जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद 48/2015
बजरंगलाल पुत्र श्री तुलसीराम, जाति-जोषी, निवासी-कृश्णा गौषाला के पास, श्रीबालाजी, तहसील व जिला- नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अध्यक्ष, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता (ओ. एण्ड एम.), वृत-नागौर, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता (ग्रामीण), अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री यज्ञदत सारस्वत, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 05.05.2016
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का एक घरेलू विद्युत कनेक्षन खाता संख्या 2013-0173 है। परिवादी ने समय-समय पर अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिलों को यथा समय भुगतान किया है। इसके बावजूद भी फरवरी, 2015 का बिल 21,478/- रूपये का जारी किया गया जबकि परिवादी में पिछले बिलों की कोई राषि बकाया नहीं थी। परिवादी ने इस बारे में पता किया तो बताया गया कि वर्श 2011-12 व 2013-14 में आंतरिक अंकेक्षण में 20,202/- रूपये की राषि बकाया है। जबकि परिवादी मीटर के आधार पर सभी बिलों का भुगतान करता आया है। परिवादी के जिस औसत बिलिंग को आधार बनाया गया है तथा अंकेक्षण की राषि निकाली गई है वो गलत है। परिवादी ने मीटर संख्या 9241940 से वर्श 2011 से 2014 तक जो विद्युत उपभोग किया वो सही था। बाद में जनवरी, 2015 में परिवादी के यहां नया मीटर संख्या 5498218 लगा दिया गया। लेकिन इन दोनों मीटरों से परिवादी के विद्युत उपभोग में कोई परिवर्तन नहीं आया, इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने औसत बिलिंग को आधार बनाकर परिवादी में 4012 यूनिट उपभोग बताते हुए 20,202/- रूपये की राषि बकाया निकाल दी जो गलत है। अप्रार्थीगण इस तरह से 2011-12 एवं 2013-14 की अंकेक्षण के नाम पर राषि बकाया नहीं निकाल सकते। अप्रार्थीगण ने कब और किस तिथि को ऐसा अंकेक्षण किया गया यह भी नहीं बताया। इस तरह अप्रार्थी संख्या 3, परिवादी से गलत तरह से बिल की राषि वसूलने को आमाद है। गलत बिल को लेकर परिवादी ने अप्रार्थीगण को षिकायत भी की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। परिवादी 7 फरवरी, 2015 को जारी बिल में से वर्तमान उपभोग के 1,605/- रूपये, जिसमें से रिबेट राषि 93/- रूपये घटाकर 1,512/- रूपये जमा करवाने को तैयार है। ऐसे में परिवादी को फरवरी, 2015 में गलत जारी बिल को निरस्त कर 1,512/- रूपये का संषोधित बिल जारी करें। परिवादी को परिवाद में अंकित अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि अप्रार्थीगण निगम की आॅडिट पार्टी ने परिवादी के विद्युत खाते की जांच की है, जिसमें उन्होंने परिवादी के खाते में 20,202/- रूपये की राषि बकाया निकाली है। जो नियमानुसार होने से वसूली योग्य है। परिवादी के विद्युत बिल में उक्त राषि जोडने से पूर्व परिवादी को अप्रार्थीगण के कार्यालय से नोटिस संख्या 3189, दिनांक 14.10.2014 दिया गया था। मगर परिवादी नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया और सीधे ही मंच में परिवाद पेष कर दिया। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद को मय हर्जा खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी लघु ग्रामीण कम विद्युत उपभोग करने वाला उपभोक्ता है। ऐसी स्थिति में पिछली उपयोग में ली गई विद्युत उपभोग को आधार बनाकर आंतरिक अंकेक्षण रिपोर्ट अनुसार बकाया राषि वसूल नहीं की जा सकती। उनका यह भी तर्क रहा है कि यदि मीटर खराब था तो अप्रार्थीगण का ही दायित्व था कि उसे यथासंभव षीघ्रतम अवसर पर बदलकर नया लगाते लेकिन अप्रार्थीगणों द्वारा लम्बे समय तक मीटर नहीं बदला गया। ऐसी स्थिति में अब जो गलत बिल जारी किये गये हैं उन्हें निरस्त किया जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्यायनिर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) 2014 (4) सीपीआर 98 (एनसी) चीफ इंजीनियर विद्युत विभाग व अन्य बनाम विरेन्द्रकुमार
(2.) 2013 (4) सीपीआर पेज 547 (एनसी) चैयरमेन जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम महेन्द्रसिंह
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि मीटर र्बाइंडर की रिपोर्ट के अनुसार परिवादी का मीटर खराब होने के कारण मई, 2014 में मीटर बदला गया तथा जितने समय तक मीटर खराब रहा उस अवधि बाबत् उपभोक्ता द्वारा पूर्व के तीन माह में उपभोग की गई विद्युत यूनिट अनुसार गणना करते हुए आंतरिक अंकेक्षण पार्टी ने रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा उसी आधार पर परिवादी को बकाया वसूली योग्य राषि बाबत् नोटिस जारी कर बताया गया कि यदि कोई आपति हो तो पन्द्रह दिवस के भीतर एतराज प्रस्तुत करें लेकिन परिवादी द्वारा इस नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया जाकर न्यायालय में यह परिवाद पेष किया गया जो पोशणीय न होने से खारिज किया जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में 2013 (8) एससीसी पेज 491 उतरप्रदेष पावर कारपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद का न्याय निर्णय पेष करने के साथ ही राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा अपील संख्या 1287/10 में पारित आदेष दिनांकित 19.12.2014 की प्रति भी पेष की है।
6.3, 2012, 20142103/173220,202/- 112013 (8) 491
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
It is also an admitted fact that the outstanding amount in the disputed electric bill challenged by the complainant has been sought from him, has been computed on the basis of audit report. This Commission in appeal NO. 1496/1995 titled RSEB Vs. Dallu Ram decided on 01.11.1999 has held that an amount can be recovered from the consumer on the basis of audit report and the validity of the audit report can be challenged in a Civil Court, but such a demand cannot be termed as a deficiency in service.
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी मीटर बाईंडर की रिपोर्ट के पष्चात् आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी बजरंगलाल द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।
8. आदेश आज दिनांक 05.05.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या