सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 562/2018
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्धितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्या- 158/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17-02-2018 के विरूद्ध)
मैग्मा एच.डी.आई. जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 द्वारा दि मैनेजर लीगल, आफिस एट 5th floor, हलवासिया कामर्स हाउस,11 एम.जी. मार्ग, हबीबुल्लाह इस्टेट, हजरतगंज, लखनऊ 222601 इंटीरियल आफिस, 24 पार्क स्ट्रीट, कोलकाता-700016 ब्रांच आफिस फर्स्ट फ्लोर, अनुपम प्लाजा-1 ब्लाक-50 संजय पैलेस, आगरा also at संत नगर, ईस्ट आफ कैलाश, न्यू दिल्ली।
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
1- श्री मनजिन्दर सिंह, पुत्र श्री जगजीत सिंह, निवासी- गुरू तेग बहादुर इन्क्लेव, बाईपास रोड, आगरा, वर्तमान निवासी गैलाना रोड, चावला मोटर्स के पीछे ट्रांसपोर्ट नगर, आगरा।
प्रत्यर्थी/परिवादी
2- बैंक आफ इण्डिया, ब्रांच दयालबाग, आगरा, 79 एलोरा इन्क्लेव, 100 फीट रोड, दयालबाद आगरा- 282005
विपक्षी सं०-4
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी
प्रत्यर्थी सं-1 की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन तिवारी
प्रत्यर्थी सं-2 की ओर से उपस्थित : कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक- 20-12-2019
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या– 158 सन् 2015 श्री मनजिन्दर सिंह बनाम मैग्मा एच.डी.आई. जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व तीन अन्य में जिला उपभोक्ता
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विवाद प्रतितोष फोरम, द्धितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक- 17-02-2018 के विरूद्ध यह अपील धारा- 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद विपक्षीगण संख्या- 1 ता 3 के विरूद्ध स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’ परिवादी का परिवाद विपक्षी संख्या– 01 लगायत 03 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या– 01 लगायत 03 को आदेशित किया जाता है कि वे प्रश्नगत वाहन की बीमित घोषित मूल्य, 19,99,700/- रू० तथा इस धनराशि पर परिवाद दायर करने की तिथि से 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज भुगतान की तिथि तक इस निर्णय के एक माह के अन्दर परिवादी को अदा करें। परिवादी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 5000/-रू० विपक्षी संख्या-01 लगायत 03 से पाने का अधिकारी है।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी, मैग्मा एच.डी.आई. जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र सिंह और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
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मैंने उभय-पक्ष की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी बीमा कम्पनी के शाखा कार्यालय आगरा, कोलकाता और दिल्ली एवं प्रत्यर्थी संख्या-2 बैंक आफ इण्डिया के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसका ट्रक नं० यू०पी० 83 टी० 2305 अपीलार्थी बीमा कम्पनी से दिनांक 12-06-2013 से दिनांक 11-06-2014 तक की अवधि हेतु बीमित था। उसने अपना यह ट्रक प्रत्यर्थी संख्या-2 बैंक आफ इण्डिया से 20,50,000/-रू० की आर्थिक सहायता प्राप्त कर खरीदा था। बीमा अवधि में ही दिनांक 29-06-2013 को उसका यह ट्रक चोरी हो गया जिसकी सूचना उसने पुलिस थाना में दी तब अपराध संख्या-226/13 संबंधित थाना एत्मादपुर, जिला आगरा में दर्ज किया गया। उसने ट्रक चोरी की सूचना अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को भी दी जिस पर क्लेम संख्या- सी./14/ 100007/ 4103/ 05002411 पंजीकृत किया गया और प्रत्यर्थी/परिवादी ने आवश्यक अभिलेख उपलब्ध कराए परन्तु बीमित धनराशि का भुगतान उसे नहीं किया गया और उसे बताया गया कि उसकी क्लेम फाइल बन्द कर दी गयी है। तब उसने अपीलार्थी/विपक्षीगण बीमा कम्पनी के अधिकारियों को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विपक्षीगण संख्या- 1, 2, व 3 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कथित वाहन दिनांक 12-06-2013 से दिनांक 11-06-2014 तक की अवधि हेतु बीमित होना स्वीकार है। साथ ही यह भी
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कहा है कि उसने यह वाहन प्रत्यर्थी संख्या-2 बैंक आफ इण्डिया से वित्तीय सहायता प्राप्त कर खरीदा है। लिखित कथन में उपरोक्त विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि वाहन दिनांक 29-06-2013 को चोरी हुआ है। प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 05-07-2013 को लिखायी गयी है और प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराए जाने के बाद बीमा कम्पनी को सूचित किया गया है। इस प्रकार प्रथम सूचना रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज करायी गयी है और बीमा कम्पनी को भी विलम्ब से सूचना दी गयी है जो बीमा पालिसी की शर्त संख्या-1 का उल्लंघन है। अत: बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति के भुगतान हेतु उत्तरदायी नहीं है। लिखित कथन में अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रथम सूचना रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज कराए जाने और बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना दिये जाने के सम्बन्ध में स्थिति स्पष्ट करने हेतु पत्र लिखा गया परन्तु उसने कोई उत्तर नहीं दिया और न ही कागजात बीमा कम्पनी को उपलब्ध कराया। अत: बीमा कम्पनी ने क्लेम फाइल दिनांक 20-03-2014 को बन्द कर दिया। लिखित कथन में अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवाद कालबाधित है। लिखित कथन में अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि वाहन अन्अटेंडेंट खड़ा था जिससे बीमा पालिसी की शर्त संख्या-5 का उल्लंघन हुआ है और इस आधार पर भी बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं है।
