(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2468/2012
डा0 हर्ष भार्गव पुत्र स्व0 जी.एन. भार्गव बनाम मनमोहन सिंह पुत्र श्री भीषम सिंह
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 09.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-73/2011, मनमोहन सिंह बनाम डा0 हर्ष भार्गव में विद्वान जिला आयोग, बांदा द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26.9.2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी.पी. शर्मा के सहायक श्री सत्येन्द्र कुमार तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री भीषम सिंह को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने इलाज में बरती गई लापरवाही के कारण अंकन 20,000/-रू0 क्षतिपूर्ति एवं अंकन 2,000/-रू0 वाद व्यय अदा करने के लिए आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी के बांए पैर की पिण्डली में दर्द था एवं फोड़ा जैसा निकल रहा था। दिनांक 14.12.2010 को अंकन 100/-रू0 फीस देकर इलाज का पर्चा विपक्षी के यहां से बनवाया और कोई जांच किए बिना इलाज प्रारम्भ कर दिया गया। 5 दिन की दवा दी गई, इसके बाद दिनांक 19.12.2010 को पुन: दिखाया गया। विपक्षी द्वारा बताया गया कि परिवादी के पैर में फाइलेरिया रोग हो गया है, उसी का इलाज चल रहा है। दिनांक 24.12.2010 को पुन: दिखाया गया, परन्तु पैर ठीक नहीं हुआ, इसके बाद दिनांक 30.12.2010 को भी दिखाया गया, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ और गलत इलाज के प्रभाव में आकर परिवादी दिनांक 8.1.2011 को बेहोश होकर गिर गया और ऑंख के नीचे गहरी चोट आयी। विपक्षी को दिखाया गया, उनके द्वारा पुन: दवा लिख दी गई, इसके बाद पुन: दिनांक 17.1.2011 को दिखाया गया, परन्तु पैर ठीक नहीं हुआ और पैर में सड़न पैदा हो गई तथा घाव में मवाद बनने लगा, इसके बाद परिवादी ने स्वरूप नगर, कानपुर में डा0 एस.के. भट्टर को दिखाया, जिनके द्वारा वेद पैथालाजी में जांच
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करवाई गई तथा परिवादी को आर.के. देवी मेमोरियल हॉस्पिटल स्वरूप नगर, कानपुर में भर्ती कर लिया गया और यह पाया गया कि परिवादी के पैर में साधारण इंफेक्शन था, फाइलेरिया नहीं था। डा0 भट्टर ने अस्थि रोग विशेषज्ञ डा0 संजीव अग्रवाल से भी इलाज में सलाह ली। किराये की एम्बुलेंस से परिवादी 23.1.2011 को परिवादी अपने घर आया। विपक्षी के गलत इलाज के कारण परिवादी मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से प्रताडित हुआ।
4. विपक्षी का कथन है कि जांच परख के सूजन कम करने के लिए इंजेक्शन एवं दवाए दी गईं तथा मलहम दिया गया। इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादी अनेक बार दिखाने आया, परन्तु दर्द कम नहीं हुआ। पुन: दवाए दोहराई गईं, इसके बाद गिरने के कारण आयी चोट का इलाज किया गया, जिसके लिए टिटनेस इंजेक्शन लगाया गया। विपक्षी ने बांए पैर में फाइलेरिया का इलाज नहीं किया। मात्र दर्द एवं सूजन का इलाज किया गया है, इसलिए कोई जांच नहीं की गई।
5. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने निष्कर्ष दिया कि परिक्षण कराए बिना इलाज प्रारम्भ किया गया है, जो स्वंय गंभीर लापरवाही साबित करता है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया है।
6. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि प्रस्तुत केस में कोई विशेषज्ञ साक्ष्य मौजूद नहीं है। विद्वान जिला आयोग ने बगैर पर्याप्त साक्ष्य के अपना निष्कर्ष दिया है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश के समर्थन में तर्क प्रस्तुत किया गया है।
7. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए अभिववचनों तथा निर्णय के अवलोकन से यह तथ्य स्थापित है कि अपीलार्थी डा0 द्वारा इलाज प्रारम्भ करने से पूर्व किसी प्रकार का कोई परीक्षण नहीं किया गया। प्रारम्भ में दी गई दवाओं के पश्चात कोई लाभ न मिलने के बावजूद परीक्षण कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया और पुन: उन्हीं दवाओं को दोहराया गया। बगैर परीक्षण के इलाज प्रारम्भ करना स्वंय लापरवाही के सिद्धान्त को स्थापित करता है। डा0 के स्तर से इलाज के दौरान बरती गई लापरवाही निम्न दो स्तर से हो सकती है :-
''1. जब घटना स्वंय प्रमाण हो।
2. जब विशेषज्ञ साक्ष्य द्वारा यह साबित किया जाए कि डा0 के स्तर से इलाज में लापरवाही बरती गयी है।''
8. प्रस्तुत केस में क्रमांक सं0-1 पर वर्णित सिद्धान्त लागू होता है।
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बगैर परीक्षण के इलाज प्रारम्भ करना लापरवाही का द्योतक है, इसके लिए विशेषज्ञ साक्ष्य प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2