Max Newyork Lfie Insurance Company V/S Hazi. Mohd. Saleem
Hazi. Mohd. Saleem filed a consumer case on 10 Jul 2018 against Max Newyork Lfie Insurance Company in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/131/2011 and the judgment uploaded on 31 Aug 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/131/2011
Hazi. Mohd. Saleem - Complainant(s)
Versus
Max Newyork Lfie Insurance Company - Opp.Party(s)
10 Jul 2018
ORDER
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद।
परिवाद संख्या- 131/ 2011
हाजी मौहम्मद सलीम पुत्र स्व. श्री हाजी मौहम्मद इस्लाम निवासी मकान नं.-47/एफ/16 प्रिंस रोड अन्सार इण्टर कालेज के पास संबंधित थाना-मुगलपुरा, तहसील व जिला मुरादाबाद। ….......परिवादी
बनाम
1-मैक्स न्यूयार्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. शाखा कार्यालय 13-मानसरोवर, द्वितीय तल दिल्ली रोड, थाना मझोला, तहसील व जिला मुरादाबाद द्वारा अपने शाखा प्रबन्धक(क्लेम) महोदय।
2-मैक्स न्यूयार्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. मुख्य शाखा11-12 फ्लोर डी.एल.एफ. स्क्वायर बिल्डिंग जकरान्डा मार्ग डी.एल.एफ. फेज द्वितीय गुड़गांव-122001
…........विपक्षीगण
वाद दायरा तिथि: 25-08-2011 निर्णय तिथि: 10.07.2018
उपस्थिति:-
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि उसके द्वारा अपनी पुत्री के इलाज में खर्च किये गये अंकन-6,74,022/-रूपये मय 18 प्रतिशत ब्याज विपक्षीगण से उसे दिलाये जायें। मानसिक और आर्थिक क्षति की मद में क्षतिपूर्ति हेतु परिवादी ने अंकन-1,00,000/-रूपये अतिरिक्त मांगे हैं।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी की पुत्री कु0 हलीमा खातून ने अपने जीवनकाल में विपक्षीगण से ‘’लाईफ लाइन-मेडीकैश प्लस’’ नाम से एक बीमा पालिसी हेतु दिनांक 24-02-2009 को आवेदन किया, जिसके सापेक्ष विपक्षीगण ने दिनांक 28-02-2009 को उसे एक बीमा पालिसी सं.-390545168 दस वर्ष के लिए जारी कर दी। इस पालिसी के अन्तर्गत बीमार होने पर किसी भी अस्पताल में भर्ती रह कर इलाज कराने पर आये समस्त खर्चे को अदा करने की जिम्मेदारी विपक्षीगण की थी। पालिसी में परिवादी को नामित किया गया। दिनांक 12-9-2010 को अचानक तेज ठण्ड के साथ काफी तेज बुखार आने पर परिवादी ने अपनी पुत्री को इलाज हेतु डा0 राजेश सिंह के अस्पताल में मुरादाबाद में भर्ती कर दिया। दिनांक 26-9-2010 तक डा0 राजेश सिंह ने इंडोर पेसेंट के रूप में उसका इलाज किया। तबीयत में सुधार न होने पर डा0 राजेश सिंह ने हलीमा खातून को हायर सेंटर में इलाज हेतु दिनांक 26-9-2010 को रेफर कर दिया। इलाज के लिए परिवादी ने अपनी पुत्री को दिनांक 28-9-2010 को सुबह इंडियन स्पाईनल इंजरी सेंटर नई दिल्ली में भर्ती कर दिया, जहां इंडोर पेशेंट के रूप में दिनांक 12-10-2010 तक उसका इलाज हुआ, दुर्भाग्यवश दिनांक 12-10-2010 को दोनों किडनियां फेल हो जाने की वजह से हलीमा की मृत्यु हो गई।
परिवादी ने अग्रेत्तर कथन किया कि डा0 राजेश सिंह के अस्पताल में इलाज पर अंकन-15,400/-रूपये तथा इंडियन स्पाईनल इंजरी सेंटर, नई दिल्ली में दिनांक 28-9-2010 से 12-10-2010 तक इलाज पर अंकन-6,58,622/-रूपये खर्च हुए। इस प्रकार हलीमा के इलाज पर कुल अंकन-6,74,022/-रूपये खर्चा परिवादी ने किया। परिवादी ने समस्त औपचारिकतायें पूरी करते हुए दिनांक 01-11-2010 को विपक्षी-1 के कार्यालय में क्लेम प्रस्तुत किया। विपक्षीगण ने जो औपचारिकतायें पूरी करने के लिए कहा उन्हें परिवादी ने पूरा किया। दिनांक 28-6-2011 के पत्र के माध्यम से विपक्षीगण ने आंशिक क्लेम स्वीकार करते हुए मात्र अंकन-48,000/-रूपये का एक चेक परिवादी को प्रेषित किया और शेष धनराशि अदा नहीं की। परिवादी का कथन है कि शेष धनराशि के भुगतान हेतु उसके द्वारा किये गये अनुरोध के बावजूद विपक्षीगण ने अवशेष धनराशि का भुगतान नहीं किया। तब मजबूर होकर परिवादी को यह परिवाद योजित करने की आवश्यकता हुई। उसने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
