सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या 1508/1996
(जिला उपभोक्ता फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा परिवाद संख्या-714/1993 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16-09-1996 के विरूद्ध)
इलाहाबाद बैंक, शाखा बढ़पुर जिला फर्रूखाबाद द्वारा मैनेजर, इलालाबाद बैंक शाखा बढ़पुर जिला फर्रूखाबाद।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
मनोहर सिंह पुत्र श्री मुलायम सिंह निवासी ग्राम बहादुरपुर परगना कनकपुर, जिला फर्रूखाबाद।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :विद्वान अधिवक्ता, श्री दीपक मेहरोत्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 06-09-2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 714 सन् 1993 मनोहर सिंह बनाम शाखा प्रबन्धक, बढूपुर व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 16-09-1996 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी शाखा प्रबन्धक, इलाहाबाद बैंक की ओर से धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुये निम्न आदेश पारित किया है:-
"फलत: परिवादी का परिवाद विपक्षी संख्या-1 के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्तानुसार इस निर्णय के एक माह के अन्दर परिवादी के उक्त ऋण खाता (ट्रैक्टर एडवांस लेजर फालिया नम्बर 5/457) में उक्त 74177/- रू० 50 पैसे समायोजित करके एक माह के अन्दर परिवादी को उसका उर्द्धण प्रस्तुत कर दें तथा यदि उक्त धनराशि समायोजन के पश्चात बैंक विपक्षी संख्या-1 की कोई धनराशि शेष रहती है तो उक्त धनराशि को ही बैंक परिवादी से नियमानुसार वसूल कर सकती है और यदि समायोजन के पश्चात परिवादी की कोई धनराशि बैंक विपक्षी संख्या-1 पर निकलती है तो बैंक परिवादी को उक्त धनराशि इस निर्णय के एक माह के अन्दर ही परिवादी को भुगतान करेगी। ऐसा न करने पर परिवादी विपक्षी बैंक से उसके भुगतान न की गयी धनराशि पर इस निर्णय की तिथि से भुगतान होने की तिथि तक 24 प्रतिशत वार्षिक दर से और ब्याज पाने का अधिकारी होगा। यह भी आदेशित किया जाता है कि जब तक बैंक परिवादी को उसके ऋण खाते का उर्द्धण उपरोक्तानुसार नहीं प्रस्तुत करता तब तक बैंक परिवादी से उक्त ऋण खाता की कोई धनराशि वसूल नहीं करेगा।"
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है, जबकि प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता वकालतनामा पहले ही प्रस्तुत कर चुके हैं।
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मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त और सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी से 88,000/- रू० का ऋण ट्रैक्टर ट्राली की बाबत कृर्षि कार्य हेतु 10 वर्षों में किश्तों द्वारा भुगतान करने की शर्त पर दिनांक 04-04-1988 को स्वीकृत कराया था और दिनांक 04-04-1998 को ही उसने अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं बचत खाता संख्या 4373 में 10620/- रू० नगद जमा कराया था। उसके बाद वह ऋण की किश्तें नियमानुसार अदा करता रहा। अंतिम किश्त उसने दिनांक 09-06-1993 को 8000/- रू० जमा करायी थी। इस बीच दिनांक 18 जुलाई 1993 को नायाब तहसीलदार और आमीन उसके निवास स्थान पर पहॅुंचे और कहा कि उसके विरूद्ध इलाहाबाद बैंक, शाखा बढूपुर का 94600/- रू० बकाया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उन्हें बताया कि वह अपनी किश्त दिनांक 09-06-1993 को जमा कर चुका है परन्तु उन्होंने कोई बात नहीं सुनी और कहा कि बकाया रूपया जमा नहीं करोगे तो बन्द कर देंगे, तब मजबूर होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने नायाब तहसीलदार और आमीन को 2000/- रू० दिया जिसकी रसीद उन्होंने नहीं दिया और कहा पूरी बकाया धनराशि जमा करें तब रसीद देंगे। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी बैंक के कार्यालय में दिनांक 19-07-1993 को गया और खाते का हिसाब और नकल मांगा तब अपीलार्थी/विपक्षी ने अभिलेख देखकर बताया कि गलती से वसूली प्रमाण पत्र भेज दिया गया है जिसके सम्बन्ध में तहसीलदार सदर विपक्षी संख्या-3 को संबंधित पत्र लिखकर दिया कि परिवादी से किश्तों में रूपये जमा करा ले जिसे परिवादी ने अपीलार्थी
