Uttar Pradesh

StateCommission

A/2010/1165

Gorakhpur Development Authority - Complainant(s)

Versus

Manish Kumar Singh - Opp.Party(s)

Shailesh Ch Tiwary

09 May 2011

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2010/1165
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Gorakhpur Development Authority
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1165/2010

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-32/2006 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18-06-2009 के विरूद्ध)

 

गोरखपुर विकास प्राधिकरण द्वारा सचिव, गोरखपुर।

                                                                        अपीलार्थी/विपक्षी

                                                    बनाम

मनीष कुमार सिंह पुत्र श्री उदयमान सिंह निवासी कचहरी बस स्‍टेशन, जिला गोरखपुर1                      

                                      प्रत्‍यर्थी/परिवादी.

समक्ष :-

1-   मा0  श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य।

2-   मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

 

1-  अपीलार्थी की ओर से उपस्थित -   कोई नहीं।

2-  प्रत्‍यर्थी  की ओर से उपस्थित -    कोई नहीं।

दिनांक : 11-12-2014

श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍या द्वारा उदघोषित निर्णय :

अपीलार्थी ने प्रस्‍तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-32/2006 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18-06-2009 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की है जिसमें विद्धान जिला मंच ने परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध इस रूप में स्‍वीकार किया है कि निर्णय से एक माह के अंदर विपक्षी परिवादी को प्रदेशन पत्र संख्‍या-70 दिनांक 06-07-2004 से आवंटित भूखण्‍ड के संबंध में अपने सक्षम अधिकारी द्वारा पारित आदेश या प्राधिकारवान संस्‍थान, जिसके निर्देश पर आवंटन निरस्‍त किया गया, उक्‍त आदेशों की प्रमाणित प्रति, जिसमें प‍रिवादी का आवंटन आदेश निरस्‍त करने का विशिष्‍ट कारण भी उल्लिखित हो, रजिस्‍टर्ड डाक/दस्‍ती प्राप्‍त करावे और प्राप्‍त कराने के एक सप्‍ताह के अंदर अपने विभागीय नियमानुसार परिवादी की जमा धनराशि बिना किसी कटौती के तथा जमा तिथि से 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज की दर से भुगतान तिथि तक भुगतान किया जाना सुनिश्चित करे। इसके अतिरिक्‍त परिवादी को हुए शारीरिक एवं मानसिक कष्‍ट के लिए 10,000/-रू0 एवं परिवाद व्‍यय 1,000/-रू0 अदा करे। किसी विधि सम्‍मत आवंटन निरसन आदेश अभाव में परिवादी को उसी योजना में उक्‍त भूखण्‍ड उपलब्‍ध होने पर अथवा उसकी स्‍वेच्‍छानुसार किसी अन्‍य योजना में उसे क्षेत्रफल का भूखण्‍ड उसी दर पर

 

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आवंटित करके पंजीयन कराने/करने एवं अधिपत्‍य प्राप्‍त करने/देने का विकल्‍प दोनों पक्षों के लिए खुला रहेगा, से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

     उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण अनुपस्थित। पीठ द्वारा प्रस्‍तुत अभिलेख का अवलोकन किया गया।

     पत्रावली का अवलोकन यह दर्शाता है कि दिनांक 18-06-2009 के प्रश्‍नगत आदेश की प्रति दिनांक 27-06-2009 को प्राप्‍त करने के उपरान्‍त अपील दिनांक 08-07-2010 को प्रस्‍तुत की गयी है, जो कि प्रथम दृष्‍टया समय-सीमा अवधि से बाधित है।

     अपीलार्थी की  ओर से न तो कोई उपस्थित आया और न ही उनकी ओर से स्‍थगन हेतु प्रार्थना पत्र ही प्रस्‍तुत किया गया है और प्रश्‍नगत अपील अंगीकरण के स्‍तर पर लगभग एक वर्ष से विचाराधीन है। अपीलार्थी ओर से समय-सीमा अवधि में छूट सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें यह कहा गया है सूचना मिलने पर समयानुसार अपील दायर करने की कार्यवाही आरम्‍भ करवा दी गयी और अधिवक्‍ता श्री शैलेन्‍द्र चन्‍द्र तिवारी ने तैयारी शुरू कर दी तथा बैंक ड्राफ्ट बनवाना एवं विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी गयी तथा अपील तैयार करने के बाद जून की छुट्टियाँ शुरू हो गयी इसलिए अपील दाखिल करने में विलम्‍ब जानबूझकर नहीं किया गया है। जो विलम्‍ब हुआ वह विभागीय कार्यवाही के कारण हुआ जिसे क्षमा किया जाये।

