राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
ए0ई0ए0 सं0- 21/2023
एच0डी0एफ0सी0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम मीनाक्षी शर्मा व अन्य
दिनांक :- 01.05.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
आदेश
निष्पादनवाद सं0- 04/2019 श्रीमती मीनाक्षी शर्मा बनाम एच0डी0एफ0सी0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 में जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा पारित आदेश दि0 18.05.2023 के विरुद्ध यह ए0ई0ए0 राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दि0 18.05.2023 निम्नवत है:-
‘’पत्रावली पेश हुई। विद्वान अधिवक्तागण उभयपक्ष को निष्पादन वाद एवं विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत आपत्ति पर सुना गया। डिकीदार की ओर से परिवाद सं- 282/2016 में पारित किये गये निर्णयादेश दिनांकित 27.11.2018 का पालन कराने के लिए यह प्रार्थना प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद सं- 282/2016 श्रीमती मिनाक्षी शर्मा बनाम एचडीएफसी बैंक लि0 आदि में जिला फोरम द्वारा दिनांक 27.11.2018 को परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी-2 बीमा कंपनी को आदेशित किया गया था कि वह परिवादी को बीमित धनराशि अंकन 14,99.805/- रूपये मय 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज बीमित विवेक शर्मा की मृत्यु के दिनांक 08.03.2016 से भुगतान की तिथि तक तथा मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए अंकन-50,000/- रूपये एवं अंकन-10,000/- रूपये परिवाद व्यय निर्णय के दिनांक से एक माह के अंदर अदा करे। विपक्षी-2 को उक्त अवार्ड धनराशि को सर्वप्रथम विपक्षी-1 फाईनेंस बैंक की समस्त बाजिव ऋण धनराशि (जो परिवादनी व उसके पति द्वारा लिया गया था) अदा करने और शेष धनराशि परिवादनी को अदा करने हेतु निर्देशित किया गया था। विपक्षी-1 बैंक को यह निर्देश दिया गया था कि वह ऋण राशि प्राप्त करने के एक माह के अंदर परिवादनी को उसके भवन के मूल अभिलेख व नो ड्यूज प्रमाण पत्र जारी करे। इस निर्णय के विरूद्ध कोई अपील अथवा निगरानी प्रस्तुत नहीं की गई और यह निर्णय अंतिम रहा।
विपक्षी-1 बैंक ने 6सी प्रार्थना पत्र दिनांकित 03.01.2020 प्रस्तुत करते हुए यह कहा गया है कि विपक्षी-2 ने मृतक विवेकशर्मा की पालिसी का मुआवाजा धनराशि अंकन 12,03,376/- रूपये दिनांक 16.08.2019 को भुगतान कर दिया है और उक्त धनराशि घटाने के पश्चात विवेक शर्मा द्वारा लिये गये ऋण खाता सं-618232986 में दिनांक 31.12.2019 तक मय ब्याज 8,56,382/- रूपये शेष हैं और अन्य टॉपअप ऑन ऋण खाता सं-618232618 में दिनांक 31.12.2019 तक अंकन-5,69,418/-रूपये शेष हैं। उक्त दोनों ऋण खातों में कुल धनराशि अंकन-14,25,000/- रुपये दिनांक 31.12.2019 तक मय ब्याज शेष हैं और इस धनराशि का भुगतान उसे कराया जाये। विपक्षी-2 बीमा कंपनी की ओर से यह कहा गया है कि उसने अंकन-12,03,376/- रूपये का भुगतान दिनांक 16.08.2019 को विपक्षी-1 बैंक को कर दिया है और यही धनराशि उसने बतायी थी तथा शेष धनराशि अंकन-1,96,199/- रूपये व 5,56,602/-रूपये के चेक पत्रावली पर दिनांक 26.04.2021 को दाखिल कर दिये हैं। विपक्षी-2 ने मिनाक्षी शर्मा के नाम दो चेक पत्रावली पर दाखिल किये हैं, जिनको उसने प्राप्त नहीं किया है और इन दोनों चेक्स का भुगतान बीमा कंपनी द्वारा नहीं किया गया है। परिवाद सं-282/2016 उपरोक्त में पारित निर्णय के अनुसार अंकन-14,99,805/- रूपये मय 10 प्रतिशत ब्याज दिनांक 08.03.2016 से अंतिम भुगतान तिथि तक तथा अंकन-60.000/- रूपये की अदायगी विपक्षी-2 बीमा कंपनी द्वारा किये जाने का निर्देश दिया गया है। विपक्षी-2 ने दिनांक 16.08.2019 को अंकन 12,03,376/- रूपये का भुगतान विपक्षी-1 बैंक को किया है। कार्यालय रिपोर्ट के अनुसार अंकन-14,99,805/- रूपये पर दिनांक 16.08.2019 तक ब्याज लगाकर कुल अंकन-20,15,571/- रूपये धनराशि आती है और इसमें से भुगतान की गई धनराशि अंकन-12,03,376/- रूपये घटाने के बाद अवशेष धनराशि अंकन-8,12,195/- रूपये आती है और इस धनराशि पर दिनांक 17.08.2019 से 15.05.2023 तक ब्याज राशि अंकन-3,04,120/- रूपये आती है। इस प्रकार बीमा कंपनी पर कुल देय धनराशि अंकन-8,12,195/-रूपये और अंकन-3,04,120/- रूपये व अंकन-60,000/- रूपये कुल अंकन-11,76,315/-रूपये अवशेष निकलती है। विपक्षी-2 पर दिनांक 15.05.2023 तक अंकन-11,76,315/- रूपये शेष है। अतएव विपक्षी-2 उक्त धनराशि एक माह के अंदर आयोग में जमा करे। पत्रावली वास्ते सुनवाई प्रार्थना पत्र 6सी दिनांकित 03.01.2020 दिनांक 17.07.2023 को पेश हो।‘’
हमने अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री प्रसून श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी को सुना। प्रश्नगत आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों को सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया। प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
प्रश्नगत आदेश के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार वर्तमान अपील निरस्त की जाती है।
पत्रावली दाखिल दफ्तर की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 1