परिवाद के समर्थन में परिवादी ने परिवाद योजित करते समय अपना शपथपत्र भी प्रस्तुत किया, उसके अतिरिक्त अंकन-48,000/-रूपये का चेक प्रेषित किये जाने संबंधी पत्र, चेक, क्लेम फार्म, क्लेम से संबंधित परिवादी और विपक्षीगण के मध्य हुए पत्राचार, डा0 राजेश सिंह द्वारा दिया गया मेडिकल सर्टिफिकेट, डा0 राजेश सिंह द्वारा दिये गये बिल, इंडियन स्पाईनल इंजरी सेंटर, नई दिल्ली के चिकित्सक, जिसने परिवादी की पुत्री का इलाज किया था, द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट, वहां हलीमा के इलाज में हुए खर्च के बिल वाउचर तथा हलीमा खातून के मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रतियां भी दाखिल की गई हैं। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/8 लगायत 3/35 हैं।
विपक्षीगण ने प्रतिवाद पत्र में कथन किया कि परिवाद कथन असत्य, आधारहीन तथा दुर्भावना से प्रेरित हैं। उन्होंने परिवादी की पुत्री हलीमा खातून द्वारा बीमा पालिसी हेतु किये गये आवेदन के सापेक्ष परिवाद पत्र के पैरा-1 में उल्लिखित मेडिकेस पालिसी सं.-390545168 जारी किया जाना तथा परिवादी द्वारा यह सूचित किया जाना कि हलीमा खातून को इलाज हेतु दिनांक 12-9-2010 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और दिनांक 12-10-2010 को वह अस्पताल से डिस्चार्ज हुई, स्वीकार किया किन्तु शेष परिवाद कथनों से इंकार किया गया। विशेष कथनों में कहा गया कि हलीमा खातून की किडनियां फेल हो जाने का पता दिनांक 28-9-2010 को चला था और उसकी मृत्यु दिनांक 12-10-2010 को हुई, इस प्रकार बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार इस बीमारी हेतु कम से कम 28 दिन तक जीवित रहने की शर्त पूरी नहीं हुई। प्रश्नगत बीमा पालिसी के अधीन परिवादी को अंकन-48,000/-रूपये का भुगतान चेक द्वारा विपक्षीगण ने दिनांक 30-9-2010 से 12-10-2010 तक की अवधि के इलाज के सिलसिले में कर दिया है। दिनांक 12-9-2010 से 26-9-2010 के बीच की अवधि का अभिकथित रूप से हुए खर्च के लिए वाउचर परिवादी ने चूंकि उपलब्ध नहीं कराये, अत: उक्त अवधि का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं थे। विपक्षीगण के अनुसार उन्होंने परिवादी को सेवा प्रदान करने में कोई कमी नहीं की। बीमारी पर हुए खर्च के क्लेम के सापेक्ष विपक्षीगण द्वारा अंकन-48,000/-रूपये का भुगतान चेक से परिवादी को कर दिया गया है। जिसे परिवादी ने स्वीकार कर लिया है। ऐसी दशा में परिवादी अब परिवाद में अनुरोधित अनुतोष मांगने से विबन्धित है। विपक्षीगण ने उक्त कथनों के आधार पर परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
