राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-1919/2011
पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लि0
......................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
मनीष श्रोत्रिय पुत्र बिन्दु लाल
..............प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी
श्री मनोज कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री राम कुमार श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 07.07.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, रामपुर द्वारा परिवाद संख्या-140/2007 मनीष श्रोत्रिय बनाम पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.09.2011 के विरूद्ध योजित की गयी है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी श्री मनोज कुमार एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री राम कुमार श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा वर्ष 1998 में अपने मकान के लिए घरेलू विद्युत कनैक्शन हेतु विपक्षी के यहॉं आवेदन किया तथा नियमानुसार धनराशि जमा की। तदोपरान्त विपक्षी के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा परिवादी को आश्वासन दिया गया कि उसके मकान में नया कनैक्शन मीटर
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सहित शीघ्र लगाया जायेगा, परन्तु उक्त विद्युत कनैक्शन नहीं लगाया गया।
परिवादी का कथन है कि परिवादी के भाई गौरव शर्मा के यहॉं वर्ष 2001 से विद्युत कनैक्शन चल रहा है, जिसका कनैक्शन संख्या 083469 संकेत 152 बुक संख्या 3318 है तथा उक्त कनैक्शन का परिवादी भी उपभोग कर रहा है, जिसका भुगतान समय से परिवादी के भाई द्वारा किया जा रहा है। विपक्षी द्वारा माह मार्च 2007 में 43,296/-रू0 का नोटिस उसे भेजा गया, जिसे लेकर परिवादी विपक्षी के अधिकारियों के पास लगातार गया, परन्तु उनके द्वारा उक्त बिल को निरस्त नहीं किया गया। इससे पूर्व कभी कोई बिल विपक्षी द्वारा नहीं भेजा गया।
परिवादी का कथन है कि उसके मकान पर कोई विद्युत कनैक्शन न होने के बावजूद भी विपक्षी के अधिकारी द्वारा उसके विरूद्ध आर0सी0 जारी करने की धमकी दी गयी। कथित विद्युत कनैक्शन संख्या 074606 बुक संख्या 3318 काल्पनिक है, जिसके सम्बन्ध में किसी वसूली का अधिकार विपक्षी को नहीं है। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी द्वारा प्रतिवाद पत्र में मुख्य रूप से कहा गया कि परिवादी द्वारा दिनांक 25.06.1998 को अपने कटिया कनैक्शन को नियमित करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया, जिसे नियमित कर कनैक्शन संख्या 152/3318/074606 दिया गया। विपक्षी के कर्मचारी द्वारा परिवादी को विद्युत लाइन लगाने व मीटर लगाने का आश्वासन कभी नहीं दिया गया। परिवादी विपक्षी की 6 डी स्कीम के तहत बिना मीटर के विद्युत उपभोग कर रहा है। परिवादी द्वारा 43,296/-रू0 के भुगतान से बचने के लिए झूठा कथन किया गया। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त यह पाया गया कि वर्ष 1998 में विपक्षी द्वारा परिवादी का कटिया कनैक्शन नियमित किया गया। चूँकि वर्ष 1998 से जुलाई 2007 तक विपक्षी
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द्वारा परिवादी को कोई बिल नहीं भेजा गया, इस कारण विद्युत अधिनियम की धारा 56 (2) व विद्युत सप्लाई कोड के क्लाज 6.15 के प्राविधानों के अनुसार विपक्षी केवल दो वर्षों के विद्युत मूल्य का भुगतान प्राप्त कर सकता है। इसके विरूद्ध कोई प्राविधान विपक्षी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया:-
''परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। परिवादी विपक्षी को 2 वर्ष के विद्युत मूल्य का भुगतान 170.00 रू0 प्रतिमाह की दर से एक माह में करे अन्यथा विपक्षी को इसे वसूलने का अधिकार दिनांक 15.09.2007 से 6 प्रतिशत सालाना ब्याज सहित होगा।''
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुनने के उपरान्त तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय एवं आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त मेरे विचार से प्रस्तुत अपील में कोई बल नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है, वह पूर्णत: सुसंगत है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती है।
अतएव, प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1