Rajasthan

Ajmer

CC 359/2013

KAMEL SINGH - Complainant(s)

Versus

MAX NEWYORK LIFE INS - Opp.Party(s)

ADV RAMESH VERMA

02 Feb 2017

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC 359/2013
 
1. KAMEL SINGH
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. MAX NEWYORK LIFE INS
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Vinay Kumar Goswami PRESIDENT
  Naveen Kumar MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 02 Feb 2017
Final Order / Judgement

जिला    मंच,     उपभोक्ता     संरक्षण,         अजमेर


कमल सिंह पंवार पुत्र श्री जेठमल पंवार, उम्र- 63 वर्ष, निवासी-  मकान नं. 279/34, सुमन कुंज, दयाल बीड़ी फैक्ट्री, पाल बीचला, अजमेर  एवं मकान नं. 76,  एचबी नगर, नाका मदार, अजमेर । 
                                                -         प्रार्थी


                           बनाम

1. मैक्स न्यूयार्क लाईफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, पंजीकृत पता मैक्स हाउस, तृतीय मंजिल, डां.झा मार्ग, ओकला, नई दिल्ली-110020 जरिए प्रबन्धक । 
2. मैक्स न्यूयार्क  लाईफ इंष्योरेंस कम्पनी जरिए प्रबन्धक, षाखा अजमेर , गौरव पथ, वैषाली नगर, अजमेर । 

                                          -       अप्रार्थीगण
                 परिवाद संख्या 359/2013  

                            समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी       अध्यक्ष
                 2. श्रीमती ज्योति डोसी       सदस्या
3. नवीन कुमार               सदस्य

                           उपस्थिति
                  1.श्री कमल सिंह, प्रार्थी स्वयं 
                  2.श्री नितेष राज,  अधिवक्ता अप्रार्थी बीमा कम्पनी 

