Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 432/2018 ओम प्रकाश गोयल, आयु 70 साल पुत्र स्व0 श्री नाथू राम गोयल निवासी हाउस नं0-8/179-डी राजेन्द्र नगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, पिन-201005 - परिवादी
बनाम मेरठ विकास प्राधिकरण, मेरठ थ्रो वाइस चैयरमैन, सिविल लाईन्स, विकास भवन, मेरठ, यूपी पिन-250001 - विपक्षी
समक्ष - मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री संजय कुमार वर्मा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री पियुष मणि त्रिपाठी दिनांक:-17.10.2022 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह परिवाद परिवादी की ओर से विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण के विरूद्ध उसके द्वारा मूल जमा धनराशि रूपये/- पर 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस दिलाये जाने तथा 10,00,000/- रूपये मानसिक एवं अन्य क्लेष के लिए तथा प्रश्नगत प्लॉट के दाम के साथ बढ़ जाने हेतु तथा अन्य अनुतोषों के लिए योजित किया गया है।
- परिवादी का कथन परिवाद में इस प्रकार है कि विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा पूर्ण विकसित आवासीय प्लॉट के लिए एक स्कीम जारी की गयी, जिसमें प्लॉट पूर्ण विकसित सं0 669 प्लॉट के लिए शताब्दी नगर, सेक्टर 9 इनक्लेव II, मेरठ में स्कीम जारी हुई जो 60 वर्गमीटर से लेकर 350 वर्गमीटर थी तथा जुलाई 2011 में प्रार्थना पत्र आमंत्रित किये गये, जिसमें परिवादी ने 26 जुलाई 2011 को एक आवेदन पत्र दिया, जिसमें परिवादी को लॉटरी के माध्यम से दिनांक 25.11.2011 को प्लॉट सं0 बी-8 आवंटित हुआ था। आवंटी-मांग पत्र के रूप में दिनांक 25.11.2011 को पत्र जारी किया गया। इसमें परिवादी को 08 किश्तों में धनराशि देनी थी। परिवादी द्वारा नियमित रूप से समय पर उक्त किश्तें डिमाण्ड ड्राफ्ट के माध्यम से प्रदान की गयी और कुल 39,26,646/- रू0 की धनराशि प्राधिकरण को किश्तों के माध्यम से प्रदान की गयी। उक्त प्रतिलिपियां संलग्नक सी-3, सी-4 तथा रसीदें सी-5/1 से 5/10 परिवाद पत्र के साथ संलग्न की गयी है। परिवादी ने प्राधिकरण के वाइस-चैयरमैन तथा सचिव को टेलीफोन के माध्यम से एवं व्यक्तिगत रूप से विक्रय पत्र निष्पादित करने हेतु सम्पर्क किया। परिवादी सदैव फ्रीहोल्ड तथा अन्य चार्जेज प्रदान करने के लिए तैयार रहा, किन्तु इलेक्शन तथा अन्य बहाने करके विक्रय पत्र निष्पादन नहीं किया गया। 04 वर्ष बीत जाने के उपरान्त परिवादी ने एक विधिक नोटिस भेजी एवं अन्य प्राधिकरणों को पत्र लिखा, इसके उपरान्त दिनांक 30.08.2018 को परिवादी ने आपत्ति पत्र के रूप में जमा धनराशि की वापसी मय ब्याज वापस किये जाने का पत्र भेजा।
- परिवादी के अनुसार विपक्षी प्राधिकरण अभी भी किसानों से प्रश्नगत भूमि प्राप्त करने में सफल नहीं हुए हैं तथा भौतिक रूप से किसान उक्त भूमि को बो-जोत रहे हैं। विपक्षीगण द्वारा परिवादी से 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज (तिमाही पर देय) तथा दाण्डिक ब्याज 22 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से वसूल किया है, जबकि परिवादी ने धनराशि की प्रत्येक किश्त समय से डिमाण्ड ड्राफ्ट के माध्यम से जमा की है। कभी कभार धनराशि मिलने में बैंक कर्मियों की लापरवाही के कारण देरी हो गयी किन्तु परिवादी की ओर से कभी भी देर नहीं की गयी। परिवादी द्वारा स्कीम के ब्राउचर में इस