राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१०४९/२०११
(जिला मंच (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२६४/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०५-२०११ के विरूद्ध)
केनरा बैंक, ब्रान्च कमला नगर, जिला आगरा, यू.पी., द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
.............. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
१. श्रीमती मिथलेश मित्तल पत्नी राजेश कुमार अग्रवाल, निवासी डी-५७२, कमला नगर, न्यू आगरा।
२. शेखर अग्रवाल पुत्र राजेश कुमार अग्रवाल, निवासी डी-५७२, कमला नगर, न्यू आगरा।
............... प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री एस0एम0 रॉयकवार विद्वान अधिवक्ता
के सहयोगी श्री राघवेन्द्र सिंह।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : १६-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला मंच (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२६४/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०५-२०११ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थीगण के कथनानुसार उनका अपीलार्थी बैंक में लॉकर सं0-२५४ था। इस लॉकर में प्रत्यर्थीगण के जेबरात, सोने के सिक्के आदि रखे थे, जिनकी कीमत १८,९६,०००/- रू० थी। दिनांक १३-११-२००७ को अमर उजाला समाचार पत्र में यह समाचार प्रकाशित हुआ कि अज्ञात चोरों ने पड़ोस के खाली प्लाट में सुरंग बना कर बैंक के लॉकर रूम में घुसने का प्रयास किया है। समाचार पत्र की इस सूचना के आधार पर प्रत्यर्थीगण अपना लॉकर संचालित करने बैंक गये, जिससे यह सुनिश्चित कर सकें कि उनका कोई
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नुकसान तो नहीं हुआ, किन्तु बैंक के अधिकारियों ने उन्हें लॉकर संचालित नहीं करने दिया और कहा कि लॉकर रूम में सब कुछ ठीक है, किसी सम्पत्ति का कोई नुकसान नहीं हुआ है। यह भी कहा कि लॉकर रूम में फर्श की मरम्मत का कार्य चल रहा है। दिनांक १९-११-२००७ को प्रत्यर्थीगण पुन: लॉकर संचालित करने गये तो पाया कि उन्होंने लॉकर में जो अपना ताला लगा रखा था, वह गायब था तथा लॉक की Latch भी गायब थी। लॉकर पर बाहर की तरफ ढक्कन रखा था, बैंक के कर्मचारी वर्मा जी ने जैसे ही अपनी चाबी लॉकर में लगायी तो लॉकर का दरवाजा बाहर आ गया। लॉकर पूर्ण रूप से खाली था तब प्रत्यर्थीगण ने लॉकर टूटे होने तथा लॉकर में जेबरात के गायब होने की शिकायत अपीलार्थी बैंक के अधिकारियों से की तो उन्होंने प्रत्यर्थीगण के साथ दुर्व्यवहार किया। दिनांक २४-११-२००७ को बंग्लौर से अपीलार्थी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी आये, उन्होंने प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को बुलाया तथा आश्वासन दिया कि घटना को बैंक के चेयरमेन के संज्ञान में लाया जायेगा और प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के साथ न्याय किया जायेगा, किन्तु बाद में अपीलार्थी द्वारा यह कहना शुरू कर दिया कि लॉकर रूम तक चोर नहीं पहुँचे तथा लॉकर टूटा नहीं था, पूर्व हालत में था और प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण का कोई नुकसान नहीं हुआ। चोरी के प्रयास की घटना के सम्बन्ध में अपीलार्थी बैंक के मैनेजर द्वारा थाने में रिपोर्ट दिनांक १३-११-२००७ को लिखायी गयी।
अपीलार्थी बैंक की ओर से दिनांक १३-११-२००७ को प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण द्वारा लॉकर संचालित करने के लिए आने के तथ्य को अस्वीकार किया गया है, किन्तु अपीलार्थी का यह कथन है कि दिनांक १९-११-२००७ को प्रत्यर्थीगण लॉकर संचालित करने के लिए आये थे और उन्होंने लॉकर संचालित किया था, तभी लॉकर टूटा होने की शिकायत की थी तथा उसमें रखे सामान के गायब होने की शिकायत की। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि छानबीन करने पर यह पाया गया कि बैंक के समीप एक छोटा सा गड्ढा पाया गया था, जिसमें बाद में सुरंग बनाकर भविष्य में बैंक तक पहुँचा जा सके। उपरोक्त गड्ढा व सुरंग इतनी पतली थी कि उसमें मानव प्रवेश सम्भव नहीं था और न ही सुरंग की पहुँच बैंक के परिसर
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तक थी।
विद्वान जिला मंच ने प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के परिवादी को स्वीकार करते हुए अपीलार्थी बैंक को निर्देशित किया कि निर्णय की तिथि से ४५ दिन में प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को १८,९६,८१२/- रू० मय ०६ प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक अदा करें। यह भी आदेशित किया गया कि प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण अपीलार्थी बैंक से वाद व्यय के रूप में ५,०००/- रू० बसूल पा सकेंगे।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थी बैंक की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0एम0 रॉयकवार की सहयोगी श्री राघवेन्द्र सिंह तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता के तर्क सुने। पत्रावली का अवलोकन किया।
अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत मामले से सम्बन्धित तथ्यों एवं विधिक स्थिति का सही विश्लेषण न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी बैंक तथा प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के मध्य सेवादाता तथा उपभोक्ता का सम्बन्ध नहीं था, बल्कि लैसर व लैसी का सम्बन्ध था। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को अपीलार्थी बैंक का उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी बैंक तथा प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के मध्य हुए इकरारनामे की शर्तों के अनुसार अपीलार्थी बैंक को प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के लॉकर में कथित रूप से रखी वस्तुओं की हुई क्षति की प्रतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं माना जा सकता। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण द्वारा कथित घटना के सन्दर्भ में लिखाई गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट के सम्बन्ध में पुलिस द्वारा विवेचना की गयी। पुलिस द्वारा अन्तिम आख्या प्रेषित की गयी। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत मामले में विवाद दीवानी प्रकृति का है। लॉकर के कथित रूप से टूटने एवं उसमें रखी कथित वस्तुओं के सन्दर्भ में क्षतिपूर्ति के उत्तरदायित्व के निस्तारण से सम्बन्धित जटिल प्रश्नगत निहित हैं, जिनका निस्तारण विस्तृत परीक्षण द्वारा ही किया जा सकता है, संक्षिप्त
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परीक्षण द्वारा इन विवादों का निस्तारण सम्भव नहीं है। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने कोर्ट फीस की अदायगी से बचने के लिए दीवानी न्यायालय में वाद योजित न करके उपभोक्ता मंच में परिवाद योजित किया है। अधिवक्ता अपीलार्थी ने अपने उपरोक्त तर्क के सन्दर्भ में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रथम अपील सं0-१८१ व १८२ सन् १९९४ यूको बैंक बनाम आर0जी0 श्रीवास्तव, १९९५ १९९९(१) सीपीआर ९७ के मामले में दिये गये निर्णय दिनांक ०६-११-१९९५ पर विश्वास व्यक्त किया।
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि निर्विवाद रूप से अपीलार्थी बैंक ने प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को संचालन हेतु हेतु लॉकर सं0-२५४ आबंटित किया। इस लॉकर के संचालन हेतु प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण से अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रतिफल प्राप्त किया जा रहा है। अपीलार्थी बैंक द्वारा लॉकर के संचालन की सेवा प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को प्रदान की जा रही है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-१९८६ की धारा-२(१)(डी) एवं २(१)(0) के अन्तर्गत प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण, अपीलार्थी बैंक के उपभोक्ता हैं। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी बैंक का यह दायित्व है कि लॉकर की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी की व्यवस्था की जाय। यदि अपीलार्थी बैंक लॉकर की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी सुनिश्चित नहीं करता तब असुरक्षित लॉकर के कारण लॉकर में रखी वस्तुओं के क्षतिग्रस्त अथवा गायब हो जाने पर अपीलार्थी बैंक को क्षतिपूर्ति के उत्तरदायित्व से मुक्त होना नहीं माना जा सकता। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को आबंटित लॉकर का दिनांक १९-११-२००७ को अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों की उपस्थिति में संचालन के समय ताला टूटा पाया गया।
उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी बैंक के कथनानुसार बैंक परिसर के बगल के प्लाट में दिनांक १२-११-२००७ को एक गड्ढा व सुरंग खोदी गयी तथा सुरंग के रास्ते चोरों ने लॉकर रूम में घुसने का प्रयास किया, किन्तु यह सुरंग इतनी सकरी थी कि चोर अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाये तथा बैंक व किसी उपभोक्ता का
