(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद सं0- 136/2022
श्रीमती कोमल सिंह पत्नी स्व0 अनूप कुमार सिंह व एक अन्य।
बनाम
मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0।
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादिनीगण की ओर से उपस्थित : श्री बृजेन्द्र चौधरी,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री अभिषेक भटनागर,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 08.11.2024
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवादिनी द्वारा यह परिवाद विपक्षी के विरुद्ध चिकित्सीय बीमा की धनराशि मय 24 प्रतिशत वार्षिक ब्याज, मानसिक क्लेश हेतु रू0 15,00,000/- तथा वाद व्यय हेतु 50,000/-रू0 दिलवाये जाने की प्रार्थना के साथ राज्य आयोग के समक्ष योजित किया गया है।
प्रार्थना पत्र के साथ परिवादिनी के पति स्व0 श्री अनूप कुमार सिंह द्वारा वाद पत्र में वर्णित चिकित्सीय बीमा विपक्षी कम्पनी से लिया गया था जिसकी बीमा धनराशि रू0 50,00,000/- थी एवं प्रीमियम रू0 6,372/-रू0 था। पालिसी दि0 26.08.2020 से दि0 25.08.2021 तक की अवधि के लिये थी। दुर्भाग्य से परिवादिनी के पति की मृत्यु दि0 18.11.2020 को कोविड बीमारी के कारण हो गई जिसका क्लेम परिवादिनी की ओर से दि0 22.11.2020 को किया गया, किन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने एक व अन्य कारण से उसको लम्बित रखा एवं धनराशि भुगतान नहीं की है, जिस कारण यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से आपत्ति प्रस्तुत की गई है कि यह परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग के सम्मुख पोषणीय नहीं है, क्योंकि राज्य आयोग के वित्तीय क्षेत्राधिकार से प्रश्नगत परिवाद में अपेक्षित हर्जाना व बीमा का प्रीमियम निम्नतर है, अत: यह परिवाद जिला आयोग में प्रस्तुत होना चाहिये।
हमारे द्वारा परिवादिनीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री अभिषेक भटनागर को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
प्रस्तुत मामले में परिवादिनी ने रू0 50,00,000/- की बीमा धनराशि के अनुतोष की प्रार्थना की है, किन्तु इस मामले में बीमा की सेवा हेतु दिया गया प्रतिफल रू0 6,372/- है। यह परिवाद दि0 04.11.2022 को योजित किया गया, जिस पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का अधिनियम लागू होगा। उक्त अधिनियम की धारा-47 यह प्रदान करती है कि परिवाद का वित्तीय क्षेत्रोधिकार किसी सेवा अथवा क्रय किये गये माल के लिये दिये गये प्रतिफल के आधार पर निर्धारित किया जायेगा। धारा-47 निम्नलिखित प्रकार से है:-
“Subject to the other provisions of this Act. the State Commission shall have jurisdiction.
(a) to entertain-
complaints where the value of the goods or services paid as consideration, exceeds rupees one crore, but does not exceed rupees ten crore.
Provided that where the Central Government deems it necessary so to do it may prescribe such other value, as it doems fit.”
उक्त धारा में यह भी प्रावधान दिया गया है कि केन्द्रीय सरकार आवश्यकतानुसार इस प्रतिफल की धनराशि को परिवर्तित कर सकती है। उक्त धारा-47 के प्रथम परन्तुक द्वारा दी गई शक्तियों के अनुसरण में केन्द्रीय सरकार सर्कुलर सं0- 50L-2 Kr. G.S.R. 912(E) दिनांकित 30.12.2021 पारित किया गया, जिसमें राज्य सरकार के वित्तीय क्षेत्राधिकारिता सेवा अथवा माल के लिये दिये गये प्रतिफल की धनराशि पचास लाख रू0 से दो करोड़ रू0 निर्धारित की गई है। अत: उक्त अधिनियम के अनुसार राज्य आयोग को ऐसे परिवाद के श्रवण व निस्तारण का क्षेत्राधिकार है, जिसके लिये ऐसे माल का क्रय किया गया हो अथवा सेवा प्राप्ति की गई हो जिसका प्रतिफल पचास लाख रू0 से दो करोड़ रू0 के मध्य हो। इस प्रकार नये अधिनियम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार राज्य आयोग का वित्तीय क्षेत्राधिकार सेवा अथवा माल के लिये दिये गये प्रतिफल पर निर्भर करेगा। इस संदर्भ में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय मे0 प्यारी देवी छविराज स्टीलन बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 C.C. No. 833/2020 Order Dated 28.08.2020 में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने इस बिन्दु को स्पष्ट किया है कि उ0प्र0 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधान के अनुसार सेवा अथवा माल के लिये दिये गये प्रतिफल की धनराशि पर उपभोक्ता आयोग का वित्तीय क्षेत्राधिकार निर्भर करता है। निर्णय में निम्नलिखित प्रकार से दिया गया है:-
‘’It appears that the Parliament, while enacting the Act of 2019 was conscious of this fact and to ensure that Consumer should approach the appropriate Consumer Disputes Redressal Commission whether it is District, State or National only the value of the consideration paid should be taken into consideration while determining the pecuniary jurisdiction and not value-of the goods or services and compensation and that is why a specific provision has been made Section 34(1), 47(1) (a) (i) and 58 (1) (a) (i) providing for the pecuniary jurisdiction of the District Consumer Disputes Redressal Commission State Consumer Dispute Redressal Commission and the National Commission respectively.’’
मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार सेवा के लिये दिये गये प्रतिफल पर वित्तीय क्षेत्राधिकार निर्भर करता है। प्रस्तुत मामले में परिवाद पत्र के प्रस्तर 02 में स्पष्ट रूप से कथन किया गया है कि बीमा की सेवा के लिये दिया गया प्रतिफल रू0 6,372/- था। अत: अधिनियम की धारा-47 के अनुसार यह परिवाद राज्य आयोग में पोषणीय नहीं है एवं उसके वित्तीय क्षेत्राधिकार से निम्नतर परे है।
अत: परिवाद, परिवादिनी को सक्षम न्यायालय के समक्ष योजित करने की स्वतंत्रता के साथ वापस किया जाना उचित प्रतीत होता है।
तदनुसार परिवाद पत्र इस आयोग की वित्तीय क्षेत्राधिकारिता न होने के कारण अस्वीकार किया जाता है तथा मूल परिवाद, परिवादिनी द्वारा सक्षम न्यायालय/जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष 04 सप्ताह की अवधि में योजित करने की स्वतंत्रता के साथ वापस किया जाता है। जिला आयोग द्वारा परिवाद प्रस्तुतीकरण में हुई देरी के सम्बन्ध में परिवाद इस न्यायालय में लम्बित रहने के कारण विलम्बित नहीं माना जावेगा एवं सक्षम न्यायालय/जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यथा सम्भव परिवाद को पक्षकारों को सुनकर 03 माह की अवधि में निस्तारण सुनिश्चित किया जावेगा।
उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
कार्यालय द्वारा उभयपक्ष को इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि तीन कार्य दिवस में प्राप्त करायी जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 1