(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :- 570/2017
(जिला उपभोक्ता आयोग,गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0- 149/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22/02/2017 के विरूद्ध)
Mahindra & Mahindra Limited Gateway Building, Apollo Bunder, Mumbai-400039
- Appellant
-
- Manoj Kumar Sharma S/O Asharam Sharma, H.No. 282, Harsav, Tehsil And district-Ghaziabad.
- Shiva Auto Car India Pvt. Ltd., C-22, Upper Floor, Lohiya Nagar, Gaziabad.
- Respondents
समक्ष
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 डा0 आभा गुप्ता, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री प्रखर मिश्रा, एडवोकेट
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री पियुष मणि त्रिपाठी, एडवोकेट
दिनांक:-09.06.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह अपील अंतर्गत धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 149/2014 मनोज कुमार शर्मा प्रति महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा लिमिटेड व अन्य में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 22.02.2017 के विरूद्ध योजित की गयी है।
2. प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने दिनांक 07.12.2011 को एक वाहन महिन्द्रा एसयूवी-500, जेसी खरीदी थी। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के कथनानुसार क्रय करने के पश्चात से ही गाड़ी में स्टार्टिंग ही कठिनाई, ब्रेकिंग, लाइट, आटो सेन्सर लॉक में परेशानियां उत्पन्न होने लगी थी। सर्विस में उक्त कमियों के बारे में प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने बताया, सर्विस के उपरान्त उसे यह कहा गया कि अब वाहन बिल्कुल ठीक है, लेकिन यह परेशानियां लगातार आती रही, विपक्षीगण द्वारा बार-बार प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को यह आश्वासन दिया गया कि गाड़ी पूर्णत: ठीक है, लेकिन गाड़ी की स्टार्टिंग समस्या ब्रेकिंग लाइट तथा आटो सेन्सर लॉक बनी रही। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 शिवा आटो कार लिमिटेड विक्रेता को टेलीफोन द्वारा सूचना दी थी तथा दिनांक 19.12.2012 को प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के निवास स्थल से वाहन को क्रैन से मंगवाया गया। गाड़ी पुन: उपरोक्त समस्या को दूर किये जाने हेतु यह कहकर वापस कर दी गयी कि गाड़ी बिल्कुल ठीक है। दिनांक 14.03.2013 को पुन: गाड़ी में स्टार्टिंग समस्या, ब्रेकिंग समस्या लाइट आटो सेन्सर व क्लच में परेशानियां उत्पन्न हो गयी। ईमेल से प्रत्यर्थी सं0 1/ विपक्षी सं0 1 महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा के कस्टमर केयर के यहां सूचना दी गयी, जहां पर संबंधित कर्मचारी द्वारा इन कमियों को ठीक करने का आश्वासन दिया गया, किन्तु उपरोक्त कमियां बरकरार रही एवं आज भी उक्त कमियां गाड़ी में बरकरार है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के अनुसार विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को डिफेक्टिव व खराब गाड़ी दी गयी है, जो बार-बार शिकायत करने पर पूर्ण ठीक करने का आश्वासन दिये जाने के बावजूद ठीक नहीं की गयी। आरंभ से आज तक प्रश्नगत कार सही कन्डीशन में खड़ी करने के बाद भी स्टार्ट नहीं होती है तथा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी अपने आवश्यक कार्य से देने या आवश्यक कार्य के बीच में असफल रहता है इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक क्षति के लिए रूपये 5,00,000/- गाड़ी की पूर्ण कीमत रूपये 13,32,000/- एवं अन्य क्षतिपूर्ति की याचिका के साथ यह परिवाद पत्र प्रस्तुत किया है।
