जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 152/2014
प्रेमसिंह अध्यापक पुत्र श्री भागीरथराम चैधरी, निवासी-कृश्णा विहार काॅलोनी, कुचामन काॅलेज के पास, कुचामन सिटी, तहसील-कुचामन सिटी, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. प्रबन्धक, इंदिरा गांधी नेषनल ओपन यूनिवर्सिटी, मैदान गरी, नई दिल्ली-110068
2. क्षेत्रीय प्रबन्धक, इग्नू रिजनल सेंटर जरिये ओंकारमल सोमानी काॅलेज आॅफ काॅमर्स, जोधपुर-342008
3. प्रबन्धक, इग्नू स्टेडी सेंटर, कुचामन काॅलेज, कुचामन सिटी, तहसील कुचामन सिटी, जिला नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री पीर मोहम्मद खान, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री दीनदयाल पुरोहित, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 तथा श्री ओमप्रकाष पुरोहित, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 2 व 3।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 01.06.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी एम.एस.सी., बी.एड. डिग्रीधारी तथा आगे उच्च षिक्षा प्राप्त करना चाहता है। परिवादी वर्तमान में राजकीय माध्यमिक विद्यालय नम्बर 2, कुचामन सिटी, तहसील कुचामन सिटी, जिला नागौर में अध्यापक के पद पर कार्यरत है। परिवादी ने अप्रार्थीगण से दुरूस्थ षिक्षा प्राप्त करने के लिए यानि एम.एड. करने के लिए दिनांक 14.07.2014 को अप्रार्थी संख्या 3 के षाखा कार्यालय, कुचामन सिटी में 1,000/- रूपये नकद जमा करवाकर एम.एड. एन्टेªंस टेस्ट, 2014 के लिए आवेदन संख्या 11237 प्राप्त कर उसे भरकर विधिवत् रूप से जरिये स्पीड पोस्ट अप्रार्थी संख्या 2 के कार्यालय में भिजवाया। इसके बाद परिवादी एम.एड. एन्टेªंस टेस्ट, 2014 की तैयारी में जुट गया, परीक्षा दिनांक 17.08.2014 को होनी थी। इसके चलते परिवादी ने दिनांक 14.08.2014 को अप्रार्थीगण की वेबसाइट से काॅल लेटर निकालना चाहा तो पाया कि अप्रार्थी ने परिवादी को एम.एड. के स्थान पर बी.एड. का काॅल लेटर जारी कर दिया गया तथा बी.एड. का एनरोलमेंट नम्बर 653300504 जारी किया गया। इसे देखकर परिवादी के होष उड गये और उसने तुरन्त अप्रार्थीगण से सम्पर्क किया तो अप्रार्थी संख्या 3 ने अप्रार्थी संख्या 2 से सम्पर्क करने का कहा। परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से सम्पर्क करने के लिए उनके लेड लाईन फोन पर काॅल किया मगर किसी ने फोन रिसीव नहीं किया। जिस पर परिवादी ने अपनी मेल आई.डी. से अप्रार्थी संख्या 2 की मेल आई.डी. पर उक्त सूचना भेजी तो वहां से रिजनल आॅफिस, जोधपुर से सम्पर्क करने का कहा गया। परिवादी का उसी दिन 300 किमी दूर जोधपुर जाना संभव नहीं हुआ। परिवादी ने उसी दिन रिजनल आॅफिस, जयपुर के लेडलाइन फोन पर सम्पर्क किया तो वहां से अप्रार्थी संख्या 2 रिजनल आॅफिस जोधपुर के जिम्मेदार अधिकारी के मोबाइल नम्बर दिये, जिस पर उनसे सम्पर्क किया गया तो उन्होंने कोई संतोशजनक जवाब नहीं दिया। इसके बाद परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 के दूरभाश नम्बर पर सम्पर्क किया तो उन्होंने मेल आई.डी. पर षिकायत करने का कहा तथा उसे एम.एड. का काॅल लेटर जारी करने का विष्वास भी दिया। परिवादी ने उक्त मेल आई.डी. पर भी षिकायत दर्ज करवा दी, लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को एम.एड. का काॅल लेटर जारी नहीं किया गया। अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को डाक से भी बी.एड. का ही काॅल लेटर जारी किया गया। परिवादी को दिनांक 16.08.2014 तक एम.एड. का काॅल लेटर जारी नहीं किये जाने से वह दिनांक 17.08.2014 को होने वाली एम.