                              
मंच द्वारा           :ः- निर्णय:ः-      दिनांकः- 14.02.2017
 
1.             संक्षिप्त तथ्यानुसार  प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी से दिनांक 23.3.2009 को रू. 25,000/- की अद्र्ववार्षिक प्रीमियम  जमा करा कर बीमा पाॅलिसी संख्या 741357602 प्राप्त की । जिसकी द्वितीय प्रीमियम  सितम्बर, 2009 को जमा कराई।  किन्तु तृतीय प्रीमियम किष्त जमा कराने बाबत् अपार्थी बीमा कम्पनी की ओर से कोई सूचना प्राप्त नही ंहोने के कारण जमा नहीं करवाई  गई बल्कि दिनांक 5.10.2010 को तृतीय व चतुर्थ प्रीमियम की किष्त  जरिए चैक अदा की । जिसे अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने स्वीकार करते हुए  अपने   अधिकृत  षर्मा अस्पताल, आदर्षनगर से  उसका मेडिकल करवाए जाने के बाद  दिनंाक 13.10.2010 को उसे प्रष्नगत बीमा पाॅलिसी को नियमित करने की प्रक्रिया विचाराधीन होना बताया । तत्पष्चात् अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने जरिए पत्र दिनंाक 18.1.2011 के द्वारा उसका पुनः मेडिकल कराए जाने की कहे जाने पर उसने उक्त अस्पताल में मेडिकल करवाने के लिए सम्पर्क किया गया तो  अस्पताल के कर्मचारी ने आष्वासन दिया कि  एक बार मेडिकल हो जाने के बाद दुबारा इसकी आवष्यकता नहीं है और उसकी बीमा पाॅलिसी नियमित किए जाने की कार्यवाही विचाराधीन होना बाताया । किन्तु अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने ने जरिए पत्र दिनंाक 31.1.2011 के उसे  तृतीय व चतुर्थ प्रीमियम किष्त राषि रू. 50,000/- लौटाते हुए  प्रथम व द्वितीय किष्त की राषि  3 वर्ष बाद  प्राप्त करना सूचित किया  किन्तु बावजूद पत्र दिनांक 5.1.2013 के उसे  प्रथम व द्वितीय किष्त की राषि रू. 50,000/- नहीं लौटा कर सेवा में कमी कारित की है।  प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में प्रार्थी ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया है । 
2.    अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने जवाब प्रस्तुत करते हुए  प्रार्थी को  दिनंाक 23.3.2009 को प्रष्नगत बीमा पाॅलिसी जारी करना  स्वीकार करते हुए आगे दर्षाया है कि  प्रार्थी द्वारा  तृतीय अद्र्ववार्षिक प्रीमियम राषि का भुगतान मार्च 2010 में नहीं किया गया । जब चतुर्थ प्रीमियम सितम्बर, 2009 में देय  हो जाने पर प्रार्थी द्वारा जरिए पत्र दिनांक 24.9.2009 के द्वारा बीमा पाॅलिसी निरस्त करने व पाॅलिसी प्लान में बदलाव  हेतु निवेदन किया गया  और दिनंाक 5.10.2010 को बीमा पाॅलिसी रिवाईवल हेतु रिवाईवल फार्म प्रस्तुत किया गया । प्रार्थी द्वारा बीमा पाॅलिसी के  फ्री लुक पीरियड में बीमा पाॅलिसी  में बदलाव / निरस्त नही ंकरवाए जाने के कारण जरिए पत्र दिनांक 22.10.2009 को बीमा पाॅलिसी निरस्त कर दी गई ।  बीमा कम्पनी के द्वारा मेडिकल दस्तावेजात नियमानुसार प्राप्त नहीं होने के कारण बीमा पालिसी को रिवाईव नहीं किया जा सकता था। उत्तरदाता को  केवल रू. 50,000/- ही प्राप्त हुए थे तथा उत्तरदाता को हैल्थ डिक्लरिऐषन फार्म व मेडिकल एक्जामिनेषन रिपोर्ट प्राप्त  नहीं होने के कारण प्रार्थी को जरिए पत्र दिनांक 19.1.2011 के सूचित किया गया  और जरिए पत्र दिनंाक 31.1.2011 के प्रार्थी को रू. 50,000/- का भुगतान जरिए चैक  के कर दिया गया ।  इस प्रकार उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी नही ंकी गई । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में  रचना यादव, सहायक मैनेजर का षपथपत्र पेष किया गया है । 
