Uttar Pradesh

StateCommission

A/2000/1492

L I C - Complainant(s)

Versus

Manju Devi - Opp.Party(s)

V S Bisaria

29 May 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2000/1492
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. L I C
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Manju Devi
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1492/2000

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या-13/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 22-05-2000 के विरूद्ध)

 

भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय नं0-1 देवरिया द्वारा शाखा प्रबन्‍धक महोदय, शाखा भारतीय जीवन बीमा निगम, देवरिया, शाखा कार्यालय देवरिया।.

                                     अपीलार्थी/विपक्षी                                                 

बनाम्

श्रीमती मंजू देवी पत्‍नी स्‍व0 मारकण्‍डेय प्रजापति सा0 बरारी विकास क्षेत्र एवं पो0 बैतालपुर त0 व जिला देवरिया।.

                                 प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी

समक्ष :-

1-   मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य।

2-   मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

1-  अपीलार्थी की ओर से उपस्थित -   श्री वी0 एस0 बिसारिया।

2-  प्रत्‍यर्थी  की ओर से उपस्थित -    श्री बी0 एम0 सिंह

दिनांक :

मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य द्वारा उदघोषित निर्णय

अपीलार्थी ने प्रस्‍तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या-13/1999 श्रीमती मंजू देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में दिनांक 22-05-2005 को पारित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपील योजित की है। जिसमें विद्धान जिला मंच ने  निम्‍नलिखित आदेश पारित किया गया है:-

''उपरोक्‍त विवेचन के आधार पर विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादिनी को उसके पति के बीमा की रकम मु0 50,000/-रू0 पर अन्‍य प्राप्‍त होने वाले लाभ के साथ परिवादिनी को दो माह में दे दें। ऐसा नहीं करने पर विपक्षी द्वारा बीमा की उपरोक्‍त रकम पर दिनांक 01-06-2000 से 15 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज देना होगा। परिवादिनी किसी अन्‍य अनुतोष को प्राप्‍त करने का हकदार नहीं है। परिवादिनी का दावा आंशिक स्‍वीकृत हुआ।''

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादिनी का पति स्‍व0 मारकण्‍डेय प्रजापति सहकारी गन्‍ना समिति बैतालपुर, देवरिया में लिपिक के पद पर

 

 

 

2

कार्यरत था। परिवादिनी के पति की मृत्‍यु दिनांक 15-02-1997 को एस0जी0पी0जी0आई0 लखनऊ में हो गयी। परिवादिनी के पति ने अपना 50,000/-रू0 का बीमा दिनांक 21-06-1996 को विपक्षी से कराया था जिसमें प्रीमियम का भुगतान वार्षिक करना था। परिवादिनी के पति ने प्रथम किश्‍त के रूप में 2676/-रू0 का भुगतान विपक्षी को दिनांक 21-06-1996 को कर दिया। विपक्षी द्वारा परिवादिनी के पति का बीमा स्‍वीकार  किया गया। परिवादिनी के पति की तबियत दिनांक 23-12-96 को खराब हो गयी और परिवादिनी के पति की मृत्‍यु दिनांक 15-02-1997 को हो गयी। परिवादिनी के पति ने बीमा पालिसी में उसे परिवादिनी को नामिनी बनाया था। परिवादिनी ने अपने पति की मृत्‍यु की सूचना विपक्षी को समय से दे दी और आग्रह किया कि विपक्षी परिवादिनी के पति की बीमा की रकम बोनस इत्‍यादि के साथ परिवादिनी को अदा कर दे। परिवादिनी ने विपक्षी की मांग के अनुसार समस्‍त आवश्‍यक प्रमाण पत्र भी दिनांक 08-01-1998 को विपक्षी को प्राप्‍त करा दिये। परन्‍तु विपक्षी ने परिवादिनी को उसके पति की बीमा की रकम 50,000/-रू0 अदा नहीं किया इसलिए यह परिवाद योजित किया गया।  

विपक्षी ने अपने जवाब दावे में परिवादिनी के कुछ कथनों को स्‍वीकार किया तथा कुछ को अस्‍वीकार किया और यह कहा कि परिवादिनी के पति स्‍व0 मारकण्‍डेय प्रजापति ने अपने जीवन काल में 50,000/-रू0 का बीमा कराया था और जिसकी प्रथम किश्‍त दिनांक 21-06-1996 को 2676/-रू0 अदा की थी तथा यह भी स्‍वीकार किया कि परिवादिनी के पति की दिनांक 15-02-1997 को मृत्‍यु हो गयी और विशेष कथन में यह कहा कि जब परिवादिनी के दावे की जॉंच करायी गयी तो ज्ञात हुआ कि बीमित व्‍यक्ति बीमा कराने से पूर्व विभिन्‍न बीमारियों से ग्रसित था, परन्‍तु उसने अपने बीमा प्रस्‍ताव में अपने आपको पूर्ण स्‍वस्‍थ्‍य लिखकर धोखे से बीमा करा लिया और अपनी बीमारियों के संबंध में सही सूचनाऍं नहीं दी। इसलिए उसका दावा अस्‍वीकार किया गया।

