Uttar Pradesh

StateCommission

A/1932/2017

Chief Medical Officer Sonbhadra - Complainant(s)

Versus

Meera Devi - Opp.Party(s)

R K Gupta

11 Apr 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1932/2017
( Date of Filing : 25 Oct 2017 )
(Arisen out of Order Dated 27/09/2017 in Case No. c/138/2016 of District Sonbhadra)
 
1. Chief Medical Officer Sonbhadra
Sonbhadra
...........Appellant(s)
Versus
1. Meera Devi
Sonbhadra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 11 Apr 2019
Final Order / Judgement

                                                    (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 1932/2017

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-138/2016 में पारित निर्णय और आदेश दि0 27.09.2017 के विरूद्ध)

  1. मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी सोनभद्र।
  2. उ0प्र0 सरकार द्वारा जिलाधिकारी, सोनभद्र।
  3. डा0 जगत नरायन सिंह, (सेवानिवृत्‍त), शल्‍य चिकित्‍सक शल्‍यक प्रसवोत्‍तर केन्‍द्र राबर्ट्सगंज, जनपद-सोनभद्र।

                                            ...........अपीलार्थीगण।

                           बनाम

मीरा देवी पत्‍नी श्री राजकुमार, निवासिनी- ग्राम अरंगी, पोस्‍ट ओइनी मिश्र, जनपद- सोनभद्र।

                                              ............ प्रत्‍यर्थी। 

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष   

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित       : श्री आर0के0 गुप्‍ता,

                                    विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित             : श्री बनवारी लाल मौर्या,

                                    विद्वान अधिवक्‍ता। 

दिनांक:- 30.05.2019

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

          परिवाद सं0- 138/2016 मीरा देवी बनाम डॉ0 जगत नरायन सिंह व तीन अन्‍य में जिला फोरम, सोनभद्र द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 27.09.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

          आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

          ‘’परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है तथा विपक्षी सं0- 01, 03, व 04 को आदेश दिया जाता है कि वे उ0प्र0 सरकार से मु0 5,00,000/-रू0 मंगाकर परिवादिनी को भुगतान करें। मानसिक व शारीरिक क्षति के रूप में 2,000/-रू0 व वाद व्‍यय के रूप में मु0 3,000/-रू0 का भुगतान विपक्षी सं0- 01, 03, व 04 परिवादिनी को करें। उपरोक्‍त आदेश का पालन एक माह में किया जावे। उपरोक्‍त आदेश के पालन के लिये विपक्षी सं0- 01, 03 व 04 संयुक्‍त रूप से तथा पृथक-पृथक रूप से जिम्‍मेदार होंगे। विपक्षी सं0- 02 के विरुद्ध परिवाद खारिज किया जाता है।‘’

          जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षीगण मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी सोनभद्र, उ0प्र0 सरकार और डॉ0 जगत नरायन सिंह की ओर से यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

          अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के0 गुप्‍ता और प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री बनवारी लाल मौर्या उपस्थित आये हैं।

          मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।  

          अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि परिवाद की विपक्षी सं0- 2 मीरा पाण्‍डेय ए0एन0एम0 ने परिवार नियोजन के सम्‍बन्‍ध में उसे सलाह दी और प्रोत्‍साहित किया तब उसने दि0 23.10.2012 को राबर्ट्सगंज महिला चिकित्‍सा‍लय केन्‍द्र उपरोक्‍त विपक्षी सं0- 2 और अपने पति के साथ गई तथा विपक्षी सं0- 1 डॉ0 जगत नरायन सिंह शल्‍य चिकित्‍सक से सम्‍पर्क किया तब विपक्षी सं0- 1 डॉ0 जगत नरायन सिंह ने उसकी नसबन्‍दी की शल्‍य प्रक्रिया सम्‍पन्‍न की और उसे प्रमाण पत्र प्रदान किया गया तथा उसे उपरोक्‍त विपक्षीगण सं0- 1 और 2 ने आश्‍वस्‍त किया कि ऑपरेशन पूर्ण रूप से ठीक है। उसके बाद वह घर आकर जीवन यापन करने लगी। कुछ दिन पश्‍चात उसे गर्भधारण होने की आशंका हुई तब उसने आस्‍था हॉस्पिटल दीप नगर, राबर्ट्सगंज के महिला चिकित्‍सक डॉ0 वीणा सिंह से जांच कराया तो जांच पर उसे गर्भ पाया गया। यह जानकर उसे बहुत आश्‍चर्य हुआ, क्‍योंकि उसका नसबंदी ऑपरेशन हो चुका है।

          परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसने आस्‍था हॉस्पिटल में एक लड़की को जन्‍म दिया और उसके बाद लड़की के जन्‍म की सूचना परिवाद के विपक्षीगण सं0- 1 व 2 को दिया और नसबंदी प्रक्रिया में उनकी त्रुटि की ओर उनका ध्‍यान आकर्षित किया।

          परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी जन्‍मी लड़की के भरण्‍ा-पोषण एवं भविष्‍य में आने वाली जिम्‍मेदारियों का भार निभाने में असमर्थ है उसकी सारी जिम्‍मेदारी अपीलार्थी/विपक्षीगण की है। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद के उपरोक्‍त विपक्षीगण सं0- 1 व 2 द्वारा अपने ऑपरेशन में की गई चूक की क्षतिपूर्ति के लिए परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

          जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0- 3 व 4 क्रमश: मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी, सोनभद्र व उ0प्र0 सरकार की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है और परिवाद का विरोध किया गया है। इसके साथ ही कहा गया है कि जिला फोरम को वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, क्‍योंकि परिवादिनी के कथनानुसार ही पूर्व परिवाद निर्णीत हो चुका है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0- 3 व 4 की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादिनी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है और परिवाद उपभोक्‍ता विवाद नहीं है।

          जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरांत मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील नं0- 8065/2009 वी0 कृष्‍ण कुमार बनाम स्‍टेट ऑफ तमिलनाडु आदि में दिये गये निर्णय के आधार पर माना है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्‍तरदायी हैं। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित किया गया है।

          अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का नसबंदी ऑपरेशन अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने राजकीय चिकित्‍सक के रूप में बिना किसी प्रतिफल के किया है। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता नहीं है और उसके द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य नहीं है।

          अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपने तर्क के समर्थन में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम V.P. Shantha A.I.R. 1996 S.C. 550 के वाद में दिया गया निर्णय संदर्भित किया है।

          प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश विधि अनुकूल है। जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा V. Krishna kumar Versus State of Tamil nadu and others (2015)9 Supreme court cases 388 के वाद में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर पारित किया है। अपील बल रहित है, अत: निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

          मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

          परिवाद पत्र के कथन से स्‍पष्‍ट है कि परिवाद के अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 डॉ0 जगत नरायन सिंह ने राबर्ट्सगंज महिला चिकित्‍सालय में च‍िकित्‍सक के पद पर कार्यरत रहते हुए प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का नसबंदी ऑपरेशन किया है। परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने ऑपरेशन हेतु कोई प्रतिफल या धनराशि विपक्षी सं0- 1 अथवा विपक्षी सं0- 2 को देने का अभिकथन नहीं किया है और न ही ऐसा कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत किया है। अत: परिवाद पत्र के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के आधार पर यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का ऑपरेशन सरकारी डॉक्‍टर के रूप में बिना किसी प्रतिफल के किया है। ऐसी स्थिति में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम V.P. Shantha A.I.R. 1996 S.C. 550 के निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 की अथवा अन्‍य अपीलार्थी/विपक्षीगण की उपभोक्‍ता, उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं है, क्‍योंकि उनके द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को उपलब्‍ध की गई सेवा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(O) के अंतर्गत सेवा की परिधि में नहीं आती है। अत: जिला फोरम ने उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद ग्रहण कर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है वह विधि विरुद्ध और अधिकार रहित है।

          जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय में जो सिविल अपील नं0- 8065/2009 वी0 कृष्‍ण कुमार बनाम स्‍टेट ऑफ तमिलनाडु आदि (2015)9 सुप्रीम कोर्ट केसेस 388 में पारित माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय का उल्‍लेख किया है वह निर्णय वर्तमान वाद के तथ्‍यों पर लागू नहीं होता है। उपरोक्‍त वाद में वाइकेरियस लाइबेल्‍टी के सम्‍बन्‍ध में सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। इसके साथ ही मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णय के पैरा 3 से स्‍पष्‍ट है कि उक्‍त अपील के प्रत्‍यर्थी सं0- 3 और प्रत्‍यर्थी सं0- 4 जो सरकारी डॉक्‍टर हैं ने बच्‍चे का इलाज प्राइवेट तौर पर भी किया था और मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने उपरोक्‍त प्रत्‍यर्थीगण सं0- 3 और 4 की लापरवाही बच्‍चे के इलाज में पाया है। ऐसी स्थिति में अस्‍तपाल व राज्‍य सरकार को भी माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने वाइकेरियस लाइबेल्‍टी के आधार पर उत्‍तरदायी माना है। वी0 कृष्‍ण कुमार बनाम स्‍टेट ऑफ तमिलनाडु आदि के इस वाद के तथ्‍य वर्तमान वाद के तथ्‍य से भिन्‍न हैं और इस निर्णय का लाभ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम V.P. Shantha A.I.R. 1996 S.C. 550 के वाद में दिये गये निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर वर्तमान वाद में नहीं मिल सकता है।

          उपरोक्‍त विवेचना एवं सम्‍पूर्ण तथ्‍यों व परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी उपभोक्‍त संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)D के अंतर्गत उपभोक्‍ता नहीं है। अत: परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य नहीं है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने परिवाद ग्रहण कर जो निर्णय और आदेश पारित किया है वह अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है। अत: स्थिर रहने योग्‍य नहीं है। अत: अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त करते हुए परिवाद प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को इस छूट के साथ निरस्‍त किया जाता है कि वह अपना दावा विधि के अनुसार सक्षम न्‍यायालय में प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र है।                   

          अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

          अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा अपील में धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थीगण को वापस की जायेगी।

      

 

               (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                                               

                                     अध्‍यक्ष                                   

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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