     उपरोक्‍त वर्णित तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में यह अवलोकनीय है कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-1166/2006 बलवन्‍त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्‍य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्‍बन्‍धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्‍यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में वह सभी सम्‍भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्‍यक देरी कारित न होने के लिए आवश्‍यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्‍यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्‍या किसी भी  प्रकार से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्‍य बनाम रीवा कोलफील्‍ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्‍त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्‍वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्‍योंकि पर्याप्‍त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्‍यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा

 

3

सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्‍यायालय को यह विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है कि न्‍यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए अथवा नहीं और इस स्‍तर पर अपील से सम्‍बन्धित सभी संगत तथ्‍यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं। यद्यपि स्‍वाभाविक रूप से इस अधिकार को न्‍यायालय द्वारा संगत तथ्‍यों पर कुछ सीमा तक ही विचार करने के लिए प्रयुक्‍त करना चाहिए।

     हाल ही में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल तथा अन्‍य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्‍य, सिविल अपील संख्‍या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्‍पन्‍न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्‍थानों, प्रबन्‍धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्‍वीकार किए जाने योग्‍य स्‍पष्‍टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्‍य में स्‍पष्‍ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्‍य स्‍पष्‍टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्‍य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्‍व होता है कि वे अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके  लिए  समान  रूप  से

उपलब्‍ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्‍त किया जाए।

     आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्‍वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC) में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्‍पष्‍ट किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है? क्‍योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्‍बन्‍ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई

 

 

 

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देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किए जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गयी अपील को बिना सदभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण सम्‍बन्‍धी उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा।

     उपरोक्‍त सन्‍दर्भित विधिक सिद्धान्‍तों के परिप्रेक्ष्‍य में हमने अपीलार्थी द्वारा प्रदर्शित उपरोक्‍त तथ्‍यों का अवलोकन एवं विश्‍लेषण किया है और यह पाया है कि स्‍पष्‍टतया उपरोक्‍त सन्‍दर्भित स्‍पष्‍टीकरण सदभाविक स्‍पष्‍टीकरण नहीं है, ऐसा स्‍पष्‍टीकरण नहीं है जिससे अपीलार्थी अपील योजित किए जाने में हुई देरी से बच नहीं सकता था।  दिनांक 18.06.2009 के विवादित आदेश की सत्‍य प्रतिलिपि दिनांक 27.06.2009 को प्राप्‍त कर लिए जाने के उपरान्‍त भी प्रदत्‍त सीमा अवधि दिनांक 27.07.2009 तक अपील न किए जाने और दिनांक 08.07.2010 को अर्थात् लगभग एक वर्ष बाद इस अपील को योजित किए जाने का कोई स्‍पष्‍ट औचित्‍य नहीं है। देरी होने सम्‍बन्‍धी तथ्‍य को जिस प्रकार से वर्णित किया गया है, उससे यह नहीं लगता है कि उसके अलावा कोई विकल्‍प अपील में देरी से बचने का  नहीं  था।  अत:  हम  धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा प्रदत्‍त 30 दिन की कालावधि के अवसान के पश्‍चात् यह अपील ग्रहण किए जाने योग्‍य नहीं पाते हैं क्‍योंकि अपीलार्थी उस अवधि के भीतर अपील न योजित करने के सम्‍बन्‍ध में पर्याप्‍त कारण के प्रति ऐसा स्‍पष्‍टीकरण प्रस्‍तुत करने में  विफल है, जिससे हमारा समाधान हो सके कि कालावधि के अवसान के पश्‍चात् अपील ग्रहण की जा सकती है। अत: यह अपील, अपील को अंगीकार किये जाने  के प्रश्‍न पर सुनवाई करते हुए ही समय-सीमा से बाधित होने के कारण अस्‍वीकार की जाने योग्‍य है।

                                  आदेश

     अपील उपरोक्‍त अस्‍वीकार की जाती है। उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍ययभार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

 

         (आलोक कुमार बोस)                   (बाल कुमारी)     

      पीठासीन सदस्‍य(न्‍यायिक)                    सदस्‍य

    प्रदीप मिश्रा कोर्ट-5

 

 
 
[HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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