राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-18/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या 478/2014 में पारित आदेश दिनांक 12.01.2015 के विरूद्ध)
Anupam Jain,
Tata Motors Finance Ltd,
Kuber Complex, Rathyatra city,
Varanasi ....................पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी
बनाम
Manoj Kumar Singh,
s/o late Shri Saryoo singh,
r/o B-1, Annapurna Enclave,
Vidyapeeth road, Varanasi ................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, सदस्य।
3. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अभिषेक सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 03.02.2015
माननीय न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा परिवाद संख्या-478/2014 मनोज कुमार सिंह बनाम अनुपम जैन शाखा प्रबंधक टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, वाराणसी द्वारा दिनांक 12.01.2015 को पारित उस आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है, जिसके द्वारा परिवादी का अन्तरिम प्रार्थना पत्र स्वीकार करते हुए यह आदेशित किया गया है कि '' परिवादी यदि मु0-1,00,000/-रू0 की धनराशि विपक्षी के यहॉं जमा करता है और यह वचनबद्धता देता है कि अन्तिम निर्णय में जो होगा उसे वह धन देने के लिए तैयार रहेगा और ऐसी स्थिति में विपक्षीगण देयता के आधार पर एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए परिवादी का 12 चक्का ट्रक नं0-यू.पी.65 बी.टी.0108 को तत्काल प्रभाव से परिवादी मनोज कुमार सिंह को मुक्त कर देंगे एवं यदि विपक्षीगण उक्त वाहन को बिहार में किसी स्थान पर अथवा किसी यार्ड में रखे हुए हैं तो यार्ड को सूचित करते हुए उसकी परिवादी पहचान व सत्यापन करने के बाद मुक्त कर देंगे एवं आदेश के पालन में त्रुटि
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न हो एवं दिनांक 31.01.2015 तक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। ''
इस पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र को अंगीकार किए जाने के प्रश्न पर सुनवाई करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से श्री अभिषेक सिंह विद्वान अधिवक्ता भी चूँकि उपस्थित हो गए हैं, इसलिए उन्हें तथा पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा को सुना गया और यह समीचीन पाया गया कि इस पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र को अंगीकार किए जाने के प्रश्न पर ही सुनवाई करते हुए निस्तारित कर दिया जाए।
पुनरीक्षणकर्ता का मुख्यत: यह तर्क रहा है कि परिवादी ने चूँकि किस्तों का भुगतान विपक्षी को नहीं किया है, इसलिए परिवादी का ट्रक पकड़ा गया है। चूँकि उभय पक्ष के मध्य जिला मंच के समक्ष इस सम्बन्ध में विवादित प्रश्न कई हो सकते हैं कि प्रश्नगत वाहन को पकड़ा जा सकता था या नहीं पकड़ा जा सकता था और उभय पक्ष के मध्य ब्याज की दर ऋण के सम्बन्ध में क्या रही है और कितना भुगतान परिवादी ने कर दिया है और कितना भुगतान परिवादी के ऊपर बकाया है, जो विपक्षी/पुनरीक्षणकर्ता को लेना है, परन्तु चूँकि ऐसे सभी तथ्य अभी जिला फोरम के समक्ष निर्णय हेतु विचारणीय हैं, इसलिए प्रश्नगत आदेश हम जहॉं जिला मंच की क्षेत्राधिकारिता के अन्तर्गत पारित किया गया आदेश पाते हैं, वहीं पर उक्त आदेश में यह सारवान त्रुटि भी पाते हैं कि उभय पक्ष के मध्य स्वीकृत रूप से 3,63,000/-रू0 की किस्तें बकाया होने के परिप्रेक्ष्य में मात्र 1,00,000/-रू0 की धनराशि देने पर ट्रक को मुक्त किया जाना विधिसम्मत नहीं है। किस्तों की धनराशि उभय पक्ष के मध्य अनुबन्ध का एक स्वीकृत हिस्सा होता है। उसको अदा करने में देरी आदि से सम्बन्धित पेनाल्टी, दण्ड ब्याज आदि प्रश्न उभय पक्ष के मध्य अभिवचनों एवं साक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए विचारणीय होते हैं और जिनके सम्बन्ध में जिला मंच के समक्ष परिवादी का परिवाद लम्बित भी है, परन्तु नियमित किस्तें अदा नहीं किए जाने का प्रश्न ऐसा प्रश्न है कि उसमें चूक इस मामले की वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए ऐसा विषय नहीं है कि उसे मात्र 1,00,000/-रू0 अदा करने के आदेश से अनदेखा कर दिया जाए। इस सीमा तक हम प्रश्नगत आदेश को त्रुटिपूर्ण पाते हैं और तदनुसार इस पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश में संशोधन किया जाना न्यायोचित पाते हैं।
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आदेश
पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र उपरोक्त आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। प्रश्नगत आदेश में जहॉं 1,00,000/-रू0 वर्णित है, वहॉं पर 3,63,000/-रू0 अंकित होना प्रस्थापित करते हैं एवं उक्त आदेश में जहॉं तिथि 31.01.2015 अंकित है, वहॉं पर उसके स्थान पर दिनांक 18.02.2015 अंकित होना प्रस्थापित करते हैं।
(न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह) (जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (जुगुल किशोर)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1