3.     प्रार्थी का प्रमुख तर्क रहा है कि उसके द्वारा  ली गई पाॅलिसी की तृतीय प्रीमियम  मार्च, 2010 में सहवन से निष्चित समय पर जमा नहीं करवाई गई   तथा उक्त तृतीय व चतुर्थ प्रीमियम की किष्त दिनंाक 5.10.2010 को अदा की गई थी । अप्रार्थी द्वारा तृतीय व चतुर्थ प्रीमियम स्वीकार करते हुए प्रार्थी को कम्पनी के अधिकृत अस्पताल में मेडिकल कराने को कहा गया था व उसके द्वारा उक्त मेडिकल करवाया भी गया था ।  उसके बाद अप्रार्थी द्वारा उसे सूचित भी किया गया था कि उसकी पाॅलिसी नियमित करने की प्रक्रिया विचाराधीन है । उसे अब पुनः मेडिकल करवाने हेतु भी कहा गया था इसके बाद अप्रार्थी द्वारा उसे तृतीय व चतुर्थ प्रीमियम राषि लौटाने की सूचना दी गई थी। जानकारी करने पर पता  चला कि उसकी पाॅलिसी को नियमित नहीं किया गया है । अप्रार्थी ने लापरवाही व गलत रूप से  व अविधिक तरीके से पाॅलिसी  समाप्त की है । उक्त कृत्य अप्रार्थी की लापरवाह दोषपूर्ण सेवाओं की  परिधि में आता है । परिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए । 
    अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से खण्डन में तर्क प्रस्तुत किया गया है कि प्रार्थी ने बदनियतीपूर्वक गलत उद्देष्य को लेकर अप्रार्थी से अत्यधिक राषि वसूल करने की  नियत से परिवाद प्रस्तुत किया है ।  वह मचं के समक्ष स्वच्छ हाथों से नहीं आया है अपितु गलत आधारों पर तैयार परिवाद न्याय व नैसर्गिकता के सिद्वान्त के विपरीत  है । प्रार्थी ने  स्वेच्छा से पाॅलिसी को लैप्स होने दिया व उसके बाद दिनंाक 24.9.2009 को पाॅलिसी निरस्त करने  व पाॅलिसी  बाण्ड में बदलाव चाहा । उसे सूचित कर दिया गया था कि ।ेेमेेउमदज व िउमकपबंस  एवं प्दजमतदंस ंेेमेेउमदज   के आधार पर रिवायवल सम्भव नहीं है ।  प्रार्थी के द्वारा बार बार पत्र व्यवहार किया गया जिसके परिणामस्वरूप उसे तदनुसार उन्हीं आधारों पर सूचित किया गया था। उसके द्वारा बीमा कम्पनी की संविदा के विपरीत जाकर परिवाद प्रस्तुत किया गया है जो चलने योग्य नहीं है ।  अप्रार्थी द्वारा जारी पाॅलिसी के  अन्तर्गत एक वर्ष की अवधि के लिए पाॅलिसी का लाभ भी ले लिया गया था । अतः वह किसी प्रकार कोई राषि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग का निर्णय स्प्ब् टे ैपइं च्तंेंक क्ंेी प्ट ;2008द्धब्च्श्र 156 ;छब्द्ध अनुकरणीय है । ैनतंर डंस त्ंउ  छपूे व्पस डपससे टे न्दपजपमक प्देनतंदबम ब्व स्जक  ;2010द्ध10 ैब्ब् 567 में  प्रतिपादित सिद्वान्त के अनुसार पालिसी के नियम व षर्ते  संविदात्मक होती है । जिसकी व्याख्या ठोस प्रकार से की जानी  नितांत आवष्यक है । इसी संदर्भ में माननीय राज्य आयोग  की रिवीजन पीटिषन संख्या   211ध्2009  त्मसपंदबम स्पमि प्देनतंदबम ब्व स्जक टे डंकींअंबींतलं  ंदक ळमदमतंस ।ेेनतंदबम ैवबपमजल स्पउपजमक टे ब्ींदकनउनसस श्रंपद -  ।दत   के अनुसरण में बीमा कम्पनी व बीमाधारक के मध्य बीमा की संविदा स्थापित होती है एवं ऐसी संविदा ष्षर्तो को सही प्रकार  अपनाया जाना चाहिए । जिससे कि बीमा कम्पनी के दायित्व का निर्वहन निर्धारित किया जा सके । बीमाधारक द्वारा बीमा  प्रपोजल फार्म  के अन्तर्गत  रू. 25,000/-   की अद्र्ववार्षिक प्रीमियम  के तौर पर  रू. 2,50,000/-  सम एंष्योर्ड के बीमा हेतु ऐसा प्रस्ताव पत्र भरा गया था । प्रार्थी ने सोच समझ कर समस्त तथ्यों को ध्यान में रख्तो हुए हस्ताक्षर किए गए थे । बीमित को पालिसी प्राप्ति से 15 दिवस का समय फ्री लुक पीरियड  प्रदान किया गया था । पाॅलिसी से सन्तुष्ट होकर  रू. 25,000/- की राषि का भुगतान  बीमा कम्पनी को किया गया था ।  प्रार्थी को नियमानुसार  तृतीय किष्त राषि  का भुगतान मार्च, 2010 में करना था जो नहीं किया गया । जबकि चतुर्थ प्रीमियम जो कि सितम्बर, 2010 में देय हो रही थी उस समय  दिनांक 22.9.2009  को  पाॅलिसी के संबंध में जानकारी चाही  तथा जरिए पत्र दिनांक 24.9.2009 को पाॅलिसी  निरस्त करने एवं पाॅलिसी प्लान में बदलाव हेतु  निवेदन किया गया थाा । इन तथ्यों को प्रार्थी द्वारा छिपाया गया है ।  प्रार्थी द्वारा पाॅलिसी रिवायवल  हेतु दिनांक 5.10.2010 को फार्म प्रस्तुत किया गया था । उसके द्वारा पत्र दिनांक 29.11.2010 के माध्यम से भी पाॅलिसी को  त्मपदेजंजमउमदज    करने हेतु निवेदन किया गया  था ।  कुल मिलाकर अप्रार्थी का  एक मात्र  तर्क यह रहा है कि सर्वप्रथम ली गई पाॅलिसी फ्री लुक पीरियड के अन्तर्गत निरस्त  अथवा परिवर्तित नहीं करवाई गई अपितु द्वितीय अद्र्व वार्षिक प्रीमियम जमा करवाई गई थी । तत्पष्चात् पाॅलिसी के रिवायवल हेतु बीमित के करवाए गए मेडिकल  परीक्षण  में  अप्रार्थी के ।ेेमेेउमदज व िउमकपबंस  एवं  प्दजमतदंस ंेेमेेउमदज के अनुसार बीमित का स्वास्थ्य परीक्षण मापदण्डो के विपरीत कराए जाने के कारण  बीमित को जमाषुदा किष्त लौटाया जाना सम्भव नहीं था । उक्त पाॅलिसी पूर्व में ही निरस्त हो चुकी थी । 
     हमने उभय पक्षकारान के परस्पर तर्क सुने हैं एवं  रिकार्ड देखा व प्रस्तुत नजीरों  का अवलोकन किया ।
    प्रार्थी बीमित का प्रष्नगत पाॅलिसी लिया जाना, उसकी प्रथम  व द्वितीय किष्तें राषि रू. 25,000/-, 25,000/-  जमा करवाया जाना  स्वीकृत तथ्य है । तृतीय किष्त मार्च, 2010 में देय होने व इसको समय पर जमा नही ंकरवाया  जाना भी स्वीकृत तथ्य है जबकि चैथी किष्त जो सितम्बर, 2010  में देय थी, से पूर्व प्रार्थी का अप्रार्थी बीमा कम्पनी से सम्पर्क करना व दिनंाक 24.9.2010 को इस संबंध में  बीमा कम्पनी को पत्र लिखना उपलब्ध रिकार्ड के आधार पर प्रकट होता है । हालांकि परिवाद में प्रार्थी ने मार्च, 2010 की किष्त  देय होना व जमा कराए जाने के बाद दिनंाक 24.9.2009 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी से सम्पर्क कर पत्र लिखने का  अपने परिवाद में कोई उल्लेख नहीं किया है  अपितु रिजोईण्डर में  उसका कथन रहा है कि  उसके द्वारा दिनांक 23.9.2009 के पत्र में 3 विकल्प दिए गए थे जिसमें से  बीमा कम्पनी द्वारा दूसरे विकल्प  को मान लिया गया था एवं रू. 25,000/- प्रीमियम रू. 50,000/- के स्थान पर कर दी गई थी । पत्रावली में ऐसा कोई प्रलेख उपलब्ध नहीं है जो प्रार्थी के इन कथनों की पुष्टि करता हो ।  उसने  स्वयं  तृतीय व चतुर्थ किष्तों के रूप मंे रू. 25,000/- 25,000/-  का भुगतान दिनंाक 5.10.2010 को किया है। अतः उसका यह कथन स्वयं ही गलत हो जाता है कि कम्पनी ने उसका दूसरा विकल्प मानते हुए प्रीमियम  राषि रू. 25,000/- रू. 50,000/- के स्थान पर कर दी ।  यदि ऐसा होता  तो वह दो किष्तों की  राषि रू. 50,000/- के स्थान पर रू. 1,00,000/- जमा करवाता । 
    स्वीकृत रूप से  बीमित ने पालिसी लिए जाने के बाद प्रथम किष्त जमा कराने के साथ ही फ्री लुक पीरियड  के विकल्प का  उपयेाग नहीं किया है । यदि अन्यथा स्थित नहीं होती तथा बीमा कम्पनी के इन तर्को में वजन होता  कि चूंकि बीमित ने पाॅलिसी प्राप्त होने के बाद फ्री लुक पीरियड का विकल्प काम में नहीं लिया है ।  अतः अब वह किसी भी प्रकार की कार्यवाही  के लिए म्ेजवचचमक है ।  उपलब्ध रिकार्ड से यह भी प्रकट होता है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी के द्वारा अपनी पाॅलिसी को रिवाईव कराने के लिए किए गए पत्र व्यवहार के निर्णय में उसे दिनंाक 31.10.2010, 19.1.2011, 22.3.2011 के पत्रों द्वारा उसके प्रार्थना पत्रों पर विचार करते हुए मेडिकल परीक्षण  करवाए जाने व मेडिकल रिपोर्ट की मांग की है ।  इसका अर्थ यह हुआ कि  बीमित  को किष्तों की अदायगी में चूक के बाद उसके द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्रों के संदर्भ में विचार करते हुए लैप्स हुई पाॅलिसी के रिवायवल  हेतु मेडिकल करवाए जाने की सलाह/निर्देष दिए थे जिसके अनुसार  बीमित द्वारा  अपना पुनः मेडिकल परीक्षण करवाया गया है । 
