सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
अपील संख्या 1886 सन 2008
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या 135/02में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.08.2008 के विरूद्ध)
सिण्डीकेट बैंक, घण्टाघर ब्रांच, द्वारा मैनेजर (ला) रीजनल आफिस, नवल किशोर रोड, लखनऊ ।
बनाम
- मै0 मोहन ग्रामोघोग संस्थान कृष्णा बिहार, बेहत रोड, सहारनपुर द्वारा श्री सुशील कुमार पुत्र श्री प्रेम चन्द्र वर्मा द्वारा उत्तम राइस मिल, बेहत रोड, सहारनुपुर, सेके्टरी ।
- यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस क0लि0 डिवी0 आफिस राजेन्द्र काम्पलेक्स, 2, चर्च रोड, सिविल लाइंस सहारनपुर द्वारा मैनेजर।
- श्री एस बिन्द्रा डिवीजनल आफीसर एजेण्ट कोड नं0 30720 डिवीजनल आफिस यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0 लि0 डिवी0 आफिस राजेन्द्र काम्पलेक्स, 2, चर्च रोड, सिविल लाइंस सहारनपुर ।
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 श्री आर0पी0 सिंह , सदस्य।
विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी : श्री एम0एल0 वर्मा ।
विद्वान अधिवक्ता प्रत्यर्थी सं0-। : श्री सिद्धार्थ श्रीनेत ।
विद्वान अधिवक्ता प्रत्यर्थी सं0-2 व 3 श्री प्रसून कुमार राय ।
दिनांक:
माननीय श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या 135/02 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.08.2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है, जिसके द्वारा जिला फोरम ने परिवादी के परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
'' परिवाद पत्र विपक्षी संख्या-3, सिंडीकेट बैंक, घंटाघर, सहारनपुर के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी सख्या 1 व 2 क्रमश: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0, सिविल लाइन सहारनपुर एवं कु0 बिन्द्रा, डिवीजनल आफिसर एजेण्ट कोड संख्या 30702, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0, सिविल लाइन सहारनपुर के विरूद्ध निरस्त किया जाता है। विपक्षी संख्या 3 बैंक को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय से एक माह के अन्दर परिवादी को 1,17,426.00 रू0 व इस धनराशि पर परिवाद पत्र दाखिल करने की तिथि 16.3.2002 से इस निर्णय की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज एवं 3000.00 रू0 वाद व्यय के मद में अदा करे। उपरोक्त अवधि में अदायगी न करने पर इस निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक 1,17,426.00 रू0 की राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी विपक्षी संख्या 3 सिंडीकेट बैंक द्वारा परिवादी का देय होगा । ''
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ग्रामोद्योग संस्थान ने तेल मिल लगाने हेतु खादी ग्रामोद्योग संस्थान से लोन लिया जिसका भुगतान सिंडीकेट बैंक के माध्यम से किया जाना था। विपक्षी संख्या-3, सिंडीकेट बैंक द्वारा 7,50,000.00 रू0 के लोन का भुगतान दो किस्तों में किया गया। इस लोन के संबंध में विपक्षी बैंक द्वारा स्वयं ही विपक्षी संख्या-1, यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0 से बीमा पालिसी ली गयी केवल फूड आयल, दाल आदि के स्टाक हेतु बीमा 21.2.2000 से 20.2.2001 तक की अवधि हेतु 8,00,000.00 रू0 का बीमा कराया गया जिसकी किस्त 4220.00 रू0 का भुगतान बैंक द्वारा परिवादी के खाते से रकम निकालकर वजरिए पे-आर्डर बीमा कम्पनी को भुगतान किया गया। दिनांक 14/15.12.2000 की रात्रि में परिवादी के गोदाम में चोरी हो गयी, जिसके संबंध में पुलिस में रिपोर्ट लिखाई गयी जिसमें पुलिस द्वारा जांच के उपरांत अन्तिम रिपोर्ट लगा दी गयी। परिवादी को चोरी में कुल 1,32,363.00 रू0 का नुकसान हुआ। परिवादी ने बीमा कम्पनी में दावा प्रस्तुत किया लेकिन बीमा कम्पनी ने यह कहते हुए बीमा दावा देने से इन्कार कर दिया कि बैंक द्वारा जो पे-आर्डर दिया गया वह परिवादी से संबंधित नही था और इस प्रकार परिवादी द्वारा कोई प्रीमियम अदा नहीं किया गया ।
