(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1256/2004
मूसा रजा पुत्र श्री हसन रजा बनाम ब्रांच मैनेजर, मरकेन्टाइल अर्बन को-आपरेटिव बैंक लि0 तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक : 30.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-1370/1999, मूसा रजा बनाम शाखा प्रबंधक, मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0 तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, मेरठ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29.5.2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री मयंक श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद खारिज करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि प्रस्तुत केस में निम्नलिखित मुद्दे विवादित हैं :-
1. क्या चेक अकाउंट पेयी था ?
2. क्या चेक परिवादी द्वारा कैश कराया जा सकता था ?
3. क्या चेक भुगतान में कोई साजिश एवं धोखा कारित हुआ है ?
साथ ही यह भी निर्धारित किया है कि सक्षम न्यायालय में मामला लम्बित है, इसलिए जटिल तथ्य एवं साक्ष्य पर आधारित मामलों का निस्तारण सक्षम न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। संक्षिप्त कार्यवाही करते हुए विद्वान जिला आयोग द्वारा इस प्रकृति के विवाद का निस्तारण नहीं किया जा सकता।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी मैसर्स इम्प्रेसन्स 775 जेदीनगर सोसायटी मेरठ का पार्टनर है। दिनांक 6.8.1999 को अंकन
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1,50,000/-रू0 का चेक संख्या 418229 विपक्षी सं0-1 के बैंक में संचालित खाता संख्या-1898 जमा किया था, जो मैसर्स विद्या प्रकाशन मंदिर लि0, मेरठ द्वारा जारी किया गया था। विपक्षी सं0-1 के लिपिक सिद्धार्थ रे ने बैंक की मुहर लगाकर रसीद परिवादी को प्राप्त करा दी गई थी। दिनांक 17.8.1999 को परिवादी ने विपक्षी सं0-1 बैंक में अपने खाते की प्रविष्टि कराने के लिए पासबुक दी तब यह राशि जमा होने नहीं पायी गयी। शिकायत पर विपक्षी सं0-1 बैंक द्वारा चेक को तलाश नहीं किया जा सका। विपक्षी सं0-2, पंजाब नेशनल बैंक में गया तब ज्ञात हुआ कि चेक का भुगतान रोकने के लिए मैसर्स विद्या प्रकाशन मंदिर लि0, मेरठ से एक पत्र लिखवाकर लाओ, जिस पर परिवादी द्वारा पत्र दिया गया, इसके बाद विपक्षी सं0-2 द्वारा यह भी बताया गया कि चेक का भुगतान राजू नामक व्यक्ति ने नकद प्राप्त कर लिया है, जबकि परिवादी राजू नाम के व्यक्ति को नहीं जानता।
4. पत्रावली पर बैंक में चेक जमा करने की रसीद, अनेक्जर सं0-1 के रूप में मौजूद है तथा अनेक्जर सं0-2 चेक की प्रति है, जिसके अवलोकन से ज्ञात होता है कि चेक मैसर्स विद्या प्रकाशन मंदिर लि0 के नाम जारी किया गया है। अत: इन दस्तावेजों से साबित होता है कि परिवादी द्वारा मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0 में चेक जमा किया गया था। अत: इस राशि को आहरित कर परिवादी के खाते में जमा करने के लिए मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0 उत्तरदायी है। बैंक में चेक जमा करने के पश्चात यदि चेक किसी राजू नाम के व्यक्ति को प्राप्त हुआ है और उसे भुगतान हुआ है तब उक्त बैंक के कर्मी द्वारा की गई लापरवाही के लिए भी मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0 उत्तरदायी है। विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष विधिसम्मत नहीं कहा जा सकता कि प्रस्तुत केस में तथ्य एवं साक्ष्य के जटिल प्रश्न विद्यमान है। प्रस्तुत केस में तथ्य एवं साक्ष्य का अत्यधिक सामान्य प्रश्न विद्यमान है।
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परिवादी के फर्म के नाम जो चेक जारी हुआ, वह परिवादी द्वारा मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0 में जमा किया गया। चेक की प्रति तथा चेक जमा की रसीद पत्रावली पर मौजूद है। यह राशि कभी भी परिवादी के खाते में नहीं आयी, इस तथ्य को साक्ष्य से साबित किया गया है। परिवादी का विपक्षी सं0-1 के बैंक में खाता है, इसलिए परिवादी विपक्षी सं0-1 का उपभोक्ता है, इसी खाते में प्रश्नगत चेक जमा किया गया, जो विपक्षी सं0-2, बैंक को प्रेषित नहीं किया गया और किसी एक अन्य व्यक्ति के खाते में जमा कर चेक का भुगतान करा लिया, इसलिए चेक में वर्णित राशि का भुगतान करने का दायित्व विपक्षी सं0-1 मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0 का है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29.05.2004 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि प्रश्नगत चेक में वर्णित राशि अंकन 1,50,000/-रू0 का भुगतान तत्समय प्रचलित ब्याज दर के अनुसार परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक विपक्षी सं0-1/प्रत्यर्थी सं0-1, शाखा प्रबंधक मरकेन्टाइल अर्बन कोआपरेटिव बैंक लि0, मेरठ द्वारा किया जाए तथा परिवाद व्यय की मद में अंकन 5,000/-रू0 भी अदा किए जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2