राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित।
अपील सं0-1784/2009
(जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-320/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-09-2009 के विरूद्ध)
श्रीमती सारिका सिंघल पत्नी श्री विवेक सिंघल, निवासी आर-9/46, राजनगर, गाजियाबाद।
............अपीलार्थी/परिवादिनी।
बनाम
1. मारूति उद्योग लिमिटेड, हैड आफिस स्थित पालम, गुड़गॉंव रोड, गुड़गॉंव, हरियाणा।
2. रीजेण्ट आटोलिक्स प्राइवेट लिमिटेड, अधिकृत डीलर एवं सर्विस सेण्टर मारूति उद्योग ए/10/9, साइट 3, इण्डस्ट्रियल एरिया, मेरठ रोड, गाजियाबाद।
............प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री पियूष मणि त्रिपाठी विद्वान अधिवक्ता की
कनिष्ठ सहायक अधिवक्ता सुश्री तरूषी गोयल।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- 02-07-2024.
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-320/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-09-2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है।
परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने चार महीने एक पुरानी मारूति बलेनो कार, जिसका रजिस्ट्रेशन नं0-यू0पी0 14 ए डी 6186 है, विपक्षी सं0-1 मारूति उद्योग लि0 के अधिकृत डीलर (विपक्षी सं0-2) के माध्यम से
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श्री जनेश्वर त्यागी से दिनांक 11-10-2006 को क्रय की थी। विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी को नई कार की समस्त सुविधाऐं दी गईं। कार कुछ दूर चलने पर स्वत: बन्द हो जाती थी एवं रेस देने या स्टार्ट करने पर स्टार्ट नहीं होती थी और काफी देर में स्टार्ट होती। वाहन में 05 सवारियॉं बैठने पर भी कार में कुछ समस्या आने लगी, जिसकी शिकायत परिवादिनी ने विपक्षी सं0-2 से की, परन्तु विपक्षी सं0-2 द्वारा उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया। अत्एव परिवादिनी ने विवश होकर विपक्षी सं0-1 से कार में निर्माण सम्बन्धी दोष होने से वाहन का परीक्षण किसी विशेषज्ञ द्वारा कराए जाने का निवेदन किया।
विपक्षी सं0-1 की ओर से कार का निरीक्षण करने के लिए एक आटोमोबाइल इंजीनियर को अधिकृत किया गया, जिसने कार का निरीक्षण किया और उसने वाहन में कमी होना माना और उन्हें दूर करने का आश्वासन दिया। विपक्षीगण द्वारा कार की बैटरी बदली गई और उक्त समस्या नहीं आएगी, ऐसा आश्वासन दिया गया, परन्तु उसकी कार सर्विस कराने के उपरान्त भी अचानक चलते-चलते बन्द हो गई। कार के पीछे आ रहे ट्रक ने टक्कर मार दी, जिससे कार का बम्पर क्षतिग्रस्त हुआ। परिवादिनी ने अगले ही दिन इसकी सूचना विपक्षी सं0-2 को दी, परन्तु उसके द्वारा कार ठीक करने के उपरान्त भी उक्त कमियॉं दूर नहीं हुईं। प्रथम सर्विस पर ही कार में कमियॉं उत्पन्न होने लगीं। दूसरी सर्विस में क्लच प्लेट बदली गईं, जिसके लिए कार का इंजन खोला गया तब कार की बनावट में कमी होना प्रकट हुआ। अत: परिवादिनी ने विपक्षीगण से कार के बदले नई कार दिलाए जाने, आर्थिक क्षति के लिए 02.00 लाख रू0 एवं मानसिक शारीरिक उत्पीड़न के लिए 01.00 लाख रू0 दिलाए जाने हेतु उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया।
विपक्षी सं0-1 की तरफ से प्रतिवाद पत्र विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसमें परिवाद में कहे गए कथनों को स्वीकार नहीं किया गया और कथन किया गया कि उसके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई। यह भी कथन किया गया कि नये वाहन के सम्बन्ध में क्रय करने के दो वर्ष या 40,000
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कि0मी0 जो भी पूर्व हो, से सम्बन्धी शर्तों के अधीन जो आनर्स मैन्युअल सर्विस बुकलेट में उल्लिखित रहता है, वारण्टी दी जाती है। परिवादिनी द्वारा दुर्घटना सम्बन्धी मिथ्या आरोप लगाए गए हैं। दिनांक 17-06-2006 को वाहनके 1108 कि0मी0 चल चुकने के उपरान्त प्रथम सर्विस के दौरान् उसमें कोई खराबी नहीं पाई गई। दूसरी सर्विस के दौरान् दिनांक 03-07-2006 को जब सर्विस के लिए वाहन लाया गया तो 2227 कि0मी0 चल चुका था और जिसमें दुर्घटना की क्षति सम्बन्धी सुधार किया जाना, दिनांक 13-07-2006 को 2429 कि0मी0, दिनांक 06-01-2006 को 5071 कि0मी0 वाहन चला हुआ सर्विस के दौरान् पाया गया।
विपक्षी सं0-1 द्वारा यह भी कथन किया गया कि दिनांक 17-10-2006 को जब परिवादिनी ने मूल स्वामी से कार क्रय की थी, उस समय वाहन की दो फ्री सर्विस हो चुकी थीं। दिनांक 23-02-2007 को परिवादिनी द्वारा कार की रूटीन सर्विस कराई गई। वाहन का परीक्षण सर्विस इंजीनियर द्वारा परिवादिनी के समक्ष किया गया। दिनांक 19-06-2007 को 100 कि0मी0 वाहन चलाकर देखा गया तो उसमें कोई भी स्टार्टिंग समस्या नहीं पाई गई, जिसके सम्बन्ध में परिवादिनी ने सन्तुष्टि भी प्रकट की। कम्पनी द्वारा वारण्टी अवधि के अन्तर्गत नि:शुल्क बैटरी बदली गई। वाहन की दुर्घटना, वाहन असावधानीपूर्वक चलाने के कारण हुई। वाहन में कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है। परिवादिनी कोई अनुतोष पाने की अधिकारिणी नहीं है।