    पत्रावली में उपलब्ध मेडिकल रिपोर्ट   जो दिनंाक 26.9.2010 को परीक्षण के संदर्भ में  तैयार हुई है, में बीमित का वजन  110 कि.ग्रा. व  रक्तचाप  अनियमित अथवा बढ़ा हुआ होना बताया गया , यह तथ्य छिपाया गया है ।  यदि हम इन बिन्दुओं के संदर्भ में बीमित के सर्वप्रथम पाॅलिसी लिए जाते समय करवाए गए मेडिकल  परीक्षण की रिपोर्ट का अवलोकन  व तुलनात्मक  अध्ययन करें तो पाते है कि प्रथम मेडिकल परीक्षण करवाए जाते समय वजन 108 कि.ग्रा. व रक्तचाप  के संदर्भ में उसकी स्थिति ैलेजवसपब 130 व क्पंेजवसपब 90 पाई गई है ।  जबकि जो  दूसरी मेडिकल जांच करवाई गई है, में उसका  रक्तचाप ैलेजवसपब 156  व क्पंेजवसपब 90 होने के साथ साथ वजन 110 कि.ग्रा. सामने आया है । इस प्रकार  दोनांे मेडिकल परीक्षण में जो स्थिति सामने आई है,  में रक्तचाप व वजन में कोई तात्विक अन्तर सामने नहीं आया हेै। बीमा कम्पनी ने द्वितीय मेडिकल रिपोर्ट को किन आधारों पर अपना  अण्डर ऐस्टीमेट मानते हुए  व  संतोषजनक नहीं मानते हुए प्रार्थी को सूचित किया है, का कोई कारण सामने नहीं आया है । यदि प्रष्नगत पाॅलिसी की तीसरी किष्त समय पर जमा नहीं हुई थी, तो तत्समय  ही प्रार्थी बीमित को चैथी किष्त जमा करवाने से पूर्व सूचित  किया जाना चाहिए था तथा मेडिकल  करवाने की कोई आवष्यकता नहीं थी  व तदनुसार उसे निर्देषित भी नहीं किया जाना चाहिए था जबकि प्रार्थी बीमित द्वारा अपनी पाॅलिसी को रिवायवल किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किए जाने पर अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उसे मेडिकल परीक्षण  हेतु निर्देषित किया है ।  यदि उक्त मेडिकल रिपोर्ट अन्यथा प्राप्त हुई थी तो इसके बाद अप्रार्थी बीमा कम्पनी को बीमा पाॅलिसी की तीसरी  व चैथी किष्तों का भुगतान भी प्राप्त नहीं करना चाहिए था । किन्तु उनके द्वारा उक्त भुगतान जिसे अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने जरिए चैक दिनंाक 5.10.2010को अदा किया है, प्राप्त कर लिया है । इस प्रकार अप्रार्थी बीमा कम्पनी का उक्त कृत्य उनकी सेवा में कमी  का स्पष्ट रूप  से परिचायक है  और वे बीमित की उक्त जमाषुदा दोनों किष्तों की राषि को मय ब्याज के प्रार्थी बीमित को लौटाने के लिए बाध्य है । मंच की राय में परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि 
                           :ः- आदेष:ः-
    (1)    प्रार्थी अप्रार्थी बीमा कम्पनी से उसके द्वारा जमा कराई गई प्रथम व द्वितीय किष्त की  कुल राषि रू. 50,000/-  दिनंाक 
31.10.2010 से 9 प्रतिषत वार्षिक ब्याज दर सहित  प्राप्त करने का अधिकारी होगा । 
         (2)       प्रार्थी अप्रार्थी बीमा कम्पनी  से ं मानसिक संताप पेटे  रू.    10,000/- एवं  परिवाद व्यय के पेटे रू. 5000/-भी  प्राप्त करने का  अधिकारी होगा ।               
         (3)    क्रम संख्या 1 लगायत 2  में वर्णित राषि अप्रार्थी बीमा कम्पनी प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें   अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।  
          आदेष दिनांक 14.02.2017 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

                
(नवीन कुमार )        (श्रीमती ज्योति डोसी)      (विनय कुमार गोस्वामी )
      सदस्य                   सदस्या                      अध्यक्ष    

 
     

 
 
[ Vinay Kumar Goswami]
PRESIDENT
 
[ Naveen Kumar]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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