3. विपक्षी सं0 1/अपीलार्थी ने प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया , जिसमें कथन किया गया कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी सं0 1 के विरूद्ध अनुतोष की प्रार्थना नहीं की है। प्रश्नगत सम्व्यवहार प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी तथा प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 वाहन क्रेता के मध्य हुआ था इसलिए निर्माता का परिवाद में कोई भूमिका नहीं है। डीलर एग्रीमेंट के अनुसार निर्माता एवं क्रेता के मध्य Principal to Principal का संबंध है तथा Principal एवं एजेण्ट का संबंध नहीं है इसलिए सेवा में कमी के आधार पर विपक्षी सं0 2 वाहन विक्रेता ही उत्तरदायित्व रखता है एक बार निर्माता द्वारा वाहन की डिलीवरी विक्रेता को दे दी, उसके उपरान्त उसका कोई उत्तरदायित्व नहीं रह जाता है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि वाहन क्रय करने के उपरान्त से ही वाहन में स्टार्टिंग समस्या, ब्रेकिंग समस्या, आटो सेन्सर लॉक एवं अन्य दिक्कते आ गयी। उत्तरदाता के अनुसार इन कमियों को दुरूस्त करके दुरूस्त स्थिति में वाहन को प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को दे दिया गया था तथा परिवादी ने उन संतुष्टि के ऊपर वाहन की डिलीवरी की थी। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा वाहन दिनांक 07.12.2011 को क्रय करने के उपरान्त प्रथम सर्विस दिनांक 16.02.2012 तथा द्वितीय सर्विस दिनांक 15.05.2012 को करवायी थी, जिसमें प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने सेन्सर लॉक, लाईट से संबंधित ब्रेक में आवाज आदि की शिकायतें बतायी थी। इस प्रथम सर्विस में वाहन 4,925 किमी, द्वितीय सर्विस के समय 12,189 किमी चल चुका था। इसके उपरान्त 11.06.2012 तक प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा स्टार्टिंग समस्या के बारे में नहीं बताया तब तक वाहन 18,185 किमी चल चुका था। 11.06.2012 को वाहन प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा लाया गया। प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 ने वाहन का परीक्षण करके उसकी कमियां दुरूस्त कर दी। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा स्वयं कथन किया गया है कि वाहन का एक्सीडेंट हो गया था, जिससे स्पष्ट है कि वाहन में एक्सीडेंट होने के कारण कमियां उत्पन्न हुईं जो स्वाभाविक है। 12.06.2012 को जब वाहन लाया गया तब वाहन में स्टार्टिंग समस्या की कोई शिकायत नहीं की गयी थी। दिनांक 15.07.2013 तथा 24.07.2013 को दुर्घटना के उपरान्त वाहन लाया गया तथा उसमें बतायी गयी कमियां दूर की गयी। दिनांक 16.08.2013 को वाहन की इक्जीक्यूट स्वीच की किट तथा लॉक सिलिण्डर एवं रिमोट कार्य नहीं कर रहे थे। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने इस बार भी स्टार्टिंग समस्या की शिकायत नहीं की। पुन: दिनांक 29.11.2012 को वाहन लाया गया, जिसमें वाहन के सेन्सर आदि ठीक किये जायेंगे एवं स्क्रीन इत्यादि ठीक की गयी पुन: दिनांक 25.12.2012 को वाहन वर्कशाप पर लाया गया। वाहन के क्लच सस्पेन्सन, हेड ब्रेक फ्लयूड इत्यादि ठीक किये गये। इस बार भी स्टार्टिंग समस्या की कोई बात नहीं की गयी। इसके उपरान्त दिनांक 17.01.2013, 14.02.2013, 05.04.2013 को वाहन स्टार्टिंग समस्या की कमियों के लिए वर्कशाप पर लाया गया तब तक वाहन 14,400 किमी चल चुका था। दिनांक 05.04.2014 के उपरान्त 09.04.2013 को यह परिवाद प्रस्तुत कर दिया गया। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि वाहन के बार-बार खराब होने पर वर्कशाप द्वारा इसको दुरूस्त किया गया। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा वाहन की दुर्घटना दर्शायी गयी और इस कारण वाहन में कई कमियां आना स्वाभाविक है। वाहन में जब कमियां दूर की गयी जो प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी पूर्ण संतुष्टि में वाहन प्राप्त किया था। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने गलत एवं यांत्रिक तथ्य के आधार पर अनुचित एवं कमाने के उद्देश्य से यह परिवाद प्रस्तुत किया है जो खारिज होने योग्य है।
4. विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा उपभोक्ता को सुनवाई का अवसर देते हुए प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 की ओर से कथन इस प्रकार आया कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से जब भी शिकायत की गयी तब उनके द्वारा वाहन को दुरूस्त करके पूर्ण संतुष्टि में प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को वापस किया गया। दिनांक 11.07.2012 को प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की गाड़ी काफी क्षतिग्रस्त हुई थी, जिसको ठीक कराके प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को दिया गया था। परिवादी ने गलत तथ्य पर परिवाद प्रस्तुत किया है।
