जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 175/2015
सुखराम पुत्र श्री भीकाराम, जाति-डांगा, निवासी- डांगावास, तहसील- मेडता, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. डंग छमू ल्वता स्पमि प्देनतंदबम ब्वण् स्जकण् 11जी थ्सववतए क्स्थ् ैुतंतमए श्रंबंतंदकं डंतहए क्स्थ् च्ींेमए ळनतहंवदए 122022
2. ऐक्सिस बैंक लिमिटेड, मेडतासिटी, नागौरी दरवाजा, कृशि मंडी रोड, मेडतासिटी, जिला- नागौर (एजेन्ट)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री एच.आर. खारडिया व श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री मामराज गुणपाल एवं श्री कुन्दनसिंह आचीणा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय
दिनांक 17.03.2016
परिवाद सं. 175/2015
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 1 से एक बीमा, बीमा प्लान मेक्स मंगल 6 वर्श की अवधि के लिए 29999.78 रूपये प्रतिवर्श का लिया। जिसकी राउण्ड फिगर में 30,000/- रूपये प्रतिवर्श के हिसाब से बीमा राषि तय कर बीमा किया गया। परिवादी की ओर से 30,000/- रूपये की राषि अप्रार्थीगण को अदा किये जाने पर उसे पाॅलिसी नम्बर 843683046 जारी किये गये। इसके बाद परिवादी ने लगातार तीन वर्श तक और 30,000-30,000 रूपये अप्रार्थी संख्या एक को अदा किये। इस प्रकार परिवादी ने अप्रार्थीगण को चार किष्तों में 1,20,000/- रूपये अदा कर दिये।
बीमा पाॅलिसी के वक्त अप्रार्थीगण ने परिवादी को अवगत कराया कि बीमा करवाने के बाद आप जब चाहो अपने रूपये वापस ले सकते हो तथा तीन वर्श तक लगातार बीमा चलाने के बाद आपकी बीमा राषि में किसी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी एवं आपकों मय ब्याज राषि लौटा दी जाएगी। इसी के चलते परिवादी ने चार किष्तें जमा करवाने के बाद अप्रार्थी संख्या 2 से निवेदन किया कि वो इस पाॅलिसी के तहत अब तक चार किष्तें जमा करवा चुका है तथा आगे किष्तें जमा नहीं करवाएगा। अतः उसे जमा राषि मय ब्याज दिला दी जाए। इस पर अप्रार्थीगण ने उसे कहा कि बीमा पाॅलिसी सरेन्डर करवाने के लिए 26,000/- रूपये और जमा करवाने पडेंगे। तभी जमा राषि दी जाएगी। उसने अप्रार्थीगण को पाॅलिसी के वक्त उससे किये गये वादे तीन साल बाद कभी भी पाॅलिसी सरेण्डर करने तथा जमा राषि ब्याज सहित दिलाने आदि याद दिलाये तो अप्रार्थीगण ने कहा कि बीमा पाॅलिसी सरेण्डर करवानी है तो उक्त राषि जमा करवानी होगी। इस पर परिवादी ने 26,000/- रूपये की राषि और जमा करवाई। इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने उसे बीमा राषि नहीं लौटाई। इस तरह अप्रार्थीगण ने परिवादी ने बीमा पाॅलिसी के 30,000-30,000 रूपये की चार किष्तों के 1,20,000/- एवं पाॅलिसी सरेण्डर के नाम पर 26,000/- रूपये लेकर आज दिनांक तक कोई राषि नहीं लौटाई। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य अनुचित सेवा व्यवहार एवं सेवा दोश की परिधि में आता है।
अतः परिवादी को बीमा धन के रूप में ली गई राषि 1,20,000/- रूपये व पाॅलिसी सरेण्डर के लिए लिए गए रूपये 26,000/- मय ब्याज के दिलाये जावें। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार मानसिक संताप व परिवाद व्यय के रूप में अनुतोश दिलाया जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा परिवादी को विवादित बीमा पाॅलिसी प्रदान करना स्वीकार करते हुए यह बताया गया है कि परिवादी के पक्ष में जारी पाॅलिसी के अन्तर्गत परिवादी द्वारा मात्र तीन वार्शिक बीमा प्रीमियम अदा किये गये थे तथा इसके पष्चात् चतुर्थ वार्शिक बीमा प्रीमियम की अदायगी स्वैच्छा से नहीं की गई तथा न ही परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी के समक्ष विवादित पाॅलिसी को सरेण्डर करने हेतु नियमानुसार कोई आवेदन ही प्रस्तुत किया गया है। यह बताया गया है कि परिवादी ने बीमा करवाते समय प्रपोजल फाॅर्म के अन्तर्गत बतलाई गई समस्त जानकारी को सही व सत्य मानते हुए हस्ताक्षर किये थे एवं इसी आधार पर पाॅलिसी जारी की गई थी। यह भी बताया गया है कि परिवादी द्वारा वर्श 2012 से 2014 तक कुल तीन वार्शिक प्रीमियम का भुगतान किया गया था। यह भी बताया है कि यदि परिवादी बीमा पाॅलिसी को आगे नहीं चलाना चाहता तो पाॅलिसी के नियम व षर्ताें अनुसार सरेण्डर फाॅर्म भरकर अप्रार्थी बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है लेकिन परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी से
