राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1865/2017
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 146/2015 में पारित आदेश दिनांक 01.08.2017 के विरूद्ध)
Navneet Kumar Garg, s/o Shri Rajendra Kumar Garg, r/o – 16/37, Brahmnpuri, Meerut.
..................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
Meerut Development Authority, through Secretary, Meerut Development Authority.
...................प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : सुश्री तारा गुप्ता,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री सर्वेश कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 23.12.2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-146/2015 नवनीत कुमार गर्ग बनाम मेरठ विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 01.08.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी नवनीत कुमार गर्ग ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से
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विद्वान अधिवक्ता सुश्री तारा गुप्ता उपस्थित आर्इं हैं और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
उभय पक्ष की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया है। मैंने उभय पक्ष के लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी के आश्वासन पर विश्वास करते हुए उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी की शताब्दीनगर आवासीय योजना में एच0आई0जी0 श्रेणी के एक भूखण्ड का दिनांक 20.06.1991 को 11,000/-रू0 जमा कर पंजीकरण कराया। पंजीकरण के दो वर्ष बाद उसे दिनांक 28.08.1993 को प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा आवंटन पत्र जारी किया गया, जिसके अनुसार उसे शताब्दीनगर योजना के फेस-3 में एच0आई0जी0 श्रेणी, 200 वर्गमीटर का भूखण्ड संख्या-बी.47 सेक्टर-7 अंकन 1,48,000/-रू0 में आवंटित किया गया और आवंटन पत्र के अनुसार 29,300/-रू0 दिनांक 30.09.1993 तक जमा करने को अपीलार्थी/परिवादी से कहा गया, परन्तु आवंटन पत्र में कब्जा दिये जाने के सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा गया और
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आवंटन पत्र प्राप्त होने के बाद जब आवंटित भूखण्ड को अपीलार्थी/परिवादी देखने गया तो पाया कि आवंटित भूखण्ड मौके पर मौजूद नहीं है। बताये गये स्थल व उसके चारों तरफ की जमीन पर खेती होती थी और मौके पर कोई विकास कार्य नहीं था। आवंटित भूखण्ड का सीमांकन भी नहीं किया गया था। अत: अपीलार्थी/परिवादी ने इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/विपक्षी से शिकायत की तो उसने बताया कि जल्द ही विकास कार्य पूर्ण कर दिया जायेगा। विकास कार्य पूर्ण होने के बाद इस सम्बन्ध में सूचना मिलने पर किस्तों की धनराशि वह जमा करे, परन्तु कई वर्षों तक प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कोई विकास कार्य नहीं किया और न अपीलार्थी/परिवादी को कोई सूचना भेजा।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण से दिनांक 02.10.2010 को उसे एक पत्र मिला, जिसमें यह उल्लेख था कि उसे जो भूखण्ड आवंटित किया गया था वहॉं विकास कार्य पूर्ण न होने व हवाई पट्टी विस्तारित होने के कारण उसे आवंटित भूखण्ड परिवर्तित कर भूखण्ड संख्या-बी-219 सेक्टर-6 द्वितीय श्रेणी एच0आई0जी0 180 वर्गमीटर कर दिया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी की सहमति के बिना उसे आवंटित भूखण्ड परिवर्तित कर भूखण्ड संख्या-बी-219 सेक्टर-6 द्वितीय श्रेणी एच0आई0जी0 180 वर्गमीटर किया गया था। फिर भी अपीलार्थी/परिवादी उक्त भूखण्ड देखने मौके पर गया
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तो वहॉं भी कोई विकास कार्य नहीं हो रहा था और परिवर्तित भूखण्ड व उसके चारों ओर भूमि पर खेती हो रही थी तथा किसानों का कब्जा था। पुन: अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण से शिकायत की तो उसे बताया गया कि किसानों से समझौते की बात चल रही है। समझौता होते ही पंजीकृत पत्र के द्वारा उसे सूचित कर दिया जायेगा। फिर कई वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी किसानों से समझौता नहीं किया जा सका और न ही विकास कार्य पूर्ण किया गया। उसके बाद दिनांक 02.03.2014 को प्रत्यर्थी/विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण ने पत्र अपीलार्थी/परिवादी को परिवर्तित भूखण्ड संख्या-बी-219 सेक्टर-6 द्वितीय श्रेणी एच0आई0जी0 180 वर्गमीटर शताब्दीनगर योजना मेरठ के सम्बन्ध में भेजा और दिनांक 12.04.2014 तक 1,67,400/-रू0 जमा करने हेतु कहा। उसके बाद पुन: पत्र दिनांक 03.05.2014 को 1,67,104/-रू0 दिनांक 09.06.2014 तक जमा करने हेतु भेजा। उसके बाद पुन: प्रत्यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादी को पत्र दिनांक 08.07.2014 उपरोक्त धनराशि दिनांक 08.08.2014 तक जमा करने हेतु भेजा और यह धमकी दिया कि यदि उक्त धनराशि जमा नहीं की गयी तो उसका आवंटन निरस्त कर दिया जायेगा, जबकि मौके पर आवंटित भूखण्ड का सीमांकन नहीं किया गया था और भूखण्ड पर प्रत्यर्थी/विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण का कब्जा भी नहीं था।