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विपक्षी संख्या 3 तहसीलदार सदर को पहुंचा दिया। उसके बावजूद वह नहीं मानें और कहा कि 10,000/- रू० उनका कमीशन बनता है दोगे तब 2000/- रू० की रसीद मिलेगी। उन्होंने प्रत्यर्थी/परिवादी को बन्द करने और उत्पीड़नात्मक कार्यवाही करने की धमकी भी दी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने अपीलार्थी/ विपक्षी के यहाँ दिनांक 04-04-1988 को 10620/- रू०, दिनांक 07-12-1988 को 5000/- रू०, दिनांक 26-04-1989 को 5000/-रू०, दिनांक 16-05-1990 को 13,000/- रू०, दिनांक 30-05-1990 को 8,739/- रू०, दिनांक 17-06-1991 को 10,000/- रू०, दिनांक 01-06-1992 को 8000/-रू० तथा 09-06-1993 को 8000/- रू० कुल 56,659/- रू० जमा कर चुका है, जिसका कोई हिसाब अपीलार्थी/विपक्षी ने नहीं दिया और उसे सेंट में डाल दिया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षीगण द्वारा की जा रही मनमानी और लापरवाही के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को हुयी क्षति हेतु विपक्षीगण से प्रतिकर पाने का वह अधिकारी है। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और मांग की है कि विपक्षी संख्या 1 द्वारा जारी वसूली प्रमाण पत्र भ्रामक एवं त्रुटिपूर्ण होने के कारण उसे विपक्षी संख्या-3 विपक्षी संख्या-2 के माध्यम से वापस करे तथा परिपक्व तिथि से पूर्व प्रेषित वसूली प्रमाण पत्र निरस्त कर ऋण की शर्तों के अनुसार अवशेष किश्तों की वसूली सुनिश्चित करें और वसूली गयी धनराशि का पूर्ण विवरण परिवादी को उपलब्ध कराएं। परिवादी ने यह भी मांग की है कि विपक्षी संख्या 3 के अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा वसूली गयी धनराशि 2000/- रू0 की रसीद दिखायी जाए अथवा वापस दिलाया जाए, साथ ही 5000/- रू० क्षतिपूर्ति आर्थिक व मानसिक
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वेदना हेतु दिखायी जाए। परिवादी ने यह भी कहा है कि अन्य जो उपशम फोरम उचित समझे प्रदान की जाए।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी ने अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से 88,000/- रू० का ऋण ट्रैक्टर ट्राली क्रय करने हेतु दिनांक 04-04-1988 को लिया है। उसने अपने बचत खाता संख्या 4373 में दिनांक 04-04-1988 को 106000/- रू० की धनराशि जमा की थी जिसे उसके ऋण खाते में दिनांक 08-05-1988 को स्थानान्तरित किया गया है। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने ऋण स्वीकृति पत्र की शर्त के अनुसार आवश्यक धनराशि जमा नहीं की तब उसके विरूद्ध दिनांक 05-07-1993 को वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि वसूली प्रमाण पत्र जारी होने के पश्चात प्रत्यर्थी/परिवादी जब शाखा में पधारे तो उन्हें वांछित जानकारी उपलब्ध करायी गयी। उसके बाद दिनांक 05-07-1993 के बाद वह जब भी बैंक में आए अपने साथ राजनैतिक व्यक्तियों को लेकर आए और वसूली न देने के लिए दबाव बनाया।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि दिनांक 19-07-1993 को अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा एक पत्र तहसीलदार सदर को मानवीय आधार पर प्रेषित किया गया ताकि प्रत्यर्थी/परिवादी के उत्पीड़न से बच सके और समस्त धनराशि 06 माह में सदर खजाने में जमा कर सके। परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसका दुरूपयोग किया और बैंक व वसूली करने वाले व्यक्तियों पर झूठे मन-गढंत आरोप लगाए।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा है गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमी की गयी सभी धनराशियों का सत्यापन किया
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गया है। वह खाते में जमा की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी ऋण धनराशि में बैंक द्वारा लगाए जाने वाले ब्याज तथा अन्य खर्चों को नजर अंदाज करता रहा है जिसके कारण वह ऋण की बकाया धनराशि जो बैंक दर्शा रहा है समझने में अपने को असमर्थ पा रहा है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा है गया है कि ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 04-04-1988 के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रति छमाही अपने ऋण खाते में 9,890/-रू० जमा करना था। इस प्रकार दिनांक 04-04-1993 तक उसे कुल 98,900/- रू० की धनराशि अपने ऋण खाते में जमा करनी थी, जिसे वह आवश्यक नोटिस प्राप्त करने के बाद भी टालता रहा।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 06-05-1993 को जिलाधिकारी फर्रूखाबाद से अनुरोध किया कि उसे उसके ऋण खाते के बारे में और जानकारी दी जाए तथा शेष धनराशि जमा करने के लिए कम से कम दो माह का समय दिया जाए तब जिलाधिकारी को वस्तुस्थिति से अपीलार्थी बैंक ने दिनांक 19-05-1993 के पत्र से अवगत कराया। परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिलाधिकारी से सम्पर्क नहीं किया है और बहकावे में आकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से एक अन्य वादोत्तर भी जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह स्वीकार किया गया है कि दिनांक 26-12-1994 प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 04-04-1988 को 88,000/- रू० ऋण के रूप में लिया था और 10582/-रू० अपने खाते में जमा किया था। उसके बाद उसने दिनांक 09-06-1993 को 8000/- रू० जमा किया था। इस लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि दिनांक 05-07-1993 को अवशेष ऋण व
