Uttar Pradesh

StateCommission

A/987/2024

Bank of India - Complainant(s)

Versus

Minakshi Khadi Sewa Sadan Samiti - Opp.Party(s)

Sudeesh Kumar & Ruby Chaudhary

18 Jul 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/987/2024
( Date of Filing : 11 Jul 2024 )
(Arisen out of Order Dated 09/04/2024 in Case No. CC/67/2021 of District Shamli)
 
1. Bank of India
Branch Shamli Panipat Road distt Shamli through its manager
...........Appellant(s)
Versus
1. Minakshi Khadi Sewa Sadan Samiti
Kamboj colony distt shamli through its secretary shri sanjay kumar
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 18 Jul 2024
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

(मौखिक)

अपील संख्‍या-987/2024

बैंक आफ इण्डिया

बनाम

मीनाक्षी खादी सेवा सदन समिति

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : सुश्री रूबी चौधरी,  

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 18.07.2024

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील इस न्‍यायालय के सम्‍मुख जिला उपभोक्‍ता          आयोग, शामली द्वारा परिवाद संख्‍या-67/2021 मीनाक्षी खादी सेवा सदन समिति बनाम बैंक आफ इंडिया में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.04.2024 के विरूद्ध योजित की गयी है।

मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता      सुश्री रूबी चौधरी को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी विपक्षी का ऋण खाता धारक व उपभोक्ता है। परिवादी के द्वारा सभी कानूनी दायित्वों का निर्वहन करते हुए सभी चार्जेज पूर्ण रूप से अदा करते हुए ऋण के विपरीत पर्याप्त प्रतिभूति जमा की गयी एवं सभी वैधानिक दस्तावेजों की पूर्ति की गयी। विपक्षी संविदात्मक दायित्वों की पूर्ति के लिए विधिक व आरबीआई के निर्देशों से बाध्य है। संविदात्मक दायित्वों व सेवा क्षेत्र की आर्टिफिशियल पंजीकृत बैंक होने के कारण उसको 7सी आफ सर्विसेज का पूर्ण रूप से पालन करना अनिवार्य है, जिसमें मुख्य रूप से आवश्यक सूचना  उपलब्ध

 

 

 

-2-

कराना है।

परिवादी का कथन है कि अप्रैल 2016 में सभी बैंकिंग संस्थानों में ऋणों की ब्याज पर एमसीएलआर (मार्जिनल कॉस्ट उधार रेट) दर लागू हो गयी थी, जो एक मटेरियल फैक्ट है और एक आवश्यक सूचना की श्रेणी में आता है। विपक्षी द्वारा परिवादी को एमसीएलआर रेट की सूचना नहीं दी गई और इसका उल्लंघन कर सेवा में कमी व त्रुटिपूर्ण कार्य करते हुए अनुचित व्यापार व्यवहार अपनाया गया। विपक्षी द्वारा एमसीएलआर रेट की न तो सूचना दी गयी और न ही परिवादी के ऋण खाते पर एमसीएलआर रेट लागू किये गये अपितु परिवादी के ऋण खाते पर अधिकतम ब्याज दर 13.45 प्रतिशत वार्षिक की दर से वसूला गया, जबकि विधिक रूप से विपक्षी को बैंक दर के साथ फ्लोटिंग एमसीएलआर रेट जोड़कर ब्याज अधिरोपित किया जाना था, परन्तु विपक्षी द्वारा एमसीएलआर रेट को नजरांदाज करके परिवादी से अधिक ब्‍याज वसूल किया गया, जो आरबीआई के दिशा-निर्देशों के विरूद्ध है तथा परिवादी के प्रति गंभीर दोषपूर्ण सेवा कारित की गई और अनुचित व्यापार व्यवहार करते हुए परिवादी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति पहुंचायी गयी।

परिवादी द्वारा उपरोक्‍त संबंध में दिनांक 22.03.2021 को विपक्षी को विधिक नोटिस प्रेषित किया गया, परन्‍तु विपक्षी द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया। अत: क्षुब्‍ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्‍ता   आयोग के सम्‍मुख प्रस्‍तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख विपक्षी बैंक की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया तथा मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया कि विपक्षी बैंकिंग नियमों व आरबीआई के   दिशा-निर्देशों के अनुसार ही कार्य करता है। परिवादी का यह  कथन

 

 

 