अपील के आधारों में यह कहा गया कि बैंक द्वारा प्रीमियम की धनराशि 4220.00 रू0 का भुगतान परिवादी के खाते से किया गया है, ऐसी स्थिति में क्षति के भुगतान का दायित्व बीमा कम्पनी का है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का ध्यानपूर्ण अनुशीलन कर लिया है।
अभिलेख के अनुशीलन से स्पष्ट है कि सिन्डीकेट बैंक द्वारा परिवादी के खाते से रू. 4220/- की धनराशि के संबंध में पे-आर्डर युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को दि. 21.02.2000 को दिया गया, किंतु इस पे आर्डर के विरूद्ध बीमा कंपनी द्वारा मेसर्स जीवक हर्बल एण्ड आयुवेर्दिक प्रोडक्ट का बीमा किया गया और उक्त फर्म के संबंध में कवर नोट जारी किया गया। परिवादी के संबंध में कोई कवर नोट बीमा कंपनी द्वारा इस धनराशि के विरूद्ध जारी नहीं किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि बैंक द्वारा पे-आर्डर के साथ जो पत्र संलग्न किया गया है वह वस्तुत: दूसरी कंपनी मेसर्स जीवक हर्बल एण्ड आयुर्वेदिक प्रोडक्ट का है, अत: उक्त फर्म के हित में ही कवर नोट जारी कर दिया गया। जिला फोरम के समक्ष विपक्षी बीमा कंपनी ने अपने लिखित कथन में यह स्पष्ट दलील ली थी कि प्रश्नगत प्रकरण में परिवादी के हित में कोई बीमा पालिसी जारी नहीं की गई है और यह भी कहा गया है कि गोदाम में रखे स्टाक का कोई बीमा न होने के कारण गोदाम में हुई चोरी के संबंध में बीमा कंपनी का कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता है। सिन्डीकेट बैंक द्वारा ऐसा कोई पत्र दाखिल नहीं किया गया है, जिसमें परिवादी फर्म के बीमा के संबंध में बीमा कंपनी को लिखा गया हो। बीमा के लिए परिवादी के खाते से धनराशि निकालकर बीमा कंपनी को पे-आर्डर भेजना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि बैंक का यह उत्तरदायित्व था कि वह परिवादी के खाते से प्रेषित प्रीमियम के संबंध में बीमा पालिसी की प्राप्ति सुनिश्चित करता। इस प्रकार सिन्डीकेट बैंक ने प्रथम दृष्टया ही सेवा में घोर कमी की है। जिला फोरम ने संपूर्ण तथ्यों के विवेचन के उपरांत सही तौर पर यह पाया है कि विपक्षी सिन्डीकेट बैंक द्वारा सेवा में घोर कमी और असावधानी बरती गयी है और चूंकि प्रश्नगत प्रकरण से संबंधित परिवादी के हित में कोई बीमा पालिसी नहीं है, अत: बीमा कंपनी क्षतिपूर्ति देने का उत्तरदायी नहीं है और संपूर्ण क्षतिपूर्ति अदा करने का दायित्व सिन्डीकेट बैंक का है, जिसके द्वारा घोर असावधानी बरतते हुए सेवा में कमी की गई है। जिला फोरम ने सर्वेयर द्वारा आकलित क्षतिपूर्ति की धनराशि रू. 1,17,426.00 मय ब्याज के भुगतान हेतु निर्देशित किया है और रू. 3000/- वाद व्यय दिलाया है इसमें कोई त्रुटि नहीं है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सिन्डीकेट बैंक द्वारा दाखिल अपील में कोई बल नहीं है और यह अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त करते हुए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या 135/02 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.08.2008 सम्पुष्ट किया जाता है।
अपीलार्थी सिण्डीकेट बैंक इस अपील के व्यय के रुप में प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को 5000.00 (पांच हजार) रू0 अलग से अदा करेगा।
इस निर्णय की प्रति उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाय।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (आर0पी0 सिंह)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट- 2
(S.K.Srivastav,PA-2)