राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३२८०/२००२
(जिला फोरम/आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-११७३/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-११-२००२ के विरूद्ध)
मेरठ डेवलपमेण्ट अथारिटी, मेरठ द्वारा द्वारा सैक्रेटरी। ...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
सुरेश मोहन शर्मा पुत्र श्री मोहन लाल चौधरी निवासी ५५०/७, जागृति विहार, मेरठ।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
अपील सं0-२४५/२००३
(जिला फोरम/आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-११७३/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-११-२००२ के विरूद्ध)
सुरेश मोहन शर्मा पुत्र श्री मोहन लाल चौधरी निवासी ५५०/७, जागृति विहार, मेरठ।
...........अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम
मेरठ डेवलपमेण्ट अथारिटी, मेरठ। ............ प्रत्यर्थी/विपक्षी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी प्राधिकरण की ओर से उपस्थित : श्री पियूष मणि त्रिपाठी विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- २०-०४-२०२२.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
उपरोक्त दोनों अपीलें, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-११७३/१९९८ में पारित एक ही प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-११-२००२ के विरूद्ध योजित की गयी हैं, अत: इन दोनों अपीलों का निस्तारण साथ-साथ किया जा रहा है। अपील सं0-३२८०/२००२ अग्रणी होगी।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि परिवादी ने शताब्दी नगर योजना के अन्तर्गत एक भूखण्ड के लिए आवेदन किया और अपीलार्थी ने अपने पत्र दिनांक १६-०३-१९९० के अन्तर्गत आबंटन आदेश निर्गत करते हुए भूखण्ड सं0-सी-९० क्षेत्रफल १८० वर्गमीटर, अनुमानित मूल्य ८१,०००/- रू० को परिवादी के नाम आबंटित किया। किश्तें जमा करने के लिए पत्र दिनांक ०६-११-१९९० निर्गत करते हुए परिवादी से अपेक्षा की गई कि वह ०८ किश्तें निर्धारित तिथियों पर जमा करे। अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने पत्र दिनांक
२१-०३-१९९६ द्वारा परिवादी को सूचित किया कि प्रश्नगत भूखण्ड का विकास कार्य पूर्ण
-२-
नहीं है, इसलिए उसके आबंटन को एच0आई0जी0 भूखण्ड सं0-डी-४६ क्षेत्रफल २०० वर्गमीटर में परिवर्तित किया जाता है जो उसी योजना में स्थित है और बढ़े हुए क्षेत्रफल का मूल्य ९६००/- रू० की मांग की। परिवादी इस परिवर्तन को स्वीकार किया और दिनांक १९-०४-९६ को ९६००/- रू० जमा कर दिए।
अपीलार्थी ने कब्जा लेने का पत्र दिनांक २८-०९-१९९८ को निर्गत किया और परिवादी से अपेक्षा की कि वह समस्त औपचारिकताओं को पूरा करते हुए भूखण्ड सं0-डी-५६ का कब्जा प्राप्त कर ले किन्तु परिवादी ने इसके बदले दिनांक १२-१०-१९९८ को एक परिवाद प्रस्तुत कर दिया। परिवादी ने भूखण्ड परिवर्तन को स्वीकार किया था। विद्वान जिला फोरम ने गलत निष्कर्ष दिया कि अपीलार्थी भूखण्ड का कब्जा देने में असफल रहा। विद्वान जिला फोरम ने यह निष्कर्ष गलत दिया कि भूखण्ड बदलने में परिवादी की सहमति नहीं थी। धनराशि की वापसी के लिए परिवादी ने कोई प्रत्यावेदन नहीं किया था। विद्वान जिला फोरम का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध, मनमाना एवं तथ्यों से परे है। अत: माननीय आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
अपील सं0-२४५/२००३ में अपीलार्थी/परिवादी का संक्षेप में कथन है कि विद्वान जिला फोरम ने ब्याज की दर को भलीभांति नहीं देखा और पक्षकारों के बीच मूलभूत विवाद को नहीं समझा। प्रश्नगत निर्णय में आदेशित १५ प्रतिशत ब्याज को बढ़ाते हुए १८ प्रतिशत किया जाना चाहिए। अत: माननीय आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश में आदेशित ब्याज दर तद्नुसार बढ़ाई जाए।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
