जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 40/2016
बंषीधर पारीक पुत्र श्री भगवानाराम, जाति-ब्राह्मण, निवासी-रोल, तहसील-जायल, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. प्रबन्धक-डपबतवउंग भ्.410ए त्ंउमेी डंतहए ब्.ैबीमउमए श्रंपचनतए त्ंरण्302001
2. प्रबन्धक/अधिकृत प्रतिनिधि- पंकज टेलीकाॅम, मैन मार्केट, रोल, तहसील-जायल, जिला-नागौर।
3. प्रबन्धक/अधिकृत प्रतिनिधि- एम/एस हेल्पिंग हेण्ड सर्विसेज, पंवार एजेन्सी के पीछे, पुराने बस स्टेण्ड के पास, दिल्ली दरवाजा, नागौर, तहसील व जिला-नागौर।
4. अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, प्लाट नं. 21/14, ब्लाॅक ए नेरेना, इण्डस्ट्रीयल एरिया फैस सेकेण्ड, नई दिल्ली-110028
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री विमलेष प्रकाष जोषी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 17.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से, अप्रार्थी संख्या 1 माइक्रोमेक्स कम्पनी द्वारा निर्मित एक मोबाइल हेण्डसेट माॅडल एमटी 500 (आईएमईआई नम्बर 911347850709679) दिनांक 17.07.2015 को जरिये बिल संख्या 267, दिनांक 17.07.2015 को नकद राषि 7,200/- रूपये देकर खरीद किया। जिस पर अप्रार्थीगण की ओर एक वर्श की वारंटी दी गई तथा खरीद के वक्त कहा गया कि इस अवधि में मोबाइल में किसी भी प्रकार की निर्माण सम्बन्धी त्रुटि, खराबी या अन्य समस्या उत्पन होने पर रिपेयर किया जाएगा तथा ठीक नहीं होने पर बदलकर दिया जाएगा। उक्त मोबाइल परिवादी की ओर से खरीद किये जाने के कुछ ही दिनों में खराब हो गया। कभी उसमें आवाज आना बंद हो गई तो कभी रिंग नहीं बजती। कभी डिस्प्ले अपने आप ही आॅन आॅफ हो जाता तथा उसमें सारे डाटा के अक्षर आधे ही आते व नीचे से कटे हुए नजर आते। मोबाइल में कोई मैसेज भी नहीं दिखता। इस पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 को षिकायत की तो उसने बताया कि उक्त मोबाइल का सर्विस सेंटर नागौर में स्थित है। इसलिए आप मोबाइल लेकर नागौर स्थित सर्विस सेंटर चले जाओ, वहां आपको मोबाइल रिपेयर करके दे दिया जाएगा। इस पर परिवादी ने अपनी वृद्धावस्था के बारे में बताते हुए कहा कि मैं वृद्ध व्यक्ति हूं और मैंने मोबाइल आप से खरीद किया है, इसलिए आप ही इसे तैयार करवाओ। मगर अप्रार्थी संख्या 2 ने पल्ला झाडते हुए कहा कि हमारी गांरटी मोबाइल बेचने तक की होती है आगे कम्पनी का सर्विस सेंटर है, वहां जाओ और मोबाइल रिपेयर करवाओ।
इस पर परिवादी मजबूरीवष दिनांक 30.11.2015 को नागौर स्थित अप्रार्थी संख्या 3 सर्विस सेंटर पर मोबाइल लेकर आया। जहां पर सर्विस सेंटर वालों ने मोबाइल ले लिया तथा पन्द्रह दिन बाद आने का कहा। पन्द्रह दिन परिवादी फिर गांव से नागौर स्थित सर्विस सेंटर पर आया तो उसे फिर से सात दिन का टाइम दे दिया। सात दिन पष्चात् परिवादी वापस आया तो अप्रार्थी संख्या 3 ने मोबाइल लौटाते हुए कहा कि अब मोबाइल ठीक है। लेकिन दो-तीन दिन में मोबाइल वापस खराब हो गया। तो परिवादी दिनांक 30.12.2015 को फिर अप्रार्थी संख्या 3 के पास गया तो उसने कहा कि इसमें जो खराबी है वो ठीक नहीं हो रही, इसलिए कम्पनी से दूसरा मोबाइल मंगवा देते हैं। इसके बाद भी परिवादी लगातार अप्रार्थी संख्या 3 के यहां चक्कर काटता रहा लेकिन आज तक न तो दूसरा मोबाइल मंगवाया और न ही उक्त मोबाइल को रिपेयर किया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर टेªड प्रेक्टिस की परिभाशा में आता है। अतः परिवादी को मोबाइल की कीमत 7,200/- मय 24 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज के दिलाये जावे। इसके अलावा परिवाद में अंकितानुसार अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 व 2 बावजूद तामिल उपस्थित नहीं आये तथा न ही कोई जवाब पेष हुआ।
3. अप्रार्थी संख्या 3 व 4 की ओर से परिवादी द्वारा 7,200/- का मोबाइल जरिये बिल खरीदा जाना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि जब तक मोबाइल में कोई विनिर्माण सम्बन्धी दोश साबित नहीं कर दिया जाता और वारंटी नियमों की पालना उपभोक्ता द्वारा नहीं की जाती तब तक परिवादी किसी प्रकार का अनुतोश प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। यह भी बताया गया है कि मोबाइल में विनिर्माण सम्बन्धी कोई दोश नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