विपक्षीसं0-2 द्वारा भी अपना प्रतिवाद पत्र विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसमें परिवाद के कथनों को मिथ्या कहा गया और कथन किया गया कि वाहन को तेजी एवं लापरवाही से चलाने के कारण वाहन में क्षति हुई है। वाहन में निर्माण सम्बन्धी कोई दोष नहीं है।
विद्वान जिला आयोग ने दोनों पक्षों को सुनने एवं सभी तथ्यों व साक्ष्यों को विश्लेषित करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया कि विपक्षीगण, परिवादिनी द्वारा दिनांक 11-10-2006 को क्रय की गई प्रश्नगत मारूति बलेनो कार में इंजन के
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स्मूथली रनिंग न करने से सम्बन्धी समस्या या खराबी एवं उक्त प्रश्नगत कार में पॉंच व्यक्तियों के बैठने पर कार के लोड न लेने सम्बन्धी खराबी या समस्या को वारण्टी की शर्तों के अधीन सुधार करें।
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील परिवादिनी द्वारा योजित की गई है।
पीठ द्वारा अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा पत्रावली का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
इस मामले में मुख्य प्रश्न यह उठता है कि क्या अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा मूल स्वामी से 04 माह पुरानी क्रय की गई कार में कोई निर्माण दोष था ?
इस सम्बन्ध में अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से यूनिस एण्ड कम्पनी द्वारा कार निरीक्षण की रिपोर्ट विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसमें उललेख है कि प्रश्नगत कार का इंजन स्मूथली रनिंग नहीं कर रहा है और 05 व्यक्तियों के बैठने पर कार लोड नहीं ले रहा है, परन्तु उक्त रिपोर्ट के कालम बी.9.सी में, जो निरीक्षण रिपोर्ट अंकित की गई है, उसमें दोनों बिन्दुओं पर अंकित है कि इंजन स्मूथली रनिंग न करना तथा 05 व्यक्तियों के कार में बैठने पर लोड न लेने सम्बन्धी दोष ऐसे दोष नहीं हैं, जिन्हें निर्माण सम्बन्धी दोष कहा जा सके और उनमें सुधार सम्भव न हो।
अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से दिनांक 29-09-2007 को दुर्घटना के पश्चात् विपक्षी से कार की सर्विस कराई गई और सर्विस होने के उपरान्त सन्तुष्ट होने पर परिवादिनी ने वाउचर विपक्षी के पक्ष में दिया, जो विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि परिवादिनी द्वारा कार में दुर्घटना के पश्चात् विपक्षी से सुधार कराया गया और कार सुधार के उपरान्त पूर्ण सन्तुष्टि में प्राप्त की गई।
पत्रावली पर अपीलार्थी की ओर से ऐसा कोई अभिलेख/साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे उक्त कार में कोई भी निर्माण दोष विश्वसनीय प्रतीत हो।
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अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा स्वयं कार 20,000 कि0मी0 चली होना बताया जा रहा है, तब ऐसी परिस्थिति में, ऐसा कोई निर्माण दोष प्रतीत नहीं होता है, जिससे कार का उपयोग न हो रहा हो और कार सुधार योग्य न हो।
निर्माण सम्बन्धी दोष के सन्दर्भ में निन्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त महत्वपूर्ण हैं :-
In the case of Baljit Kaur Vs Divine Motors & Anr , {III(2017)CPJ599(NC)} the Hon’ble Nation Consumer Commission has said that if any manufacturing defect is alleged then the onus to prove it is on the complainant.
The Hon’ble Nation Consumer Commission Hyundai motors India Ltd Vs , Surabhi Gupta , revision petition number 2854/2014 , judgement dated 14.08.2014 , had said that he is convinced with the argument of Hyundai motors India Ltd that if there would have been any manufacturing defect in the vehicle, it would have not run 48,689 km in three and half years. If there would have been any serious defect in the vehicle, it was not possible for the owner to run the vehicle for about 48,000 commuters. The senior officers of the company performed a test drive of the vehicle and wherever defect has been found, it has been repaired or replaced the said part. The Hon’ble National Commission has said that even after this the statement of the complainant cannot be accepted that even after it there is defect in the vehicle.
उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों तथा विधिक न्याय निर्णयों के आलोक में पीठ के अभिमत में विद्वान जिला आयोग द्वारा दिये गये उक्त निर्णय के विरूद्ध अपील में जो आधार लिए गए हैं, वे सारहीन एवं बलहीन हैं।
अत: स्पष्ट है विद्वान जिला आयोग ने प्रत्येक तथ्य का उचित एवं विधिक रूप से विश्लेषण करते हुए प्रश्नगत आदेश पारित किया है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
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तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-320/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-09-2009 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 02-07-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.