Premchand Vijayvargiy filed a consumer case on 22 Jan 2016 against Mittal Palace, Prop. Himanshu Mittal in the Kota Consumer Court. The case no is CC/136/2014 and the judgment uploaded on 27 Jan 2016.
प्रेमचंद विजयवर्गीय बनाम मित्तल पैलेस, कोटा आदि।
परिवाद संख्या 136/2014
22.01.2016 दोनों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी का संक्षेप में यह दोष बताया है कि पुत्री के विवाह दिनांक 10.12.13 के आयोजन हेतु उनका स्थल बुक किया गया था, जिसके साई पेटे 50000/-रूपये चैक से 27.04.13 को दिये गये थे। उस समय यह भी तय हुआ था कि विवाह की तिथि में परिवर्तन की सूचना एक माह पूर्व देने पर उक्त राशि समायोजित हो जायेगी उसके बाद देने पर साई राशि में से 10 प्रतिशत की कटोती कर शेष राशि लोटा दी जावेगी। वर पक्ष के प्रस्ताव पर विवाह की तिथि 10.12.13 के बजाय 04.02.14 तय की गई जिसकी सूचना विपक्षी को दी गई लेकिन विपक्षी ने साई पेटे दी गई राशि का समायोजन करने व 04.02.14 की बुकिंग करने से इंकार कर दिया। अग्रिम ली गई राशि 50000/-रूपये भी नहीं लोैटाई। विपक्षी को लीगल नोटिस भेजा गया तो भी भुगतान नहीं किया इससे परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ है।
विपक्षी के जवाब का सार है कि परिवाद झूंठा प्रस्तुत किया है। अनुबंध की शर्तो को छिपाया हैै, रसीद में सशर्त रिफन्ड अंकित है। विवाह की तिथि में परिवर्तन होने पर अग्रिम राशि के समायोजन या लौटाने का कोई करार नहीं हुआ। विपक्षी अन्य किसी की बुकिंग नहीं ले सकता था इसलिये अग्रिम बुकिंग राशि लौटाने की कोई शर्त ही नहीं थी क्योंकि उससे विपक्षी को आर्थिक नुकसान होता। यह भी आपत्ति ली गई है कि विवाद जटिल प्रकृति का है जो साक्ष्य से ही तय हो सकता है। सेवा में कोई कमी नहीं की गई है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा हेमराज सिंह हाड़ा व शिव प्रसाद महाजन के शपथ-पत्र प्रस्तुत किये हैं। उसके अतिरिक्त हस्तलिखित पर्चा, बैंक पास-बुक, विपक्षी को प्रेषित लीगल नोटिस, पोस्टल रसीद आदि की प्रतियां प्रस्तुत की हैैं।
विपक्षी ने साक्ष्य मंे मानसु मिततल का शपथ-पत्र पेश किया है। अन्य कोई दस्तावेज पेश नहीं किया है।
हमने विचार किया।
इस बारे में विवाद नहीं है कि परिवादी ने विपक्षी का विवाह-स्थल दिनांक 9 व 10 दिसम्बर 2013 के लिये बुक किया था जिसके अग्रिम साई पेटे 50000/-रूपये जर्ये चेक दिनांक 27.04.13 को अदा किये थे।
परिवादी यह केस लेकर आया है कि यह भी करार हुआ था कि विवाह तिथि में परिवर्तन की सूचना एक माह पूर्व देने पर अग्रिम राशि का समायोजन कर लिया जावेगा तथा एक माह से कम की अवधि में सूचना देने पर अग्रिम राशि में से 10 प्रतिशत की कटौती की जायेगी, लेकिन इसकी पुष्टि हेतु परिवादी ने कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है, केवल अपना शपथ-पत्र प्रस्तुत किया है। समर्थन में दो अन्य शपथ-पत्र साक्ष्य में प्रस्तुत किये हैं लेकिन उक्त प्रकृति के करार का उल्लेख उनके शपथ-पत्र में नहीं है। इसके विपरीत विपक्षी ने उक्त केस का खण्डन किया है तथा उसने यह केस रखा है कि परिवादी को जो रसीद दी गई उस पर शर्तें अंकित हैं जो परिवादी ने प्रस्तुत नहीं की है उस रसीद पर राशि सशर्त रिफन्ड होने की शर्त भी अंकित है। विपक्षी का यह भी केस है कि तिथि परिवर्तन होने पर अग्रिम राशि वापस करने से आर्थिक नुकसान होता है क्योकि अन्य बुकिंग नहीं की जा सकती।
हम पाते हैं कि परिवादी यह सिद्ध नहीं कर सका है कि बुकिंग की तिथि परिवर्तन होने पर अग्रिम राशि समायोजित होने या उसमें से कुछ कटौती करने का अनुबंध हुआ था। यदि एक क्षण के लिये परिवादी की इस संबंध में कहानी को सही मान भी लिया जावे तो परिवादी ने ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुत नहंीं किया है कि विवाह तिथि 10.12.13 से एक माह पूर्व परिवर्तन की सूचना विपक्षी को दी गई थी, इस संबंध मंे केवल अस्पष्ट कथन है, शपथ-पत्रों में भी यह खुलासा नहीं किया गया है कि तिथि परिवर्तन की सूचना या बातचीत विपक्षी से कब हुई? विपक्षी को जो नोटिस दिया गया है वह 09.12.13 अर्थात बुकिंग की तिथि को ही दिया गया है। यह सही है कि विवाह-स्थल की परिवादी से बुकिंग कर लेने व अग्रिम राशि प्राप्त कर लेने के पश्चात् विपक्षी अन्य किसी से बुकिंग नहीं कर सकता था। जहां तक अग्रिम प्राप्त राशि के रिफन्ड का प्रश्न है विपक्षी ने भी हमारे समक्ष वह शर्त या रसीद की प्रति प्रस्तुत नहीं की है जिसमें सशर्त रिफन्ड होने का उल्लेख बताया गया है। इस प्रकार हम पाते हैं कि दोनों पक्ष स्वच्छ हाथों से नहीं आये है इसलिये न्याय-हित में यह उचित है कि दोनों पक्ष बराबर के दोषी होने के कारण नुकसान को बराबर भुगतें ।
अतः यद्यपि विपक्षी का कोई सेवा-दोष सिद्ध नहीं है तथापि अग्रिम प्राप्त राशि के लौटाने के संबंध में खुलासा नहीं करने की परिस्थिति में न्यायहित में विपक्षी को निर्देश दिये जाते हैं कि परिवादी को अग्रिम प्राप्त राशि 50000/-रूपये में से दो माह में 25000/-रूपये लौटाये जावें।
पक्षकार अपना-अपना खर्चा वहन करेंगे।
आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
(हेमलता भार्गव) (महावीर तॅंवर) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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