राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
पुनरीक्षण संख्या-71/2024
श्रीमती शकीना पत्नी श्री अकबर अली
बनाम
मिश्रा हार्डवेयर एण्ड सेनेटरी वर्क्श
दिनांक: 20.08.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री अमित पाण्डेय को सुना।
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका जिला उपभोक्ता आयोग, गोण्डा द्वारा परिवाद संख्या-20/2021 श्रीमती शकीना बनाम मिश्रा हार्ड वेयर एवं सेनेटरी वर्क्श में पारित निम्न आदेश दिनांक 27.06.2024 के विरूद्ध योजित की गयी:-
''पत्रावली प्रस्तुत हुई। परिवादी द्वारा पत्रावली में संलग्न फोटो स्टेट कैश मेमों कागज स0-6/5 एवं असल रसीद दाखिल दिनांक 12-03-2024 व विपक्षी द्वारा दाखिल कागज सं0-16/2 दिनांक 11-08-2022 लिखावट का लेख विशेषज्ञ द्वारा मिलान कराये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
उक्त प्रार्थना-पत्र पर विपक्षी द्वारा आपत्ति कागज सं0-27/1 ता 27/2 प्रस्तुत करते हुए अभिकथित किया गया है कि रसीद कागज सं0-6/5 की मूल पर श्रीमती शकीना के पुत्र अशफाक के हस्ताक्षर है तथा रसीद कागज सं0-6/5 की मूल की कार्बन कापी पर अशफाक के हस्ताक्षर कार्बन रखने पर आयी है, जिसकी फोटो प्रति आपत्तिकर्ता द्वारा दाखिल की गयी है। मूल रसीद का प्रथम पृष्ठ तथा उसके नीचे की प्रति अलग-अलग छपाई के बाद जोड़कर रसीद बनायी जाती है तथा उस पर नम्बरिंग की जाती है। अलग-अलग छपाई होने के कारण कुछ भिन्नता हो सकती है। रसीद और उसकी कार्बन कापी में कोई हेर-फेर नहीं किया गया। आपत्ति में झूठा और मनगढन्त बाते अंकित की गई है। प्रार्थना-पत्र पोषणीय नहीं है और निरस्त होने योग्य है।
उभय-पक्षों को सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया है। पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी के प्रार्थना-पत्र को स्वीकार किये जाने का कोई विधिक औचित्य नहीं है। परिवादी इस तर्क को
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पत्रावली के अन्तिम सुनवाई के समय भी प्रस्तुत कर सकता है। प्रार्थना-पत्र कागज सं0-24/1 ता 24/2 निरस्त किया जाता है। पत्रावली जिरह हेतु दिनांक 27-07-2024 को प्रस्तुत हो।''
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश विधिसम्मत है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है, अतएव प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1