Uttar Pradesh

StateCommission

C/2011/131

Dr A K Agarwal - Complainant(s)

Versus

Meerut Vikas Pradikaran - Opp.Party(s)

Umesh Chandra Pandey

25 Sep 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2011/131
( Date of Filing : 07 Dec 2011 )
 
1. Dr A K Agarwal
a
...........Complainant(s)
Versus
1. Meerut Vikas Pradikaran
a
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 25 Sep 2018
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।                                                                               

                                                                  मौखिक

परिवाद सं0-१३१/२०११

डॉ0 ए0के0 अग्रवाल पुत्र श्री सी0पी0 अग्रवाल निवासी -१९१, आनन्‍द विहार, दिल्‍ली – ११००९२.                                                  ............ परिवादी।

बनाम

१. मेरठ डेवलपमेण्‍ट अथारिटी द्वारा चेयरमेन, मेरठ, उत्‍तर प्रदेश।

२. वाइस चेयरमेन, मेरठ डेवलपमेण्‍ट अथारिटी।                ............. विपक्षीगण।

 

समक्ष:-

१-  मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्‍य।

 

परिवादी की ओर से उपस्थित  : कोई नहीं।

विपक्षीगण की ओर से उपस्थित: श्री सर्वेश कुमार शर्मा विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक :-२५-०३-२०१९.

 

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठसीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

 

निर्णय

      परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा उपस्थित हैं। विपक्षीगण की ओर से एक प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत परिवाद को अपोषणीय होना बताते हुए प्रस्‍तुत किया गया है। इस प्रार्थना पत्र पर विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा के तर्क सुने गये। पत्रावली का अवलोकन किया गया।

      विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत परिवाद के अभिकथनों में स्‍वयं परिवादी द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि परिवादी ने प्रश्‍नगत प्‍लाट नर्सिंगहोम बनाने हेतु क्रय किया था। इस प्रकार यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रश्‍नगत प्‍लाट वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु क्रय किया गया। अत: परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत परिभाषित उपभोक्‍ता की श्रेणी में न होने के कारण प्रस्‍तुत परिवाद उपभोक्‍ता मंच में पोषणीय नहीं है।

      विपक्षीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रस्‍तुत परिवाद की सुनवाई का आर्थिक क्षेत्राधिकार भी इस आयोग को प्राप्‍त नहीं है क्‍योंकि स्‍वयं परिवादी के कथनानुसार प्रश्‍नगत सम्‍पत्ति के कुल मूल्‍य ३,३६,९१८/- रू० की अदायगी उसके द्वारा

 

 

-२-

की जा चुकी है किन्‍तु परिवादी ने परिवाद के आर्थिक क्षेत्राधिकार का मूल्‍यांकन प्रश्‍नगत प्‍लाट के मूल मूल्‍य पर न करके परिवाद योजित किए जाने की तिथि पर प्रश्‍नगत प्‍लाट के अनुमानित मूल्‍य ४३,२०,०००/- रू० पर किया है। इसके अतिरिक्‍त ३०.०० लाख रू० क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाए जाने के अनुतोष के साथ कुल ७३,२०,०००/- रू० के मय ब्‍याज भुगतान हेतु परिवाद योजित किया है जबकि प्रश्‍नगत सम्‍पत्ति के आबंटन के समय निर्धारित मूल्‍य पर ही परिवाद का मूल्‍यांकन किया जाना चाहिए था।

      विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के इस तर्क में बल प्रतीत होता है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-२(१)(घ) में उपभोक्‍ता को निम्‍नवत् परिभाषित किया गया है :-

‘’ २(१)(घ)(i)- ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय कर दिया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया और भागत: वचन दिया गया है,

या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, इसके अन्‍तर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल क्रय करता है जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, लेकिन इसके अन्‍तर्गत कोई ऐसा व्‍यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्‍त करता है। 

‘’ २(१)(घ)(ii)- किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है और इनके अन्‍तर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है, जो किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: वचन दिया गया है या, किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है, जब ऐसी

 

-३-

सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है। लेकिन ऐसा कोई व्‍यक्ति सम्मिलित नहीं है जो इन सेवाओं का किसी वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ उपभोग करता है। ‘’

‘’ (स्‍पष्‍टीकरण इस खण्‍ड के प्रयोजनों के लिए ‘’ वाणिज्यिक प्रयोजन ‘’ में किसी व्‍यक्ति द्वारा क्रय तथा प्रयोग किए माल का प्रयोग एवं उसके द्वारा स्‍वत: रोजगार के माध्‍यम से अपवर्ती रूप से अपनी आजीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गयी सेवाऍ सम्मिलित नहीं हैं। ) ‘’