-3-

बिल्कुल असत्य है कि माह अप्रैल 2016 से ऋणों पर ब्याज हेतु एमसीएलआर रेट लागू हो गये थे, परन्तु विपक्षी द्वारा साधारण ब्याज के तौर पर 13.45 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज वसूला गया तथा सेवा में कमी की गयी, वास्तविकता यह है कि समय-समय पर संशोधित ब्‍याज दरें व अन्य नियम बेवसाईट पर प्रकाशित होते रहते हैं, जिसे विपक्षी द्वारा बैंक के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया जाता है। ग्राहक को बैंक से संशोधित ब्याज दर लागू करने की प्रार्थना बैंक से करनी होती है, जो सर्वसाधारण के लिए आमन्त्रण होता है।

परिवादी द्वारा एमसीएलआर करार व आवेदन पत्र दिनांक 01.11.2019 को दिया गया तद्‌नुसार बैंक द्वारा परिवादी के ऋण खाते में तभी से एमसीएलआर संबंधी परिवर्तन किये गये। दिनांक 24.03.2020 को परिवादी के आवेदन पर आरबीएलआर के अनुसार ब्याज दर में संशोधन कर दिया गया था। विपक्षी द्वारा बेस रेट के आधार पर बैंक व परिवादी के मध्य हुए एग्रीमेंट के आधार पर ब्याज चार्ज किया गया है। विपक्षी ने परिवादी से ऋण खाते पर एग्रीमेंट से अधिक ब्‍याज नहीं वसूला है, इसलिए विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। परिवादी के ऋण खाते पर जो बैंक द्वारा ब्याज लिया जाता है, उसमें से मात्र 4 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर परिवादी को अदा करना होता है, शेष ब्याज खादी आयोग से बैंक की अनुसंशा से वापस परिवादी के कैश क्रेडिट खाते में आ जाता है।

परिवाद असत्य व निराधार कथनों पर आधारित है और पोषणीय नहीं है। परिवादी स्वच्छ हाथों से नहीं आया है। जिला फोरम को परिवाद सुनने व निर्णीत करने का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। परिवादी कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

 

 

 

 

-4-

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्‍त अपने निर्णय में निम्‍न तथ्‍य उल्लिखित किए गए:-

''यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी की संस्था ने विपक्षी बैंक से दिनांक 08.10.2021 को कथित 15 लाख रूपये का कैश क्रेडिट ऋण के रूप में लिया था। जिसपर आरबीआई द्वारा निर्धारित एमसीएलआर के अनुसार ब्याज दर देय थी। पत्रावली पर उपलब्ध कागज सं. -12ग/8ता11 उभयपक्ष के मध्य निष्पादित अनुबन्ध में विपक्षी द्वारा प्रश्नगत ऋण पर कोई ब्याज दर अंकित नहीं की गई है। परिवादी द्वारा दिनांक 16.10.2019 को विपक्षी को दिये गये प्रार्थना पत्र 6सी/2 में यह वर्णित किया गया कि बैंक द्वारा अप्रैल, 2016 से एमसीएलआर रेट लागू हो गये हैं और बैंक द्वारा 13.45 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज वसूला जा रहा है। इस पत्र के माध्यम से परिवादी ने वसूला गया अधिक ब्याज उसके खाते में वापिस करने का अनुरोध किया है। विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र, शपथपत्र व लिखित बहस में स्पष्ट रूप से यह वर्णित किया है कि आरबीआई द्वारा समय-समय पर संशोधित ब्याज दरें व नियम बैंक की वेबसाईट पर प्रकाशित होते रहते हैं और समय-समय पर बैंक इन्हें नोटिस बोर्ड पर चस्पा करता रहता है। बैंक से संशोधित ब्याज दर लागू करने की प्रार्थना उपभोक्ता को करनी होती है, जो सर्व साधारण के लिए आमंत्रण होता है। परिवादी द्वारा एमसीएलआर करार व आवेदन पत्र दिनांक 01.11.2019 को दिया गया, तभी से बैंक द्वारा परिवादी के ऋण खाते में एमसीएलआर संबंधी परिवर्तन किये गये। अपने लिखित कथन, साक्ष्य व लिखित बहस में विपक्षी ने यह विशेष रूप से उल्लिखित किया है कि दिनांक 24.03.2020 को आरबीएलआर के अनुसार ब्याज दर में संशोधन किया गया। आरबीआई की अधिकृत वेबसाइट पर एमसीएलआर रेट को देखा गया। दिनांक 01.04.2016 से 15.02.2024  तक  आरबीआई  का

 

 

 