प्रतिवाद पत्र के समर्थन में विपक्षीगण के चीफ मैनेजर डा0 अमरेन्द्र कुमार ने अपना शपथपत्र कागज सं.-8/9 दाखिल किया, इसके अतिरिक्त बीमा पालिसी लेने हेतु हलीमा खातून द्वारा भरे गये प्रस्ताव फार्म, हलीमा खातून द्वारा लाईफ लाइन वैलनेस प्लान हेतु भरा गया प्रस्ताव फार्म, वैलनेस प्लान से संबंधित प्रपत्र और उसकी शर्तें, परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया क्लेम फार्म, हलीमा खातून के मृत्यु प्रमाण पत्र, मृत्यु दावे के रेपुडिएशन लैटर, कैंसिल्ड चेक मांगे जाने विषयक विपक्षीगण के पत्र, दिनांक 30-9-2010 से 12-10-2010 तक की अवधि के मेडिकल बिल, अंकन-48,000/-रूपये का चेक परिवादी को भेजे जाने विषयक विपक्षीगण के पत्र, डा0 राजेश सिंह द्वारा दिये गये मेडिकल सर्टिफिकेट तथा परिवादी के अनुरोध पर हलीमा खातून के डेथ क्लेम को पुन: अस्वीकृत कर दिये जाने विषयक विपक्षीगण के पत्र की छायाप्रतियों को बतौर संलग्नक-1 लगायत 11 विपक्षीगण ने दाखिल किया। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-8/10 लगायत 8/122 हैं।
परिवादी ने साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-11/1 लगायत 11/2 दाखिल किया।
विपक्षीगण की ओर से साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-12/1 लगायत 12/5 प्रस्तुत किया गया। विपक्षीगण की ओर से असल पालिसी बाण्ड पत्रावली में दाखिल किया, जिस पर कागज सं.-25 डाला गया।
किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि परिवादी की पुत्री कु.हलीमा इलाज हेतु दिनांक 12.09.2010 से 26.09.2010 तक मुरादाबाद स्थित डा. राजेश सिंह के क्लीनिक में इंडोर पेशेंट के रूप में भर्ती रही। दिनांक 26.09.2010 को डा. राजेश सिंह ने हलीमा को बेहतर इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर कर दिया। पत्रावली में अवस्थित कागज सं.-3/17 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने कहा कि हलीमा को डा. राजेश सिंह के क्लीनिक से सीधे दिल्ली स्थित इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर(जिसे सुविधा की दृष्टि से आगे आईएसआईसी कहा गया है) ले जाया गया। जहां दिनांक 27.09.2010 से 12.10.2010 तक इंडोर पेशेंट के रूप में इलाज हेतु भर्ती रही, दुर्भाग्यवश दिनांक 12.10.2010 को दोनों गुर्दे फेल हो जाने के कारण आईएसआईसी में ही उसकी मृत्यु हो गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि हलीमा के इलाज में उसके अंकन-6,74,022/-रूपये खर्च हुए, जिसके सापेक्ष विपक्षीगण ने उसे मात्र अंकन-48000/-रूपये का भुगतान किया और अनुरोध कि बावजूद शेष धनराशि का भुगतान उसे नहीं किया गया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने ब्याज सहित अवशेष धनराशि परिवादी को दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी पक्ष की बहस का उत्तर देते हुए कहा कि पालिसी की शर्तों के अनुसार क्रिटीकल किडनी डिसीज के इलाज के सिलसिले में हलीमा का लगातार कम से कम 28 दिन तक भर्ती रहकर इलाज कराना परिवादी पक्ष प्रमाणित नहीं कर पाये। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिवाद पत्र के पैरा-7(iv) की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और तर्क दिया कि परिवादी ने हलीमा का पालिसी डाकुमेंट में उल्लिखित ‘’एण्ड स्टेज रीनल फेलयोर’’ होना न तो प्रमाणित किया और न इससे संबंधित अभिलेख परिवादी ने विपक्षीगण को उपलब्ध कराये, ऐसी परिस्थिति में विपक्षीगण अभिकथित किडनी फेलयोर से संबंधित इलाज के व्यय का भुगतान करने के लिए पालिसी की शर्तों के अनुसार उत्तरदायी नहीं हैं। विकल्प में यह भी तर्क रखा गया कि परिवादी द्वारा किये गये क्लेम के सापेक्ष विपक्षीगण ने अंकन-48000/-रूपये क्लेम स्वीकृत करते हुए उसका चेक परिवादी को उपलब्ध करा दिया था, जिसे परिवादी ने कैश कर लिया है, ऐसी दशा में परिवादी अवशेष धनराशि की मांग करने से रेसज्यूडिकेटा के सिद्धान्त के आधार पर विबन्धित है। विपक्षीगण की ओर से उक्त तर्कों के आधार पर परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई।
पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री तथा चिकित्सीय प्रपत्रों के अवलोकन से प्रकट है कि विपक्षीगण की ओर से जो तर्क प्रस्तुत किये गये हैं, उनमें कोई बल नहीं है।
पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं कि कु. हलीमा के आवेदन पर उसे विपक्षीगण द्वारा ‘’लाइफ लाइन-मेडिकैश प्लस’’ पालिसी दिनांक 28.02.2009 को जारी की गई थी, पालिसी 10 वर्ष की थी। जिस दौरान हलीमा का इलाज हुआ उस अवधि में यह पालिसी प्रभावी थी, इस बिन्दु पर भी कोई विवाद पक्षकारों के मध्य नहीं है। पत्रावली में अवस्थित डा. राजेश सिंह के मेडिकल सर्टिफिकेट कागज सं.-3/14 के अनुसार कु. हलीमा दिनांक 12.09.2010 से 26.09.2010 तक उनके क्लीनिक में इलाज हेतु इंडोर पेशेंट के रूप में भर्ती रही थी। हलीमा की हालत में जब सुधार नहीं हुआ तो उसे डा. राजेश सिंह ने दिनांक 26.09.2010 को बेहतर इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर कर दिया। पत्रावली में अवस्थित चिकित्सीय प्रपत्रों से स्पष्ट है कि हलीमा को बेहतर इलाज के लिए डा. राजेश सिंह के नर्सिंग होम से सीधे नई दिल्ली स्थित आईएसआईसी में ले जाकर भर्ती कराया गया। हलीमा का इलाज करने वाले चिकित्सक डा. संजीव कपूर का सर्टिफिकेट जिसकी नकल कागज सं.-3/17 है, महत्वपूर्ण है। इस सट्रिफिकेट में लिखा है कि हलीमा आईएसआईसी में दिनांक 27.09.2010 को इलाज हेतु लायी गई थी, उसे तेज बुखार और ब्रेथलसनेस थी। दिनांक 30.09.2010 को उसकी हालत ज्यादा नाजूक होने की वजह से दिनांक 30.9.2010 को उसे वेंटीलेटर पर रख दिया गया। उसका आईएसआईसी में इंडोर पेशेंट के रूप में इलाज होता रहा किन्तु दुर्भाग्यवश दिनांक 12.10.2010 को आईएसआईसी में ही उसकी मृत्यु हो गई, जैसा कि उसके मृत्यु प्रमाण पत्र कागज सं.-3/35 से स्पष्ट है। जैसा कि हमने ऊपर कहा है कि हलीमा इलाज हेतु मुरादाबाद स्थित डा. राजेश सिंह के क्नीनिक में दिनांक 12.09.2010 को भर्ती हुई और उसकी मृत्यु इंडोर पेशेंट के रूप में दिनांक 12.10.2010 को आईएसआईसी नई दिल्ली में हुई। दिनांक 12.09.2010 से 12.10.2010 तक की अवधि 28 दिन से अधिक है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल है कि यदि किसी मरीज को मुरादाबाद का चिकित्सक रात्रि 12 बजे से कुछ समय पूर्व हायर सेंटर के लिए रेफर करे तो उक्त मरीज स्वाभाविक रूप से दिनांक 27.09.2010 की तिथि में दिल्ली पहुंच पायेगा क्योंकि मुरादाबाद से नई दिल्ली की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 160 किलोमीटर है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार हलीमा को डा. राजेश सिंह ने दिनांक 26.09.2010 को देर रात हायर सेंटर के लिए रेफर किया था और यही कारण रहा कि हलीमा दिनांक 27.09.2010 को दिल्ली पहुंच पायी। हम परिवादी पक्ष के उक्त तर्कों से सहमत हैं कि हलीमा के इंडोर पेशेंट के रूप में भर्ती रहकर इलाज कराने में लगातार 28 दिन इंडोर पेशेंट के रूप में भर्ती रहकर इलाज कराने की शर्त का उल्लंघन नहीं हुआ।