प्रकार की शर्तें एकपक्षीय और उपभोक्ता के विरूद्ध थी क्योंकि ब्राउचर के नियम 12 में उपभोक्ता द्वारा जमा धनराशि के वापसी पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज का प्रावधान रखा गया यदि आवंटी स्वयं धनराशि वापस चाहता है तो परिवादी द्वारा दी गयी नोटिस पर विकास प्राधिकरण के 100 वें रेजोल्यूशन में बिना ब्याज की धनराशि वापस किये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया। परिवादी के अनुसार यह रेजोल्यूशन दिनांकित 08.11.2013 विकास प्राधिकरण का आंतरिक मामला है और इससे परिवादी किसी प्रकार बाध्य नहीं है इन आधारों पर यह परिवाद पत्र उपरोक्त अनुतोषों के लिए प्रस्तुत किया गया है।
- विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण की ओर से वादोत्तर दिनांक 11.06.2019 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह कथन किया गया है कि परिवादी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। परिवादी ने गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी ने वर्ष 2017 के पूर्व कभी भी प्रश्नगत प्लॉट के कब्जे की प्रार्थना नहीं की थी। दूसरी ओर विपक्षीगण की ओर से कभी भी कब्जा न देने की बात नहीं की गयी, बल्कि स्वयं परिवादी की ओर से जमा धनराशि को वापस किये जाने की प्रार्थना की गयी जबकि विपक्षी विकास प्राधिकरण सदैव प्रश्नगत प्लॉट का कब्जा देने को तैयार रहा है। विपक्षी द्वारा यह आक्षेप भी लगाया गया है कि परिवादी ने बिना किसी ऋण सहायता के 02 प्लॉटों के लिए रूपये 61,50,000/- जमा करके 2 प्लॉटों का आवेदन व्यवसायिक उद्देश्य से लाभ अर्जित करने के लिए किया था इसलिए परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और परिवाद पोषणीय नहीं है। परिवादी ने सब प्लॉट अपने पुत्र श्री अनुरोग गोयल के नाम से आवेदन किया था। इन प्लॉटों के आवेदन में कोई समय सीमा करार का आवश्यक भाग नहीं थी। परिवादी ने वर्ष 2017 के पूर्व किसी प्रकार का कोई पत्राचार या सम्पर्क नहीं किया था एवं सीधे दिनांक 18.12.2018 को यह परिवाद प्रस्तुत कर दिया। विपक्षी के अनुसार स्वयं परिवादी द्वारा किश्तों की अदायगी में व्यवधान उत्पन्न किया गया और परिवादी का खाता यह दर्शाता है कि वर्ष 2017 में परिवादी पर रू0 3,64,424/- बकाया थी। स्वयं परिवादी द्वारा अपने स्तर से धनराशि की वापसी का प्रार्थना पत्र देकर मनमाने ब्याज वसूल किये जाने की प्रार्थना की गयी है। स्वयं विपक्षी की ओर से प्रश्नगत प्लॉट का कब्जा देने से इंकार नहीं किया गया, बल्कि पत्र दिनांक 24.08.2017 के माध्यम से परिवादी को सूचना दी गयी कि वे प्रश्नगत प्लॉट का कब्जा और विक्रय पत्र का निष्पादन करा सकते हैं। परिवादी के अनुसार किसानों द्वारा इस प्रक्रिया में व्यवधान पैदा किया गया, जिस कारण विक्रय पत्र निष्पादित होना संभव नहीं हो पाया तथा किसानों की ओर से व्यवधानों का समाधान हो जाने के उपरान्त यह पत्र दिया गया था, इन तथ्यों की जानकारी परिवादी को भी थी इसीलिए उसने वर्ष 2017 तक कोई सम्पर्क नहीं किया। स्वयं परिवादी की ओर से धनराशि वापसी के लिए आग्रह किया गया, जिस कारण विपक्षी की ओर से उसे पत्र दिनांकित 24.08.2017 तथा 23.12.2017 दिये गये, जिसमें धनराशि वापसी की शर्तों का उल्लेख भी किया गया था स्वयं विपक्षी की ओर से कोई देरी नहीं की गयी है। इन आधारों पर परिवाद पत्र निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