5. परिवाद के दौरान उभय पक्ष को सुनवाई का अवसर देकर विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद आज्ञप्त करते हुए उसी मॉडल का वाहन उपलब्ध कराये जाने अथवा वाहन की कीमत धनराशि रू0 13,32,000/- का भुगतान करने मय 10 प्रतिशत ब्याज एवं अन्य अनुतोष के लिए वाद आज्ञप्त किया। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्तुत एक्सपर्ट रिपोर्ट प्रशांत कुमार प्राइवेट टी0वी0 एक्सपर्ट व सॉफ्टवेयर इंजीनियर की रिपोर्ट 10.07.2016 पर आधारित किया, जिसमें गाड़ी के नट व स्टार्ट की गम्भीर समस्या बतायी गयी थी एवं यह कहा गया था कि नट स्टार्ट खराब होना एक समस्या है क्योंकि व धक होने पर चिपक जाता है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से प्रमाणित ड्राइवर त्रिभुवन गोस्वामी के रिपोर्ट पर आधारित किया गया, जिसमें गाडी़ में वायबरेशन और क्लच गैर बॉक्स में कमी और इंजन में मिशिंग बतायी गयी। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गयी मुकेश कुमार जूनियर इंजीनियर की रिपोर्ट पर भी आधारित किया गया, जिसमें क्लच का खराब होना और गाड़ी का सेन्सर खराब होना बताया गया। यह भी कार्य चलने पर गरम हो जाता और गाड़ी में नट बोल्ट चिपक जाते हैं, जिससे इस प्रकार गाडी़ में मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट मानते हुए परिवादी का परिवाद आज्ञप्त किया गया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिया गया है कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने गलत प्रकार से स्वयं परिवादी की ओर से नियुक्त विशेषज्ञगण की रिपोर्टों पर आधारित किया है। ऐसे विशेषज्ञ स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं माने जा सकते हैं। अत: इन पर आधारित होकर निर्णय नहीं दिया जा सका है। इसके अतिरिक्त विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा नियुक्त किये गये विशेषज्ञ वास्तव में इस क्षेत्र के विशेषज्ञ थे। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा 5 वर्ष तक 1,00,000/- किमी वाहन चलाये जाने के बावजूद भी इसमें निर्माण संबंधी दोष बताया जा रहा है। अपीलकर्ता की ओर से माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक निर्णय पर आधारित किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि विशेषज्ञ वह व्यक्ति होता है जो प्रशिक्षण या अनुभवी के आधार पर किसी विशेष क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखता हो। इसके अतिरिक्त उसकी राय मात्र एक राय है तथा विशेषज्ञ की राय को अंतिम साक्ष्य नहीं माना जा सकता है वाद योजन के लगभग 02 वर्ष तक प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा वाहन लगातार इस्तेमाल किया गया अत: यह नहीं माना जा सकता कि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष था। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष होने की दशा में स्वतंत्र विशेषज्ञ की आख्या मंगाई जानी चाहिए जो नहीं मंगायी गयी है वाहन की वारंटी की शर्तो के अनुसार वाहन को अनाधिकृत गैराज से दुरूस्त नहीं कराया जा सकता था। परिवादी ने अनाधिकृत गैराज को वाहन का मरम्मत कराके वारंटी की शर्तों का उल्लंघन किया है इसलिए वह किसी अनुतोष का अधिकार नहीं रखते हैं। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष साक्ष्य से ऐसा कोई तथ्य साबित नहीं हुआ है, जिससे यह माना जा सके कि प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष था। अत: वाहन को बदले जाने का निर्णय गलत है जो अपास्त होने योग्य है। अपीलकर्ता के अनुसार वाहन का अत्यधिक उपयोग होने के कारण वाहन में कमियां उत्पन्न हुई हैं इसलिए प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी अनुतोष प्राप्त करने के अधिकारी नहीं है। परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
7. अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री प्रखर मिश्रा एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री पियुष मणि त्रिपाठी को विस्तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया। तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
8. विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने प प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये विशेषज्ञ रिपोर्टों टायर व्हील एक्सपर्ट प्रमाणित ड्राइवर तथा मुकेश कुमार जूनियर इंजीनियर की रिपोर्टों के आधार पर वाद का निर्णय किया है जबकि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का कथन है कि नया वाहन खरीदने के लगभग 02 माह के उपरान्त से वाहन में स्टार्टिंग समस्या जैसी कमियां दृष्टिगोचर होने लगी, जो वाद योजन तक एवं आज तक नहीं समाप्त हुई है। अपीलकर्ता द्वारा कथन किया गया है कि वाहन में कोई तकनीकी त्रुटि नहीं है एवं साक्ष्य से यह सिद्ध भी नहीं होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये विशेषज्ञ की रिपोर्टें स्वतंत्र नहीं है और प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से प्रस्तुत है अत: निष्पक्ष नहीं कही जा सकती है। अत: इस आधार पर निष्कर्ष गलत है एवं प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा लगातार वाहन चलाया जा रहा है यदि वाहन में कोई तकनीकी त्रुटि होती तो वाहन चल नहीं सकता था और वाहन का चलना ही प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के कथन को असत्य सिद्ध करता है। दोनों पक्षों के विस्तृत तर्क एवं निर्णय को दृष्टिगत करते हुए अपील के ये निम्नलिखित बिन्दु उत्पन्न होते हैं:-
- क्या अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को दोषपूर्ण वाहन विक्रय किया गया है।
- क्या प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गयी विशेषज्ञ रिपोर्ट के आधार पर निर्णय नहीं दिया जा सकता है और उक्त रिपोर्टें परिवादी के पक्ष को साबित करने में असफल है।
- प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा वाहन लगातार चलाये जाने के कारण इसमें निर्माण संबंधी दोष नहीं माना जा सकता है।
- क्या प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद उचित प्रकार से आज्ञप्त किया गया है।
9. प्रथम बिन्दु के संबंध में ये देखना आवश्यक है कि वाहन कितनी बार तथा कब-कब दुरूस्त किये जाने हेतु प्रेषित किया गया यहां पर यह तथ्य उल्लेखनीय है कि परिवादी ने वाहन क्रय करने की तिथि से 02 माह के पश्चात ही वाहन में स्टार्ट न होने की कमी बतायी थी, जो परिवादी की ओर से आज भी बतायी जा रही है।
10. प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन एस0यू0वी0-500 उभय पक्षों की स्वीकृति के अनुसार दिनांक 07.12.2011 को वाहन खरीदा गया। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का कथन है कि वाहन खरीदने के आरंभ से ही वाहन में स्टार्टिंग समस्या आ गयी। स्वयं विपक्षी ने अपने वादोत्तर के प्रस्तर 6 में इस कथन को स्वीकार किया है कि 16.12.2011 को प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने वाहन में स्टार्टिंग समस्या की शिकायत की थी और इसका निराकरण करके वाहन दे दिया गया था। परिवादी की ओर से प्रस्तुत जॉब कार्ड के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इसके उपरान्त दिनांक 16.02.2012 को अर्थात 02 माह के भीतर वाहन रिपेयर के लिए दिया गया, जिसमें जॉब कार्ड में अंकित है ‘’कस्टमर डिमाण्डेड रिपेयर’’। इस जॉब कार्ड में ‘’वाइबरेशन इन व्हील’’ ‘’ब्रेक नोइज’’ की शिकायत की गयी है। इसके उपरान्त जॉब कार्ड के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दिनांक 09.03.2012 को पुन: रिपेयर की शिकायत करते हुए सस्पेन्सन नोइज, ब्रेक नोइज सम्मिलित करते हुए अन्य कमियां वाहन में इस तिथि को दर्शायी गयी थी, तदोपरान्त दिनांक 15.05.2012 को वाहन पुन: रिपेयर के लिए दिया गया। पुन: दिनांक 11.06.2012 को वाहन रिपेयर के लिए दिये जाने का जॉब कार्ड अभिलेख पर है, जिसमें पुन: ‘’ब्रेक नोइज’’, ‘’सस्पेन्शन नोइज’’ एवं अन्य कमियों के साथ वाहन रिपेयर किये जाने का वर्णन है, इसके उपरान्त दिनांक 11.07.2012 को वाहन रिपेयर किये जाने एवं दिनांक 23.07.2012 को वाहन का पुन: रिपेयर किये जाने का वर्णन है। यद्यपि इन दोनों जॉब कार्ड में ‘’एक्सीडेंटल’’ रिपेयर का वर्णन किया गया है। इसके उपरान्त दिनांक 28.07.2012 को पुन: वाहन को रिपेयर किये जाने का वर्णन है, जिसमें इग्नीशन स्विच की समस्या आना अंकित है एवं रिमोट का कार्य न किये जाने का भी वर्णन किया गया है तदोपरांत दिनांक 19.09.2012 को क्रूज कन्ट्रोल काम न करने बॉडी नोइज, ब्रेक नोइज का वर्णन है। पुन: दिनांक 23.09.2012 को वाहन रिपेयर किये जाने का जॉब कार्ड अभिलेख पर है। इसके उपरान्त दिनांक 12.12.2012 को पुन: ब्रेक नोज की शिकायत के साथ जॉब कार्ड है, पुन: वाहन दिनांक 28.12.2012 को रिपेयर किया गया है। वाहन में नियमित रूप से स्टार्ट न होने की समस्या दिनांक 14.03.2013 से आरंभ होने का उल्लेख है एवं इस संबंधित जॉब कार्ड की प्रतिलिपि अभिलेख पर है, जिसमें वाहन की स्टार्टिंग समस्या को दुरूस्त किये जाने का वर्णन है। इसके उपरान्त दिनांक 05.04.2013 मे भी वाहन व स्टार्ट न होने के अतिरिक्त अन्य कमियां होने का जॉब कार्ड अभिलेख पर लाया गया है। इसके उपरान्त दिनांक 27.06.2013 के पत्र के उपरान्त वाहन दुरूस्त किये जाने का जॉब कार्ड है, जिसमें खडी़ गाड़ी का स्टार्ट न होना भी एक समस्या है, इसके अतिरिक्त ब्रेक काम न करना, सायरन बजना आदि वर्णन है। उक्त संबंधित जॉब कार्ड के अंत में प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा यह अंकित किया गया है कि आप अर्थात सर्विस सेण्टर दुरूस्त नहीं कर पा रहा है। तदोपरांत प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के पत्र दिनांक 02.08.2014 में कार स्टार्ट न होना, चलते चलते बन्द हो जाना तथा धुआं निकलते रहने की शिकायत की गयी है। संबंधित जॉब कार्ड दिनांकित 02.08.2014 में जॉब कार्ड में अंकित किया गया है कि कभी-कभी वाहन स्टार्ट नहीं होती है इसके अतिरिक्त अन्य कमियां दर्शायी गयी हैं। पुन: पत्र दिनांकित 27.08.2014 के माध्यम से वाहन के स्टार्ट न होने की शिकायत करने पर जॉब कार्ड दिनांकित 27.08.2014 बनाया गया है, जिसमें स्टार्टिंग समस्या दुरूस्त किये जाने, इंडिकेटर बल्ब एवं अन्य कमियां दुरूस्त किये जाने का वर्णन है। दिनांक 06.01.2014 को प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा लिखे गये पत्र के आधार पर जॉब कार्ड दिनांकित 07.01.2014 बनाया गया है, जिसमें पुन: गाडी़ के स्टार्ट न होने की समस्या अंकित है। पुन: दिनांक 05.02.2014 को वाहन दिनांक 04.02.2014 को स्टार्ट न होना और कस्टमर केयर को शिकायत करने पर गाडी़ को उठाकर ले जाने और इसके लिए प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी से धनराशि चार्ज करने की शिकायत की गयी है। पुन: जॉब कार्ड दिनांक 05.02.2014 को वाहन की स्टार्टिंग समस्या के साथ अन्य कमियां दुरूस्त किये जाने का वर्णन है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा लिखे गये पत्र दिनांकित 29.03.2014 में पुन: गाडी़ में स्टार्टिंग समस्या होने और समय समय पर गाडी़ स्टार्ट न होने की शिकायत की गयी थी, जिसके आधार पर जॉब कार्ड दिनांकित 29.03.2014 बनाया गया है जो अभिलेख पर है। इसके उपरान्त उक्त सभी जॉब कार्ड एवं परिवादी द्वारा की गयी शिकायत से स्पष्ट होता है कि वाहन में आरंभ अर्थात वाहन क्रय करने के दिनांक 07.12.2011 के उपरान्त 16.12.2011 से वाहन में समय से स्टार्ट न होने की समस्या आ गयी, जो वर्ष 2014 तक बार-बार ठीक किये जाने के बावजूद ठीक नहीं हो पाया, इस बीच प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने विधिक नोटिस विपक्षी को दी और यह परिवाद प्रस्तुत किया है। उपरोक्त जॉब कार्ड के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा बार-बार स्टार्टिंग समस्या और ब्रेक में नोइज (आवाज) होने की आवाज को चेक करने के लिए भेजा गया, किन्तु वाहन की यह कमी विपक्षी द्वारा बार-बार रिपेयर के बावजूद दूर नहीं की जा सकी।
11. इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय हुण्डई मोटर्स इंडिया लिमिटेड प्रति एफिलेटेड ईस्ट वेस्ट प्रेस प्राइवेट लिमिटेड प्रकाशित I 2008 CPJ PAGE 19 NC का उल्लेख करना उचित होगा। इस मामले में परिवादी द्वारा नया वाहन खरीदा गया जो आरंभ से ही परेशानी देने लगी थी। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि परिवादी द्वारा एकदम नया वाहन खरीदा जाता है एवं इसमें त्रुटियां आरंभ से ही दृष्टिगोचर होने लगती हैं एवं यह कमियां दूर नहीं की जा सकी, तो वाहन में तकनीकी एवं निर्माण संबंधी दोष माना जायेगा। निर्णय के प्रस्तर 25 तथा 27 में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत किया गया है:-
In our view, as stated above, the Car was required to be repaired on Several Occassion. The Car Was, althrough out, emitting smoke which defect could not be rectified by the Petitioner………
In our Opinion, Form the admission made by the petitioner. It is clear that the vehicle had gone to them on several occassion for repairs. In our view, There is noneccessity for a new car to go to workshop is more car on several occasion for repairs.