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ब्याज का भुगतान न होने पर 94,600/- रू० का वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
इस लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 88,000/- रू० ट्रैक्टर ट्राली क्रय करने हेतु बैंक से ऋण लिया है जो कृषि एवं वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए क्रय किया गया है। अत: वह उपभोक्ता नहीं है।
विपक्षीगण संख्या 2 व 3 की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के ऋण खाते से ट्राली खरीद हेतु 28,500/- रू० का भुगतान किया जाना प्रमाणित नहीं है। जिला फोरम ने यह माना है कि अपीलार्थी बैंक उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाणित नहीं कर सका है कि इस धनराशि का भुगतान ट्रैक्टर ट्राली मेकर को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा क्रय की गयी ट्राली हेतु किया है। अत: जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी से ट्राली की यह धनराशि 28,500/- रू० 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दिनांक 04-04-1988 से निर्णय की तिथि तक पाने का अधिकारी है। इस प्रकार ब्याज की गणना कर 2000/- रू० क्षतिपूर्ति व 500/- रू० वाद व्यय की धनराशि शामिल कर कुल रू० 74177.50/- जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को देय माना है और उसे अवशेष ऋण धनराशि में समायोजित करने हेतु जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुये आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है। अपीलार्थी बैंक ने
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प्रत्यर्थी/परिवादी को 88,000/- रू० का ऋण ट्रैक्टर ट्राली के लिए स्वीकृत किया था और इसी क्रम में प्रत्यर्थी/परिवादी ने 10620/-रू० अपनी ओर से जमा किया था। इस प्रकार 98,620/- रू० की धनराशि से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों (कोटेशन) के आधार पर ट्रैक्टर के लिए 74,177/- रू० का भुगतान और ट्राली के लिए 28,500/- का भुगतान चेक के माध्यम से किया गया है। अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश त्रुटिपूर्ण है और तथ्यों और विधि के विरूद्ध है। जिला फोरम ने परिवाद पत्र के अभिवचन से भिन्न निर्णय पारित किया है। अत: इसे अपास्त कर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाना उचित है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम के समक्ष परिवाद की सुनवाई के समय प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रतिनिधि ने
अपने तर्क में यह कहा है कि विपक्षी संख्या 1 के द्वारा प्रस्तुत कोटेशन दिनांक 31-03-1993 जो मुबलिग 70,082/- रू० का यू0पी0 स्टेट एग्रो एण्ड कारपोरेशन लि0 सर्विस स्टेशन फर्रूखाबाद से ट्रैक्टर खरीदने की बाबत है, परिवादी को स्वीकार है जिसका भुगतान विपक्षी बैंक ने चेक द्वारा सीधा स्टेट एग्रो कारपोरेशन लिमिटेड को किया था। जिला फोरम के समक्ष सुनवाई के समय परिवादी के अधिकृत प्रतिनिधि ने यह कथन किया है कि जो कोटेशन 28,500/- रू० का दिनांक 05-04-1988 का मेसर्स दुबे ट्रैक्टर फर्रूखाबाद का बैंक ने दाखिल किया है उसे परिवादी ने बैंक में नहीं प्रस्तुत किया था और न परिवादी ने उक्त फर्म से कोई ट्राली क्रय की थी। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में बहस के दौरान प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिकृत
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प्रतिनिधि द्वारा किये गये उपरोक्त कथन पर विचार किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि यह धनराशि 28,500/- रू० अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने प्रत्यर्थी/परिवादी की ट्राली हेतु अदा नहीं की है बल्कि स्वयं हड़प कर लिया है। जिला फोरम ने उल्लेख किया है कि ऐसा लगता है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने दुबे ट्रैक्टर ट्राली मैनूफैक्चरर व कोई अन्य व्यक्ति राजकुमार से मिलकर 28,500/- रू० का फर्जी भुगतान ट्राली व एसेसेरीज का दिखाकर हड़प कर लिया है।
परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को 88,000/- रू0 का ऋण ट्रैक्टर ट्राली की बाबत स्वीकृत किया गया है और ट्रैक्टर ट्राली के क्रय करने हेतु उसने 10620/-रू० अपने बचत खाते में जमा किया है जो उसके
ऋण खाते में अन्तरित किया गया है। स्वीकृत रूप से ट्रैक्टर हेतु भुगतान 70082/-रू० किया गया है। शेष धनराशि ट्राली की है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में यह नहीं कहा है कि ट्राली की धनराशि उसने प्राप्त नहीं किया है। उसने ऋण की सम्पूर्ण धनराशि 88,000/- रू० प्राप्त करना स्वीकार किया है। यदि प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्राली ऋण की धनराशि से क्रय नहीं की तो ट्राली के मूल्य की धनराशि बैंक को समर्पित करनी चाहिए थी अथवा बैंक से उक्त धनराशि प्राप्त नहीं करनी चाहिए थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में ट्राली की धनराशि 28,500/- का भुगतान बैंक द्वारा न किये जाने और हड़प किये जाने का कोई कथन नहीं किया है। आक्षेपित निर्णय और आदेश से स्पष्ट है कि परिवाद की अंतिम सुनवाई के समय यह बात प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिकृत प्रतिनिधि ने कही है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा परिवाद के अभिकथन से भिन्न उठाए गये इस नए तथ्य के सम्बन्ध में
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अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को अपना कथन और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला है।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्लेख किया है कि अभिलेखीय साक्ष्य में बैंक ने दुबे ट्राली मेकर्स का दिया जाने वाला एकाउन्ट पेई चेक नम्बर 263886 , 28,500/- रू० की धनराशि का दिनांकित 04-04-1988 प्रस्तुत किया है जबकि दुबे ट्रैक्टर वर्कशाप का बिल दिनांक 05-08-1988 का 28,500/- रू० का प्रस्तुत किया गया है।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि 28,500/- रू० का बैंकर चेक संख्या 263886 दिनांक 04-04-1988 की चेक प्राप्ति की रसीद दुबे ट्राली मेकर ने प्रस्तुत की हैं जिस पर किसी राजकुमार के हस्ताक्षर हैं। 28,500/- रू० का चेक अपीलार्थी बैंक से किस एकाउन्ट में अन्तरित हुआ है यह तथ्य जिला फोरम के समक्ष नहीं आया है। परन्तु उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में किये गये कथन से भिन्न यह कथन बहस के दौरान किया गया है कि ट्रैक्टर ट्राली की जो धनराशि 28,500/- रू० का भुगतान बैंक द्वारा दिखया गया है वह ट्राली प्रत्यर्थी/परिवादी ने नहीं प्राप्त की है और भुगतान बैंक ने गलत दिखाया है। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी बैंक को प्रत्यर्थी/परिवादी के इस कथन के सम्बन्ध में अपना कथन व साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला है।
परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने कुल 88,000/- रू0 का ऋण ट्रैक्टर ट्राली के लिए लिया था जिसमें उसने दिनांक 05-07-1993 तक मात्र कुल 56,659/- रू० की धनराशि का भुगतान बैंक को किया है। परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा
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ट्रैक्टर ट्राली के ऋण की देय किस्तों के भुगतान में भी चूक की गयी है। जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये उपरोक्त आदेश मात्र इस आधार पर पारित किया है कि अपीलार्थी बैंक ट्राली की धनराशि 28,500/- रू० का भुगतान साबित नहीं कर सका है जबकि उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि ट्राली की धनराशि प्राप्त न करने का कथन प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिकृत प्रतिनिधि ने परिवाद की सुनवाई के दौरान पहली बार किया है।यह तथ्य परिवाद पत्र में अभिकथित नहीं है। इस प्रकार अपीलार्थी बैंक को अपना साक्ष्य और कथन प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला है और जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में याचित अनुतोष से भिन्न अनुतोष प्रदान किया है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुये मैं इस मत का हॅूं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुये पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाना उचित है कि वह अपीलार्थी बैंक को ट्राली की धनराशि 28,500/- रू० के भुगतान के सम्बन्ध में अपना कथन व साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर देकर उभय पक्ष को साक्ष्य व सुनवाई का अवसर प्रदान करें और पुन: विधि के अनुसार यथाशीघ्र निर्णय पारित करें।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुये पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि वह अपीलार्थी बैंक को ट्राली की धनराशि का भुगतान करने के सम्बन्ध में अपना कथन व साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर देकर उभय पक्ष को साक्ष्य व सुनवाई का अवसर प्रदान करें और विधि के अनुसार पुन: यथाशीघ्र निर्णय पारित करें।
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उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक- 09-10-2017 उपस्थित हों।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।ह
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट 01