RAMAVTAR KHANDELWAL filed a consumer case on 04 Jul 2014 against MODEL GROUP GRIH NIRMAN SAMITI in the Jaipur-I Consumer Court. The case no is CC/748/2008 and the judgment uploaded on 27 May 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर प्रथम, जयपुर
समक्ष: श्री राकेश कुमार माथुर - अध्यक्ष
श्री ओमप्रकाश राजौरिया - सदस्य
परिवाद सॅंख्या: 748/2008
रामावतार खण्डेलवाल पुत्र श्री जानकी लाल जी, उम्र 77 वर्ष, जाति महाजन, निवासी 2/5, खण्डेलवाल टावर, अम्बाबाड़ी, जयपुर Û
परिवादी
ं बनाम
1. राजस्थान राज्य सहकारी आवास संघ लिमिटेड, पांचवा-छठा तल, नेहरू सहकार भवन, 22 गोदाम सर्किल, जयपुर 5 जरिए मैनेजिंग डायरेक्टर Û
2. रामावतार शाह, अध्यक्ष, माॅडल ग्रुप गृह निर्माण सहकारी समिति लि0, ए-16, सुभाष नगर, शास्त्री नगर, जयपुर Û
विपक्षी
अधिवक्तागण :-
श्री बाबूलाल गुप्ता - परिवादी
श्री सुनील जोशी - विपक्षी संख्या 2
परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक: 14.07.08
आदेश दिनांक: 28.04.2015
परिवाद में अंकित तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी सॅंख्या 2 माॅडल गृह निर्माण सहकारी समिति लिमिटेड से एक आवासीय मकान योजना खण्डेलवाल टावर, विद्याधर नगर योजना में मकान हेतु आवेदन किया गया था जिसके तहत विपक्षी द्वारा परिवादी को एक फ्लेट सॅंख्या 2/5, खण्डेलवाल टावर, सेक्टर नंबर 1, विद्याधर नगर, जयपुर में आवंटित किया गया जिस पर परिवादी द्वारा दिनांक 09.08.88 को अमानत स्वरूप 28,600/- रूपए जरिए ड्राफ्ट 02.08.88 को भुगतान किया गया । 12 जुलाई 1990 को परिवादी द्वारा राशि जमा कराने का प्रमाण जारी किया गया । विपक्षी सॅंख्या 2 ने राजस्थान स्टेट को-आॅपरेटिव हाऊसिंग फायनेन्स सोसायटी लिमिटेड, जयपुर के यहां दिनांक 04.04.89 को ऋण राशि हेतु आवेदन किया जिस पर आठ प्लाॅट्स के सम्बन्ध में 9,47,000/- रूपए विपक्षी सॅंख्या 2 को स्वीकृत किए गए । परिवादी के प्लाॅट पर 1,25,000/- रूपए की राशि स्वीकृत की गई । उक्त ऋण राशि लेते समय विपक्षी सॅंख्या 2 द्वारा स्वामित्व के अधिकार संबंधी मूल दस्तावेजात जमा कराए गए । परिवादी को उक्त राशि में से 10 प्रतिशत कम कर के 1,12,500/- रूपए ही मिले तथा ऋण का भुगतान 5000/- रूपए की त्रैमासिक किश्तों में 20 वर्ष तक करना तय किया गया । परिवादी का कथन है कि राशि की किश्तों का भुगतान समयानुसार किया गया तथा अंतिम किश्त एवं सम्पूर्ण राशि का भुगतान विपक्षी सॅंख्या 1 को दिनांक 05.10.2002 जरिए रसीद सॅंख्या 345 कर दिया गया एवं परिवादी के पेटे विपक्षी सॅंख्या 1 में कोई राशि बकाया नहीं रही । परिवादी का कथन है कि ऋण की राशि का भुगतान दिनांक 05.10.2002 को कर दिए जाने पर भी विपक्षी सॅंख्या 1 के पास जो फ्लेट के स्वामित्व के मूल दस्तावेजात थे वह बार-बार मांगे जाने पर भी विपक्षी सॅंख्या 1 ने नहीं लौटाए । परिवादी का कथन है कि दिनांक 11.11.2002 को विपक्षी सॅंख्या 1 को इस संबंध में पत्र दिया गया तथा विपक्षी सॅंख्या 2 को भी दिनांक 20.10.2002 को पत्र दिया गया जिस पर उसने विपक्षी सॅंख्या 1 को आदेश दिया कि वह मूल दस्तावेजात एव ंनो ड्यूज प्रमाण -पत्र परिवादी को दे परन्तु इसकी भी पालना विपक्षी सॅंख्या 1 ने नहीं की । दिनांक 15.04.2004 को रजिस्टर्ड नोटिस विपक्षीगण को दिया गया और दिनांक 28.05.2008 को भी रजिस्टर्ड नोटिस दिया गया परन्तु कागजात परिवादी को नहीं लौटाए गए । परिवादी का कथन है कि सम्पूर्ण राशि का भुगतान हो जाने के बाद भी परिवादी को मकान के मूल दस्तावेजात नहीं लौटाकर विपक्षी सॅंख्या 1 ने सेवादोष कारित किया है जिससे उसे घोर मानसिक हैरानी परेशानी हुई है । ऐसी स्थिति में परिवादी ने प्लाॅट के मूल दस्तावेजात, ऋण राशि पर दिनांक 5.10.2002 से अदायगी तक 14 प्रतिशत की दर से ब्याज, काटी गई राशि 12500/- रूपए व अधिक वसूली गई राशि 343/- रूपए 14 प्रतिशत ब्याज सहित, क्षतिपूति, मानसिक हैरानी-परेशानी, परिवाद व्यय एवं एडवोकेट फीस सहित कुल 3,49,843/- रूपए दिलवाए जाने का निवेदन किया गया है ।