जिला फोरम ने उभय-पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि पुलिस को रिपोर्ट विलम्ब से दिया जाना व बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना दिया जाना महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि यह शर्त निर्देशीय प्रकृति की है आज्ञापक प्रकृति की नहीं। अत: जिला फोरम ने माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा क्लेम गलत आधार पर निरस्त किया
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गया है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि पुलिस और बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना दिया जाना बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है। अत: बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा नो क्लेम कर कोई गलती नहीं की है। जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में रिवीजन पीटिशन संख्या– 724/2018 पी.खमार पासा बनाम ब्रांच मैनेजर ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय सन्दर्भित किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के अनुकूल है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रश्नगत वाहन की चोरी की घटना दिनांक 29-06-2013 की है और उसी दिन प्रत्यर्थी/परिवादी ने चोरी की घटना की सूचना पुलिस थाने पर दिया है जिसकी प्रति की रसीद प्राप्त किया है और थाने की मोहर लगवाया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुलिस को सूचना देने में कोई विलम्ब नहीं किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी को भी सूचना देने में विलम्ब नहीं किया है। बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा गलत आधार पर नो क्लेम किया है और सेवा में कमी की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर कोई गलती नहीं की है। अपील बल रहित है और निरस्त किये जाने योग्य है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं० 15611 /2017 SLP(C) 742/2015 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व अन्य में पारित निर्णय दिनांक 04-10-2017 सन्दर्भित किया है।
मैंने उभय-पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वाहन की कथित चोरी के सम्बन्ध में थाना में दर्ज करायी गयी रिपोर्ट की प्रति अपील की पत्रावली के पृष्ट-30 पर लगायी है जिससे स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने थाना पर सूचना दिनांक 29-06-2013 को दिया है परन्तु पुलिस ने रिपोर्ट दिनांक 05-07-2013 को दर्ज रजिस्टर किया है। अत: यह कहना उचित नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्रक चोरी की सूचना पुलिस को विलम्ब से दी है।
बीमा कम्पनी के अनुसार बीमा कम्पनी को ट्रक चोरी की सूचना दिनांक 05-07-2013 को प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस द्वारा दर्ज किये जाने के बाद चोरी की कथित घटना के छ: दिन बाद दी गयी है। दिनांक 29-06-2013 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्रक चोरी की सूचना पुलिस को दिया है परन्तु पुलिस ने रिपोर्ट दिनांक 05-07-2013 को दर्ज किया है तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने सूचना बीमा कम्पनी को दिया है। इस प्रकार बीमा कम्पनी को सूचना विलम्ब से देने का कारण यह है कि पुलिस ने प्रत्यर्थी/परिवादी की रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी। बीमा कम्पनी को सूचना देने में 6 दिन विलम्ब का उचित कारण दिखता है। बीमा कम्पनी मात्र विलम्ब से सूचना देने के आधार पर वास्तविक बीमा दावा अस्वीकार नहीं कर सकती है जब विलम्ब से सूचना देने का उचित कारण हो जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल
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इंश्योरेंश व एक अन्य 2018 (1) सी०पी०आर० 907 एस.सी. के निर्णय में स्पष्ट मत व्यक्त किया है।
आई०आर०डी०ए० के सर्कुलर दिनांक 20-09-2011 में भी कहा गया है कि वास्तविक क्लेम मात्र विलम्ब के आधार पर अस्वीकार नहीं करना चाहिए। आई०आर०डी०ए० के सर्कुलर का संगत अंश नीचे उद्धृत है:-
"The insurers' decision to reject a claim shall be based on sound logic and valid grounds. It may be noted that such limitation clause does not work in isolation and is not absolute. One needs to see the merits and good spirit of the clause, without compromising on bad claims. Rejection of claims on purely technical grounds in a mechanical fashion will result in policyholders losing confidence in the insurance industry, giving rise to excessive litigation.