जहां तक ‘’एण्ड स्टेज रीनल फेलयोर’’ विषयक विपक्षीगण की आपत्ति का प्रश्न है, ये आपत्ति भी आधारहीन दिखायी देती है। नई दिल्ली स्थित आईएसआईसी के चिकित्सक द्वारा दिये गये प्रमाण पत्र जिसकी नकल कागज सं.-3/16 है, के अवलोकन से प्रकट है कि हलीमा की मृत्यु का कारण उसके दोनों गुर्दें फेल हो जाना था। इस सर्टिफिकेट में यह भी लिखा है कि हलीमा को हिमोडायलेसिस भी दिया गया था किन्तु उसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। प्रकट है कि हलीमा की ‘’एण्ड स्टेज रीनल फेलयोर’’ थी और रीनल डायलेसिस के बावजूद उसे चिकित्सक बचा नहीं पाये।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि जब दिनांक 26.09.2010 को डा. राजेश सिंह ने हलीमा को हायर सेंटर रेफर कर दिया था तो 12.09.2010 से 26.09.2010 तक इंडोर पेशेंट के रूप में डा. राजेश सिंह के क्लीनिक में हुए उसके इलाज की अवधि 28 दिन की गणना हेतु नहीं जोड़ी जानी चाहिए। हम इस तर्क से सहमत नहीं हैं। पत्रावली में अवस्थित चिकित्सीय प्रपत्र दर्शाते हैं कि हलीमा का दिनांक 12.09.2010 से 12.10.2010 तक इलाज इंडोर पेशेंट के रूप में ही हुआ था। पालिसी में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि निरन्तर 28 दिन तक मरीज को इंडोर पेशेंट के रूप में किसी एक अस्पताल में ही इलाज कराना आवश्यक है। यदि मरीज की हालत में सुधार नहीं हो रहा है और उसकी स्थिति निरन्तर खराब होती जा रही है तो स्वाभाविक रूप से इलाज करने वाले चिकित्सक मरीज को बेहतर इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर करेंगे और कदाचित इस मामले में भी यही हुआ। डा. राजेश सिंह के इलाज की अवधि और आईएसआईसी के इलाज की अवधि को निरन्तर 28 दिन की गणना हेतु अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का एक तर्क यह भी है कि हलीमा के गुर्दे फेल हो जाने का डायग्नोसिस आईएसआईसी नई दिल्ली में सर्वप्रथम दिनांक 28.09.2010 को हुआ था, ऐसी दशा में दिनांक 12.09.2010 से 28.09.2010 तक की अवधि को क्रोनिकल रीनल डिसीज के इलाज हेतु संगणित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि डा. राजेश सिंह के इलाज के दौरान यह डायग्नोसिस नहीं हुआ था कि हलीमा की किडनी फेलयोर हैं। हम इस तर्क से भी सहमत नहीं हैं। डा. राजेश सिंह के सर्टिफिकेट कागज सं.-3/14 के अवलोकन से प्रकट है कि हलीमा के जो सिमटम्स थे, वह अन्य के अतिरिक्त रीनल प्राब्लम्स में भी होते हैं। डा. राजेश सिंह नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ हैं, जैसा कि उनके सर्टिफिकेट से प्रकट है। डा. राजेश सिंह के क्लीनिक में भर्ती रहने के दौरान हलीमा की कोई पैथोलॉजी इनवेस्टीगेशन होना प्रकट नहीं है। यदि डा. राजेश सिंह के इलाज के दौरान हलीमा की किडनी प्राब्लम का डायग्नोसिस नहीं हुआ था तो इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि हलीमा को उस दौरान किडनी प्राब्लम थी ही नहीं। कदाचित उसे उस दौरान भी किडनी की ही प्राब्लम थी। हम इस सुविचारित मत के हैं कि वर्तमान मामले में क्रोनिकल किडनी डिसीज के इलाज से संबंधित निरन्तर 28 दिन बतौर इंडोर पेशेंट भर्ती रहने की शर्त का उल्लंघन नहीं हुआ है।
जहां तक विपक्षीगण के इस तर्क का प्रश्न है कि परिवादी ने अंकन-48000/-रूपये की क्लेम राशि पूर्ण संतुष्टि में प्राप्त कर ली है और डिस्चार्ज वाउचर भी हस्ताक्षरित कर दिया है, ऐसी दशा में वह फोरम के समक्ष अवशेष धनराशि की मांग करने से विबन्धित है। अपने इस तर्क के समर्थन में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अंकन-48000/-रूपये का चेक परिवादी को भेजे जाने विषयक पत्र कागज सं.-3/8 तथा अंकन-48000/-रूपये के चेक की छायाप्रति कागज सं.