इस परिभाषा के अनुसार प्रतिफल सहित किसी वस्‍तु का क्रेता अथवा प्रतिफल सहित प्राप्‍त की गई सेवाओं का क्रेता, उपभोक्‍ता माना जायेगा, किन्‍तु वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु क्रय की गई वस्‍तु अथवा सेवा का क्रेता, उपभोक्‍ता नहीं माना जायेगा।

‘ वाणिज्यिक प्रयोजन ‘ को स्‍पष्‍टीकरण द्वारा स्‍पष्‍ट किया गया है कि क्रेता द्वारा स्‍वत: रोजगार के माध्‍यम से अपनी आजीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गई सेवाऐं वाणिज्यिक प्रयोजन में सम्मिलित नहीं मानी जायेगीं।

जहॉं तक प्रस्‍तुत परिवाद का प्रश्‍न है स्‍वयं परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में यह अभिकथित किया है कि प्रश्‍नगत प्‍लाट उसने हॉस्पिटल/नर्सिंग होम हेतु क्रय किया था। परिवाद के अभिकथनों में परिवादी ने यह अभिकथित नहीं किया है कि यह प्‍लाट उसने अपनी आजीविका हेतु स्‍वरोजगार के लिए क्रय किया है और न ही इस सन्‍दर्भ में कोई साक्ष्‍य परिवाद द्वारा प्रस्‍तुत की गई है। ऐसी परिस्थिति में प्रश्‍नगत प्‍लाट वाणिज्यिक उपयोग हेतु क्रय किये जाने के कारण परिवादी को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत उपरोक्‍त दर्शित परिभाषा के परिप्रेक्ष्‍य में उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता।

जहॉं तक प्रस्‍तुत परिवाद के आर्थिक क्षेत्राधिकार का प्रश्‍न है, परिवाद के अभिकथनों में स्‍वयं परिवादी ने यह स्‍वीकार किया है कि प्रश्‍नगत भूखण्‍ड का मूल्‍य विपक्षी द्वारा ३,३६,९१८/- रू० निर्धारित किया गया और यह समस्‍त धनराशि परिवादी द्वारा मार्च, १९९५ में जा की जा चुकी है किन्‍तु परिवादी ने परिवाद का मूल्‍यांकन परिवाद योजित किए जाने की तिथि पर प्रश्‍नगत प्‍लाट के अनुमानित मूल्‍य ४३,२०,०००/-

 

-४-

रू० के आधार पर मानते हुए परिवाद योजित किया है। हमारे विचार से प्रस्‍तुत परिवाद के आर्थिक क्षेत्राधिकार के सन्‍दर्भ में प्रश्‍नगत सम्‍पत्ति क्रय किए जाने की तिथि पर उसके मूल मूल्‍य ३,३६,९१८/- रू० के अनुसार आर्थिक क्षेत्राधिकार निर्धारित किया जायेगा न कि परिवाद योजित किए जाने की तिथि पर प्रश्‍नगत सम्‍पत्ति के अनुमानित मूल्‍य ४३,२०,०००/- रू० के आधार पर।

उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-१७ (१) में राज्‍य आयोग की अधिकारिता के सम्‍बन्‍ध में निम्‍नवत् प्राविधान है :-

       १७. राज्‍य आयोग की अधिकारिता-(१) इस अधिनियम के अन्‍य उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्‍य आयोग को निम्‍नलिखित अधिकारिता होगी –

       (क) (i) ऐसे परिवादों को ग्रहण करना जहॉं माल या सेवाओं का और दावाकृत प्रतिकर का, यदि कोई है, मूल्‍य बीस लाख रूपये से अधिक है, किन्‍तु एक करोड़ रूपये से अधिक नहीं है।

       ऐसी परिस्थिति में इस परिवाद की सुनवाई का आर्थिक क्षेत्राधिकार भी इस आयोग को प्राप्‍त नहीं है।

       उपरोक्‍त तथ्‍यों के आलोक में हमारे विचार से प्रस्‍तुत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस आयोग को प्राप्‍त नहीं है। तद्नुसार परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।   

आदेश

      परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

      उभय पक्ष इस परिवाद का अपना-अपना व्‍यय-भार स्‍वयं वहन करेंगे।

      उभय पक्ष को इस आदेश की सत्‍य प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

 

 

                                               (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                 पीठासीन सदस्‍य

 

                                                 (गोवर्द्धन यादव)

                                                     सदस्‍य

 

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट-२.        

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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