4. बहस सुनी गई। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही मोबाइल क्रय करने का बिल प्रदर्ष 1 तथा रिपेयरिंग बाबत् जाॅब कार्ड क्रमषः प्रदर्ष 2 व 3 भी पेष किये गये। यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 पंकज टेलीकाॅम से माइक्रोमेक्स कम्पनी का एक मोबाइल 7,200/- रूपये में दिनांक 17.07.2015 को क्रय किया था, जिसका बिल प्रदर्ष 1 है तथा अप्रार्थी संख्या 3 कम्पनी का अधिकृत सर्विस सेंटर रहा है। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता रहा है एवं प्रार्थी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में आता है।
5. परिवादी की ओर से अपने परिवाद में स्पश्ट किया गया है कि उसके द्वारा क्रय किया गया मोबाइल वारंटी अवधि में बार-बार निर्माण सम्बन्धी त्रुटि एवं दोश के कारण खराब होता रहा, जिसे अप्रार्थी संख्या 2 के कहने पर अप्रार्थी संख्या 3 सर्विस सेंटर ले जाया गया लेकिन मोबाइल आज तक पूर्ण रूप से ठीक नहीं हो रहा है बल्कि बार-बार खराब हो जाता है। परिवादी ने अपने परिवाद में यह भी स्पश्ट किया है कि अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा कहा गया था कि मोबाइल में जो खराबी है वह ठीक नहीं हो रही इसलिए कम्पनी से दूसरा मोबाइल मंगवा देते हैं लेकिन आज तक दूसरा मोबाइल नहीं दिया गया है। परिवादी की ओर से उपर्युक्त तथ्यों के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही जाॅब कार्ड प्रदर्ष 2 व 3 भी पेष किये गये हैं, जिनका अप्रार्थीगण की ओर से कोई स्पश्ट खण्डन नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में मामले के तथ्यों एवं पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को जो मोबाइल विक्रय किया गया था, उसमें अवष्य ही कोई न कोई विनिर्माण सम्बन्धी त्रुटि अथवा दोश रहा है, जिसके कारण ही रिपेयरिंग करने के बावजूद मोबाइल पूर्ण रूप से ठीक नहीं हुआ। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से यह भी स्पश्ट है कि अप्रार्थी पक्ष द्वारा परिवादी को नया मोबाइल उपलब्ध करवाये जाने बाबत् भी कहा गया लेकिन आज तक परिवादी को खराब मोबाइल के बदले नया मोबाइल उपलब्ध नहीं करवाया गया। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण वारंटी नियमों अनुसार परिवादी को सेवा प्रदान करने में असफल रहे हैं जो कि निष्चिय ही अप्रार्थीगण का सेवा दोश रहा है।
6. पत्रावली के अवलोकन पर यह भी स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा अप्रार्थी संख्या 2 से यह मोबाइल गांव-रोल, तहसील-जायल, जिला-नागौर में क्रय किया गया तथा खराब होने पर उसे कम्पनी के अधिकृत सर्विस सेंटर अप्रार्थी संख्या 3 के वहां लेकर आना पडा, जो कि जिला मुख्यालय पर स्थित है तथा इस सर्विस सेंटर पर भी परिवादी को बार-बार चक्कर काटने पडे, जिससे परिवादी को आर्थिक नुकसान होने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी परेषान होना पडा। यह भी स्पश्ट है कि बार-बार चक्कर काटने के बावजूद अप्रार्थीगण द्वारा मोबाइल ठीक नहीं करने एवं खराब मोबाइल के बदले नया मोबाइल नहीं देने की स्थिति में ही परिवादी को यह परिवाद पेष करना पडा। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण द्वारा किये गये सेवा दोश के कारण परिवाद को हुई मानसिक एवं आर्थिक परेषानी की पूर्ति किये जाने के साथ-साथ परिवाद व्यय दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी बंषीधर पारीक द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद धारा-12 अन्तर्गत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण परिवादी को विवादित मोबाइल के बदले इसी माॅडल/कीमत का इसी कम्पनी द्वारा निर्मित नया मोबाइल हेण्डसेट प्रदान करे, जिसकी वारंटी अवधि नया मोबाइल प्रदान करने की दिनांक से होगी। यह भी स्पश्ट किया जाता है कि यदि इसी कम्पनी द्वारा निर्मित इसी माॅडल/कीमत का मोबाइल हेण्डसेट उपलब्ध नहीं हो तो अप्रार्थीगण परिवादी को उसके मोबाइल की बिल राषि 7,200/- रूपये प्रदान करंेगे तथा इस राषि पर आवेदन पेष करने की दिनांक 25.01.2016 से 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज भी प्रदान करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी को हुई आर्थिक व मानसिक परेषानी पेटे अप्रार्थीगण परिवादी को 2,000/- रूपये बतौर क्षतिपूर्ति अदा करने के साथ ही 2,000/- रूपये परिवाद व्यय के भी अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
8. आदेष आज दिनांक 17.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल।
सदस्य अध्यक्ष