-3/9 को इंगित किया। उनका यह भी तर्क है कि परिवादी ने स्वयं अपने परिवाद पत्र के पैरा-11 में अंकन-48000/-रूपये की यह धनराशि मिलना स्वीकार भी किया है। प्रतिउत्तर में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने कहा कि अंकन-48000/-रूपये की यह धनराशि परिवादी ने आंशिक क्लेम के रूप में अण्डर प्रोटेस्ट स्वीकार की थी, ऐसी दशा में परिवादी को अवशेष धनराशि की मांग करने से रोका नहीं जा सकता। उन्होंने अपने इस तर्क के समर्थन में पत्रावली में अवस्थित विपक्षीगण के पत्र कागज सं.-3/8 पर परिवादी द्वारा अंकित प्रोटेस्ट को इंगित किया। हम परिवादी पक्ष के उक्त तर्क से सहमत नहीं हैं कि अंकन-48000/-रूपये का चेक परिवादी ने अण्डर प्रोटेस्ट प्राप्त किया था क्योंकि चेक विपक्षीगण ने परिवादी को डाक से भेजा था, ऐसा नहीं है कि यह चेक और पत्र लेकर विपक्षीगण का कोई कर्मचारी परिवादी के घर गया हो और तब परिवादी ने पत्र 3/8 की असल पर प्रोटेस्ट लिखा हो। यदि तर्क के तौर पर यह मान भी लिया जाये कि विपक्षीगण का कर्मचारी पत्र कागज सं.-3/8 और अंकन-48000/-रूपये का चेक परिवादी को देने उसके घर गया था और तब परिवादी ने पत्र कागज सं.-3/8 की असल पर अपना प्रोटेस्ट अंकित किया था तो किस प्रकार परिवादी को विपक्षीगण के उक्त पत्र दिनांकित 28-06-2011 की छायाप्रति कागज सं.-3/8 प्राप्त हो गई, इसका परिवादी के पास कोई स्पष्टीकरण नहीं है। कहने का आशय यह है कि परिवादी ने अंकन-48000/-रूपये का चेक भेजे जाने विषयक विपक्षीगण के पत्र दिनांकित 28-06-2011 पर अपना कोई प्रोटेस्ट अंकित नहीं किया था।
हम यह विनिश्चत कर चुके हैं कि क्लेम विषयक अंकन-48000/-रूपये का चेक और चेक भेजे जाने विषयक विपक्षीगण का पत्र दिनांकित 28-06-2011 परिवादी को डाक से प्राप्त हुआ था और उक्त पत्र पर प्रोटेस्ट अंकित करने का परिवादी के पास कोई अवसर नहीं था और न ही परिवादी ने पत्र पर कोई प्रोटेस्ट अंकित किया किन्तु इसके बावजूद परिवादी अपनी पुत्री हलीमा के इलाज में व्यय हुई धनराशि में से अंकन-48000/-रूपये समायोजित कर अवशेष धनराशि की मांग करने से विबन्धित नहीं है। हमारे इस मत की पुष्टि माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली द्वारा III(2016)सीपीजे पृष्ठ 40 (एनसी), रामदास सेल्स कारपोरेशन बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. की निर्णयज विधि में दी गई विधि व्यवस्था से होती है। इस निर्णयज विधि के पैरा-8 में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अवधारित किया है कि आईआरडीए के सर्कुलर सं.-आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/मिस./173/09/2015 दिनांकित 24.09.2015 के अनुसार फोरम के समक्ष परिवाद की सुनवाई के दौरान बीमा कंपनी को यह आपत्ति करने की अनुमति नहीं होगी कि परिवादी/पीडि़त पक्ष ने बीमा पालिसी के तहत डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर करके पूर्ण संतुष्टि में चूंकि क्लेम राशि पूर्व में प्राप्त कर ली है, अतएव अब परिवादी/पीडि़त पक्ष फोरम के समक्ष अतिरिक्त क्लेम राशि दिये जाने हेतु परिवाद योजित नहीं कर सकता। आईआईडीए का उकत सर्कुलर दिनांकित 24-09-2015 निम्नवत है-
“The Insurance companies are using ‘discharge voucher’ or‘settlement intimation voucher’ or in some other name, so that the claim is closed and does not remain outstanding in their books. However, of late, the Authority has been receiving complaints from aggrieved policy holders that the said instrument of discharge voucher is being used by the insurers in the judicial fora with the plea that the full and final discharge given by the policy holders extinguish their rights to contest the claim before the Courts.