12. इस पीठ के समक्ष मामले पर माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय सत्यम आटो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड प्रति मुकेश सिंह व अन्य प्रकाशित III (2016) CPJ PAGE 250 (NC) का उल्लेख करना भी उचित होगा, जिसके प्रस्तर 2 में यह अंकित है कि वाहन क्रय किये जाने के 02 माह के भीतर ही परेशानी देने लगी तथा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी इस वाहन को बार-बार गैराज ले गया तथा रिपेयर के बाद भी वाहन परेशानी देता रहा। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम के इस निष्कर्ष को उचित माना कि इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा क्रय किया गया वाहन दोषपूर्ण था, जिसके कारण प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को बार-बार वाहन के रिपेयर हेतु जाना पडा़।
13. माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित एक अन्य निर्णय फोर्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड प्रति माइकल एडिन वर्ग व अन्य प्रकाशित (2016) एससीसी ऑनलाईन (एनसीडीआरसी) पृष्ठ 1171 का उल्लेख करना भी उचित होगा। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग के सभी मामले में भी क्रय किया गया वाहन आरंभ से ही प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने यह संज्ञान नहीं लिया कि इंजन में आवाज है तथा गैर बदलते समय झटका लगता है। यह आवाज बार-बार रिपेयर होने पर बन्द नहीं हुई। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह माना कि उक्त तथ्य साबित होने पर यह मानना उचित है कि क्रय की गयी कार में निर्माण संबंधी दोष था और ऐसी दशा में प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को नया वाहन या पैसा दिलवाया जाना उचित है।
14. इस संबंध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित एक अन्य निर्णय सतनाम मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड प्रति कृष्ण भाटिया प्रकाशित III (2020) CPJ 176 (NC) इस संबंध में उल्लेखनीय है। इस मामले में उनके वाहन में एक द्रव पदार्थ वाहन से लगातार गिरता था, जिसके कारण वाहन का रंग खराब हो रहा था। बार-बार रिपेयर करने पर इस कमी को दूर नहीं किया जा सका। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा वाहन की कीमत दिलाये जाने का आदेश उचित माना गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत मामले में भी प्रश्पगत वाहन बार-बार रिपेयर के लिए गया। वाहन क्रय किये जाने के 02 माह के तुरंत बाद ही वाहन में स्टार्ट न होने की समस्या आ गयी, जो बार-बार रिपेयर के बावजूद दूर नहीं की जा सकी। अत: यह मानना उचित है कि परिवादी को दोषपूर्ण वाहन विक्रय किया गया था, जो बाद में रिपेयर करने के बावजूद सुधारा नहीं जा सका।
15. द्वितीय बिन्दु के संबंध में प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रश्नगत निर्णय में परिवादी द्वारा विशेषज्ञ रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं, जिनमें प्रशांत कुमार, प्रोपराइटर, टायर व्हील एक्सपर्ट की रिपोर्ट दिनांकित 10.07.2016 दाखिल की है, जिसमें नट व स्टड की गंभीर समस्या बतायी गयी है। त्रिभुवन गोस्वामी नाम के प्राइवेट ड्राइवर की रिपोर्ट भी दाखिल है, जिसमें गाडी़ में वायबरेशन तथा क्लच व गैर बाक्स सही नहीं बताया है। इंजन भी मिसिंग बताया गया है इसके अतिरिक्त मुकेश कुमार जूनियर इंजीनियर के द्वारा रिपोर्ट में भी वाहन में तकनीकी एवं निर्माण संबंधी दोष बताया है, जिससे गाडी़ चलने पर गरम हो जाना और गाडी़ में नट बोल्ट चिपक जाने की बात कही गयी है। इन आधारों पर निर्णय दिया गया है। विपक्षी की ओर से तर्क दिया गया कि उक्त विशेषज्ञ स्वयं प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से नियुक्त है। अत: रिपोर्टें पक्षपात पूर्ण है एवं निष्पक्ष नहीं मानी जा सकती। अत: इस आधार पर प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के पक्ष में निर्णय नहीं दिया जा सकता है। उक्त तर्क के संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा प्राइवेट लिमिटेड प्रति नन्दलाल तथा 3 अन्य निगरानी सं0 3327 सन 2013 निर्णय तिथि दिनांक 31.05.2013 का उल्लेख करना उचित होगा, इस निर्णय में प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने अपने शपथ पत्र के माध्यम से वाहन में निर्माण संबंधी दोष होना सिद्ध किया। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से जगदीश प्रसाद माली नामक विक्रेता के सेल्समैन तथा खेमराज मैकेनिक तथा लक्ष्मण सिंह ड्राइवर मैकेनिक एवं सुलेमान मैकेनिक की रिपोर्टें प्रस्तुत की गयी। इन सभी मैकेनिक व्यक्तियों ने प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष होना अंकित किया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये निर्णय के विरूद्ध विपक्षीगण ने कोई खण्डित किये जाने वाला साक्ष्य नहीं दिया गया है। अत: यह नहीं माना जा सकता है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर आधारित नहीं किया जा सका है-
The Appellant have not produced any evidence before the District Forum which rebut these evidences. The complainants have proved their case that tractor has the manufacturing defect. While the appellants albeit having the team of expert and even after the order of commission, could not examine the tractor in the presence of complainants.
16. माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा इस मद में एक अन्य निर्णय स्कोडा आटो फोर्क्सवैगन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड प्रति मेघना कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड व अन्य प्रकाशित IV (2020) CPJ PAGE 14 (NC) का उल्लेख करना उचित होगा। इस निर्णय में भी परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष दर्शाये गये थे। परिवादी की ओर से 25 जॉब कार्ड प्रस्तुत किये गये हैं, जिसमें प्रश्नगत वाहन के बार-बार दुरूस्त किये जाने का उल्लेख था। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह माना गया कि विक्रेता के पास पूर्ण अवसर था कि वह विशेषज्ञ की आख्या प्राप्त करने हेतु आवेदन करता, जिससे परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया साक्ष्य खंडित हो सके, किन्तु ऐसा कोई आवेदन विक्रेता/निर्माता द्वारा नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के साक्ष्य को खण्डित करने के लिए कोई भी साक्ष्य नहीं दिया गया है, अत: प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्य सिद्ध माने जायेंगे एवं यदि धारा 13 (1) (सी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत विशेषज्ञ आख्या न्यायालय की ओर से नहीं आयी है तो भी प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा अखण्डित साक्ष्य के आधार पर यह मानना उचित है कि प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष था इस मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के वाहन में निर्माण संबंधी दोष सिद्ध मानते हुए प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद आज्ञप्त किया जाना उचित माना।
17. प्रस्तुत मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय लागू होते हैं इस मामले में परिवादी की ओर से जो विशेषज्ञ रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है यद्यपि वह अपने स्तर से विशेषज्ञ नियुक्त करके स्वयं विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष रखी गयी हैं, किन्तु अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से इसको खण्डित करने के लिए कोई साक्ष्य उपलब्ध न होने के कारण यह नहीं माना जा सकता कि इन विशेषज्ञ रिपोर्टों का कोई मूल्य नहीं है। यह तथ्य देखते हुए कि प्रश्नगत वाहन में आरंभ से ही निर्माण संबंधी दोष अर्थात स्टार्टिंग समस्या पाया गया था जो अनेकों बार रिपेयर गैराज जाने पर भी दूर नहीं किया जा सका। परिवादी की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर वाहन में निर्माण संबंधी दोष सिद्ध मानना उचित है।
18. तृतीय बिन्दु के संबंध में अपीलार्थी का आरंभ से यह तर्क आया है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा लगातार एवं नियमित रूप से वाहन का प्रयोग किया जा रहा है अर्थात यदि निर्माण संबंधी दोष होता तो वाहन इतना अधिक नहीं चल सकता था, इस तर्क के संबंध में यह तर्क चलने योग्य प्रतीत नहीं होता है क्योंकि साधारणत: एक ही वाहन होने पर वाहन स्वामी की मजबूरी होती है कि वह जैसे तैसे इसको चलाये और अपना कार्य सम्पन्न करे। ऐसी परिस्थितियों में वाहन स्वामी दोष के साथ भी वाहन को अपने कार्यों को सम्पादित करने के लिए वाहन का प्रयोग करता रहता है। माननीय राष्ट्रीय आयोग के समक्ष मामले हुण्डई मोटर्स इंडिया लिमिटेड प्रति एफिलेटेड ईस्ट वेस्ट प्रेस प्राइवेट लिमिटेड प्रकाशित I 2008 CPJ PAGE 19 (NC) के मामले में एक नया वाहन दिनांक 31.12.2004 को खरीदा गया, लगभग 01 माह बाद 2,265 किमी चलाये जाने के उपरान्त वाहन में तेल लीक होने की शिकायत की गयी, जो दुरूस्त की गयी। पुन: यह शिकायत दिनांक 22.03.2005 को की गयी तब तक यह वाहन 6,133 किमी चल चुका था। उसके उपरान्त दिनांक 06.09.2005 को जब वाहन 18,460 किमी चल चुका था। यह शिकायत दोहरायी गयी। इस प्रकार इस वाहन मे निर्माण संबंधी दोष होने के बावजूद वाहन स्वामी द्वारा चलाया गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह माना गया कि इतनी चलने के बावजूद यह नहीं माना जा सकता कि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष नही था एवं वाहन के मूल्य दिलाये जाने संबंधी आदेश पारित किये गये।
