Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/187

U P Avas Vikas Parishad - Complainant(s)

Versus

Meena Gupta - Opp.Party(s)

Manoj Mohan

27 Nov 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/187
( Date of Filing : 03 Feb 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. U P Avas Vikas Parishad
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Meena Gupta
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 27 Nov 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-187/2011

उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद व अन्‍य

बनाम 

मीना गुप्‍ता निवासी 16 एम0आई0जी0 आवास विकास परिषद

समक्ष:-                                                            

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

उपस्थिति:-

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री मनोज मोहन, विद्धान अधिवक्‍ता

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित:- श्री अतुल कीर्ति, विद्धान अधिवक्‍ता

दिनांक :27.11.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.            परिवाद संख्‍या-066/2008, मीना गुप्‍ता बनाम सम्‍पत्ति प्रबंधक अधिकारी उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषाद व अन्‍य में विद्वान जिला आयोग, लखीमपुर खीरी द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक         21.12.2010 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
  2.          जिला उपभोक्‍ता आयोग ने 1 माह के अंदर अंकन 3,68,230/-रू0 अधिक वसूली गयी राशि 09 प्रतिशत ब्‍याज के साथ वापस लौटाने का आदेश पारित किया है।
  3.         परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार है कि अपील सं0 676/1994 में उत्‍तर प्रदेश राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग द्वारा दिनांक 23.02.2007 को यह आदेश पारित किया गया था कि विपक्षीगण परिवादिनी से 14.5 प्रतिशत की दर ब्‍याज वसूल करे, परंतु विपक्षीगण द्वारा 17.5 प्रतिशत की दर से ब्‍याज लिया गया और इसके बाद रजिस्‍ट्री करायी गयी है, इसलिए कुल अंकन 3,68,230/-रू0 अधिक वसूला गया है। परिवादिनी इस राशि को राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय की ति‍थि से 18 प्रतिशत ब्‍याज के साथ वापस प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है।
  4.      विपक्षीगण का कथन है कि अपील सं0 676/1994 के आदेश का ही पालन किया गया है, केवल 14.5 प्रतिशत की दर से ब्‍याज वसूला गया है न कि 17.5 प्रतिशत की दर से। यह भी कथन किया गया है कि परिवादिनी ने समय पर किश्‍तों का भुगतान नहीं किया, इस कारण अनुबंध के अनुसार 18 प्रतिशत ब्‍याज लगाया गया है तथा बकाया धनराशि 8,98,045/-रू0 वसूली गयी है तथा कुल राशि 9,51,547/-रू0 प्राप्‍त की गयी है। परिवादिनी को 02 वर्ग मीटर अतिरिक्‍त भूमि दी गयी है, जिसका मूल्‍य 13,090/-रू0 बनता है। लीज रेन्‍ट तथा फ्री होल्‍ड शुल्‍क 25,412/-रू0 बनता है। परिवादिनी से अधिक धनराशि नहीं वसूली गयी है ।
  5.          जिला उपभोक्‍ता आयोग ने आदेश के अनुक्रम में 17.5 प्रतिशत ब्‍याज की दर से वसूली गयी अधिक राशि वापस लौटाने का आदेश पारित किया है।
  6.          दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍ता को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि पूर्व में परिवादिनी द्वारा परिवाद सं0 105/1993 श्रीमती मीना गुप्‍ता बनाम उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद प्रस्‍तुत किया गया था, जिस पर दिनांक 24.02.1994 को निर्णय पारित हुआ। इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील सं0 676/1994 विकास परिषद द्वारा प्रस्‍तुत की गयी तथा अपील सं0 2428/1994 स्‍वयं विकास परिषद द्वारा प्रस्‍तुत की गयी। इन दोनों अपीलों का निस्‍तारण दिनांक 23.02.2007 को हुआ, जिसमें आदेश पारित किया गया कि 14.5 प्रतिशत की दर से ब्‍याज वसूला जाए। इस निर्णय के पश्‍चात परिवाद सं0 66/2008 प्रस्‍तुत करने का वैधानिक अधिकार परिवादिनी को प्राप्‍त नहीं था। राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग द्वारा जो निर्णय पारित किया गया था, वह परिवाद सं0 105/1993 के निर्णय में समाहित हो चुका था। अत: परिवाद सं0 105/1993 मे पारित निर्णय का ही अनुपालन सुनिश्चित कराया जाना चाहिए था न कि दूसरा परिवाद प्रस्‍तुत किया जाना चाहिए था। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने इस स्थिति को समझ तो लिया, परंतु यह उल्‍लेख कर दिया कि राज्‍य उपभोक्‍ता  आयोग द्वारा पारित निर्णय के निष्‍पादन हेतु यह परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है और निष्‍पादन कार्यवाही को सुनने का जिला उपभोक्‍ता आयोग को पूर्ण अधिकार है। यह निष्‍कर्ष स्‍वयं में विरोधाभासी है। परिवाद सं0 66/2008 प्रस्‍तुत करना तथा परिवाद सं0 105/1993 में पारित निर्णय/डिक्री के निष्‍पादन के लिए आवेदन प्रस्‍तुत करना 2 भिन्‍न-भिन्‍न विषय हैं। परिवाद सं0 105/1993 में पारित निर्णय का निष्‍पादन कराया जाना चाहिए था न कि उसी वाद कारण के आधार पर एक नया परिवाद सं0 66/2008 प्रस्‍तुत किया जाना चाहिए था, यह परिवाद प्रांग न्‍यायिक सिद्धांत से बाधित है, यहां यह भी उल्‍लेख किया जाता है कि यद्यपि पक्षकार द्वारा इस बिन्‍दु पर कोई बहस नहीं की गयी, परंतु सीपीसी की धारा 11 के प्रावधान को मान्‍यता प्रदान करने का दायित्‍व न्‍यायालय का है, चूंकि एक ही विषय पर एक ही वाद कारण पर एक ही पक्षकारों के बीच सक्षम न्‍यायालय द्वारा अंतिम रूप से सुनवाई करते हुए अपना निष्‍कर्ष दिया जाना चाहिए था, इसी निष्‍कर्ष का निष्‍पादन कराया जाना चाहिए था न कि दूसरा परिवाद सं0 066/2008 प्रस्‍तुत किया जाना चाहिए था। अत: इस परिवाद पर पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त होने योग्‍य है।  

आदेश

          प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता  आयोग द्वारा परिवाद सं0-66/2008 में पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त किया जाता है। संधारणीय न होने के कारण परिवाद खारिज किया जाता है।

          उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

    आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

         

(सुधा उपाध्‍याय)(सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

 

 

      संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2

  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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