हमने विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय का भी अवलोकन किया। परिवादी ने एक भूखण्ड का, दिनांक १५-०९-१९८९ को ८,०००/- रू० दे कर पंजीकरण कराया और उसके नाम से भूखण्ड आरक्षित हो गया। परिवादी ने इसके बाद मांगी गई धनराशि जमा की। परिवादी को दिनांक १६-०३-१९९० को आबंटन पत्र प्राप्त हुआ जिसके अनुसार उसे १८० वर्गमीटर का भूखण्ड सं0-सी-९० सैक्टर-५ में आबंटित हुआ जिसका मूल्य ८१,०००/-
-३-
रू० था। एक वर्ष के अन्दर प्रश्नगत भूखण्ड का कब्जा दिया जाना था लेकिन आज तक नहीं दिया गया। परिवादी समय-समय पर किश्त अदा करता रहा। दिनांक २३-१२-१९९५ को विपक्षी ने एक पत्र भेजा कि उसको आबंटित भूखण्ड का विकास कार्य प्रारम्भ नहीं हुआ है और विकास कार्य पूरा होने पर सूचना दी जाएगी। इसके पश्चात् दिनांक २१-०३-१९९६ को विपक्षी ने एक अन्य पत्र भेजा कि विकास कार्य पूर्ण न होने के कारण उसके पक्ष में एक अन्य भूखण्ड सं0-डी-५६, सैक्टर-४, उच्च आय वर्ग क्षेत्रफल २०० वर्गमीटर का आबंटित कर दिया गया है, जिसमें भूखण्ड का अतिरिक्त मूल्य ९६००/- रू० दिखाया गया जो परिवादी ने जमा कर दिया किन्तु इसके बाबजूद भी परिवादी को कब्जा नहीं दिया गया। विपक्षी ने यह माना कि पूर्व आबंटित भूखण्ड का विकास कार्य नहीं हो पाया था इसलिए उसको दूसरा भूखण्ड दिया गया। दिनांक २०-०९-१९९८ को कब्जा लेने के लिए परिवादी को पत्र भेजा गया था किन्तु उसने कब्जा प्राप्त नहीं किया।
इस मामले में विपक्षी ने परिवादी को दिनांक १२-०८-१९९६ के पत्र द्वारा यह सूचना दी कि उक्त सैक्टर में भूखण्ड का विकास नहीं हो पाया है और इस कारण उसी योजना के सैक्टर-४ सी में एच0आई0जी0 श्रेणी का भूखण्ड सं0-डी-५६ आबंटित कर दिया गया है, जिसका क्षेत्रफल २०० वर्गमीटर है किन्तु इसके लिए परिवादी से कोई सहमति नहीं ली गई थी क्योंकि अगर सहमति ली जाती तब पत्र में यह लिखा होता कि आपकी इच्छानुसार आपका भूखण्ड परिवर्तित किया जा रहा है न कि यह लिखा होता कि विकास कार्य न होने के कारण भूखण्ड संख्या परिवर्तित की जा रही है। यहॉं पर सेवा में कमी का यह पहला दृष्टान्त हुआ।
विपक्षी ने यह कहा कि उसने दिनांक २०-०९-१९९८ को कब्जा लेने के लिए एक पत्र भेजा किन्तु विपक्षी ने उस पत्र की प्रति या उसकी तामीली या रजिस्ट्री की रसीद कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया है जिससे परिवादी के इस तर्क को बल मिलता है कि उसे कब्जा लेने के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई। बाद में यह पत्र मुकदमे से बचने के लिए तैयार किया गया है।
इन समस्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि इस मामले में समय के अन्दर भूखण्ड का कब्जा न देने के कारण विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गई है और अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनाई गई है। विद्वान जिला फोरम ने सभी तथ्यों पर विचार करते हुए
-४-
प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश उदघोषित किया है और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार यह अपील सं0-३२८०/२००२ निरस्त किए जाने योग्य है।
अपील सं0-२४५/२००३ में अपीलार्थी/परिवादी ने प्रश्नगत निर्णय में आदेशित ब्याज दर को बढ़ाने का अनुतोष मांगा है जो सम्भव नहीं है क्योंकि ब्याज की दर १५ प्रतिशत दी गई है जो अधिकतम है और इससे अधिक दर पर ब्याज दिए जाने का कोई सुसंगत कारण अपीलार्थी/परिवादी ने नहीं दिया है। तद्नुसार यह अपील भी निरस्त किए जाने योग्य है।
इस प्रकार ये दोनों ही अपीलें निरस्त किए जाने योग्य हैं।
आदेश
वर्तमान अपील सं0-३२८०/२००२ एवं अपील सं0-२४५/२००३ निरस्त की जाती हैं। जिला फोरम/आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-११७३/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-११-२००२ की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
इस निर्णय की मूल प्रति अग्रणी अपील सं0-३२८०/२००२ में रखी जाए तथा एक प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-२४५/२००३ में रखी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.