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कोई सम्पर्क नहीं किया गया तथा न ही 26,000/- रूपये की अदायगी बीमा कम्पनी को की गई है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बताया है कि सरेण्डर फाॅर्म प्रस्तुत किये जाने पर अप्रार्थी बीमा कम्पनी पाॅलिसी की नियम व षर्तों अनुसार चार्जेज काटकर सरेण्डर वेल्यू परिवादी को आज भी दिन को तत्पर है। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा बताया गया है कि परिवादी द्वारा प्रीमियम भुगतान नहीं किये जाने के कारण पाॅलिसी पेडअप अवस्था में चल रही है। जबकि परिवादी ने तथ्यों को तोड मरोडकर यह बनावटी परिवाद पेष किया है जो खारिज किये जाने योग्य है।
3. अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से कोई लिखित जवाब पेष नहीं किया गया है।
4. बहस उभयपक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह स्वीकृत स्थिति है कि अप्रार्थी संख्या 1 जीवन बीमा का सषुल्क कार्य करता है। परिवादी ने नियमानुसार प्रीमियम राषि अदा कर बीमा करवाया। जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से बीमा पाॅलिसी जारी की गई। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है।
5. परिवादी पक्ष की ओर से बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष 1 तथा रसीदें प्रदर्ष 2,3 व 4 पेष कर यह बताया गया है कि उसने छह वर्श की अवधि के लिए अप्रार्थी संख्या 1 के वहां 30,000/- रूपये प्रति वर्श के हिसाब से प्रीमियम राषि तय कर 30,000/- रूपये जमा करवाये तथा इसके पष्चात् तीन वर्श तक लगातार 30,000-30,000 रूपये प्रीमियम राषि जमा करवाई लेकिन बाद में राषि जमा करवाने में सक्षम नहीं होने तथा घरेलू आवष्यकता के कारण पाॅलिसी सरेण्डर करते हुए अप्रार्थीगण के निर्देषानुसार 26,000/- रूपये जमा करवाये। लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थीगण द्वारा बीमा राषि नहीं लौटाई गई। उक्त के विपरित अप्रार्थी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी द्वारा तीन वार्शिक बीमा प्रीमियम की राषि 90,000/- जमा करवाई गई है तथा पाॅलिसी पेडअप अवस्था में चल रही है। लेकिन परिवादी द्वारा नियमानुसार सरेण्डर फाॅर्म प्रस्तुत नहीं किया गया है, यदि परिवादी नियमानुसार सरेण्डर फाॅर्म भरकर प्रस्तुत करता है तो बीमा पाॅलिसी की षर्तों अनुसार आवष्यक चार्जेज काटकर सरेण्डर वेल्यू की राषि की अदायगी हेतु बीमा कम्पनी आज भी तैयार है। अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी द्वारा 26,000/- रूपये की राषि जमा करवाने के तथ्य को भी अस्वीकार किया है।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिए तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन किया गया। यद्यपि यह स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा नियमानुसार सरेण्डर फाॅर्म भरकर दिये जाने का कोई स्पश्ट उल्लेख पत्रावली पर नहीं है तथा न ही ऐसे किसी सरेण्डर फाॅर्म की प्रति भी पत्रावली पर उपलब्ध है लेकिन परिवादी पक्ष द्वारा इस बाबत् रसीद की फोटो प्रति प्रदर्ष 4 पेष की गई है, जिसके अनुसार परिवादी एवं उसके पुत्र रामअवतार के नाम से जारी बीमा पाॅलिसी बाबत् ही कुल 52,000/- रूपये परिवादी पक्ष द्वारा जमा करवाये गये। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी
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द्वारा बीमा पाॅलिसी सरेण्डर करते हुए ही 26,000/- रूपये की राषि जमा करवाई गई है। लेकिन इसके बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने नियमानुसार सरेण्डर वेल्यू की राषि परिवादी को अदा नहीं की है। अप्रार्थी संख्या 1 की यह आपति रही है कि परिवादी द्वारा मात्र तीन वार्शिक प्रीमियम राषि का भुगतान किया गया है। लेकिन इस सम्बन्ध में पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने जवाब के पृश्ठ संख्या 6 पर अंकित मद संख्या 5 में यह स्वीकार किया है कि परिवादी द्वारा वर्श 2012 से 2014 तक कुल तीन वार्शिक प्रीमियम का भुगतान किया गया था तथा दिनांक 16.02.2015 को देय चतुर्थ प्रीमियम राषि का भुगतान नहीं किया गया है। जबकि पत्रावली पर उपलब्ध रसीद प्रदर्ष 3 के अनुसार दिनांक 23.02.2015 को इस मामले में प्रीमियम राषि 30,000/- रूपये जमा हुए हैं। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा बीमा पाॅलिसी की षर्तें बाबत् पाॅलिसी की प्रति पेष की गई, इस पाॅलिसी के क्लाॅज 9 अनुसार परिवादी पाॅलिसी सरेण्डर करने पर वह सरेण्डर वेल्यू की राषि प्राप्त करने का अधिकारी है। यद्यपि इसी बीमा पाॅलिसी के क्लाॅज 3 अनुसार परिवादी बोनस आदि अन्य लाभ प्राप्त नहीं कर सकता। बीमा पाॅलिसी की षर्तों को देखते हुए स्पश्ट है कि जब परिवादी द्वारा अप्रार्थी संख्या 1 के निर्देष पर 26,000/- रूपये की राषि जमा करवा दी गई थी तो ऐसी स्थिति में अप्रार्थी बीमा कम्पनी का कर्तव्य था कि वह परिवादी को उसके पक्ष में जारी बीमा पाॅलिसी की सरेण्डर वेल्यू राषि की अदायगी करता लेकिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा आज तक ऐसा ना कर सेवा दोश किया गया है।
7. अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा अपने जवाब के पृश्ठ संख्या 8 व 9 पर यह स्वीकार किया गया है कि बीमा कम्पनी पाॅलिसी के नियम व षर्ताें अनुसार चार्जेज काटकर सरेण्डर वेल्यू परिवादी को आज भी देने का तत्पर है। लेकिन अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा जवाब या पाॅलिसी के नियमों में यह स्पश्ट नहीं किया गया है कि चार्जेज राषि क्या होगी, यहां तक अप्रार्थी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता से इस बाबत् पूछे जाने पर भी उनके द्वारा यह स्पश्ट नहीं किया गया है कि पाॅलिसी सरेण्डर करने पर बीमा कम्पनी किसी विधि व नियम अनुसार कितना चार्ज वसूल कर सकती है। यह पूर्व में ही स्पश्ट किया जा चुका है कि परिवादी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी के निर्देष अनुसार ही सरेण्डर वेल्यू की राषि प्राप्त करने बाबत् 26,000/- रूपये की राषि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पक्ष में जमा करवाई लेेकिन इसके बावजूद आज तक बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को सरेण्डर राषि का भुगतान नहीं किया गया है, जिससे परेषान होते हुए परिवादी द्वारा इस न्यायालय/मंच के समक्ष दिनांक 30.07.2015 को यह परिवाद पेष किया है।
8. उपर्युक्त विवेचन को देखते हुए स्पश्ट है कि इस मामले में अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा सेवा षर्तों की पालना न करते हुए परिवादी द्वारा समस्त आवष्यक कार्रवाई करने तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी के निर्देष अनुसार ही 26,000/- रूपये की राषि जमा कराने के बावजूद परिवादी को सरेण्डर वेल्यू की राषि का भुगतान नहीं किया गया जो कि निष्चिय ही सेवा दोश की परिभाशा में आता है। ऐसी स्थिति में परिवादी बीमा कम्पनी से सरेण्डर वेल्यू की राषि प्राप्त करने के साथ ही जमा करवाई गई 26,000/- रूपये की राषि एवं परिवाद व्यय भी प्राप्त करने का अधिकारी है।
परिवाद सं. 175/2015
9. जहां तक अप्रार्थी संख्या 2 का प्रष्न है तो पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि इस मामले में परिवादी की बीमा पाॅलिसी की सरेण्डर वेल्यू की राषि के भुगतान का मुख्य दायित्व अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी का ही रहा है तथा सेवा दोश भी अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा ही किया गया है। अप्रार्थी
संख्या 2 स्थानीय बैंक रहा है जिसके माध्यम से मात्र राषि जमा हुई है। ऐसी स्थिति में पत्रावली
पर उपलब्ध तथ्यों को देखते हुए अप्रार्थी संख्या 2 को सेवा दोश के लिए उतरदायी नहीं माना जा
सकता।
आदेश
10. परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थी संख्या 1 स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी संख्या 1 विवादित बीमा पाॅलिसी नम्बर 843683046 के अन्तर्गत परिवादी द्वारा जमा करवाई गई राषि 1,20,000/- रूपये एवं इसके पष्चात् परिवादी द्वारा अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी के निर्देष अनुसार जमा करवाई गई राषि 26,000/- रूपये परिवादी को प्रदान करे। यह भी आदेष दिया जाता है कि उपर्युक्त राषि पर आवेदन की दिनांक 30.07.2015 से परिवादी 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
यह भी आदेष दिया जाता है कि कि अप्रार्थी संख्या 1 परिवादी को मानसिक परेषानी के लिए
5,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में भी 5,000/- रूपये अदा करेगा।
परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अप्रार्थी संख्या 2 ऐक्सिस बैंक लिमिटेड, मेडतासिटी की हद तक
खारिज किया जाता है।
11़. निर्णय व आदेष आज दिनांक 17.03.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या