- परिवादी की ओर संलग्नक सी-1 विपक्षी द्वारा ब्राउचर जारी, संलग्नक 2 एलॉटमेंट कम इंस्टालमेंट लेटर,संलग्नक सी-3 परिवादी द्वारा बनायी गयी भुगतान की तालिका, संलग्नक-4 विपक्षी द्वारा जारी लेजर ऑफ प्रापर्टी एवं संलग्नक सी-5/1 से सी-5/10, संलग्नक सी-6 से सी-11 नोटिस एवं प्रार्थना अण्डर आरटीआई, संलग्नक सी-12 प्रिसिंपल एमाउण्ट की वापसी का प्रार्थना पत्र, संलग्नक सी-13 यूपी सरकार की अधिसूचना, संलग्नक-14 कॉपी ऑफ रेजोल्यूशन दिनांक 08.11.2013 रिफण्ड ऑफ मनी टू एलॉटी, संलग्नक सी-15 यूपी के रेरा द्वारा जारी अधिसूचना, संलग्नक सी-16 जजमेंट पास्ड बाई नॉमिनेटेड आफिसर/चैयरमैन, हापुड विकास प्राधिकरण दिनांक 25.06.2018 संलग्न किया गया है।
- परिवादी के विद्धान अधिवक्ता श्री संजय कुमार वर्मा एवं विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री पियुष मणि त्रिपाठी को विस्तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया। तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- विपक्षी विकास प्राधिकरण की ओर से वादोत्तर में पहली आपत्ति यह ली गयी है कि परिवादी ने एकसाथ 2 प्लाटों का आवेदन किया था एक स्वयं और एक अपने पुत्र श्री अनुराग गोयल के नाम से आवेदन किया गया था, जिससे स्पष्ट होता है कि यह सम्व्यवहार व्यवसायिक उद्देश्य से लाभ कमाने के लिए किया गया था क्योंकि परिवादी ने कोई बैंक ऋण इत्यादि नहीं लिया था। इस कारण व्यवसायिक उद्देश्य से परिवादी द्वारा प्लाट लिए जाने के कारण वाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है।
- विपक्षी के उक्त तर्क दुर्बल श्रेणी का मात्र आपत्ति प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही किया गया प्रतीत होता है क्योंकि पिता और पुत्र द्वारा प्लाट के लिए आवेदन किया गया था। पिता एवं पुत्र की आवश्यकताएं पृथक-पृथक हो सकती हैं तथा पृथक-पृथक परिवार एवं आवश्यक परिसर की आवश्कता को देखते हुए मात्र पिता एवं पुत्र होने के कारण 2 प्लाटों का आवेदन व्यवसायिक उद्देश्य नहीं कहा जा सकता।
- इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय जितेन्द्र शिव कुमार आहूजा प्रति इरेको प्राइवेट लिमिटेड प्रकाशित III (2022) CPJ page 106 (N.C.) का उल्लेख करना उचित होगा। इस मामले में उपभोक्ता द्वारा अपार्टमेंट की बुकिंग की गयी। देरी से कब्जा दिये जाने के विरूद्ध लाये गये परिवाद में विपक्षी द्वारा यह आपत्ति ली गयी है कि अपार्टमेंट को व्यवसायिक उद्देश्य से बुक किया गया है। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि इस तथ्य को स्थापित करने का सबूत का भार परिवादी पर है कि वह अपने साक्ष्य से सिद्ध करे कि वास्तव में उपभोक्ता ने उक्त कार्य लाभ अर्जित करने के लिए व्यवसायिक उद्देश्य से किया है। मात्र अभिकथन इस तथ्य के लिए पर्याप्त नहीं है।
- उपरोक्त निर्णय को माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा एक अन्य निर्णय दीपिका चौधरी चन्द्रा प्रति एमार एमजीएफ लैण्ड लिमिटेड प्रकाशित III (2022) CPJ page 101 (N.C.) में भी अभिनिर्णीत किया गया है कि मात्र अभिकथन कर देना पर्याप्त नहीं है कि प्लाट अथवा सम्पत्ति को व्यवसायिक उद्देश्य से खरीदा गया है इसको सबूत द्वारा सिद्ध करना विपक्षी का उत्तरदायित्व है।
- इस मामले में परिवादी ने अपनी जमा धनराशि एक युक्ति-युक्त ब्याज सहित वापस किये जाने के अनुतोष की प्रार्थना की है। परिवादी द्वारा विभिन्न तिथियों पर जमा की जाने वाली धनराशि का विवरण अपने वाद पत्र में निम्नलिखित प्रकार से दिया गया है:-