While the Authority notes that the insurers need to keep their books of accounts in order, it is also necessary to note that insurer shall not use the instrument of discharge voucher as a means of estoppel against the aggrieved policy holders when such policy holder approaches judicial Fora
Accordingly insurers are hereby advised as under:
Where the liability and quantum of claim under a policy is establish, the insurers shall not withhold claim amounts. However, it would be clearly understood that execution of such vouchers does not foreclose the rights of policy holder to seek higher compensation before any judicial Fora or any other Fora established by law.
All insurers are directed to comply with the above instructions.”
20.रामदास सेल्स कारपोरेशन की उपरोक्त निर्णजय विधि में दी गई विधि व्यवस्था को माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली द्वारा I(2018)सीपीजे पृष्ठ 492 (एनसी), अरफात पेट्रो कैमिकल्स प्रा.लि. बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. की निर्णयज विधि में पुन: पुष्ट किया है। इंश्योरेंस एक्ट, 1938 की धारा-6 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि आईआरडीए द्वारा जो निदेशिकाएं जारी की जायेगीं, वे बीमा कंपनियों पर बाध्यकारी होंगी। आईआरडीए ने अपने उपरोक्त सर्कुलर दिनांकित 24-09-2015 में जो निदेश दिये हैं, वे बीमा कंपनियों पर बाध्यकारी हैं और बीमा कंपनियां यह कहने से विबन्धित हैं कि एक बार यदि पीडि़त पक्ष ने क्लेम राशि अभिकथित रूप से पूर्ण संतुष्टि में प्राप्त कर ली है, तो अवशेष धनराशि की वह मांग नहीं कर सकेगा।
21.पत्रावली में अवस्थित बिल कागज सं.-3/18 के अनुसार दिनांक 28-09-2010 से 12-10-2010 तक की अवधि में हलीमा के इलाज पर अंकन-6,58,622/-रूपये खर्च हुए। बिल कागज सं.-3/15 यह दर्शाता है कि दिनांक 12-9-2010 से 26-9-2010 तक तक डा. राजेश सिंह के मुरादाबाद स्थित अस्पताल में इंडोर पेसेंट के रूप में भर्ती रहने के दौरान हलीमा के इलाज पर अंकन-15400/-रूपये व्यय हुए। इस प्रकार हलीमा के इलाज पर दिनांक 12-9-2010 से 12-10-2010 तक कुल अंकन-6,74,022/-रूपये खर्च हुए। इसमें से अंकन-48000/-रूपये विपक्षीगण ने परिवादी को अदा कर दिये हैं। अवशेष धनराशि अंकन-6,26,022/-रूपये बचती है। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री के तथ्यात्मक विश्लेषण और इस निर्णय में हमारे द्वारा उद्धरित रामदास सेल्स कारपोरेशन की निर्णीत विधि में दी गई विधि व्यवस्था तथा आईआरडीए के सर्कुलर दिनांकित 24-9-2015 में दिये गये दिशा-निर्देशानुसार विपक्षीगण से परिवादी को अंकन-6,26,022/-रूपये की अवशेष धनराशि दिलायी जानी चाहिए। इस धनराशि पर परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक अवधि हेतु परिवादी को 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज दिलाया जाना भी न्यायोचित दिखायी देता है। परिवादी परिवाद व्यय के रूप में विपक्षीगण से अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त पाने का भी अधिकारी होगा। परिवाद तद्नुसार स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अंकन-6,26,022(छ: लाख छब्बीस हजार बाईस) रूपये की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकृत किया जाता है। विपक्षीगण से परिवादी परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त पाने का भी अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार समस्त धनराशि का भुगतान परिवादी को एक माह में किया जाये।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य, अध्यक्ष,
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