-5-

एमसीएलआर रेट 13.45 प्रतिशत नहीं रहा है। आरबीआई के सर्ककुलर सं. - आरबीआई/2014-15/42-डीबीआर लेज नं.-बीसी 64/09.07.005/2014-15 दिनांकित 22.01.2015 में सभी शैड्यूल्ड कामर्शियल बैंकों को एमसीएलआर दर के संबंध में निर्देशित किया गया था कि समस्त बैंक स्पष्ट संक्षिप्त एवं एक पेज में की-फैक्ट स्टेटमेंट/फैक्टशीट, जो इस सर्कुलर के एनेक्जर में वर्णित है, के अनुसार बैंक व्यक्तिगत रूप से सभी ऋणियों को ऋण की प्रक्रिया एवं एमसीएलआर के हर स्तर एवं नियम व शर्तों में होने वाले किसी भी बदलाव के संबंध सूचित करेंगे तथा इसी के साथ ऋणी के साथ हुए ऋण करार में भी समरी कॉलम में वर्णित करेंगे। उक्त सर्कुलर दिनांक 01.04.2015 से लागू किया गया था। विपक्षी ने ऋण अनुबन्ध पर एमसीएलआर की कोई ब्याज दर निर्धारित कर अंकित नहीं की है और समरी कॉलम में भी कोई ब्याज दर अंकित नहीं की गई है। इससे स्पष्ट है कि विपक्षी के पास ब्‍याज दर के संबंध में कोई स्पष्ट नीति नहीं थी और विपक्षी आरबीआई द्वारा एमसीएलआर के संबंध में दिये गये निर्देशों की अवहेलना करते हुए ग्राहकों से मनमाने व निरंकुश रूप से ऋणों पर ब्याज दर वसूल कर रहा था। जो अनुचित व्यापार व्यवहार की श्रेणी में आता है। विपक्षी की विधिक जिम्मेदारी थी कि वह आरबीआई के निर्देशानुसार एमसीएलआर ब्याज दर में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन के संबंध में परिवादी को व्यक्तिगत रूप से सूचित करता। विपक्षी ने उपरोक्तानुसार ब्याज दर के संबंध में परिवादी को सूचित करने का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। इस प्रकार विपक्षी ने परिवादी को प्रश्नगत ब्याज दर के संबंध में सूचित नहीं करके एवं मनमाने रूप से 13.45 प्रशिशत वार्षिक ब्याज दर वसूल करके अनुचित लाभ कमाया और सेवा में कमी की है। विपक्षी के इस कृत्य से परिवादी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति पहुंची है। जिसके लिए विपक्षी जिम्मेदार है।''

 

 

 

-6-

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में विभिन्‍न न्‍यायिक दृष्‍टान्‍तों का उल्‍लेख किया गया तथा निष्‍कर्ष दिया गया कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से ऋण पर अधिक ब्याज दर वसूलकर तथा परिवादी के साथ किये गये ऋण अनुबन्ध पत्र पर ब्याज दर अंकित नहीं करके व नियमानुसार परिवर्तित ब्याज दरों की सूचना परिवादी को नहीं देकर सेवा में कमी व अनुचित व्यापार व्यवहार किया गया, जिससे परिवादी को शारीरिक, मानसिक च आर्थिक क्षति पहुँची, जिसके लिए विपक्षी पूर्ण रूप से उत्तरदायी है।

तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

''परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु अंकन-7,00,000 (सात लाख) रूपये और परिवाद व्यय अंकन 10,000 (दस हजार) रूपये भुगतान किये जाने हेतु आयोग में जमा करे। विपक्षी द्वारा किये गये अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए उसे अंकन-2,00,000 (दो लाख) रूपये के अर्थदंड से दण्डित किया जाता है। अर्थदंड की धनराशि परिवादी को देय नहीं होगी अपितु नियमानुसार राजकोष में जमा की जायेगी। विपक्षी को यह भी निर्देश दिया जाता है कि ग्राहकों के ऋण के संबंध में विपक्षी वर्ष 2016 से अध्यतन दिये गये ऋणों पर एमसीएलआर ब्याज दर के निर्धारण व परिवर्तन एवं वसूली की सूचना सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करे और प्रकाशन की एक प्रति इस आयोग को उपलब्ध कराये। विपक्षी आदेश का अनुपालन 45 दिन के अंदर किया जाना सुनिश्चित करे अन्यथा विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-71 व 72 के अन्तर्गत कार्यवाही की जायेगी।''

अपीलार्थी की विद्वान  अधिवक्‍ता  को  सुनने  तथा  समस्‍त           

 

 

 

-7-

तथ्‍यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्‍ता            आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण  करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता                आयोग द्वारा समस्‍त तथ्‍यों का सम्‍यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्‍त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया, जिसमें हस्‍तक्षेप हेतु पर्याप्‍त आधार नहीं हैं।

तदनुसार प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित सम्‍बन्धित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

     (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

अध्‍यक्ष

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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