एड. की परीक्षा से भी वंचित रह गया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को आवेदन के 1,000/- रूपये मय ब्याज के अप्रार्थीगण से दिलाये जावें। साथ अप्रार्थीगण के उक्त कृत्य की वजह से परिवादी को हुई मानसिक क्षति के 70,000/- रूपये एवं परिवाद खर्च के 15,000/- रूपये दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का अपने जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी ने अपनी परीक्षा को लेकर जैसे ही अप्रार्थीगण से सम्पर्क किया तो अप्रार्थी संख्या 3 ने परिवादी को तुरन्त अप्रार्थी संख्या 2 से सम्पर्क करने को कहा तथा बताया कि आप व्यक्तिगत रूप से वहां जाकर एनरोलमंेट नम्बर अनुसार एडमिषन कार्ड में परिवर्तन एवं संषोधन करवा लें क्योंकि अप्रार्थी संख्या 3 के पास संषोधन का अधिकार नहीं है तथा इस बारे में क्षेत्राधिकार अप्रार्थी संख्या 2 के पास है। परिवादी को यह भी बताया गया कि उसे स्वयं अपने मूल दस्तावेज लेकर पहुंचना होगा जहां दस्तावेजों के वेरिफिकेषन के बाद समस्या का निवारण कर दिया जाएगा। इसके बाद परिवादी का कर्तव्य था कि वह अप्रार्थी संख्या 2 से मिलता तथा अपने दस्तावेज पेष कर अपनी समस्या का निवारण करवाता। लेकिन परिवादी ज्यादा दूरी का बताता रहा और उनके कार्यालय में उपस्थित ही नहीं हुआ। जबकि अप्रार्थी संख्या 2 व 3 तो उसे कहते रहे िकवह मूल दस्तावेजों के साथ उपस्थित होकर अपने प्रवेष-पत्र में सुधार करवा ले, लेकिन परिवादी ने ऐसा नहीं किया। इस तरह अप्रार्थीगण की ओर से बताये जाने के बावजूद परिवादी ने प्रवेष पत्र में संषोधन नहीं करवाया। परिवादी किसी प्रकार का हर्जा खर्चा पाने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवादी का परिवाद मय हर्जा खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस अंतिम योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण द्वारा षुल्क लेने के बावजूद सेवा दोश किया गया है। जिससे परिवादी एम.एड. की परीक्षा देने से वंचित रहा। ऐसी स्थिति में परिवादी का परिवाद मय हर्जा-खर्चा स्वीकार किया जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण सेवा प्रदाता नहीं है तथा परिवादी उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आता है। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में माननीय राश्ट्रीय आयोग द्वारा दिनांक 06.08.2012 को दिल्ली विष्वविद्यालय बनाम मोहम्मद ए.एम. अबलकरीम में पारित आदेष की प्रति अवलोकन हेतु पेष की है।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णय के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली का अवलोकन करने के साथ ही सुसंगत विधि का अवलोकन किया गया। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित दिल्ली विष्वविद्यालय वाले मामले में परिवादी ने पी.एच.डी. कोर्स हेतु विष्वविद्यालय में पंजीयन कराया था, जिसे बाद में विष्वविद्यालय ने किन्ही कारणों से निरस्त कर दिया तथा यह मामला राश्ट्रीय आयोग में आने पर माननीय राश्ट्रीय आयोग का मत रहा कि यह मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत चलने योग्य नहीं है। माननीय राश्ट्रीय आयोग ने इस मामले को निर्णित करने हेतु मुख्य रूप से बिहार स्कूल एक्जामिनेषन बोर्ड बनाम सुरेष प्रसाद सिन्हा (2009) 8 एस.सी.सी. 483 वाले मामले का अवलम्ब लिया है, जिसमें माननीय उच्चतम् न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि ष्ज्ीम चतवबमेे व िीवसकपदह मगंउपदंजपवदेए मअंसनंजपदह ंदेूमत ेबतपचजेए कमबसंतपदह तमेनसजे ंदक पेेनपदह बमतजपपिबंजमे ंतम कपििमतमदज ेजंहमे व िं ेपदहसम ेजंजनजवतल दवद.