विपक्षी सॅंख्या 1 की ओर से परिवाद का कोई जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया है ।
विपक्षी सॅंख्या 2 की ओर से इस आशय का जवाब प्रस्तुत किया गया है कि रामावतार खण्डेलवाल एक डिफाल्टर सदस्य है जिस पर लगभग 50,000/- रूपए रखरखाव शुल्क व पेनल्टी बकाया है । परिवादी ने माॅडल ग्रुप गृह नि.स. समिति लि0 में कोई राशि जमा नहीं करवाई है । विपक्षी सॅंख्या 2 ने परिवादी ने कोई सेवा प्राप्त नहीं की है । विपक्षी संख्या 2 को निजी हैसियत से कोई राशि ना तो दी गई है और ना ही कोई रसीद जारी की गई है । विपक्षी का कािन है कि किसी भी व्यक्ति को प्लाॅट आवंटित नहीं किया गया है बल्कि माॅडल ग्रुप गृह नि.स. समिति लि0 द्वारा अपने सदस्यों को फ्लेट्स का निर्माण कर आवंटिन किया गया जिसमें विपक्षी सॅंख्या 2 को भी 1 फ्लेट आवंटित हुआ है तथा विपक्षी स्वयं भी अपनी किश्तों की राशि लगातार जमा कराता आ रहा है । परिवादी द्वारा भेजे गए नोटिस का जवाब दिया जाना विपक्षी द्वारा जवाब परिवाद में अंकित किया गया है । इस प्रकार के तथ्य एवं अन्य तथ्य अंकित करते हुए परिवाद खारिज किए जाने का निवेदन किया गया है ।
मंच द्वारा परिवादी व विपक्षी संख्या 2 के अधिवक्ता की बहस सुनी गई एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
इस प्रकरण में परिवादी ने विपक्षी से प्रश्नगत प्लाॅट के समस्त स्वामित्व सम्बन्धित मूल दस्तावेजात एवं नो - ड्यूज प्रमाण-पत्र हेतु यह परिवाद दायर किया है । विपक्षी की ओर से प्राथमिक आपत्ति यह उठाई गई है कि यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अधीन निर्धारित समयावधि के पश्चात दायर किया गया है । इस सम्बन्ध में स्वयं परिवादी के अभिकथन महत्वपूर्ण हो जाते हैं । परिवादी ने अपने परिवाद के चरण सॅंख्या 9 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि उक्त रजिस्ट्रार सहकारी समिति, जयपुर द्वारा दिनांक 31.03.03 के आदेश से विपक्षी सॅंख्या 2 को निर्देशित किया था कि वह परिवादी को मूल दस्तावेजात व नो-ड्यूज प्रमाण-पत्र जारी करे । अत: इस तथ्य से स्पष्ट है कि परिवादी को दिनांक 31.03.03 को ही वादकरण उत्पन्न हो गया था बल्कि उससे पूर्व दिनांक 05.10.2002 से ही परिवादी को यह परिवाद दायर करने का वादकरण उत्पन्न हो चुका था क्योंकि परिवादी ने दिनांक 05.10.2002 को ही प्रश्नगत फ्लेट की समस्त राशि विपक्षी को जमा करवा दी थी । विपक्षी द्वारा उठाई गई आपत्ति का कोई सुसंगत जवाब परिवादी की ओर से नहीं दिया गया है और ना ही विलम्ब माफ करवाने हेतु कोई प्रार्थना-पत्र ही प्रस्तुत किया गया है । अत: इस समस्त विवेचन के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि यह परिवाद वादकरण उत्पन्न होने के बाद 2 साल की अवधि बीत जाने के पश्चात दिनांक 14.07.2008 को प्रस्तुत किया गया है जो स्पष्टत: अवधि बाधित है ।
अत:उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवादी का यह परिवाद चलने योग्य नहीं है । अत: ,खारिज किया जाता है । प्रकरण का खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेंगे ।
निर्णय आज दिनांक 28.04.2015 को लिखाकर सुनाया गया।
( ओ.पी.राजौरिया ) (राकेश कुमार माथुर)
सदस्य अध्यक्ष
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