राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1169/2004
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम बरेली द्वारा परिवाद संख्या-19/2003 में पारित निर्णय दिनांक 14.05.2004 के विरूद्ध)
यूनियन आफ इंडिया द्वारा
1.डी.आर.एम(कामर्शियल) नार्थ ईस्टर्न रेलवे, इटानगर, बरेली।
2.श्री पी.सी.गुप्ता टी.टी.ई. ...........अपीलार्थीगण@विपक्षीगण
बनाम
मोहम्मद खालिद जिलानी पुत्र श्री अब्दुल अजीज निवासी मोहल्ला
आजमनगर पीएस कोतवाली जिला बरेली। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एम0एच0 खान, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 16.02.2021
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम प्रथम बरेली द्वारा परिवाद संख्या 19/2003 मोहम्मद खालिद जिलानी बनाम भारत सरकार द्वारा मंडल रेलवे व एक अन्य में पारित आदेश दिनांकित 14.05.2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है।
2. मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने उपरोक्त परिवाद इन अभिकथनों के साथ योजित किया है कि वह दि. 19.10.2002 को अपनी पत्नी व 5 माह के बच्चे के साथ आगरा एक्सप्रेस से बरेली जंक्शन से आगरा फोर्ट एक संयुक्त टिकट नम्बर पर जा रहा था। खारों व कासगंज रेलवे स्टेशन के मध्य चलती ट्रेन में चल टिकट परीक्षक श्री पी.सी. गुप्ता ने जांच करने के उपरांत शयनयान में यात्रा करने के आधार पर उससे रू.
-2-
246/- की मांग की, जबकि ट्रेन के डिब्बे पर खडि़या से(साधारण) लिखा हुआ था। परिवादी का कथन है कि रू. 246/- लेने के बावजूद उसे रू. 123/- की रसीद दी गई अथवा रू. 123/- वापस करने हेतु कहा, किंतु विपक्षी संख्या 2 पी0सी0 गुप्ता ने उसकी बात नहीं मानी। परिवादी ने रू. 123/- दिलवाए जाने और विपक्षी संख्या 2 द्वारा किए गए दुर्व्यवहार हेतु मानसिक कष्ट हेतु रू. 50000/- की याचना की।
3. विद्वान उपभोक्ता फोरम ने दोनों पक्षों की सुनवाई के उपरांत परिवादी का परिवाद आज्ञप्त किया व विपक्षीगण को निर्देश दिया कि वे वादी को अतिरिक्त किराए व पेनाल्टी की रसीद प्रदान करे और रू. 500/- वाद व्यय के रूप में अदा करें।
4. उपरोक्त निर्णय से व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है, जिसमें मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं। जब अपीलार्थी संख्या 2 टिकट चेकर द्वारा चेकिंग की गई तब यह पाया गया कि परिवादी साधारण टिकट पर आरक्षित कोच में सफर कर रहा था। परिवादी संयुक्त टिकट पर अकेला यात्रा कर रहा था, अत: उसे दण्डस्वरूप एक यात्री की पेनाल्टी ली गई। परिवादी द्वारा एक झूठी कहानी बनाई गई है कि वह अपनी पत्नी व बच्चे के साथ यात्रा कर रहा था। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने यह पाया है कि परिवादी आरक्षित कोच में अपनी पत्नी के साथ यात्रा कर रहा था, अत: उससे रू. 246/- दण्डस्वरूप वसूल किए गए हैं। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने बिना किसी साक्ष्य के यह मान लिया कि परिवादी से रू. 123/- अधिक वसूल किए गए हैं और वादी का वाद गलत प्रकार से आज्ञप्त करते हुए उक्त के संबंध में रसीद दिए जाने का आदेश दिया गया है, अत: अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
-3-
5. इस मामले में प्रत्यर्थी पर नोटिस प्रेषित की गई तथा उस पर आदेश दिनांकित 25.07.18 के माध्यम से नोटिस की तामीला मानी गई, किंतु प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया, अत: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान के तर्क सुने गए।
6. उभय पक्ष के तर्कों को सुनकर एवं पत्रावली के अवलोकन के आधार पर इस पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से है।
7. इस मामले में परिवादी/प्रत्यर्थी ने स्वीकार किया है कि वह ऐसे रेलवे कोच में यात्रा कर रहा था जो आरक्षित कोच था, मात्र खडि़या से उस पर साधारण लिखा था, जिस पर विश्वास करते हुए वह आरक्षित कोच मे सवार हो गया। जिला उपभोक्ता फोरम ने भी अपने निष्कर्ष में यह माना है कि परिवादी शयनयान में साधारण टिकट पर यात्रा करते हुए पाया गया एवं उसे पेनाल्टी के रूप में रू. 246/- मांगे गए। स्वयं परिवादी ने इस तथ्य को माना है कि साधारण टिकट पर अपनी पत्नी के साथ अर्थात 2 व्यक्ति गलत दर्ज में यात्रा कर रहे थे। विद्वान उपभोक्ता फोरम ने यह निष्कर्ष दिया है कि परिवादी से 2 यात्रियों का अतिरिक्त किराया रू. 123/- की दर रू. 246/- विपक्षी संख्या 2 को अदा किया गया। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने यह निष्कर्ष दिया है कि परिवादी द्वारा 2 ही व्यक्तियों का अतिरिक्त भाड़ा व दण्ड देय था और विपक्षी संख्या 2 ने दो व्यक्तियों का भाड़ा व पेनाल्टी परिवादी से वसूल किया है तो परिवादी को आर्थिक हानि वास्तव में नहीं हुई। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय में आया है कि यह बात विपक्षी संख्या 1 और विपक्षी संख्या 2 के बीच की है कि विपक्षी संख्या 2 ने विपक्षी संख्या 1 की धनराशि का दुरूपयोग किया है, किंतु परिवादी की कोई आर्थिक हानि नहीं हुई है, क्योंकि यह धनराशि रू.
-4-
123/- रेलवे विभाग को देय थी और परिवादी उसे वापस प्राप्त करने का अधिकारी नहीं था।
8. विद्वान उपभोक्ता फोरम ने यह भी निष्कर्ष दिया है कि परिवादी/प्रत्यर्थी से यह धनराशि दण्डस्वरूप ली गई है और इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार यह सेवा में कमी नहीं मानी जा सकती। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम का उक्त निष्कर्ष उचित है, यह धनराशि गलत दर्ज यात्रा करने के दण्डस्वरूप है, यह किसी सेवा का प्रतिफल नहीं है, अत: रू. 123/- जो मंच द्वारा दिया गया है वह किसी सेवा का प्रतिफल नहीं माना जा सकता है और इस कारण विपक्षीगण की ओर से सेवा में कोई त्रुटि इस धनराशि की देयता के संबंध में नहीं मानी जा सकती है, अत: धनराशि के संबंध में सेवा में कोई कमी न होने के कारण परिवादी का परिवाद आज्ञप्त होने योग्य नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने अनुचित प्रकार से परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आज्ञप्त किया है, अत: यह आदेश उचित प्रतीत नहीं होता है एवं अपास्त किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील-व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2 कोर्ट-2