राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-936/2015
( सुरक्षित )
( जिला फोरम, रायबरेली द्वारा परिवाद संख्या-232/2010 में पारित आदेश दिनांकित 22-04-2015 के विरूद्ध )
- श्रीमान् एच0डी0एफ0सी0 बैंक लिमिटेड, द्वारा शाखा प्रबंधक निकट आचार्य द्विवेदी इंटर कालेज सेकेण्ड गेट के सामने शहर व जिला रायबरेली।
- श्रीमान् एच0डी0एफ0सी0 बैंक लिमिटेड द्वारा रीजनल मैनेजर द्वितीय तल, 31/31 महात्मा गॉधी मार्ग, लखनऊ शहर व जिला लखनऊ उत्तर प्रदेश।
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम्
मनीष त्रिवेदी पुत्र श्री विजय त्रिवेदी निवासी म0-नं0-221/1, निकट कालीदेवी मन्दिर सत्यनगर शहर व जिला रायबरेली, उत्तर प्रदेश।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री मनु दीक्षित।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0 के0 मिश्रा।
दिनांक :24-08-2016
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-232/2010 मनीष त्रिवेदी बनाम् श्रीमान् एच0डी0एफ0सी0 बैंक लि0 व अन्य में जिला फोरम, रायबरेली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 22-04-2015 क विरूद्ध यह अपील अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत की गयी है। विवादित निर्णय इस प्रकार है :-
'' परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। परिवादी के विरूद्ध कथित बकाया निरस्त किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी के एफ0डी0आर0 से कटौती की
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गयी धनराशि रू0 32103/-रू0 तथा इस धनराशि पर दिनांक 15-10-2010 से अदायगी की तिथि तक छ: प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दो माह में अदा करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में 1000/-रू0 तथा वाद व्यय के रूप में 500/-रू0 भी आज से दो माह में अदा करें। समय समाप्ति के बाद क्षतिपूर्ति तथा वाद व्यय की कुल धनराशि मु0 1500/-रू0 पर भी परिवादी अदायगी की तिथि तक विपक्षीगण से छ: प्रतिशत साधारण ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने दिनांक 14-09-2004 को विपक्षी संख्या-1 से हीरो हाण्डा स्प्लेण्डर प्लस मोटर साइकिल खरीदने हेतु फाइनेन्स स्वीकृत कराया। विपक्षी विभाग के कर्मचारी द्वारा नगद रू0 15,000/- मार्जिन मनी के रूप में जमा करायी गयी तथा शेष धनराशि हेतु 24 चेक हस्ताक्षरयुक्त जमा करवा लिये तथा दो वर्ष की ऋण अवधि बताया व 1428/-रू0 प्रतिमाह किश्तें अदा करनी थी। परिवादी द्वारा दिनांक 23-07-2005 को रू0 5712/-रू0 जमा कर दिया गया उसके बाद किश्तों के रूप में कुल रू0 21420/- का भुगतान किया गया। वर्ष 2006 की किश्त जमा करने के बाद कोई भी कर्मचारी एच0डी0एफ0सी0 बैंक का उपलब्ध नहीं था। अगस्त, 2007 में एक कर्मचारी आया तथा कहा कि आपका चेक बाउन्स हो गया है आप पैसा जमा कर दें। उसी कर्मचारी को परिवादी ने रू0 10,000/- नकद जमा कर दिया रसीद तथा ऋण मुक्ति प्रमाण पत्र बाद में देने को कहा गया। परिवादी द्वारा समस्त ऋण रू0 47,848/- विपक्षीगण के विभाग में जमा कर दिया। अक्टूबर, 2010 में एक कार खरीदने के बारे में विपक्षीगण से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि रू0 1,50,000/-रू0 की एफ0डी0 हमारी शाखा में जमा कर दें तो आपका