Sr. No. | Date | Nature of Payment | Amount in INR | 1- | 26/07/2011 | Registration Money | 166250/- | 2- | 16/01/2012 | Allotment Money | 332500/- | 3- | 27/03/2012 | Installment No-1 | 428487/- | 4- | 25/06/2012 | Installment No-2 | 428487/- | 5- | 27/09/2012 | Installment No-3 | 428487/- | 6- | 27/12/2012 | Installment No-4 | 428487/- | 7- | 28/03/2013 | Installment No-5 | 428487/- | 8- | 24/06/2013 | Installment No-6 | 428487/- | 9- | 21/09/2013 | Installment No-7 | 428487/- | 10- | 26/12/2013 | Installment No-8 | 428487/- | | Total | 3926646/- |
- परिवादी की ओर से संलग्नक 5 के रूप में बैंक ने रसीदों की छायाप्रतियां प्रस्तुत की गयी है इसके अतिरिक्त संलग्नक 4 के रूप में मेरठ विकास प्राधिकरण का लेजर जो परिवादी के खाते के संबंध में है कि प्रतिलिपि प्रस्तुत की गयी है इन रसीदों एवं लेजर के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा उपरोक्त किये गये भुगतान की पुष्टि होती है।
- उपरोक्त रसीदों एवं लेजर के इंद्राज का खण्डन प्राधिकारियों की ओर से नहीं किया गया है। अत: परिवादी द्वारा दिनांक 26.07.2011 से पंजीकरण शुल्क रूपये 1,66,250/- से आरंभ करके अंतिम किश्त दिनांकित 26.12.2013 अंकन 4,28,487/- को सम्मिलित करते हुए कुल धनराशि 39,26,646/- परिवादी द्वारा जमा किया जाना प्रस्तुत किये गये दस्तावेजों से साबित होता है। इसके अतिरिक्त वाइस चैयरमैन मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा जारी पत्र दिनांकित शून्य जो प्राधिकरण के लेटर हेड पर है, में भी इस धनराशि को प्राधिकरण द्वारा प्राप्त करना स्वीकार किया गया है। परिवादी के पक्ष में जारी किया गया आवंटन पत्र सं0 RHP15111055788/- जिस पर प्राप्ति की दिनांक 24.12.2011 अंकित है, में दिनांक 31.03.2012 से आरंभ करके विभिन्न किश्तों की अदायगी का सिड्यूल दिया हुआ है तथा इस पर आवंटन की तिथि दिनांक 25.11.2011 अंकित की गयी है। परिवादी के अनुसार उसने वर्ष 2013 में किश्त अदा करने के उपरान्त बार-बार प्राधिकरण से सम्पर्क किया किन्तु उक्त आवंटन के ब्राउचर के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इसकी शर्त सं0 10 में कब्जे की प्रक्रिया दी गयी है एवं यह लिखा है कि आवंटी को भूखण्ड का कब्जा रजिस्ट्री के उपरान्त दिया जायेगा, किन्तु वर्ष 2013 तक धनराशि अदा करने के उपरान्त भी परिवादी का उक्त प्लाट का कब्जा नहीं दिया गया एवं परिवादी द्वारा लिखे गये पत्र के उत्तर से स्पष्ट होता है कि आखरी अदायगी के 04 वर्ष बाद भी कब्जा न देने की बात कही गयी थी। प्रभारी अधिकारी सम्पत्ति के मेरठ विकास प्राधिकरण के पत्र दिनांकित 24.08.2017 की प्रतिलिपि अभिलेख पर है, जिसमें प्राधिकरण की ओर से अंकित किया गया है कि ‘’ उक्त के संबंध में अवगत कराना है कि उक्त योजना में किसानों के अवरोध के कारण अभी विकास कार्य पूरा नहीं पाया है, जिसके कारण उक्त भूखण्ड की रजिस्ट्री किया जाना संभव नहीं है। विकास कार्य पूर्ण होते ही रजिस्ट्री एवं कब्जा दिये जाने हेतु आपको सूचित कर दिया जायेगा।‘’ पुन: पत्र दिनांकित 23.12.2017 संबोधित परिवाद में पुन:प्राधिकरण द्वारा सूचित किया गया कि ‘’उपरोक्त के संबंध में अवगत कराना है कि उक्त भूखण्ड पर किसानों द्वारा विकास कार्य में गतिरोध उत्पन्न किये जाने के कारण विकास कार्य पूरा नहीं हो पा रहा है।