पीठ के समक्ष अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता श्री वी0 एस0 बिसारिया तथा प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता श्री बी0 एम0 सिंह  उपस्थित।

हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क सुने तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों व जिला मंच द्वारा पारित निर्णय का गंभीरतापूर्वक परिशीलन किया।

अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि एस0जी0पी0जी0आई0, लखनऊ से बी एवं बी-1 फार्म प्राप्‍त नहीं हो सका है इसलिए परिवादी के दावे को बीमा कम्‍पनी द्वारा निस्‍तारित नहीं किया गया, जब कि जिला मंच

 

3

के समक्ष अपीलार्थी द्वारा लिखित कथन की धारा-4 में स्‍पष्‍ट रूप से यह कहा गया कि बीमाधारी ने बीमा का प्रस्‍ताव भरते समय अपनी बीमारी को छिपाया, अत: बीमा अनुबंध शून्‍य है और परिवादी को अब कुछ भी धनराशि देय नहीं है एवं लिखित कथन की धारा-5 में यह कहा गया कि बीमाधारी द्वारा प्रस्‍ताव पत्र में लिखे गये प्रश्‍नों का उत्‍तर सही नहीं दिया गया और यह जानते हुए भी कि बीमित हृदय रोग से पीडि़त है विपक्षी/अपीलार्थी का यह कहना कि बीमा दावा, बीमा कम्‍पनी द्वारा निर्णीत नहीं किया गया यह स्‍वीकार किये जाने योग्‍य नहीं है। विपक्षी/अपीलार्थी ने विकल्‍प के रूप में अपने लिखित कथन में यह भी कहा कि यदि परिवादिनी एस0जी0पी0जी0आई0 से बी एवं बी-1 फार्म तथा सहकारी गन्‍ना समिति से सर्विस बुक की प्रमाणित प्रतिलिपि भेजे तो उसके दावे पर विचार किया जा सकता है। यह भ्रामक प्रतीत होता है क्‍योंकि एक जगह विपक्षी/अपीलार्थी को यह कहना कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने महत्‍वपूर्ण बीमारी छिपायी थी अत: वह बीमित धनराशि पाने का अधिकारी नहीं है और फिर यह कहना कि यदि वह उपरोक्‍त अभिलेख प्रस्‍तुत कर दे, तो बीमा दावा पर विचार किया जा सकता है। यह मानने योग्‍य नहीं है।

अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा I(2010) CPJ 92 (NC) Budhiben Pababhai Vs. LIC of India & Ors. की ओर ध्‍यान आकर्षित करते हुए यह कहा गया कि  बीमाधारी ने बीमा प्रस्‍ताव भरते समय अपनी बीमारी के बारे में छिपाया है अत: जिला मंच द्वारा पारित आदेश अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।

प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला मंच द्वारा विधि अनुकूल निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्‍तक्षेप की कोई गुन्‍जाइश नहीं है। अत: अपील निरस्‍त की जाए।

उपरोक्‍त तर्क के संबंध में इतना ही कहना पर्याप्‍त है कि बीमाधारक बीमा प्रस्‍ताव के समय उक्‍त बीमारी से ग्रस्‍त था और उसने अपनी बीमारी को छिपाया, इस संबंध में विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से कोई ऐसा साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया गया। केवल इस आधार पर कि बीमाधारी की मृत्‍यु बीमा कराने के 7 माह 21 दिन के अंदर हो गयी एवं उसकी मृत्‍यु हृदयघात के कारण हुई और यह स्‍वीकार किया जाए कि बीमाधारी हृदय रोग से पीडि़त था, केवल संभावना है और संभावना के आधार पर किसी तथ्‍य का प्रमाणित होना नहीं कहा जा सकता। वर्तमान प्रकरण में यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि विपक्षी/अपीलार्थी यह प्रमाणित करने में असफल रहा है कि बीमाधारी बीमा प्रस्‍ताव के समय किसी रोग से ग्रसित था और यह

 

 

4

प्रमाणित नहीं हो सकता कि बीमाधारी द्वारा जानबूझकर अपने रोग को छिपाया गया। जिला मंच द्वारा दिये गये निष्‍कर्ष में बल पाया जाता है और अपील खण्डित किये जाने योग्‍य है।

                        आदेश

अपील खण्डित की जाती है। जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या-13/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 22-05-2000 की पुष्टि की जाती है।

उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍ययभार स्‍वयं वहन करेंगे।

पक्षकारों को निर्णय की प्रतिलिपि नियमानुसार प्राप्‍त करायी जाए।

 

 

  ( आलोक कुमार बोस )                     ( बाल कुमारी )

  पीठासीन सदस्‍य                              सदस्‍य

कोर्ट नं0-4

प्रदीप मिश्रा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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