19. अपीलकर्ता की ओर से एक तर्क यह भी उठाया गया है कि उसके तथा डीलर शिवा आटो/विपक्षी के मध्य Principal To Principal के आधार पर करार हुआ था अत: वाहन की डिलीवरी प्रत्यर्थी सं0 2 शिवा आटो कार इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को देने के उपरान्त वाहन के संबंध में समस्त उत्तरदायित्व डीलर शिवा आटो कार का ही है और निर्माणकर्ता निर्माण करने वाले अपीलकर्ता के वाहन के संबंध में कोई उत्तरदायित्व नहीं है।
20. इस तर्क के संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय डॉक्टर एन0फार्म इक्विपमेंट लिमिटेड प्रति सोमनाथ गाउदा प्रकाशित 2002 वॉल्यूम I CPR पृष्ठ 19 (एन.सी.) उल्लेखनीय है। इस निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया है कि निर्माणकर्ता एवं डीलर के मध्य Principal To Principal करार है इसका प्रभाव वाहन के क्रेता के हितों पर नहीं पड़ता है यदि Principal To Principal के करार का ज्ञान वाहन क्रय करते समय क्रेता को दिया जाता है तभी वह इस संविदा से बाध्य होगा अन्यथा वाहन में निर्माण संबंधी दोष होने पर वाहन के निर्माणकर्ता का ही उत्तरदायित्व माना जायेगा।
21. इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय हयुण्डई इण्डिया मोटर्स लिमिटेड प्रति शेलेन्द्र भटनागर प्रकाशित II 2022 CPJ PAGE 36 (S.C.) का भी उल्लेख करना उचित होगा। इस निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि वाहन के क्रय विक्रय के मामले में यदि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष होता है तो इसका उत्तरदायित्व निर्माणकर्ता पर होगा और वही क्रेता को क्षतिपूर्त करने का उत्तरदायित्व रखता है। अत: माननीय राष्ट्रीय एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णयों के आधार पर अपीलकर्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि उसके तथा डीलर प्रत्यर्थी सं0 2 के मध्य Principal To Principal की संविदा थी इसलिए वाहन के किसी भी कमी के लिए निर्माणकर्ता किसी भी प्रकार का उत्तरदायित्व नहीं रखता है।
22. मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय पर आधारित करते हुए यह पीठ इस मत की है कि यदि वाहन स्वामी द्वारा नियमित रूप से चलाये भी जा रहे हैं एवं उसके द्वारा बार-बार निर्माण संबंधी दोष की शिकायत साथ साथ की जा रही है तो यह मान लेना उचित नहीं है कि परिवादी द्वारा की गयी शिकायत निरर्थक है और वास्तव में निर्माण संबंधी कोई दोष नहीं है।
23. उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा क्रय किया गया वाहन आरंभ से ही दोषपूर्ण था एवं 02 माह के उपरान्त तुरंत ही निर्माण संबंधी दोष ‘’स्टार्टिंग समस्या’’ तथा ब्रेक नाइज (आवाज) की शिकायत की गयी जो वाद योजन की तिथि एवं इसके उपरान्त भी बार-बार रिपेयर करने के बावजूद दूर नहीं की जा सकी। इसके अतिरिक्त वाहन बार-बार रिपेयर हेतु प्रेषित किया गया, किन्तु यह कमियां दूर नहीं हो पायीं। इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से प्रस्तुत विशेषज्ञ एवं जानकार ड्राइवर एवं मैकेनिक, इंजीनियर द्वारा जो रिपोर्टें प्रस्तुत की गयी हैं, उनमें भी प्रश्नगत वाहन के निर्माण संबंधी दोष होने का तथ्य पुष्ट होता है, जिसको किसी साक्ष्य से अपीलार्थी निर्माणकर्ता की ओर से खण्डित नहीं किया गया है। अत: इन सभी परिस्थितियों में यह मानना उचित है कि वाहन में निर्माण संबंधी दोष था, जिसको बार-बार रिपेयर के लिए भेजे जाने के बावजूद दूर नहीं किया जा सका। इन परिस्थितियों में विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने उचित प्रकार से आज्ञप्त करते हुए बदले में नया वाहन अथवा इसकी कीमत बदले जाने के आदेश दिया है जिसमें कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होता है अत: प्रश्नगत निर्णय पुष्ट होने योग्य एवं अपील अस्वीकार एवं निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (डा0 आभा गुप्ता)
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संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3