बवउउमतबपंस निदबजपवदण् प्ज पे दवज चवेेपइसम जव कपअपकम जीपे निदबजपवद ंे चंतजसल ेजंजनजवतल ंदक चंतजसल ंकउपदपेजतंजपअमण् ॅीमद जीम म्गंउपदंजपवद ठवंतक बवदकनबजे ंद मगंउपदंजपवद पद कपेबींतहम व िपजे ेजंजनजवतल निदबजपवदए पज कवमे दवज वििमत पजे श्ेमतअपबमेश् जव ंदल बंदकपकंजमण् छवत कवमे ं ेजनकमदज ूीव चंतजपबपचंजमे पद जीम मगंउपदंजपवद बवदकनबजमक इल जीम ठवंतकए ीपतमे वत ंअपसे व िंदल ेमतअपबमे तिवउ जीम ठवंतक वित ं बवदेपकमतंजपवदण् व्द जीम वजीमत ींदकए ं बंदकपकंजम ूीव चंतजपबपचंजमे पद जीम मगंउपदंजपवद बवदकनबजमक इल जीम ठवंतकए पे ं चमतेवद ूीव ींे नदकमतहवदम ं बवनतेम व िेजनकल ंदक ूीव तमुनमेजे जीम ठवंतक जव जमेज ीपउ ंे जव ूीमजीमत ीम ींे पउइपइमक ेनििपबपमदज ादवूसमकहम जव इम पिज जव इम कमबसंतमक ंे ींअपदह ेनबबमेेनिससल बवउचसमजमक जीम ेंपक बवनतेम व िमकनबंजपवदय ंदक प िेवए कमजमतउपदम ीपे चवेपजपवद वत तंदा वत बवउचमजमदबम अपे. .अपे वजीमत मगंउपदततेण् ज्ीम चतवबमेे पे दवज जीमतमवितम ंअंपसउमदज व िं ेमतअपबम इल ं ेजनकमदजए इनज चंतजपबपचंजपवद पद ं हमदमतंस मगंउपदंजपवद बवदकनबजमक इल जीम ठवंतक जव ंेबमतजंपद ूीमजीमत ीम पे मसपहपइसम ंदक पिज जव इम बवदेपकमतमक ंे ींअपदह ेनबबमेेनिससल बवउचसमजमक जीम ेमबवदकंतल मकनबंजपवद बवनतेमण् ज्ीम मगंउपदंजपवद मिम चंपक इल जीम ेजनकमदज पे दवज जीम बवदेपकमतंजपवद वित ंअंपसउमदज व िंदल ेमतअपबमए इनज जीम बींतहम चंपक वित जीम चतपअपसमहम व िचंतजपबपचंजपवद पद जीम मगंउपदंजपवदण् ज्ीम ।बज कवमे दवज पदजमदक जव बवअमत कपेबींतहम व िं ेजंजनजवतल निदबजपवद व िमगंउपदपदह ूीमजीमत ं बंदकपकंजम पे पिज जव इम कमबसंतमक ंे ींअपदह ेनबबमेेनिससल बवउचसमजमक ं बवनतेम इल चंेेपदह जीम मगंउपदंजपवदण् ज्ीम ंिबज जींज पद जीम बवनतेम व िबवदकनबज व िजीम मगंउपदंजपवदए वत मअंसनंजपवद व िंदेूमत.ेबतपचजेए वत नितदपेीपदह व िउंता.ेीममजे वत बमतजपपिबंजमेए जीमतम उंल इम ेवउम दमहसपहमदबमए वउपेेपवद वत कमपिबपमदबलए कवमे दवज बवदअमतज जीम ठवंतक पदजव ं ेमतअपबम.चतवअपकमत वित ं बवदेपकमतंजपवदए दवत बवदअमतज जीम मगंउपदमम पदजव ं बवदेनउमत ूीव बंद उंाम ं बवउचसंपदज नदकमत जीम ।बजण् ज्ीम ठवंतक पे दवज ं ेमतअपबम.चतवअपकमत ंदक ं ेजनकमदज ूीव जंामे ंद मगंउपदंजपवद पे दवज ं बवदेनउमत ंदक बवदेमुनमदजसलए बवउचसंपदज नदकमत जीम ।बज ूपसस दवज इम उंपदजंपदंइसम ंहंपदेज जीम ठवंतकण्ष्
7. इसी प्रकार माननीय उच्चतम् न्यायालय ने हाल ही में सिविल अपील नम्बर 697/14 इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ बैंक एण्ड फाईनेंस बनाम मुकुल श्रीवास्तव में पारित निर्णय दिनांक 17.01.2014 में भी 2009 (8) एस.सी.सी. बिहार स्कूल एग्जामिनेषन बोर्ड बनाम सुरेष प्रसाद सिन्हा के साथ-साथ महर्शि दयानन्द यूनिवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर 2010 (11) एस.सी.सी. 159 एवं जगमित्र सेन भगत बनाम डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज हरियाणा व अन्य 2013 (10) एस.सी.सी. 136 का उल्लेख करते हुए यह अभिनिर्धारित किया है कि परिस्थितियों को देखते हुए स्टूडेन्ट को उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।
8. माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णय में अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में हस्तगत मामले का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि हस्तगत मामले के तथ्यों को देखते हुए परिवादी उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आता है तथा न ही अप्रार्थीगण इस मामले में सेवा प्रदाता ही रहे हैं। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी का मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत जिला मंच में चलने योग्य न होने से खारिज किया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
9. परिणामतः परिवादी प्रेमसिंह द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थीगण खारिज किया जाता है। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करें।
10. आदेष आज दिनांक 01.06.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या