‘’ इसके लगभग 01 वर्ष बाद पत्र दिनांक 27.08.2018 मे प्राधिकरण द्वारा सूचित किया गया कि ‘’ यदि रिफण्ड लेने की स्थिति में आवंटित संबंधी मूल दस्तावेज उपलब्ध कराने के फलस्वरूप प्राधिकरण बोर्ड की 100वीं बोर्ड बैठक दिनांक 08.11.2013 के निर्णयानुसार जमा धनराशि बिना ब्याज बिना कटौती वापस कर दी जाये। इस प्रकार उपरोक्त पत्रों की प्रतिलिपि से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 2018 तक विपक्षी प्राधिकरण द्वारा किसानों के अवरोध के कारण कब्जा न दिये जाने की बात कही जाती रही। तदोपरांत परिवादी द्वारा परिवाद योजित किया गया एवं आज तक परिवादी को प्रश्नगत भवन का कब्जा नहीं दिया गया है।
- जहां तक इस बिन्दु का प्रश्न है कि किसानों के अवरोध के कारण कब्जा नहीं दिया जा सका। इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय अतुल कुमार अग्रवाल प्रति क्रिश शालीमार प्राइवेट लिमिटेड प्रकाशित IV (2021) CPJ page 239 (N.C) का उल्लेख करना उचित होगा। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह कथन किया कि स्थावर सम्पत्ति के मामले में डेवलपर द्वारा फ्लैट दिये जाने का करार किया गया था। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि डेवलपर का उत्तरदायित्व है कि वह करार निष्पादन के 36 माह के अंदर इसका कब्जा दे दे। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से जमा धनराशिव वापस किये जाने का आदेश दिया एवं यह निर्णीत किया कि उभय पक्ष के मध्य करार में रूपये 10 प्रति स्क्वायर फीट प्रति माह की दर से क्षतिपूर्ति देने का कथन किया गया है, किन्तु यह एकपक्षीय है जिस पर उपभोक्ता न्यायालय निर्णय नहीं हो सकती एवं एक युक्ति-युक्ति क्षतिपूर्ति एवं जमा धनराशि पर युक्ति-युक्त ब्याज दिलवाया जाना उचित है। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा किसानों द्वारा अवरोध करने संबंधी कठिनाई को डेवलपर की मजबूरी अथवा फोर्समेजर नहीं माना और यह कथन किया कि ऐसी दशा में युक्ति-युक्त ब्याज के साथ धनराशि वापस दिलाया जाना उचित है।
- माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा एक अन्य निर्णय एमार एमजीएफ लैण्ड व अन्य प्रति अमित पुरी प्रकाशित II (2015) CPJ page 568 (N.C.) में इसी निष्कर्ष को दोहराया गया है कि डेवलपर द्वारा फोर्समेजर के अनुच्छेद पर निर्णय करके मनमाने तरीके से कब्जे में देरी नहीं की जा सकती है और ऐसी दशा में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलवाया जाना उचित पाया गया।
- माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णय निखिल बेल व अन्य प्रति सुपरटेक लिमिटेड प्रकाशित III (2022) CPJ page 128 (N.C) के मामले मे भी परिवादी द्वारा यूनिट की धनराशि का 98 प्रतिशत की अदायगी कर दी। बिल्डर द्वारा की गयी शर्त के अनुसार दिये गये समय 02 वर्ष के उपरान्त भी प्रश्नगत यूनिट का कब्जा नहीं दिया गया है। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि बिल्डर ‘’फोर्समेजर’’ के क्लॉज का बहाना नहीं ला सकता है। बिल्डर ने किसानों के द्वारा अवरोध उत्पन्न करने का कथन भी किया किन्तु इस तथ्य को माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा न मानते हुए 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से धनराशि की वापसी किये जाने का निर्णय लिया गया।