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कोई नुकसान नहीं हुआ। इस सन्दर्भ में अपीलार्थी बैंक द्वारा दिनांक १३-११-२००७ को सम्बन्घित थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थी बैंक के इस कथन को अस्वीकार करते हुए यह निर्णीत किया कि इस सुरंग के रास्ते चोर लॉकर रूम तक पहुँचे। स्वाभाविक रूप से विद्वान जिला मंच ने अज्ञात चोरों द्वारा प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के लॉकर का ताला तोड़ा जाना मानते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, किन्तु परिवाद के अभिकथनों से यह विदित होता है कि स्वयं प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण का यह कथन नहीं है कि सुरंग के रास्ते चोरों द्वारा उनका लॉकर तोड़ा गया, बल्कि परिवाद के अभिकथनों में प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने अपने लॉकर का ताला तोड़े जाने की घटना में अपीलार्थी बैंक के अधिकारी विपक्षी सं0-३, ४ एवं ५ की संलिप्तता बतायी है। परिवाद की धारा-२० में परिवादीगण द्वारा यह स्पष्ट रूप से अभिलिखित किया गया है कि उनके लॉकर से सामान लुटेरों द्वारा नहीं लूटा गया, बल्कि बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों की संलिप्तता एवं षड़यन्त्र से यह सामान गायब हुआ। परिवादी की धारा-२१ में परिवादीगण द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि कथित घटना के बाद दिनांक २३-१२-२००७ को पुलिस ने बैंक के अधिकारीगण एवं परिवादीगण की उपस्थिति में बैंक के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किये गये विवरण के अनुसार घटना स्थल पर अपराध को पुनर्निर्मित करते हुए गड्ढा खोदा था तथा सबकी उपस्थिति में यह पाया गया था कि कोई भी व्यक्ति उस गड्ढे में घुसकर प्रवेश नहीं कर सकता था। इस प्रकार विद्वान जिला मंच का उपरोक्त निष्कर्ष स्वयं परिवाद के अभिकथनों से से भिन्न है।
यह तथ्य भी निर्विवाद है कि कथित घटना के सन्दर्भ में प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना न्यू आगरा में दर्ज करायी थी, जो अपराध सं0-८७२/२००७ अन्तर्गत धारा ४५७/३८० भा0दं0सं0 दर्ज करायी थी। इस मामले में विवेचना के उपरान्त पुलिस द्वारा अन्तिम आख्या प्रस्तुत की गयी। यह अन्तिम आख्या अपील के साथ संलग्नक-५ के रूप में प्रस्तुत की गयी है।
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संलग्नक-५ के अवलोकन से यह विदित होता है कि विवेचना के उपरान्त विवेचनाधिकारी ने अन्तिम आख्या इस आधार पर प्रेषित की कि अभियुक्तगण तथा चोरी गये माल का कोई पता नहीं चला और न ही निकट भविष्य में पता चलने की आशा है।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने प्रथम सूचना रिपोर्ट विपक्षी सं0-३, ४ एवं ५ को नामजद करते हुए लिखाई थी। पुलिस द्वारा की गयी विवेचना से यह विदित होता है कि कथित घटना में पुलिस ने विपक्षी सं0-३, ४ एवं ५ को अभियुक्त होना नहीं पाया, किन्तु विवेचना के दौरान् विवेचनाधिकारी ने चोरी की कथित घटना के घटित होने से इन्कार नहीं किया है। किन तथ्यों के आधार पर विवेचनाधिकारी द्वारा बैंक कर्मचारियों की कथित घटना में भूमिका न मानते हुए एवं चोरी की घटना से इन्कार न करते हुए अन्तिम आख्या प्रस्तुत की गयी, इस सम्बन्ध में कोई साक्ष्य विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गयी। पुलिस द्वारा की गयी विवेचना से सम्बन्धित तथ्यों का अवलोकन भी प्रस्तुत परिवाद के सन्दर्भ में उपयुक्त हो सकता है। इस तथ्य की ओर विद्वान जिला मंच द्वारा ध्यान नहीं दिया गया और न ही पक्षकारों द्वारा इस सम्बन्ध में कोई साक्ष्य विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गयी।
हमारे विचार से प्रश्नगत मामले में यह प्रश्न कि प्रश्नगत लॉकर दिनांक १९-११-२००७ को टूटा होना पाया गया अथवा नहीं तथा लॉकर के टूटने में क्या अपीलार्थी बैंक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कोई संलिप्तता थी तथा प्रश्नगत लॉकर में क्या-क्या वस्तुऐं कथित चोरी की घटना के समय रखी हुई थीं, के निस्तारण हेतु विस्तृत विचारण आवश्यक होगा। संक्षिप्त परीक्षण के माध्यम से उपभोक्ता मंच द्वारा इन प्रश्नों का निस्तारण उपयुक्त एवं न्यायसंगत नहीं होगा। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी बैंक का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य है कि प्रस्तुत मामले में जटिल प्रश्न निहित होने के कारण वाद दीवानी न्यायालय के समक्ष पोषणीय है, उपभोक्ता मंच के समक्ष नहीं।
ऐसी परिस्थिति में हमारे विचर से अन्य बिन्दुओं पर विचार उपयुक्त नहीं
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होगा। तद्नुसार जिला मंच का प्रश्नगत आदेश अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त होने एवं प्रस्तुत अपील स्वीकार किए जाने योग्य है। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत मामले के सम्बन्ध में वाद योजित किए जाने हेतु स्वतन्त्र होंगे।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२६४/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०५-२०११ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत मामले के सम्बन्ध में वाद योजित किए जाने हेतु स्वतन्त्र होंगे।
अपीलीय व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(राज कमल गुप्ता)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.