Therefore, it is advised that all insurers need to develop a sound mechanism of their own to handle such claims with utmost care and caution. It is also advised that the insurers must not repudiate such claims unless and until the reasons of delay are specifically ascertained, recorded and the insurers should satisfy themselves that the delayed claims would have otherwise been rejected even if reported in time."
युनाईटेड इण्डिया इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य बनाम राहुल कादियान 2018 (1) सी०पी०आर० 772 (एन०सी०) के निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने माना है कि यदि पुलिस में रिपोर्ट समय से दर्ज करायी गयी है तब बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने के आधार पर बीमा रेप्युडिएट नहीं किया जा सकता है। माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है:-
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" From the guidelines of the IRDA, it is clear that genuine claims are not to be repudiated on the basis of delay in intimation to the insurance company. In the instant case the specific condition in case of theft that police must be immediately informed, has been complied with and therefore the veracity of the incident cannot be questioned. Thus, the claim seems to be a genuine claim and therefore the above mentioned IRDA Circular seems to be applicable in the instant case. "
अपीलार्थी बीमा कम्पनी के अनुसार उसने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा दिनांक 20-03-2014 को वांछित सूचना व अभिलेख प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उपलब्ध न कराए जाने के कारण बन्द किया है। अत: यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा रेप्युडिएट नहीं किया है। बीमा कम्पनी ने ट्रक चोरी की घटना फर्जी नहीं बताया है। पुलिस ने भी विवेचना में चोरी की घटना फर्जी नहीं पाया है। सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार करने हेतु उचित आधार नहीं है। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार कर गलती नहीं की है।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा पुलिस को प्रश्नगत ट्रक की चोरी की घटना की जो सूचना दी गयी है उसके अनुसार ट्रक चालक ट्रक को अन्टेंडेंट छोड़कर गया है जिससे यह घटना घटित हुयी है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि ट्रक की सुरक्षा हेतु उचित उपाय नहीं किया गया है जिससे यह घटना घटित हुयी है। परन्तु इस आधार पर बीमा दावा पूर्णरूप से निरस्त नहीं किया जा सकता है।
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माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमलेन्दु साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 ।। (2010) सी०पी०जे० 9 एस०सी० के वाद में दिये गये निर्णय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा महावीर सिंह बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य 2018 (1) सी०पी०आर० 659 (एन०सी०) के वाद में दिये गये निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर 25 प्रतिशत की कटौती कर तय किया जाना उचित है। अत: जिला फोरम का निर्णय तदनुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा दिनांक 20-03-2014 को बन्द किया है। परिवाद वर्ष 2015 में समय सीमा के अन्दर प्रस्तुत किया गया है। अत: परिवाद में मियाद बाधक नहीं है।
जिला फोरम ने जो ब्याज व मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलाया है वह उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और अपीलार्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह 1499775/- रू० प्रत्यर्थी/परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज के साथ अदा करें और जिला फोरम द्वारा आदेशित 5000/-रू० क्षतिपूर्ति भी उसे अदा करें।
अपील में उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01