- पीठ के समक्ष एक प्रश्न यह है कि दोनों पक्षों के मध्य हुए करार में प्रश्नगत प्लॉट/यूनिट का कब्जा दिये जाने की क्या समयसीमा निर्धारित की गयी थी जो करार से स्पष्ट नहीं होती है किन्तु एक युक्ति-युक्त समय के अंदर इस प्लॉट का कब्जा दे दिया जाना प्राधिकरण का कर्त्तव्य है इस बिन्दु पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय फार्चून इंन्फ्रास्ट्रक्चर तथा अन्य प्रति ट्रेवेल डी लीमा व अन्य प्रकाशित II (2018) CPJ page I (S.C) में स्पष्ट किया गया है कि माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि कोई भी व्यक्ति असीमित समय तक प्रश्नगत यूनिट का कब्जा लेने की प्रतीक्षा नहीं कर सकता है और एक युक्ति-युक्त समय व्यतीत होने के उपरान्त उसको उचित ब्याज के साथ धनराशि वापस दिलाया जाना न्यायोचित है।
“Moreover, a person cannot be made to wait indefinitely for the possession of the flats allotted to them and they are entitled to seek the refund of the amount paid by them, along with compensation. Although we are aware of the fact that when there was no delivery period stipulated in the agreement, a reasonable time has to be taken into consideration. In the facts and circumstances of this case, a time period of 3 years would have been reasonable for completion of the contract i.e., the possession was required to be given by last quarter of 2014. Further there is no dispute as to the fact that until now there is no redevelopment of the property. Hence, in view of the above discussion, which draw us to an irresistible conclusion that there is deficiency of service on the part of the appellants and accordingly the issue is answered.” - माननीय सर्वोच्च न्यायलय द्वारा एक अन्य निर्णय बैंगलोर विकास प्राधिकरण प्रति सिंडीकेट बैंक प्रकाशित (2007) 6 S.C.C. पृष्ठ 711 में भी यह निष्कर्ष दिया गया है ऐसी दशा में विकास प्राधिकरण उपभोक्ता को उसके द्वारा अदा की गयी धनराशि उचित ब्याज के साथ वापस देगा। उक्त निर्णय पुन: माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक अन्य निर्णय गाजियाबाद विकास प्राधिकरण प्रति बलवीर सिंह व अन्य प्रकाशित II (2004) CPJ page 12 (S.C) में दिया गया था, जिसमे उपरोक्त निर्णयों में पुन: अनुसरित किया गया है।
- उपरोक्त माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों को दृष्टिगत करते हुए प्रस्तुत मामले में परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि जमा की तिथि से वास्तविक अदायगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाया जाना उचित है। इसके अतिरिक्त 50,000/- रूपये वाद व्यय परिवादी को दिलवाया जाना उचित है। तदनुसार परिवाद आज्ञप्त होने योग्य है।
आदेश परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि मु0 39,26,646/- रू0 तथा इस पर जमा करने की तिथि से वास्तविक अदायगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित परिवादी को एक माह की अवधि के अंदर अदा करें। इसके अतिरिक्त 20,000/- रू0 वाद व्यय परिवादी को अदा करें। अपील में उभय पक्ष वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (न्यायमूर्ति अशोक कुमार)(विकास सक्सेना) संदीप आशु0कोर्ट नं0 1 | |