रूप से आर्थिक तंगी के कारण भुखमरी के कगार पर पहुँच गया जिससे परिवादी को भीषण शारीरिक आर्थिक मानसिक पीड़ा पहुँची। विपक्षीगण का उक्त कार्य कानूनन तथा उन्हीं के शर्तों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है, अत: विपक्षीगण से परिवादी को उसके जमा धन पर अब तक का ब्याज दिलाया जाना एवं दुकान पर कब्जा दिलाया जाना नितान्त आवश्यक है।
विद्वान जिला आयोग के समक्ष विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र दाखिल करने हेतु समय की मांग के लिए कई प्रार्थना पत्र दिए गए, परन्तु प्रतिवाद पत्र दाखिल नहीं किया गया। यद्यपि विद्वान जिला आयोग के समक्ष अन्तिम बहस के समय
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विपक्षीगण की ओर से डी0जी0सी0 सिविल उपस्थित हुए और उनकी बहस विद्वान जिला आयोग द्वारा सुनी गई।
तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने परिवादी के कथनों/अभिकथनों एवं साक्ष्यों का विस्तार से विश्लेषण करने तथा विपक्षीगण की ओर से की गई बहस को सुनने के उपरान्त निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
'' परिवाद पत्र बहक परिवादी विरूद्ध विपक्षी सं0-एक इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि विपक्षी सं0-एक आदेश के साठ दिन के अन्दर अंकन पैंतीस हजार पॉच सौ रूपये मय 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज दिनांक 31-1-95 से भुगतान की तिथि तक व एक हजार रूपये परिवाद व्यय भुगतान कर देवे अन्यथा परिवादी को अधिकार होगा कि वह अंकन पैंतीस हजार पॉंच सौ रूपये पर नौ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज मय परिवाद व्यय उपरोक्तानुसार विपक्षीसं0-एक के व्यय पर वसूल कर लेवे। ''
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय को अंगीकरण के बिन्दु पर विस्तार से सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों/अभिवचनों/साक्ष्यों तथा प्रश्नगत आदेश का सम्यक् रूप से परिशीलन व परीक्षण किया गया।
यह अपील विलम्ब से प्रस्तुत की गई है। विलम्ब क्षमा प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। विलम्ब का कारण पर्याप्त है। अत: विलम्ब क्षमा किया जाता है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दौरान् बहस मुख्य तर्क यह किया गया कि परिवादी द्वारा वांछित औपचारिकताऐं समय से पूर्ण नहीं की गईं। इसी कारण से उसे दुकान आवंटित नहीं की जा सकी। अपीलार्थी को परिवाद के सम्बन्ध में कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुई। अपीलार्थी द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गई है। विद्वान जिला आयोग द्वारा एकपक्षीय रूप से आदेश पारित किया गया है।
विद्वान जिला आयोग द्वारा प्रश्नगत निर्णय में अपने निष्कर्ष में प्रलेखीय साक्ष्यों का विश्लेषण करते हुए यह उल्लिखित किया है कि परिवाद पत्र में अंकित
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तथ्यों का समर्थन परिवादी के शपथ-पत्र व अभिलेखों से होता है, जिसका खण्डन विपक्षीगण की ओर से नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा 35,500/- रू0 जमा किया गया है, जिसके एवज में विपक्षीगण द्वारा परिवादी को कोई दुकान आवंटित नहीं की गई और न ही धनराशि वापस की गई। विद्वान जिला आयोग ने यह भी उल्लिखित किया है कि निर्धारित अवधि के अन्तर्गत विपक्षीगण को दुकान आवंटित कर देनी चाहिए थी। विपक्षीगण द्वारा ऐसा न करके सेवा में चूक की गई है। विद्वान जिला आयोग ने इस सन्दर्भ में न्याय निर्णय का भी अपने निष्कर्ष में उल्लेख किया है।
उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि विद्वान जिला आयोग ने मामले के सभी तथ्य एवं परिस्थितियों का उचित ढंग से विश्लेषण करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर ही निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर ही निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, सिद्धार्थनगर द्वारा परिवाद सं0-29/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-05-2008 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय पक्षकार स्वयं अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जावे।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निण्रय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-1. कोर्ट नं0-1.