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि
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प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा दिनांक 03.03.2015 को हस्ताक्षरित पत्र, जिस पर दिनांक 01.04.2015 अंकित थी, अपीलार्थी/परिवादी को अप्रैल 2015 के अन्तिम सप्ताह में प्राप्त हुआ, जिसमें लिखा था कि अपीलार्थी/परिवादी ने भूखण्ड की बाबत अंकन 97,104/-रू0 जमा नहीं कराये हैं। यदि अपीलार्थी/परिवादी दिनांक 15.04.2015 तक यह धनराशि जमा नहीं करता है तो भूखण्ड का आवंटन निरस्त कर दिया जायेगा। यह पत्र प्राप्त होने पर अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी के कार्यालय से सम्पर्क किया, परन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया और निम्न अनुतोष चाहा:-
(अ) यह कि विपक्षी को निर्देशित किया जाये कि वह परिवादी को आवंटित भूखण्ड संख्या: बी.-219, सेक्टर-6, पार्ट-2, शताब्दी नगर योजना मेरठ के सम्बन्ध में बिना दण्ड ब्याज धनराशि जमा कराकर परिवादी के पक्ष में बैनामा निष्पादित करे।
विकल्प में- भूखण्ड संख्या: बी.-219, सेक्टर-6, पार्ट-2, शताब्दीनगर योजना मेरठ का बैनामा निष्पादित न कि聉ये जाने की दशा में कि聉सी विकसित सेक्टर में उक्त क्षेत्रफल का 18 मीटर पर अन्य कोई भूखण्ड पुरानी दर पर आवंटित कि聉या जाकर परिवादी द्वारा पूर्व में जमा करायी गई धनराशि को समायोजित कर बिना दण्ड ब्याज के शेष कि聉स्ते जमा कराकर परिवादी के पक्ष में बैनामा निष्पादित करें।
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(ब) यह कि聉 विपक्षी को निर्देशित कि聉या जाये कि聉 वह परिवादी को आवंटित भूखण्ड संख्या: बी.-219, सेक्टर-6, पार्ट-2, शताब्दीनगर योजना मेरठ किसी अन्य व्यक्ति को आवंटित न करे।
(स) यह कि विपक्षी को निर्देशित कि聉या जाये कि聉 वह परिवादी को विपक्षी के कारण हुई मानसिक कष्ट एवं आर्थिक क्षति के सम्बन्ध में अंकन-10,00,000/-रू0 क्षति धनराशि एवं अंकन-5,00,000/-रूपये अदा करे।
(द) यह कि अन्य प्रतिकर जो इस योग्य फोरम की राय में उचित हो, परिवादी को विरूद्ध विपक्षी दिलाया जाये।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी ने अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने वर्ष 1991 में पंजीकरण हेतु 11000/-रू0 जमा किया तब उसे भूखण्ड संख्या: बी-47 सेक्टर-7 फेस तृतीय शताब्दीनगर मेरठ वर्ष 1993 में आवंटित किया गया।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने पंजीकरण धनराशि जमा करने के उपरान्त वर्ष 2013 तक करीब 20 वर्षों के दौरान कोई धनराशि जमा नहीं करायी है। अत: वह डिफाल्टर है और उसने आवंटन नियमावली का उल्लंघन किया है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा है कि भूखण्ड में परिवर्तन की जानकारी समय से अपीलार्थी/परिवादी को दी गयी थी और उसने कोर्इ आपत्ति नहीं की थी। आवंटन पत्र के अनुसार
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अपीलार्थी/परिवादी को अंकन 29,300/-रू0 आवंटन धनराशि दिनांक 30.09.1999 तक जमा करनी थी, परन्तु 20 वर्षों तक उसने कोई धनराशि जमा नहीं की और अनेकों मांग पत्र के उपरान्त अपीलार्थी/परिवादी ने 30,000/-रू0 और 20,000/-रू0 तीन किस्तों में वर्ष 2014 में जमा किया है। इसके अतिरिक्त उसने और कोई धनराशि जमा नहीं की है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा भुगतान में डिफाल्ट करने पर उसे आवंटित भूखण्ड दिनांक 05.05.2015 को उपाध्यक्ष के आदेश से विधिवत् निरस्त कर दिया गया है। अपीलार्थी/परिवादी ने यह तथ्य जानबूझकर छिपाया है। उसे वाद ग्रस्त भूखण्ड पर अब कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी को विकसित सेक्टर में भूखण्ड वर्ष 2010 में पुराने नियम व शर्तों के आधार पर आवंटित किया जा चुका है। फिर भी उसने कोई भुगतान नहीं किया है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। विवाद सिविल प्रकृति का है, जिसका निस्तारण जिला फोरम द्वारा सम्भव नहीं है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों
पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी
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द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण को देय किस्त व दण्ड ब्याज की धनराशि 49,53,959/-रू0 है। अत: परिवाद जिला उपभोक्ता फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे होने के आधार पर ही आक्षेपित आदेश के द्वारा निरस्त किया है।
अपीलार्थी/परिवादी की विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद पत्र में याचित अनुतोष के आधार पर परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार के अन्दर है। अपीलार्थी/परिवादी के प्रश्नगत भूखण्ड का मूल्य आवंटन पत्र के अनुसार 20,00,000/-रू0 से कम है। अत: जिला फोरम ने परिवाद को जो अपने आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे मानकर निरस्त किया है, वह उचित नहीं है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय उचित है। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन में स्पष्ट रूप से कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 30.09.1993 तक आवंटन धनराशि 29,300/-रू0 व किस्त की धनराशि जमा करनी थी, परन्तु वर्ष 2013 तक करीब 20 वर्षों तक उसने कोई धनराशि जमा नहीं की है। अत: कम्प्यूटर गणना दिनांक 16.04.2015 के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मा प्रश्नगत भूखण्ड की बाबत दण्ड ब्याज स्वरूप 49,53,959/-रू0 की धनराशि देय है और दण्ड ब्याज की इस धनराशि में अपीलार्थी/परिवादी परिवाद पत्र में याचित अनुतोष
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‘अ’ में छूट चाहता है। ऐसी स्थिति में परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से ऊपर जिला फोरम ने मानकर कोई गलती नहीं की है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी ने जिला फोरम के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा है कि दिनांक 16.04.2015 तक अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मा देय अवशेष धनराशि दण्ड ब्याज सहित 49,53,959/-रू0 है। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने लिखित कथन में यह भी कहा है कि दिनांक 30.09.1993 को आवंटन के बाद अपीलार्थी/परिवादी ने वर्ष 2013 तक कोई धनराशि जमा नहीं की है। अत: दिनांक 16.04.2015 को अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मा अवशेष धनराशि 49,53,959/-रू0 है। अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र अथवा मेमो अपील में यह नहीं कहा है कि प्रश्नगत भूखण्ड के सम्बन्ध में उसके जिम्मा प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा अवशेष धनराशि कितनी बतायी गयी है। परिवाद पत्र में अपीलार्थी/परिवादी ने अनुतोष ‘अ’ इस आशय की चाहा है कि आवंटित भूखण्ड संख्या: बी.-219, सेक्टर-6, पार्ट-2, शताब्दी नगर योजना मेरठ के सम्बन्ध में बिना दण्ड ब्याज धनराशि जमा कराकर उसके पक्ष में बैनामा निष्पादित करने हेतु प्रत्यर्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाये। ऐसी स्थिति में वर्तमान में परिवाद में प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा कथित मूलधन व दण्ड ब्याज की अवशेष धनराशि के आधार पर परिवाद का मूल्यांकन होगा और प्रत्यर्थी/विपक्षी के अनुसार यह धनराशि
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49,53,959/-रू0 है। अपीलार्थी/परिवादी की ओर से प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा कथित अवशेष धनराशि को स्पष्ट नहीं किया गया है। अत: जिला फोरम ने परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से ऊपर मानते हुए जो परिवाद अपने अधिकार क्षेत्र से परे माना है, वह अनुचित और अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है, परन्तु आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे होने पर जिला फोरम को परिवाद सक्षम फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने की छूट के साथ अपीलार्थी/परिवादी को वापस करना चाहिए था। अत: जिला फोरम ने परिवाद आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे होने के आधार पर जो परिवाद निरस्त किया है, वह विधि विरूद्ध है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आदेश अपास्त करते हुए परिवाद अपीलार्थी/परिवादी को सक्षम फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने की छूट के साथ वापस किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1