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ऋण स्वीकृत हो जायेगा। पुन: रू0 50,000/- जमा करने का निर्देश दिया गया तो परिवादी द्वारा उक्त धनराशि भी जमा कर दी गयी। बाद में जब परिवादी विपक्षी संख्या-1 के कार्यालय गया तो बताया गया कि आपका मोटर साइकिल का ऋण बकाया है जिसकी अदायगी आपको करनी होगी जिसके समायोजन हेतु रू0 8000/-रू0 करने को कहा गया। परिवादी की एफ0डी0 की धनराशि रू0 2,01,616/-रू0 में से रू0 32,000/- का भुगतान उसे नहीं किया गया और खाता सील कर दिया गया। आज भी परिवादी वास्तविक धनराशि जमा करने को तैयार है। विपक्षीगण के उक्त कृत्य से परिवादी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अत: परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादीगण ने याचना किया है कि उसे ऋण अदायगी में जमा धनराशि रू0 32103/-रू0 की जमा तारीख से उचित ब्याज दर तथा मानसिक शारीरिक क्षतिपूर्ति दिलाया जाए।
विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में कहा है कि परिवादी को ऋण दिया गया था जिसके एवज में उसने चेक दिया जो बाउन्स हो गया। परिवादी के खाते से संबंधित स्टेटमेंट दाखिल किया गया है जिससे यह तथ्य प्रमाणित हो जायेगा। परिवादी ने बैंक के बकाये भुगतान के संबंध में तथ्यों को छिपाया है। परिवादीने दिनांक 23-09-2006 को कोई धनराशि जमा नहीं की है साथ ही परिवादी तथा बैंक के मध्य हुए अनुबंध का अनुपालन भी परिवादी द्वारा नहीं किया गया है ऐसी स्थिति में परिवादी का परिवाद बलहीन होने के कारण खारिज किये जाने योग्य है। विपक्षीगण का यह भी कथन है कि उनके किसी कर्मचारी द्वारा परिवादी से रू0 10,000/- नहीं प्राप्त किया गया।
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पीठ के समक्ष अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री मनु दीक्षित तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0 के0 मिश्रा उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क सुने तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों व जिला मंच द्वारा पारित निर्णय का परिशीलन किया।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी/प्रत्यर्थी को ऋण दिया गया था उसके एवज में उसने चेक दिया था जो बाउन्स हो गया था। परिवादी/प्रत्यर्थी ने बैंक के बकाये भुगतान के संबंध में तथ्यों को छिपाया है। परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 23-06-2016 को कोई धनराशि जमा नहीं की साथ ही बैंक तथा परिवादी के मध्य हुए अनुबंध का पालन नहीं किया है तथा परिवादी/प्रत्यर्थी ने उसके किसी कर्मचारी को 10,000/-रू0 नहीं दिये और न ही किसी ने बैंक को प्राप्त कराये। जिला फोरम ने तथ्यों तथा साक्ष्यों के विरूद्ध अनुचित आदेश पारित किया है उसे अपास्त कर अपील स्वीकार की जाये।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षी बैंक से ऋण लिया था जो विभिन्न तिथियों में 21420/-रू0 नगद भुगतान कर दिया। वर्ष 2006 की किश्त जमा करने के बाद कोई कर्मचारी एच0डी0एफ0सी0 का उपलब्ध नहीं था और न कोई स्थानीय शाख या बैंक आफिस सम्पर्क हेतु उपलब्ध था। फिर अगस्त 2007 में एक कर्मचारी आया और कहा कि उसका चेक बाउन्स हो गया है आप अभी 10,000/-रू0 नगद जमा कर दे। परिवादी/प्रत्यर्थी ने उसके विश्वास में आकर 10,000/-रू0 नगद जमा कर दिया और रसीद मांगने पर नहीं दी गयी और कहा गया कि
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आफिस में मिलान करके इस धनराशि का समायोजन करते हुए ऋण मुक्ति प्रमाण पत्र तथा रसीद लाकर दे देंगे।
परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा समस्त ऋण मु0 47,848/-रू0 विपक्षी/अपीलार्थी के विभाग में जमा कर दिया। इसके बाद किसी कर्मचारी ने कोई सम्पर्क नहीं किया और न कोई नोटिस दिया। अक्टूबर, 2010 में विपक्षीगण/अपीलार्थी से एक कार फाइनेंस हेतु गया तो अपीलार्थी के विभाग में बताया गया कि आप 1,50,000/-रू0 की एफ0डी0 हमारी शाखा में कर दें तो समस्त औपचारिकताऍं पूर्ण करके आपका ऋण स्वीकृत हो जायेगा। उक्त धनराशि की एफ0डी0 जमा करने पर बताया गया कि 50,000/-रू0 और जमा कर दो तो फाइनेंस होगा। परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा उक्त धनराशि भी जमा कर दी गयी। इसके बाद परिवादी/प्रत्यर्थी विपक्षीगण/अपीलार्थी के यहॉं गया तो बताया कि आपकी मोटर साइकिल का ऋण बकाया है उसकी अदायगी पर ही ऋण मिलेगा। उक्त मद में विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा 8000/-रू0 जमा करने को कहा गया तो परिवादी/प्रत्यर्थी उक्त धनराशि जमा करने को तैयार हो गया। अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 दिनांक 12-10-2010 को अपने वादे से मुकर गया तब परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपनी जमा धनराशि मु0 1,69,000/-रू0 ले ली तभी दिनांक 15-10-2010 को एच0डी0एफ0सी0 बैंक, लखनऊ द्वारा एक पत्र परिवादी को मिला जिसमें 32,103/- बकाया बताया। जिसको परिवादी/प्रत्यर्थी की एफ0डी0 से काट लिया और शेष धनराशि वापस कर दी। अपीलार्थी/विपक्षी की उक्त कार्यवाही विधि विरूद्ध है जिसे जिला फोरमने विधि अनुसार वापस करने का आदेश किया है अत: अपील निरस्त की जाये।
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पत्रावली के परिशीलन से यह प्रकट होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी के स्वयं के अनुसार 2007 में 8000/-रू0 विपक्षी/अपीलार्थी का बकाया था तथा तथा 10,000/-रू0 का एक चेक बाउन्स भी स्वीकार किया है तथा 10,000/-रू0 को नगद अपीलार्थी के कर्मचारी को देना कहा है उसकी कोई रसीद या कोई लिखित अभिलेख नहीं है तथा अपीलार्थी ने धनराशि नगद प्राप्त करना स्वीकार नहीं किया है। इससे स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी की ऋण की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी पर बकाया थी तथा परिवादी/प्रत्यर्थी ने वह धनराशि दिनांक 15-10-2010 के पहले तक जमा नहीं की। परिवादी/प्रत्यर्थी ने 47,848/-रू0 अपीलार्थी के यहॉं जमा करना कहा है लेकिन इस सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी का कोई साक्ष्य अपील के स्तर पर भी नहीं दाखिल किया गया है जबकि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध कागज संख्या-35 लगायत 50 तक एनेक्जर व नोटिस एवं बैंक एकाउन्ट आदि दाखिल किये है जिनसे यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी ने समय-समय पर नोटिस परिवादी/प्रत्यर्थी को दी है तथा किसी तिथि को कितनी धनराशि के चेक जा किये व कौन-कौन से चेक बाउन्स हुए यह सब बैंक स्टेटमेंट से स्पष्ट है। अत: अपीलार्थी की अपील में बल पाया जाता है। जिला फोरम ने तथ्यों तथा साक्ष्यों की अनदेखी करते हुए विधि विरूद्ध आदेश पारित किया है जो अपास्त किये जाने योग्य है। तद्नुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
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आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, रायबरेली द्वारा परिवाद संख्या-232/2010 में पारित आदेश दिनांकित 22-04-2015 अपास्त किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा