(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :570/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या-305/2013 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 24-09-2021 के विरूद्ध)
ब्रजभूषण गर्ग, एडवोकेट पुत्र स्व0 श्री रामचन्द्र सहाय निवासी कसेरू बक्सर, मवाना रोड, मेरठ।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
मेरठ विकास प्राधिकरण, मेरठ द्वारा उपाध्यक्ष।
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री वी0 एस0 विसारिया।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री पियूष मणि त्रिपाठी।
दिनांक : 06-09-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-305/2013 ब्रजभूषण गर्ग बनाम उपाध्यक्ष मेरठ विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 24-09-2021 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग, मेरठ ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
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‘’ परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि विपक्षी इस आदेश से एक माह के अंदर परिवादी की जमा पंजीकरण धनराशि अंकन 30,000/-रू0 मय 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज वाद दायरा तिथि ता अंतिम अदायगी तथा अंकन 2,000/-रू0 क्षतिपूर्ति और अंकन 2,000/-रू0 वाद व्यय परिवादी को अदा करें।‘’
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि विपक्षी ने परिवादी को गंगा नगर आवासीय योजना में भूखण्ड संख्या-जी-131 आवंटित किया जिसकी पंजीकरण राशि अंकन 30,000/-रू0 ड्राफ्ट संख्या-32/95 के द्वारा दिनांकित 30-01-1995 को विपक्षी के यहॉं जमा की गयी जिसकी रसीद विपक्षी ने दिनांक 10-03-1995 को परिवादी को दी। परिवादी जब स्थल का निरीक्षण करने गया तो उसे पता चला कि उक्त योजना में स्थल पर उक्त नम्बर का कोई भूखण्ड अस्तित्व में नहीं है और परिवादी ने विपक्षी को भी भूखण्ड की स्थिति की जानकारी देने के संबंध में पत्र लिखे और कहा कि भूखण्ड की स्थिति बतायी जाये ताकि वह शेष धनराशि विपक्षी के यहॉं जमा करा सके परन्तु विपक्षी ने कोई जवाब नहीं दिया। परिवादी ने परेशान होकर विपक्षी से अपनी जमा धनराशि वापस मांगी जिस पर विपक्षी ने कोई कार्यवाही नहीं की न ही कोई उत्तर दिया। अंत में परिवादी ने विपक्षी को एक पत्र दिनांक 29-08-2022 लिखा कि विपक्षी एक सप्ताह के अंदर उसकी जमा धनराशि ब्याज सहित लौटा दे अन्यथा विवश होकर न्यायिक कार्यवाही करनी पड़ेगी परन्तु विपक्षी ने न तो परिवादी की जमा धनराशि वापस की और न ही भूखण्ड की
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स्थिति ही बतायी जो कि विपक्षी के स्तर से सेवा में की है अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद के पैरा-1 को स्वीकार किया और परिवाद पत्र में कहे गये अन्य कथनों को अस्वीकार किया। साथ ही अतिरिक्त कथन में विपक्षी की ओर से यह कहा गया कि परिवाद कालबाधित है। विपक्षी द्वारा परिवादी को गंगा नगर आवासीय योजना में प्रश्नगत भूखण्ड संख्या-जी-131 अंकन रू0 2,68,869.25 पैसे की तत्कालीन अनुमानित कीमत पर 50 प्रतिशत धनराशि नगद भुगतान की शर्त पर आवंटित किया था। उक्त 50 प्रतिशत धनराशि अंकन 1,34,429.66 रूपये में से केवल अंकन 30,000/-रू0 पंजीकरण राशि ही परिवादी द्वारा जमा की गयी है और शेष धनराशि अंकन 1,04,429.66 रूपये जो दिनांक 10-11-1996 तक परिवादी को जमा करना था वह जमा नहीं की गयी है। शेष 50 प्रतिशत धनराशि अंकन रू0 1,34,429.66 रूपये का भुगतान विपक्षी के पत्र दिनांक 01-04-1995 के अनुसार 04 छमाही किश्तों में दिनांक 10-11-1996 तक करना था जिसका भुगतान परिवादी ने नहीं किया। परिवादी द्वारा प्रश्नगत धनराशि का भुगतान आवंटन की शर्तों के अनुसार नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा सम्पर्क करने पर उसे स्पष्ट रूप से बता दिया गया था कि परिवादी ने आवंटन की शर्तों का अनुपालन नहीं किया है इसलिए वह प्रश्गनत भूखण्ड का कब्जा पाने का अधिकारी नहीं है साथ ही यह भी अवगत कराया गया था कि मूल रसीद जमा करके वह अपनी जमा धनराशि रू0 30,000/- विपक्षी के कार्यालय से प्राप्त कर सकता है। विपक्षी की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
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विद्धान जिला आयोग ने समस्त तथ्यों का अवलोकन करने के पश्चात अपने निष्कर्ष में यह मत अंकित किया है कि विपक्षी ने परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी पंजीकरण की धनराशि 30,000/-रू0 परिवादी के मांगे जाने पर उसे अदा नहीं किया न ही कोई समुचित उत्तर ही परिवादी को दिया, जिसे विपक्षी की सेवा में कमी मानते हुए विद्धान जिला आयोग द्वारा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री वी0 एस0 विसारिया उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री पियूष मणि त्रिपाठी उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भली-भॉंति अवलोकन किया।
पत्रावली के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि परिवादी ने भूखण्ड आवंटन हेतु पंजीकरण की धनराशि रू0 30,000/- दिनांक 30-01-1995 को विपक्षी के यहॉं जमा की थी। परिवादी जब पंजीकरण धनराशि जमा करने के पश्चात आवंटित भूखण्ड का निरीक्षण करने पहुँचा तो उसे ज्ञात हुआ कि उस नम्बर का कोई भूखण्ड ही अस्तित्व में नहीं है और परिवादी ने विपक्षी को पत्र लिखकर आवंटित भूखण्ड की स्थिति बताने को कहा, लेकिन विपक्षी ने कोई जवाब नहीं दिया तब विवश होकर परिवादी ने अपनी जमा धनराशि विपक्षी से वापस मांगी जिसे विपक्षी द्वारा अदा नहीं किया गया और विपक्षी टालमटोल करते रहे जो कि विपक्षी के स्तर पर सेवा में घोर कमी का द्योतक है।
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अत: समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए हम इस मत के हैं कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परीक्षण करने के पश्चात जो निर्णय पारित किया गया है वह विधि अनुसार है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 24-09-2021 की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1